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सूर्यपाल सिंह का साहित्य-एक धरोहर

          सूर्यपाल सिंह का साहित्य-एक धरोहर                                     

                            रामगोपाल भावुक

       

         प्रसिद्ध समालोचक बजरंग बिहारी तिवारी के सौजन्य से अपनी रत्नावली उपन्यास का विमोचन कराने गौंडा जाने का अवसर मिला। किस्साकोताह के सम्पादक श्री ए. असफल जी को भी बुलाया गया था। हम दोनों ने बरौनी मेल से रिजर्वेशन करा लिया।

         श्री बजरंग बिहारी जी के निर्देशानुसार गौंडा स्टेशन पहुँचकर श्री सूर्यपालसिंह जी को फोन लगाया। वे बोले-’मैं स्टेशन आ रहा हूँ।’

        हम दोनों स्टेशन से बाहर आ गये। हम उनसे मिलने बेचैन हो रहे थे कि कुछ देर बाद हट्टे- कट्टे एक वयोवृद्ध व्यक्ति सामने खड़े थे। मुझे विश्वास नहीं हुआ कि ऐसा सरल सा वयोवृद्ध व्यक्ति हमें रात्रि के समय यहाँ लेने आयेगा। उनके साहस को देखकर मैं आश्चर्य महसूस कर रहा था। खैर, हम दोनों सिंह साहब के साथ ओटो में उनके घर आ गये।

         जैसे ही हमने उनके घर में प्रवेश किया। उनके घर के परिजनों से मिलकर सफर की सारी थकान तिरोहित हो गई। चाय-नास्ते के बाद स्नान किया और आराम करने पलंग पर लेट गये । हम दोनों ने एक-एक झपकी ले ली, तो रात की सारी थकान विदा हो गई।

      वे गौंडा से निकलने वाली प्रसिद्ध पत्रिका पूर्वापर के सम्पादक हैं। इस पत्रिका के पचास से अधिक अंकों का सम्पादन करके वे उन्हें प्रकाशित कर चुके हैं। इस पत्रिका में गौंडा जनपद के अतिरिक्त देश- प्रदेश के विद्धानों के लेख, कवितायें और कहानियों के अलावा प्रकाशित पुस्तकों की समीक्षायें भी प्रकाशित की जाती हैं। इस तरह इस पत्रिका ने गौंड जनपद की साँस्कृतिक धरोहर को प्रसारित कर अपनी अलग पहचान बनाई हैं।

          इसके अतिरिक्त उन्होंने मलयालम साहित्य प्रतीक और प्रतिमान जैसे ग्रंथों का संपादन भी किया है। इसमें मलयालम साहित्य से सम्बन्धित बृहद एवं पठनीय पचपन आलेखों का संग्रह है।

         हम जिस कक्ष में आराम कर रहे थे वहीं कम्पूटर पर टाइप राइटर वाला सुबह पांच बजे से ही पत्रिका के काम में व्यस्त था। वे उसे धारा प्रवाह बोलते हुये पूर्वापर पत्रिका के नये अंक की सम्पादकीय लिखाते जा रहे थे। वहीं एक टेविल पर रखी पूर्वापर पत्रिका की एक प्रति मैंने उठाली, जिससे उनके काम में विघ्न न पड़े। मैं पत्रिका पढ़ने लगा।

        उनकी मेहमान नमाजी देखकर उनमें मेरी श्रद्धा के भाव जाग्रत होना स्वाभाविक हैं। हम समय से कार्यक्रम में पहुँचने के लिये तैयार हो गये। हम सूर्यपाल सिंह जी के साथ ही उनकी कार से कार्यक्रम स्थल पर पहुँच गये।

      कार्यक्रम की भव्यता का वर्णन करूँ तो अनेक पृष्ठ रंग जायेंगे। दूसरे दिन मैं और असफल जी तुलसी जन्म स्थली के दर्शन करने निकल पड़े। इस प्रसंग का वर्णन मैं तुलसी जन्म स्थली राजापुर गौंडा ही के यात्रा वृतांत में कर चुका हूँ। यह आलेख पूर्वापर पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है।

          सूर्यपाल सिंह जी ने अनेक ग्रंथों की रचना की हैं। आज उनका समग्र पाँच भागों में हमारे सामने है।

          ग्रंथावली भाग -1 में काव्य की अवधारणाओं को इसमें स्थान दिया है। 1. पर अभी संभावना हैं। 2. रात साक्षी है। 3. धूप निकलेगी। 4. सपने बुनते हुए और 5. नये पत्ते। हर सर्ग का अपना अस्तित्व है। इनमें भाव और भावनाओं का गहन चिन्तन हैं।

          वेदराम प्रजापति लिखते हैं-‘काव्य संकलन की भाषा सरल है। जिससे पाठक काव्य में आये कठिन भावों को भी आसानी से ग्रहण कर लेता है। व्याकरण के नियमों के साथ सामाजस्य बनाये रखा है। इस तरह यह उनकी काव्य कला की पहचान कराने वाला ग्रंथ है।’

       सूर्यपाल सिंह ग्रन्थवली भाग -2 को दो भागों में विभाजित किया है। इसके पहले भाग ‘गीत गाने दो मुझे’ में उनके पांच नाटकों का संग्रह है। 1 गीत गाने दो मुझे’ महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के जीवन वृत पर आधारित नाटक है। जिसमें निराला जी के जीवन के अछूते प्रसंगों को दर्शकों के समक्ष रखा गया है।

      2 उन्हें नींद नहीं आती नाटक में जनता की समस्याओ के साथ उनकी नब्ज पहचानने का प्रयास किया है।

      3 नशा में राजनीति को एक नशे के रूप में प्रस्तुत किया हैं, इसमें हिन्दू-मुस्लिम दंगों की समस्या के माध्यम से राजनैतिक परिवेश का चित्र अंकित किया हैं।

      4 तनुदा का अपहरण में नाटक संकलन में आपने नौ नाटक समहित किये हैं। इसमें तनुदा का अपहरण, फुटपाथिया, घर, आजादी का पौधा, टिंकू हाजिर हो, दियना जलाओ, परतों के बीच, पागल और दराज जैसे नाटक आपने लोगों की मांग पर लिखे हैं। जिनका समय समय पर सफलता पूर्वक मंचन किया गया है। जिसमें आजादी का पौधा नाटक तो देश के स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित हैं। जिसमें सुभाषचन्द्र बोस तथा पं जवाहरलाल नेहरू पात्र के रूप में स्थान पा गये हैं।

       इसी भाग दो में नीड़ कहानी संग्रह में कथारस भूमिका के साथ अठारह कहानियाँ समाहित है।

      सूर्यपाल सिंह ग्रन्थवली भाग-3 में आपके तीन उपन्यास स्थान पा गये हैं

       इसमें कंचन मृग, शाकुन पाँखी और कोमल की डायरी समाहित किये गये है। इन कृतियों के बारे में समीक्षक वेदराम प्रजापति लिखते हैं-‘आपके इन तीनों उपन्यासों में भूतकाल की घटनाओं के साथ वर्तमान को भी दर्शाने का अनूठा संयोग दिया गया है। प्रत्येक खण्ड का दृश्य दर्शन मन भावुक है,जिसमें संवेदेनशील व्यक्तित्व की सार्थक पहल अद्भुत दस्तावेज देती है, जो आज की वर्चस्ववादी तकतों से संघर्ष करने का संकेत है। नैतिक धरती का विजयतूर्य इनका मूलाधार है।

        सूर्यपाल सिंह ग्रन्थवली भाग -4 में आपके और तीन उपन्यास स्थान पा गये हैं। इनमें ‘मनस्वी’ उपन्यास एक शोक गाथा हैं’। आत्मकथ्य शैली में लिखी करुण दास्ता है। इसे बारह अनुच्छेदों में समेटा गया हैं। मनस्वी का कुल जीवन, ग्यारह वर्ष सात माह और सात दिन इस जगत में रही। यह मनस्वी की पांच दिनों की स्मृति कथा हैं। बालिका के मन में उठे बाल सुलभ प्रश्नों के उत्तर दिये गये हैं। इसका अंतिम अनुछेद बारह तो काव्यमय समापन का साक्षी है।

         यह बाल उपन्यास पठनीय एवं संग्रहणीय है।

        ‘अपना आकाश’ एक पुरवे की कथा है। जिसके लोग समस्याओं को हल करने के लिये जी जान लगा देते हैं। जिसमें वे धारासयी भी हो जाते है। गिरने के बाद फिर उठने का प्रयास करते हैं। यह कथा एक पुरवे की ही नहीं है बल्कि देश के सभी पुरवों की कथा है। इक्कीसवी सदी में अपना आकाश तलाशने की रोचक  कथा हैं

 निश्चय ही ऐसी कृतियाँ पढ़ी जाना चाहिए।

          और ‘आँच’ उपन्यास में 1857 के विद्रोह पर केन्द्रित कथा कही गई हैं। राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत यह कथा संधर्ष की पृष्ठभूमि को उकेरती है। पाठक इसे पढ़ना शुरू करदे तो इसका पूरा पाठ करके ही  रहता हैं’

       इस उपन्यास की खास बात यह कि इसे अथ जिज्ञासा! जैसे सोलह सोपानों में बांटकर रचा हैं। इसका प्रत्येक प्रसंग एक अलग कहानी का आनन्द देता है। इसमें रचनाकार ने खूब किस्सा गोई उडेली है।

      सूर्यपाल सिंह ग्रन्थवली का भाग-5 निबन्धों, सम्पादकीयों एवं ठिप्पणियों पर केन्द्रित है। इसमें आपकी चार पुस्तकों के आलेख समाहित किये गये हैं 1 पछी यहाँ  नहीं रहते में लोकोक्तियाँ गहरे पैठती हैं, हिन्दी दिवस, गजल गजल होती है जैसे चौतीस विषयों पर गहन चिन्तन मनन के साथ निष्कर्ष प्रस्तुत किये हैं।

2  बेहतर समाज के लिए में कथ्य और शिल्प, संवेदनशील पंछी, हम गांव से आये हैं। जैसे विषयों पर लिखे  सभी लेख गोनर्द की माटी से सने हैं।

3 ओ सेमल के तोते में पूर्वापर पत्रिका के सम्पादकीयों, कुछ महान रचनाकारों के साक्षत्कारों तथ मीड़िया -विचार के इक्यावन लेखों का संग्रह हैं

4 कुछ रेखाएँ कुछ रंग में छोटे- छोटे उन्तीस निबन्धों का संग्रह है। इनमें नौ आलेखों का तो लोकगीतों से सम्बध है। इन आलेखों को पढ़कर हम समस्याओं के सही रूप से रू-ब-रू हो सकते हैं।

      मैं यदि इन सभी ग्रंथों पर गहरी दृष्टि डालता तो सारे काम छोड़कर एक एक खण्ड को एक एक माह का समय भी कम पड जाता। सच कहें तो आपने जीवन का जितना समय लेखन में लगाया है उतना ही समय पाठक को भी देना ही चाहिए।

       चूकि मैं एक कथाकार हूँ। सूर्यपाल सिंह ग्रन्थवली भाग -2 के दूसरे हिस्से नीड़ में आपकी अठारह कहानियाँ समाहित हैं।

          इस संकलन की भूमिका कथारस में सूर्यपाल सिंह जी लिखते हैं-‘यह सांस्कृतिक संकट का समय है। संस्कृतियाँ विविधता का खतरा बराबर बना हुआ हैं। विविधता को हम कैसे बचायें? यह प्रश्न हर सर्जक के मस्तिष्क में बार- बार कौंधता हैं।

            साहित्यकार समाज को अपने ही दम पर बदल तो नहीं सकता पर वह ऐसा परिवेश अवश्य निर्मित कर सकता हैं जिससे अपेक्षित बदलाव सम्भव हो सके।

            इस तरह कथारस के माध्यम से बदलाव की सम्भावनायें तलाशने में लगे हैं। कथा का मूल किस्सागोई अब भी हैं । कहानी दार्शनिक विचार का बोझ लेकर नहीं चलती। उनमें कथारस होना ही चाहिए।

            नीड़ कहानी कपोत- कपोती के जोड़े की पारिवारिक प्रेम कहानी हैं। कपोती अण्डा देने वाली है। इसके लिये वे एक पेड़ पर घोंसला बनाने का प्रयास करते हैं। कोई उस पेड़ को काट लेता है। वे बेघरबार हो जाते है। बार बार उनका घोसला बनाने का प्रयास विफल रहता है। अन्त में एक स्त्री अपने बच्चे को पीठ पर लेकर दही बेचने जा रही है। उस डलिया में उसका प्रसव हो जाता है। यह देखकर वह स्त्री उन्हें अपने घर ले आती हैं पति से कहकर उनकी देखभाल करने लगती है। 

           हमारे समाज में कुछ लोग मानवता के हत्यारे हैं किन्तु कुछ गरीब होने पर भी संवेदनशील हैं।

           ऐसे ही उदेश्य पूर्ण विषय पर लिखी किन्ने, सन्तो और धाधू संघर्ष शील पात्रों की कहानियाँ हैं। जो पाठक के हृदय में अपना स्थान बना लेतीं हैं।

      अब हम उनकी लावारिस और उदास चेहरा कहानियों की बात करें। लावारिस में मेलाराम मुम्बई जाकर फल बेचने का काम करने लगता है। महाराष्ट्र बाद के कारण उस प्रान्त के लोग किसी दूसरे प्रान्त के व्यक्ति से अपना काम कराना पसन्द नहीं करते। मेलाराम के फल फैंक दिये जाते हैं और उसे मारपीट करके घायल कर दिया जाता है। अस्पताल में उसे लावारिस घोषित कर दिया जाता है। उसका ठीक से इलाज नहीं किया जाता। उसकी मृत्यु हो जाती हैं। प्रान्त बाद की हवा राष्ट्रहित में घातक हैं। इसकी अगली कहानी उदास चेहरा है। यदि उदास चेहरे कहानी को लावारिस कहानी के प्रारम्भ में जोड दिया जाता तो यह एक सशक्त कहानी बनकर सामने आ जाती। इसी विषय पर आपकी दूसरी कहानी ‘बिरजू की पाती है।’ वह प्रान्तबाद की समस्या से त्रस्त होकर प्रधान मंत्री जी को चिठ्ठी लिखता हैं लेकिन उसमें उनका पता सही नहीं लिख पाता है तो चिठ्ठी वापस लौट आती हैं, उसकी आशा निराशा में बदल जाती हैं। आप चाहते तो पहली कहानी में भी पत्र लेखन की बात जोड़ सकते थे।

      वर देखुआ कहानी जनजीवन में समाहित लोक संस्कृति के आधार पर रची बासी कहानी है। वर्मा जी की लड़की डाक्टर हैं । वे उसके लिये अनेक लड़के देख चुके लेकिन सम्बन्ध कहीं नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि कमाऊ लड़की को घर से दूर नहीं कर पा रहे हैं।

      ठीया कहानी चन्दन बाबू को सेवा निवृति हुए बहुत दिन हो गये। जब पत्नी चल बसी तो वे अपने पुत्र और पुत्र वधू के साथ शहर चले जाते हैं, लेकिन वहाँ उन्हें अच्छा नहीं लगता और वे अपने ठीये पर आनन्दित होते हुए वापस लौटते  हैं।

             खिलखिलाहट में  एक कम्पनी में दो साथ काम करने वाले माधवन और वीना नाम के स्त्री- पुरुष की कहानी है जो बिना शादी- ब्याह के बंधन में बंधे खिलखिलाहट भरे जीवन जीने की राह तलाशते हुए जीवन जीना चाहते हैं।

      बुच्चू कहानी में बुच्चू बीमार है। जब वह बहुत अधिक बीमार होने लगता है तों सहयोग के लिये ऊधौ को बुलाता हैं। जबतक ऊधौ डाक्टर को बुलाकर लाता है वह बेहोश हो जाता हैं। डाक्टर एक सुई लगाकर भगवान का भरोसा दिलाते हुए चला जाता हैं। ऊधौ उसके बैंक के कागज-पत्रों की तलाश करने लगता है किन्तु उसे कुछ भी हाथ नहीं लगता। वह सुबह पूरी तरह ठीक हो जाता है। तो  अपनी बक्स की चाबी को यथावत पाता है।

      ऊधौ बुच्चू की बेहोशी की हालत में बैक में जमा की जाने वाली पर्चियों की तलाश कराता दिखता है। अरे जमा पर्ची से बैक में जमा धन का पता तो लग जायेगा पर वह उसमें से निकाल तो नहीं पायेगा। इसमें बैंक की प्रणाली के होमवर्क में कमी खलती है।

          मासूम कहानी में विश्वविद्यालय परिसर के वाचनालय में एक युवती ने युवक को देखा। वह उसके पास जाकर हाय हलो करती हैं। वह उसकी बातें सुनकर उससे कहती है-तो तुम बच्चे हो..... बिल्कुल मासूम। जब वह लड़का घर लौट आता है तो वह उसकी मां से फोन पर कहती है। तुम्हारा लड़का कालेज की लड़कियों के पीछे चक्कर लगाता रहता है। इसके आगे रचनाकार कहानी में क्या कहना चहता है, मैं समझ नहीं पाता हूँ।

           सलमा का स्वप्न, मुस्लिम परिवार की कहानी है,  इसमें लेखक ने खूब होम बर्क किया हैं। मुस्लिम परिवार का पारिवारिक चित्रण बहुत ही सुन्दर ढंग सें किया गया है। इस कहानी का नाम घर ऐसे ही चलता है, होता तो शायद अधिक सार्थक होता।

       आपकी नौ साल की लड़की की कहानी की बुनावट शिल्प की दृष्टि से बहुत सार्थक लगी हैं। अन्ना के पति की मृत्यु के बाद तान्या का जन्म होता है। मां उसकी सही ढ़ंग से पालन पोषण करती हैं। उसे वचपन से ही चित्र बनाने का शौक हो जाता हैं । एक दिन तो वह अपनी मम्मी से कहती है-मम्मी किसी अंकल को तलाशो। मैं मदद करूँगी।

       मां ने पूछा- ’क्यों?’

        वह कहती है-’मैं जब अपना साथी खोज लूंगी तो अकेली नहीं हो जाओगी।’

       इस तरह कहानी पाठक को बांध लेती हैं ऐसी सफल कहानी के लिये बधाई स्वीकार करें।

      भालूनाच कहानी के नाच के माध्यम से अठारह सौ अठावन में अंग्रेजों की दमन नीति का भालूनाच के माध्यम से जो सन्देश आम जन तक पहुँचाया जाता है। वह उस समय की  बहुत ही सार्थक पहल लगी । ऐसी प्रयोगात्मक कहानी के लिए लेखक को मुक्त कण्ठ से बधाई।

      चन्द्रिका कहानी में चन्द्रिका  नाम की नाव खेने वाली बहादुर लड़की की कहानी हैं। वह नाबालिग होते हुए अपने पिता को अपना गुर्दादान करना चाहती है। दुर्भाग्य से पिता पहले ही चल बसते है। पाठक ऐसी बहुर लड़की को स्वयं मन ही मन सलाम करने लगता हैं

           आश्वस्ति कहानी पाठक को इन कहानियों की तरह बांध नहीं पाती और संकलन की यह कहानी जिन्दगी खत्म नहीं होती। जब ट्यूwसन व्यवस्था के चलते, नम्बर कम आते हैं तो वे सोचतीं है कि जिन्दगी सहीं खत्म नहीं हो जाती।

             इस तरह हम देखते है कि संकलन की अधिकांश कहानियाँ पठनीय हैं  तथ सउदेश्य लिखीं गई हैं। पाठक इन्हें पढ़ने बैठ जाये तो इन्हें पढ़े बिना छोड़ नहीं पाता। इनकी भाषा सहज सरल है। आपकी कुछ कहानियों में कस्वे का मन मोहक वातावरण हैं जैसे- इन कहानियों के पात्र हमारे आसपास घूमते हुए मिल जायेंगे। इसकी कुछ कहानियाँ पाठक की स्मृति में स्थान बना लेतीं हैं।

            साहित्यकार सूर्यपाल सिंह के समग्र साहित्य में डुबकी लगाने पर हम पाते हैं कि आपका अधिकांश साहित्य धरोहर की श्रेणी में आता है। निश्चय ही आपके समग्र मूल्यांकन की आवश्यकता है। शोधार्थी निश्चय ही इससे लाभान्वित होंगे।

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