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दूसरे की बीवी

दूसरे की बीवी

आर0 के0 लाल



अशोक ने चहकते हुए अपनी पत्नी उमा को आवाज लगायी, "अजी सुनती हो बच्चों की बुआ नीलम की देवरानी सन्नो के लड़के चिरंजीव अमिताभ की शादी का निमंत्रण आया है। देखो कितना सुंदर कार्ड है "कार्ड देख कर उमा का मन भी प्रसन्न हो गया। अशोक ने पूरा विवरण पढ़कर सुनाया और बोले कि लोग व्यर्थ ही कहते हैं कि अपने देश की पुरानी संस्कृति समाप्त हो गई है। कार्ड के ऊपर गणेश वंदना का श्लोक एवं उसमें छपी सुसंस्कृत भाषा तो मेरे मन को छू गई। जैसे पतीले का एक चावल ही बता देता है कि पूरा चावल कैसा है उसी प्रकार निमंत्रण के वाक्य उस परिवार के संस्कार स्पस्ट कर रहे थे । लिखा था "ईश्वर की असीम अनुकंपा से एवं अमिताभ के दादा-दादी के आशीर्वाद से यह विवाह निश्चित हुआ है"। पूरे तीन दिनों के मांगलिक कार्यक्रम जैसे- तिलक, सिलमायन, हल्दी, महिला संगीत, द्वार-पूजा, पाणिग्रहण, प्रीतिभोज और विदाई आदि का भी मनभावन उल्लेख किया गया था। कितना अच्छा लगा कि परिवार के सबसे बुजुर्ग यानि लड़के के बाबा की ओर से निमंत्रण भेजा गया है ताकि हम सपरिवार समारोह में पहुंचकर वर-वधू को आशीर्वचन देकर अनुग्रहित करें। इतना ही नहीं परिवार के अन्य सभी सदस्य दर्शनाभिलाषी थे। अशोक ने अपना निर्णय सुनाया कि वे इस शादी में जरूर शामिल होंगे और तीन दिनों तक आनंद उठाएंगे।

फिर एक लम्बी आह भरते हुये अशोक बोले कि उमा तुम तो जानती ही हो कि अपने पोते पंकज की शादी में हमें किस तरह इग्नोर किया गया था। तुम अक्सर कहा करती थी कि अब तो बस एक ही तमन्ना है कि मरने से पहले मैं अपने पंकज की ब्याहता का मुंह देख लूँ तो वही मैं चाहता था कि अपनी पसंद की लड़की से उसका ब्याह परम्परागत तरीके से करवाऊं। मैं हर व्यवस्था इतनी सुगढ़ करता कि लोग देखते रह जाते परंतु उसकी शादी में मुझे कुछ करने ही नहीं दिया गया था। सभी लोग मॉडर्न जो हो गये थे। विलायती सभ्यता की ललक में पंकज ने चोरी-छुपे पहले ही शादी कर ली थी। उसके मम्मी- पापा ने तो केवल औपचारिकता निभाते हुये केक-कटिंग, रिंग-सेरीमनी और जयमाल वाला एक एट होम आयोजित कर दिया था। कार्ड भी हम लोगों की तरफ से नहीं छापा गया था बल्कि अंग्रेजी में लिखा था " यूँ आर रिक़ुएस्टेड टू ग्रेस द ओकेजन ऑफ मैरेज ऑफ पंकज सन ऑफ मिसेज शीला एँड मिस्टर राघव । कार्ड में कहीं भी हमारा नाम नहीं था। हम मन मसोसकर रह गये थे, कुछ कर नहीं सके। बहुत बुरा लग रहा था इसलिए पूरे कार्यक्रम में तटस्थ ही रहे। अपने बेटे राघव ने भी हमसे कोई सलाह नहीं ली थी। हमें तो किसी इवेंट में कोई उत्साह नहीं दिख रहा था। डिनर के बाद ही सभी मेहमान चले गए थे। यह भी कोई शादी थी।

अशोक ने उमा से कहा, “देखो सन्नो के घर का माहौल कितना अच्छा है, सभी का उचित सम्मान तो होता होगा उस घर में। अपना घर तो एकदम बिगड़ गया है।

उमा ने कहा कि आपको तो दूसरे की तारीफ और अपनों में दोष निकालने की आदत ही है, कभी अपने बीवी बच्चों की तारीफ भी किया कीजिये तभी वे आपको मानेंगे। अशोक ने उत्तर दिया कि तुम तो उन्हीं का पक्ष लोगी । फिर उन्होंने अपने जमाने की बातें याद की और उमा से बोले कि हमारी शादी को चालिस साल हो गए हैं । उस समय क्या जश्न मनाया जाता था । याद है कि हमारी शादी गर्मी की छुट्टियों में तुम्हारे गाँव से हुई थी । एक पखवारे पहले तिलक हुई थी और लगभग पचास लोगों की बारात पूरे तीन दिन तुम्हारे गांव में टिकी थी। जो आवभगत हुई थी उसकी चर्चा आज भी सभी लोग करते हैं।

अशोक ने कहा, “गांव के प्राइमरी स्कूल में जनवासा था जिसके सामने आमों से लदा बगीचा था। पहुंचते ही हमें सात मिठाइयों का नाश्ता दिया गया था। उस समय पहले नाश्ते में दी गई मिठाइयों की संख्या इस बात को प्रदर्शित करती थी कि लड़की वाले का परिवार कितना संपन्न है और वहां बारातियों की कितनी खातिरदारी होने वाली है। पहले जमाने में न कोई टेंट हाउस होता था और न कोई कैटरिंग । घर-घर से एकत्रित करके सभी के लिये अलग अलग चारपाइयों पर बिस्तर और तकिए लगाए गए थे। क्या नजारा था, ऊपर आम और नीचे चारपाइयां । वहां गांव का धोबी बिना कुछ लिए बारातियों के कपड़ों की सिलवाते हटा रहा था । कोई नाई से डाढी घिसवा रहा था तो कोई चंपी करवा रहा था, सब कुछ मुफ्त ही था फिर कैसे छोड़ा जाता । सभी के सजने-धजने में घंटो लग गए थे। तुम्हारी तरफ का नाई बहुत पहले तेल लाकर बुलाने आ गया था। मेरे बाबा तो बिगड़े ही जा रहे थे कि जल्दी करो , बरसात होने का अंदेशा है लेकिन उनकी कोई सुनने वाला नहीं था”।

बीच में ही उमा बोल पड़ी कि उस समय लोग बिना मांगे ही लड़कियों की शादी में मदद करते थे। लड़की पूरे गांव की इज्जत मानी जाती थी और जमाई पूरे गांव का मान होता था। सारे बड़े-बूढ़े गांव की लड़की की शादी वाले दिन व्रत रहते थे और कन्या दान करने के बाद ही अन्न ग्रहण करते थे। मुझे पता चला था कि पड़ोस के गांव के शारदा काका भी मेरी शादी के लिए एक हफ्ते पहले से ही अपने यहाँ किसी बच्चे को दूध पीने नहीं दे रहे थे। हमें निशुल्क दूध और दही जो देना था। इसी तरह पूरे गांव के लोगों ने कुछ न कुछ सहयोग किया था । उस समय कोई हलवाई नहीं मिला था पर गांव की महिलाएं इकट्ठा होकर पूरा खाना बना डाली थी ।

अशोक ने अपने दिमाग पर जोर देते हुए कहा कि प्रचलन न होने के कारण आज की तरह हमारा जयमाल और रिंग सेरिमनी तो नहीं हुई थी और मुझे "दुल्हन से तुम्हारा मिलन होगा मन थोड़ी धीर धरो, बाहों में चांदी सा बदन होगा मन थोड़ी धीर धरो " जैसे गाने गाकर ही अपने मन को समझाना पड़ा था मगर द्वारचार पांच पंडितों के मंत्रोचार से संपन्न हुआ था जहाँ पूरे समय तक सभी एकत्रित थे । आज की तरह लोगों को डिनर खा कर भागने की जल्दी नहीं थी ।

उमा ने बताया, “ मुझे बाहर जाने की इजाजत तो नहीं थी लेकिन खिड़की में बैठकर अपनी सहेलियों के साथ मैं भी बाहर का मजा ले रही थी। घर की महिलाओं को भी तैयार करने और संवारने की पूरी व्यवस्था थी। गांव की औरतें ही दुल्हन का मेकअप करती थी । मौके के हिसाब से मुझे गांव की महिलाओं ने ही कपडे पहनाए थे और ऐसा श्रृंगार किया था कि आज की पंचसितारा ब्यूटीशियन भी नहीं कर सकती हैं ।

अशोक को याद आया कि पहले बारातियों को खिला कर ही घरातियों ने भोजन किया था। शायद वे सोचते थे कहीं खाना कम न पड़ जाए । यह पूरे गांव की इज्जत का मामला जो होता था। आज कल तो लड़की पक्ष वाले पहले खा कर निकल जाते हैं। खाना खिलाने के लिए गांव के लड़के मोर्चा संभाले थे । वे बाल्टी से भरे खाद्य सामग्री लेकर दौड़ लगाते हुए परोस रहे थे, एक कचौड़ी और ले लेने का प्यार मिश्रित अनुरोध और रायता दे कर बची कचौड़ी को खा जाने के अनुग्रह को ठुकराना मुश्किल हो रहा था । आज के भोज में सब कुछ एक ही प्लेट में भर कर फेंक देने की होड़ रहती है जिसमें भोजन की बहुत बर्बादी होती है । हमारी शादी रात भर चली थी, मंडप खचाखच भरा था। गांव की लड़कियां गा रहीं थी। रात को मीठा दूध सभी को दिया गया था। सुबह उगते सूरज की स्वर्णिम लालिमा होते ही पंडित जी ने तुम्हारी मांग को सिंदूरी करवा कर पाणिग्रहण पूरा करवाया था । उसके बाद शंख की ध्वनि के साथ हम दोनों कोहबर गए थे जहां सालियों ने जूता चुराने और हमें बेवकूफ बनाने के अनेकों मजाक रच रखे थे। दूसरे दिन लंच में घर की औरतों द्वारा गाली से भरपूर गाने हम सभी को मुस्कुराते हुए सुनना पडा था और नजराना भी उनके मांग के अनुरूप देना पड़ा था । हाँ तुम्हारे घर वालो ने सबकी थाली में कुछ नगद गिफ्ट जरूर रखे थे ।

एक बात तो आप बताना ही भूल गये उमा ने कहा, “ शादी के दूसरे दिन एक बहुत महत्वपूर्ण कार्यक्रम खिचड़ी का होता था जिसमें घर की औरते दूल्हे की मांग पूरी करती थी वरना वह रूठ जाता था और उसे मानना बड़ा मुश्किल होता था। आप तो प्रोग्राम से पहले ही बिदक गए थे और बिना किसी को बताए कहीं भाग गए थे। सब आप को ढूंढ रहे थे और आप दूर जंगल में अकेले ही जामुन खा रहे थे। आप की जिद थी कि बिना स्कूटर लिए आप खिचड़ी नहीं खायेंगे। बहुत समझाने पर ही साइकिल लेकर माने थे”। अशोक ने बताया, “मैं क्या करता। किसी ने मामाजी को भड़का दिया था कि इस शादी में कुछ मजा नही आ रहा है तो मामाजी ने रंग में भंग मिलाने के उद्देश्य से मुझे बहका कर जंगल भेज दिया था”।

शाम को महफिल एक महफिल सजाई गई थी जिसे शिष्टाचार का नाम दिया गया था। इसमें एक दरबार लगा कर वर-वधु पक्ष वाले एक यादगार माहौल में एक दूसरे का विस्तृत परिचय कराते थे और गाने के माध्यम से एक दूसरे की तारीफ करते थे। तुम्हारे मामा तो बाँटने के लिये पहले से ही ऐसा एक पर्चा छपवा कर लाए थे। उसके बाद आम खाने का प्रोग्राम हुआ था। गांव वाले ही एक एक बाल्टी भर कर आम लाए थे। तीसरे दिन शुभ मुहूर्त में विदाई हुई थी। घंटों रोने धोने का मामला चलता रहा था । उमा ने कहा कि मेरी मम्मी ने बताया था कि मेरे साथ आप भी तो रोने लगे थे। शायद उसी से हमारा प्यार पक्का हो गया था।

अशोक ने बताया कि उन दिनों विवाह में आमंत्रित करने के लिये किसी को कार्ड देने जाना होता था परंतु आज तो व्हाट्सएप के माध्यम से ही आमंत्रित कर दिया जाता है। इतना ही नहीं अतिथियों को लेने किसी को स्टेशन भी जाना पड़ता था। अपनी शादी में मैं खुद कई रिश्तेदारों को लेने गया था। मगर यहां तो किसी ने पूछा ही नहीं कि हम कैसे पहुंचे। इनके यहाँ इंतजाम कोई था ही नहीं, ब्यर्थ ही हम आ गये ।

उमा ने चुटकी ली कि आप तो पहले बहुत मगन थे और तारीफ कर रहे थे, अब क्या हुआ । अशोक ने कहा, “ सब कुछ हमारी सोच के विपरीत था । जब हम ट्रेन से लगभग 9:00 बजे रात सन्नो के घर पहुंचे तो उनको शायद इसकी उम्मीद नहीं थी कि हम इतनी जल्दी उनके यहां आ जाएंगे। उन्होंने कितनी बेरुखी से हमारा स्वागत किया था और साफ बोल दिया था कि उन्हें गेस्ट हाउस केवल शादी वाले दिन का ही मिल पाया है। उस रात किसी तरह नीचे जमीन पर बिस्तर डाल कर हम सोए थे। दूसरे दिन हम उनसे माफी मांगते हुए एक होटल में शिफ्ट हो गये थे ।

अशोक ने सोचा था कि जहां लाखों रुपए देकर मैरिज हॉल में इंतजाम बड़े पैमाने होता है वहां सब कुछ सर्वोत्तम ही होगा, पर सब केवल दिखावा मात्र ही था। कार्ड में छपे सभी कार्यक्रम किए तो गए लेकिन केवल खाना पूर्ति के लिये । अपने यहाँ से भी खराब स्थिति थी । नीलम के सास-ससुर कुछ बताते तो सन्नो उन्हें डपट ही देती थी । उनके फ्लैट में कोई आंगन तो था नहीं, इसलिए एक हरे बांस की टहनी कनस्तर में लगा कर कमरे में रख दिया गया था । शादी वाले दिन दोपहर में सब मेहमान होटल पहुंच गए, उन्हें खाने का एक-एक पैकेट होटल से मंगा कर दिया गया। शाम को 7:00 बजे से काफी भागदौड़ और चहल पहल दिखाई पड़ने लगी। एक कमरे में कुछ लोग ड्रिंक भी कर रहे थे। सभी लोग खूब सजधज कर तैयार हो रहे थे। सभी के परिधान गजब के थे। तैयार होने के लिए कई मेकअप रूम बनाए गए थे जहां किसी का फेशियल हो रहा था तो किसी का हेयर कलर। लेकिन कुछ भी फ्री नहीं था सभी को अपना पैसा स्वयं देना थाl। लगभग 10:30 बजे बारात पहुंची तो थोड़े से लोग द्वारचार के लिए रुक गए बाकी सभी लोग खाने पर टूट पड़े। सन्नो के मेहमान तो पहले से ही खा रहे थे। किसी तरह जयमाल का कार्यक्रम कराया गया।

पंडित जी को दूसरी शादी भी करवानी थी इसलिए उन्होंने वहां का कार्यक्रम 12बजे तक पूरा करवा दिया। 12:30 बजे रात दूल्हा दुल्हन दोनों उसी होटल के एक कमरे में हनीमून मनाने चले गए। बाकी लोग जैसे ही अपने कमरे में पहुंचे लड़के के मां बाप ने उन्हें बायना का एक एक डिब्बा दे दिया और महिलाओं के लिए हल्दी चावल से भरा बटुआ देते हुए सबको आने के लिए धन्यवाद दिया। सुबह होते होते सारे मेहमान जा चुके थे। इसिलिये हम लोग भी बिना किसी को बताये होटल से चेक आउट हो लिये जबकि वापसी टिकट दो दिन बाद का था ।

ऊमा ने फिर अशोक पर तंज कसा, “लोग सही कहते हैं कि अपनी बीवी चाहे जितनी अच्छी हो परन्तु दूसरे की बीवी अपने वाली से ज्यादा सुंदर लगती ही है । अशोक जल्दी अपने घर वापस पहुँचना चाहता था जहाँ उसे अधिक सन्तोष और सम्मान मिलता है ।

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