Tom Kaka Ki Kutia - 18 in Hindi Fiction Stories by Harriet Beecher Stowe books and stories PDF | टॉम काका की कुटिया - 18

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टॉम काका की कुटिया - 18

18 - गुलामी का समर्थन!

आज रविवार है। मेरी इन दिनों मन गढ़ंत रोगों से सदा खाट पर पड़ी रहने पर भी हर रविवार को गिर्जा अवश्य जाया करती थी। इससे गिर्जे के पादरी साहब मेरी की बड़ी तारीफ किया करते थे। वह मेरी की तारीफ में सदा कहा करते - "स्त्रियों में मैडम सेंटक्लेयर आदर्श-धर्मपालिका है। रोग, शोक, आँधी, पानी चाहे जो हो, वह गिर्जा जाने से नहीं चूकती। उसकी प्रबल धर्म-तृष्णा रविवार के दिन उसके दुर्बल शरीर में बिजली की तरह बल भर देती है।"

 रविवार को मणि-मुक्ता खचित बड़े सुंदर कपड़े पहनकर मेरी गिर्जा जाने की तैयारी करने लगी। उसका यह स्वाभाव था कि गिर्जा जानेवाले दिन यदि कोई दास या दासी उसके कपड़े लाने में विलंब कर देती, तो वह कोड़ों की मार से उसकी पीठ लाल करके मानती। उस समय उसके हाथ मशीन की तरह चलते थे। बाहर गाड़ी खड़ी हुई है। अफिलिया और इवा को साथ लिए हुए मेरी कमरे से उतर रही थी। बीच ही में मामी मिल गई, इवा उससे बातें करने लगी। मेरी और अफिलिया गाड़ी में जा बैठी। इवा को देर करते देखकर मेरी उसे बार-बार पुकारने लगी। मामी के साथ इवा की बातें सुन लीजिए:

 इवा - "मामी, मैं जानती हूँ, तुम्हारे सिर में बड़ी भयानक पीड़ा है।"

 मामी - "मिस इवा, ईश्वर तुम्हें सुखी करें। मेरे सिर में बड़ा दर्द होता है, पर तुम इसके लिए रंज मत करो।"

 इवा - "मामी, आज तुम्हें गिर्जा जाने की छुट्टी मिल गई, यह जानकर मुझे बड़ी खुशी हुई।" यह कहकर उसने मामी के गले में हाथ डाल दिया। फिर बोली - "मामी, तुम मेरी यह नासदानी ले लो, इसके सूँघने से तुम्हारे सिर का दर्द मिट जाएगा।"

 मामी - "नहीं बच्ची, मैं तुम्हारी यह सोने की सुंदर नासदानी लेकर क्या करूँगी? मेरे पास क्या यह अच्छी लगेगी? मैं इसे हर्गिज नहीं लूँगी।"

 इवा - "मामी, तुमको इससे बहुत फायदा होगा, और मेरे पास यह बेमतलब पड़ी हुई है। माँ सिरदर्द के लिए इसे सदा काम में लाया करती थीं। और तुम्हें भी यह लाभ पहुँचाएगी। मेरी प्रसन्नता के लिए तुम्हें अवश्य लेनी पड़ेगी।"

 इतना कहकर मामी की चोली में नासदानी डालकर और उसे चूमते हुए इवा अपनी माँ के पास भाग गई।

 उसकी माँ ने बड़े क्रोध से पूछा - "इतनी देर कहाँ खड़ी रही?"

 इवा - "मैं मामी को अपनी नासदानी देने को ठहर गई थी। मैंने वह नासदानी उसे दे दी।"

 मेरी बहुत बिगड़कर बड़ी अधीरता से बोली - "इवा, वह अपनी सोने की नासदानी मामी को दे दी। कब तुझे अक्ल आएगी। जा और उसे अभी लौटा ला।"

 इवा की आँखें नीची हो गई। उसे बड़ा दुख हुआ। वह धीरे-धीरे लौटी। सेंटक्लेयर वहीं मौजूद था। उसने कहा - "मेरी, मैं कहता हूँ, इवा को अपनी इच्छानुसार कार्य करने दो। वह जो करे, उसे कर लेने दो।"

 मेरी - "सेंटक्लेयर, संसार में उसका कैसे बेड़ा पार होगा?"

 सेंटक्लेयर - "सो तो ईश्वर जानता है। पर स्वर्ग में वह मुझसे और तुमसे अच्छी रहेगी।"

 इस पर इवा ने धीरे से सेंटक्लेयर के कान में कहा - "आह बाबा, ऐसा मत कहो। इससे माँ को बड़ी वेदना होती है।"

 मिस अफिलिया ने सेंटक्लेयर की ओर घूमकर कहा - "क्यों, भैया तुम भी गिर्जा चलते हो?"

 सेंटक्लेयर - "इस प्रश्न के लिए तुम्हें धन्यवाद। मैं नहीं जाऊँगा।"

 मेरी - "मैं बहुत चाहती हूँ कि सेंटक्लेयर मेरे साथ गिर्जे जाया करें। पर उनका हृदय बिलकुल धर्म-हीन है। वास्तव में यह बड़े खेद की बात है।"

 सेंटक्लेयर - "मैं तुम लोगों के गिर्जा जाने का मतलब खूब जानता हूँ। लोगों में वाहवाही लूटने और धार्मिक कहलाने की इच्छा से तुम गिर्जा जाती हो। यदि मैं कभी गिर्जा गया भी तो उसी गिर्जे में जाऊँगा, जहाँ मामी जाती है। कम-से-कम उस गिर्जे में जाकर सोने की गुंजाइश तो नहीं रहती।"

 मेरी - "ओफ, मेथोडिस्टों का गिर्जा? बड़ा भयंकर है। वहाँ के गुलगपाड़े की भी कोई हद है। वहाँ के पादरी कितना शोर मचाते हैं।"

 सेंटक्लेयर - "पर तुम्हारे उस सूने मरुभूमि सरीखे गिर्जे से तो वह कहीं अच्छा है।"

 फिर इवा से पूछा - "बेटी, तू भी क्या गिर्जा जाती है? आओ, यहीं घर रहो, हम दोनों खेलेंगे।"

 इवा - "बाबा, मैं भी गिर्जा जाऊँगी।"

 सेंटक्लेयर - "क्या वहाँ बैठे-बैठे तेरा जी नहीं घबराता?"

 इवा - "हाँ, कुछ-कुछ घबराता है और कभी-कभी नींद भी आने लगती है, पर मैं जागते रहने की चेष्टा किया करती हूँ।"

 सेंटक्लेयर - "तब वहाँ क्यों जाती है?"

 इवा - "बाबा, बुआ कहती है कि हमें ईश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए। वह हम लोगों को बहुत प्यार करते हैं। वही हम लोगों को सब-कुछ देते हैं। गिर्जे में ईश्वर की प्रार्थना के समय जी नहीं घबराता, केवल पादरी साहब के प्रवचन के समय ऊँघ आने लगती है।"

 कन्या की बात सुनकर और उसका सरल विश्वास देखकर सेंटक्लेयर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कन्या का मुँह चूमकर कहा - "जाओ बेटी, जाओ! मेरे लिए भी ईश्वर से प्रार्थना करना।"

 इवा - "वह तो मैं सदा से करती हूँ।"

 यह कहकर वह गाड़ी पर अपनी माँ के पास बैठ गई। सेंटक्लेयर ने पायदान पर खड़े होकर उसका हाथ चूमा। फिर गाड़ी गिर्जे की ओर चली गई। सेंटक्लेयर की आँखों से हर्ष के आँसू बहने लगे। वह मन-ही-मन बोला - "इवान्जेलिन, तुमने अपने इवान्जेलिन नाम को सार्थक किया। तुम मेरे लिए वास्तव में एक इवान्जेलिन (स्वर्गीय बाला) हो।"

 गाड़ी में मेरी इवा को समझाने लगी - "इवा, देख, नौकरों पर दया दिखाना मुनासिब जरूर है, पर यह ठीक नहीं कि उनसे अपने बराबर अथवा संबंधियों का-सा व्यव्हार किया जाए। मान ले, आज अगर मामी बीमार पड़ जाए तो तू क्या उसे अपने बिछौने पर लेटने देगी?"

 इवा - "हाँ, यह तो बड़ा अच्छा होगा, क्योंकि मेरे बिछौने पर रहने से मैं बड़े आराम से उसकी दवा तथा पथ्य-पानी की खबर रख सकूँगी। मेरा बिस्तर मामी के बिस्तर से अच्छा और नरम है, उस पर उसे अच्छी नींद आएगी।"

 इवा का यह उत्तर सुनकर मेरी अपने भाग्य को कोसने लगी। बोली - "मैं इसे कैसे समझाऊँ? मैंने क्या कहा और यह क्या समझी।"

 अफिलिया - "तुम्हारी बात को इसने कुछ नहीं समझा।"

 इवा कुछ देर तो उदास-सी दिखलाई दी, पर सौभाग्य से बच्चो के मन पर किसी बात का प्रभाव देर तक नहीं रहता। इससे जरा-सी देर में गाड़ी की खिड़की से इधर-उधर की चीजें देखकर उसका मन बदल गया और वह फिर पूर्ववत प्रफुल्लित हो गई।

 ये लोग जब गिर्जे से लौटे और सब लोग भोजन करने बैठे, तब सेंटक्लेयर ने मेरी से पूछा - "कहो, आज गिर्जे में किस विषय पर प्रवचन हुआ?"

 मेरी - "आज पादरी साहब का धर्मोपदेश बड़ा ही हृदयग्राही था। यह उपदेश सुनने लायक था। वह बिलकुल मेरे मत से मिलता हुआ था।"

 सेंटक्लेयर - "तो मैं समझता हूँ, आज का उपदेश किसी गंभीर विषय पर हुआ होगा?"

 मेरी - "हहं, सामाजिक बातें और ऐसे विषयों पर जो मेरा मत है, बस उसी से मेरा मतलब है। पादरी साहब ने बताया कि ईश्वर हर चीज को उपयुक्त समय पर प्रस्फुटित करते हैं। बाइबिल के वचन की उन्होंने व्याख्यान की। अपनी व्याख्यान में उन्होंने बड़ी स्पष्टता से बताया कि ईश्वर ने ही दुनिया में दरिद्र और धनी दोनों बनाए हैं। इसलिए इस बात को मानना चाहिए कि संसार में ऊँच-नीच का भेद-भाव ईश्वर का बनाया हुआ है। उसकी इच्छा से कुछ आदमी प्रभुत्व करने को और कुछ उनकी गुलामी करने को पैदा हुए हैं।" पादरी साहब ने अकाट्य युक्तियों द्वारा इस विषय पर बड़ी खूबी के साथ प्रतिपादन करते हुए कहा - "जो लोग गुलामी की चाल की बुराइयाँ दिखलाकर उसके विरुद्ध शोर मचाते हैं, वे भूलते हैं। वे ईश्वर की शासन-प्रणाली को बिलकुल नहीं समझते। उन्हें बाइबिल का बिलकुल ज्ञान नहीं है। उन्होंने बड़ी अच्छी तरह से यह ईश्वरीय नियम भी दिखाया कि मनुष्यों में विभिन्नता सदा रहेगी। कालों को गोरों की सेवा करनी चाहिए। न करेंगे तो उन्हें पाप का भागी बनना पड़ेगा। ईश्वर जो करते हैं, सबके भले के लिए करते हैं। अत: यह गुलामी की चाल गुलाम और मालिक दोनों के ही भले के लिए है। सेंटक्लेयर, तुमने आज का उपदेश सुना होता तो बहुत-कुछ सीखते।"

 सेंटक्लेयर - "मुझे उपदेशों की आवशकयता नहीं है। मुझे यहीं बैठे-बैठे चुरुट पीते हुए विचार करने में बड़ी शांति मिलती है। तुम्हारे गिर्जे में तो चुरुट पीने की मुमानियत है, यह बड़ी आफत है।"

 मिस अफिलिया - "क्यों? क्या तुम इन विचारों से सहमत नहीं हो?"

 सेंटक्लेयर - "कौन, मैं? मैं ऐसे विषयों में धार्मिक विचारों की जरा भी परवा नहीं करता। मैं ऐसे धर्म से कोई वास्ता नहीं रखता। यदि मुझे इस गुलामी-प्रथा पर कुछ कहना पड़े तो मैं साफ कहूँगा कि हम लोग अपने लाभ की दृष्टि से ही इसका समर्थन करते हैं। हमें आराम है, इससे इसका रहना बहुत आवश्यक और उचित है। दासों के बिना काम नहीं चलता, बिना मेहनत-मशक्कत के धन की गठरी हाथ नहीं आती, इससे दासता की प्रथा को हम नहीं हटाना चाहते।"

 मेरी - "अगस्टिन, मैं समझती हूँ कि धर्म पर तुम्हारी तनिक भी श्रद्धा नहीं है। तुम्हारी बातें सुनकर हृदय काँपता है।"

 सेंटक्लेयर - "हृदय काँपता है! सच है, पर मैं तो सच्ची-सच्ची कहना जानता हूँ। ये सब अपने मतलब की बातें हैं। अच्छा, पादरी लोग कहते हैं कि दास-प्रथा ईश्वर की इच्छा से है और इसकी जरूरत है, इसी से इसकी उत्पत्ति हुई है। ठीक है, मुझे भी पादरी साहब से एक चीज की व्यवस्था लेनी है। जब मैं किसी दिन ताश खेलने में अधिक रात तक जागता रहता हूँ तो मुझे ब्रांडी पीने की जरूरत पड़ती है। पादरी साहब बतावें कि जब ब्रांडी पीने की जरूरत पड़ती है तब वह जरूरत भी ईश्वर ही की बनाई हुई है, इसी लिए ब्रांडी क्यों नहीं पीनी चाहिए? फिर पादरी साहब कहते हैं कि सब चीजों का उपयुक्त समय होता है, उपयुक्त समय पर सभी चीजें अच्छी होती हैं। मेरी समझ में ब्रांडी पीने के लिए संध्या का समय ही बड़ा उपयुक्त होता है। संध्या और ब्रांडी दोनों ही ईश्वर की बनाई हुई चीजें है। दोनों में जब इतना मेल है तब मैं समझता हूँ कि पादरी साहब जरूर ब्रांडी पीने की आज्ञा देंगे।"

 अफिलिया - "खैर, इन बातों को जाने दो। यह कहो कि तुम दास-प्रथा को उचित समझते हो या अनुचित?"

 सेंटक्लेयर - "मैं तो दास-प्रथा की भलाई-बुराई पर कुछ भी नहीं कहना चाहता। यदि मैं इस प्रश्न का उत्तर दूँ तो मैं समझता हूँ कि तुम मुझे बहुत कोसोगी। मैं उन आदमियों में से हूँ, जो आप शीशे के घर में बैठकर ढेला फेंके हैं, पर मैं स्वयं कभी ऐसा घर नहीं बनाता कि दूसरा उस पर ढेला फेंकें। कहने का मतलब यह है कि मैं स्वयं दोषी होते हुए भी दूसरों के दोषों को देखता हूँ, किंतु मैं कभी किसी के सामने अपना मत नहीं प्रकट करता कि जिसमें कोई मुझपर दोषारोपण कर सके।"

 मेरी - "बस, इनकी सदा ऐसी ही बातें करने की आदत है। तुम्हें इनसे किसी बात का ठीक उत्तर नहीं मिलेगा। सच तो यह है कि धर्म से इनका कुछ वास्ता नहीं है। जिसका धर्म पर प्रेम होगा, वह क्या कभी ऐसी बातें मुँह से निकाल सकता है?"

 सेंटक्लेयर - "धर्म! देख लिया तुम्हारा धर्म! क्या तुम लोग सचमुच गिर्जे में धर्म की बातें सुनने जाती हो? समाज-प्रचलित स्वार्थपरता का तथा मनुष्य के अभ्यस्त पापों का बाइबिल से जोड़-तोड़ बिठाना ही हमारे देश का ईसाई धर्म है! देश में फैले हुए किसी भी अत्याचार या अन्याय को बाइबिल में लिखा बता दिया कि वह धर्म का भाग बन गया, तुम लोग मनुष्य के पापों को धर्म का रूप देने की फिक्र करते हो, पर मैं जब धर्म की ओर दृष्टि डालता हूँ तो धर्म को अपने से ऊपर ही, न कि नीचे देखता हूँ। मैं अपने पापों को कभी धर्म का जामा पहनाने की चेष्टा नहीं करता। जो पाप है, वह पाप ही रहेगा, चाहे तुम करती हो चाहे मैं, उसे बाइबिल से लाख बार सिद्ध करने की चेष्टा करो, तो भी वह कभी पुण्य नहीं हो सकता।"

 अफिलिया - "तो तुम विश्वास नहीं करते कि गुलामी की प्रथा बाइबिल की रूह से ठीक है?"

 सेंटक्लेयर - "जिस स्नेहमयी जननी की प्रतिमूर्ति सदा मेरे हृदय में बसी रहती है, बाइबिल उसकी बड़ी प्यारी पुस्तक थी। बाइबिल पर उनकी अटल श्रद्धा और भक्ति थी। बाइबिल द्वारा उनका जीवन गठित हुआ था, परंतु दास-प्रथा से उन्हें बड़ी घृणा थी। इससे दास-प्रथा बाइबिल से सिद्ध है, इसे मैं कभी नहीं मानता। विचार किया जाए तो क्या यूरोप, क्या अमरीका और क्या अफ्रीका, ऐसा कोई देश न ठहरेगा, जहाँ के मनुष्य-समाज में किसी-न-किसी प्रकार की बुराइयाँ घुसी हुई न हों। समाज में फैले हुए नीति-विरुद्ध व्यव्हारों को बाइबिल से सिद्ध करने में जो लोग अपनी सारी शक्ति खर्च करते हैं और इन्हें धर्म-संगत ठहराते हैं, वे लोग सचमुच अपनी गाढ़ी स्वार्थपरता के कारण मोह के दलदल में फँसे हुए हैं। दास-प्रथा के बिना सहज में हम लोग धनी नहीं हो सकते, मौज नहीं कर सकते, इसी से अपने सुख के लिए, अपने स्वार्थ की दृष्टि से, हम लोग दास-प्रथा को आवश्यक बताते हैं। पर जो लोग सच्ची बात पर पर्दा डालकर गुलामी के बाइबिल-सम्मत होने की पुकार मचाते हैं, मेरी समझ में वे सरासर सत्य की हत्या करते हैं।"

 मेरी - "तुम बड़े नास्तिक हो गए हो!"

 सेंटक्लेयर - "यदि आज रूई का चालान रुक जाए और हमारे देश की रूई का भाव एकदम गिर जाए, तो फिर दास-प्रथा की जरूरत न रहेगी। उस समय बाइबिल का अर्थ भी बदल जाएगा। आज बाइबिल के मत से दास-प्रथा उचित है, पर रूई का बाजार मंदा हो जाए तो गुलामों को सीधा अफ्रीका लौटा देना ही ईश्वर-वाक्य माना जाने लगेगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि रूई के भाव के साथ-साथ बाइबिल का मत भी बदल जाएगा।"

 मेरी - "मैं दास-प्रथा को धर्म-विरुद्ध नहीं मानती। ईश्वर को धन्यवाद है कि मेरे हृदय में तुम्हारी भाँति नास्तिकता के भाव नहीं भरे हैं।"

 इसी समय हाथ में एक सुंदर फूल लिए हुए इवा वहाँ आई। सेंटक्लेयर ने उससे पूछा - "अच्छा, इवा, तू बता कि तुझे वारमंट का दास-दासी-शून्य अपनी बुआ का घर अच्छा लगता है या अपना घर, जहाँ गुलाम भरे पड़े हैं।"

 इवा - "निश्चय ही अपना ही घर अच्छा है।"

 सेंटक्लेयर - "वह कैसे?"

 इवा - "हमारे घर में बहुत आदमी हैं। वे सब मुझे प्यार करते हैं, और मैं उन्हें प्यार करती हूँ, इसी से हमारा घर अच्छा है।"

 मेरी - "बस, इसे प्यार-ही-प्यार की सूझी रहती है। हर घड़ी प्यार! ऐसी बेअक्ल लड़की तो मैंने कहीं नहीं देखी। कहती है, दास-दासियों को प्यार करती हूँ। दास-दासियों से, और प्यार!"

 इवा - "क्यों बाबा, मेरी यह प्यार की बात बेजा है?"

 सेंटक्लेयर - "संसार इसे बुरी समझता है। यहाँ निस्वार्थ प्रेम का कोई पारखी नहीं है। अच्छा, तू बता, भोजन के समय से अब तक कहाँ थी?"

 इवा - "मैं टॉम के कमरे में थी, उसका गाना सुन रही थी वहीं दीना चाची ने मुझे भोजन दे दिया था।" "

 सेंटक्लेयर - "टॉम का गाना सुन रही थी?"

 इवा - "हाँ, वह बहुत अच्छे गीत गाता है।"

 सेंटक्लेयर - "सचमुच?"

 इवा - "हाँ-हाँ। और वह मुझे भी अपने गीत सिखाएगा।"

 सेंटक्लेयर - "टॉम तुम्हें गाना सिखाएगा? गाने के लिए उस्ताद तो बड़ा अच्छा मिला है।"

 इवा - "हाँ-हाँ, वह मुझे अपना गाना सुनाता है। मैं उसे अपनी बाइबिल पढ़कर सुनाती हूँ और वह मुझे उसका अर्थ समझाता है।"

 मेरी ने हँसते हुए कहा - "टॉम बाइबिल सिखाएगा! क्या मजे की बात है।"

 सेंटक्लेयर - "ऐसा मत कहो। धर्म की शिक्षा देने के लिए टॉम मेरी समझ में अवश्य उपयुक्त आदमी है। धर्म के लिए वह बहुत व्याकुल रहता है और उसका हृदय भी बड़ा धार्मिक है। कल मुझे घोड़े की जरूरत थी। इससे मैं धीरे-धीरे उसके कमरे की ओर गया। वहाँ जाकर देखा कि टॉम आँखें बंद किए हुए ईश्वर के ध्यान में मग्न है। मुझे यह जानने की बड़ी उत्कंठा हुई कि टॉम कैसे ईश्वर की आराधना करता है, पर मैंने अब तक कभी ऐसी सरल प्रार्थना नहीं सुनी थी। बड़ी व्याकुलता से उसने ईश्वर से मेरे कल्याण की प्रार्थना की। उस समय उसका चेहरा देखने से सचमुच पूरा महात्मा जान पड़ता था। मैंने बहुतेरे पादरियों के मुँह से प्रार्थना सुनी है, किंतु ऐसी विश्वासपूर्ण प्रार्थना कभी नहीं सुनी।"

 मेरी - "शायद उसने जान लिया होगा कि तुम सुन रहे हो, इससे तुम्हें खुश करने के लिए उसने ढोंग रचा होगा। मैंने पहले भी कई बार उसकी ठग-विद्या की बात सुनी है।"

 सेंटक्लेयर - "उसने मेरे मन को संतुष्ट करने की कोई बात मुँह से नहीं निकाली। उसने निष्कपट मन से ईश्वर के सम्मुख अपने मनोभाव प्रकट किए। उसने ईश्वर से इसी बात की प्रार्थना की कि मुझमें जो दोष हैं, वे दूर हो जाएँ। इससे यह बात मन में नहीं लाई जा सकती कि वह ढोंग करता था।"

 अफिलिया - "मैं आशा करती हूँ कि तुम्हारे हृदय पर इसका अच्छा असर होगा।"

 सेंटक्लेयर - "मैं समझता हूँ, तुम्हारी और टॉम की राय मेरे विषय में मिलती-जुलती है। अच्छा, मैं अपना चरित्र सुधारने की चेष्टा करूँगा।"