Revenge: A Romance Singham Series - Series 1 Chapter 8 books and stories free download online pdf in Hindi

Revenge: A Romance Singham Series - Series 1 Chapter 8

एक लंबा चौड़ा आदमी धीरे धीरे उसके पास आ रहा था। उसके पीछे गोलियों की आवाज़ गूंज रही थी, पर उसे कोई परवाह नही थी। हवाओं में खून की बौछार और धूल ने उस आदमी के चेहरे को ढक रखा था। उसे उसका चेहरा ठीक से नही दिखाई दे रहा था।

उसे उसकी बुआ और कजिन भी नही दिखाई दे रही थी, तोह उसके मन में पहला खयाल यहां से भागने का आया।

उसने अपनी सारी हिम्मत जुटाई, भागने के लिए अपने आप को तैयार किया, पर वोह भाग नही पाई। क्योंकि वोह गाड़ी से बाहर ही नही निकल पाई। उसकी गाड़ी के सभी दरवाज़े बाहर से बंध थे और वोह उसमे फस चुकी थी।

वोह आदमी उसके और नज़दीक आता जा रहा था। वोह आसानी से उसकी लंबी सफेद शर्ट को देख सकती थी जो पूरी खून से सनी हुई थी। वोह जानती थी यह खून उन निर्दोष लोगों का है जिन्हे अभी थोड़ी देर पहले उस आदमी ने मारा था।

वोह उसके पास नही आना चाहती थी। वोह बस यहां से भागना चाहती थी! उसने अपने पैर हिलाए पर मानो ऐसा लग रहा था की उसके पैरों को पैरालिसिस हो गया है।

वोह फस चुकी थी उस जानवर के सामने जो उसके नज़दीक बढ़ता ही जा रहा था।

अनिका डर से कांपती हुई नींद से जाग उठी। वोह बैड पर लेटी हुई थी, पसीने से लतपत और कांपती हुई। उसका दिल जोरों से धड़क रहा था, जैसे बस अभी बाहर आ जायेगा। उसने अपना सिर झटका, इस मकसद से की इस बुरे सपने को अपने दिमाग से साफ कर सके, पर फिर भी एक डर और घबराहट उसके दिमाग में छाया हुआ था। यह सिर्फ एक बुरा सपना नही था, यह सच्चाई थी.....उसकी जिंदगी की।

वोह अभी भी डर से कांप रही थी। वोह उठी और बैड पर ही बैठ गई। उसने नोटिस किया की वोह कमरे में बिलकुल अकेली थी और यह वोही कमरा था जिसमे वो कल सुबह आई थी।

क्या सच में सिर्फ अभी तक चौबीस घंटे ही गुजरे हैं जबसे वोह यहां आई है? उसे ऐसा लग रहा था जैसे अनंत काल से वोह यहां पर है। उसने एक ही दिन में काफी कुछ देख लिया था। वोह इतना डर चुकी थी की वोह शॉक में ही चली गई थी। उसने घड़ी की टिकटिक पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी जो उसे यह एहसास दिला रही थी की वोह दिन नज़दीक आ रहा है। काउंटडाउन शुरू हो चुका था और आज उस आखरी दिन से पहले का दिन था। बस एक दिन और, फिर उसके बाद उसे बली का बकरा बना कर एक ऐसे इंसान के सामने पेश कर दिया जाएगा जो किसी राक्षस से कम नहीं था। और सबसे मनहूस बात तोह यह थी की उसके पास कोई चॉइस भी नही थी। वोह हार मान चुकी थी की वोह अब इस महल में फस चुकी है, शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी, जहां से भागने का कोई रास्ता नही है। और अगर वोह किसी तरह यहां से भागने का रास्ता खोज भी ले तोह उसे इसकी कीमत अपने परिवार को खो कर चुकानी होगी।

उसकी आंख से आंसू बहने लगे जब उसे अपने परिवार की याद आई। वोह उन्हे बहुत मिस कर रही थी। वोह उन्हे अपने सीने से लगाना चाहती थी जब तक की उसे यह यकीन नही हो जाता की वोह सुरक्षित हैं और अब उन पर कोई खतरा नही। उसका रोना अब सिसकियों में बदल चुका था। अपने आप को शांत करने की कोशिश करते हुए वोह बैड से उतर गई और उसी कमरे की एक बड़ी सी खिड़की के पास आ कर खड़ी हो गई। बाहर बहुत हलचल मची हुई थी। कोई न कोई कुछ काम कर रहा था। बहुत सारे लोग इकट्ठा हो कर आंगन को फूलों से और बाकी की सजावट की चीजों से सजा रहे थे। उसकी नज़रों से जितना दूर वोह देख सकती थी वोह सारी जगह खूबसूरत तरीके से सजी हुई थी। वोह लंबा सा रास्ता जो प्रजापति मैंशन से मेन स्ट्रीट तक जाता था उसके किनारे पर केले के पेड़ लगाए गए थे और हर पेड़ को अनगिनत फूलों की बेलों से जोड़ा गया था। और वोह मजबूत दीवारें जो प्रजापति मैंशन के चारों ओर ढाल बन कर खड़ी थी, जिसपर कभी खून की छीटें हुआ करती थी आज मानो उन का रंग ही बदला हुआ लग रहा था। आज उन दीवारों पर ऐसी सजावट थी की कोई नही कह सकता था की कभी यह खून से रंगी थी। पर अनिका जानती थी की उन दीवारों के अंदर आज भी मृत लोगों का खून बसा हुआ है और यह दीवारें बस लाश बन कर खड़ी हैं।

हर लड़की की तरह अनिका के भी कुछ अरमान थे अपनी शादी को लेकर, शादी से पहले की तैयारियों को लेकर, लेकिन उसने कभी सपने में भी नही सोचा था की उसकी शादी ऐसे होगी.....उसके नियंत्रण से बाहर। यह सिर्फ शादी की बात नही थी, उसकी जिंदगी पर भी उसका अपना नियंत्रण अब नही था, और यह बात उसे गुस्सा दिला रही थी। उसे ऐसा लग रहा था की वोह शतरंज के प्यादे के मोहरे जैसी हो गई जिसका अपने ऊपर कोई कंट्रोल नही होता बस दूसरे खिलाड़ी उसे अपने हिसाब से नचाते रहते हैं।

"मैं कैसे यूहीं हार मान सकती हूं?"
"पर तुम और कर भी क्या सकती हो?"


खुद से ही हारा हुआ जवाब सुन कर उसे ऐसा लगने लगा की यह वोह अनिका नही है जो यहां आने से पहले हुआ करती थी। अपनी पूरी ज़िंदगी, उसने कई मुश्किलों का सामना किया था और उन मुश्किलों से बाहर भी आई थी। पर अब वोह इस मुश्किल का समाधान नहीं खोज पा रही थी, यहां से बाहर नहीं जा पा रही थी।

वोह खिड़की से हटी और उसी कमरे में एक दरवाज़े की तरफ बढ़ी जो की एक छोटी सी बालकनी में खुलता था। उसने दरवाज़ा खोला और रेलिंग के पास आ कर खड़ी हो गई। वहां से घर का पिछला हिस्सा दिखता था। वहां से खाली बंजर ज़मीन का नज़ारा दिखता था। दूर दूर तक सिर्फ खाली मैदान था। उसके हाथ रेलिंग पर कस गए जब उसने यह याद किया की यहां के लोग यह समझते हैं की किसी श्राप की वजह से यहां सुखा पड़ा हुआ है ना की मौसम के बदलाव की वजह से।

"इससे तुम मरोगी नही।" नीलांबरी की आवाज़ ने अनिका को अपने ख्यालों से बाहर निकाला।

अनिका ने पलट कर नही देखा। वोह बस सामने देखती रही।

"अगर तुम यह सोच रही हो की यहां कूद कर अपनी जान दे दोगी तोह इससे तुम मरोगी नही। बस सिर्फ एक पैर टूट जायेगा। और फिर तुम अपनी शादी पर कितनी बुरी दिखोगी।"

अनिका ने अभी भी उनके ताने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्योंकि वोह जानती थी की इसका कोई फायदा नही है और इस वक्त वोह किसी लड़ाई या बहस के मूड में भी नही थी।

"प्रजापति की औरतों का खून शाही होता है। वोह कभी खुद को नुकसान नही पहुंचती। पर अगर तुम फिर भी ऐसा करती हो तोह तुम यह साबित करोगी की तुम्हारी मां एक बचलन औरत थी।"

अनिका का खून खौल उठा अपनी माँ के बारे में ऐसा बकवास सुन कर। वोह उस औरत की तरफ पलटी जो उसके पिता की बहन थी।
"स्टॉप इट!" वोह गुस्से से चिल्लाई।

"ओह!..... आई एम सॉरी। मैने तुम्हे हर्ट किया। मुझे तुम्हारी माँ के बारे में ऐसा नहीं बोलना चाहिए था। मुझे नही पता की कभी कभी मुझे क्या हो जाता है।"

अपनी बुआ के अचानक बदल जाने से अनिका को और डर सताने लगा। उसकी बुआ गिरगिट की तरह थी, अपनी मर्जी से अपना स्वभाव बदल लेती थी, और अपना असली रंग कभी किसी को नही दिखाती थी।

उसी बालकनी में रखे एक छोटे से सोफे पर उसकी बुआ बैठ गई और अपने बगल वाली सीट पर हाथ से थपथपाते हुए कहा, "आ जाओ, बैठो यहां।"

अनिका ने उनकी बात को अनसुना कर दिया।

नीलांबरी ने एक गहरी सांस ली जैसे की वोह एक जिद्दी बच्चे को समझा रही हो।
"यह सब तुम्हे अच्छा नही लग रहा होगा, पर जल्द ही तुम्हे यह एहसास होगा की तुम सिर्फ और सिर्फ अपना भाग्य और बेहतर बना रही हो और साथ ही एक नेक काम में मदद भी कर रही हो।"

"नही। मैं इस बारे में दुबारा कुछ सुनना नही चाहती।" अनिका अभी भी यह बात बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी की एक श्राप जैसी चीज़ भी एक्जिस्ट करती है दुनिया में और उसके लिए और साथ ही सूखे के लिए भी उसे बली का बकरा बनाया जा रहा था। उसकी बिना मर्जी किसी से भी शादी करवाई जा रही थी।

नीलांबरी ने अपनी शैतानी नज़रों से उसे देखा। "ठीक है, मैं चली जाती हूं और तुम अपने अकेलेपन को एंजॉय करो। पर याद रखना यहां से भागने या इस शादी से बचने की कोशिश मत करना। कल तुम्हारी शादी होनी ही है नही तोह तुम्हे जिंदगी भर इसका मलाल रह जायेगा।"

"मैं पहले ही यहां जो कुछ भी हो रहा है उसके लिए पछता रही हूं।"

"इतना नही पछताओगी, अगर तुम मेरे फैसले के खिलाफ नही जाओगी तोह। सिर्फ एक फोन कॉल मेरे आदमियों को, जो तुम्हारी बहन और मॉम डैड पर नज़र रखे हुए है, और फिर तुम्हारी यू एस में कोई फैमिली नही बचेगी।" नीलांबरी की आवाज़ में खतरे की आशंका हो रही थी।

अनिका ने गुस्से से अपनी मुट्ठी भींच ली और एक शब्द नही कहा।

नीलांबरी के चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कुराहट आ गई।

"तुम जानती हो, शायद तुम इसलिए इंकार कर रही हो क्योंकि तुम्हारे दिल में कोई और आदमी बसा हुआ है।" नीलांबरी ने अपनी एक उंगली अनिका के गाल पर रखी, इस सोच से की अनिका कहीं खोई हुई है।
"नाथन......यही ना? मेरे एक आदमी ने मुझे बताया था की एक गोरा लड़का हमेशा तुम्हारे आगे पीछे घूमता रहता है, एक पागल कुत्ते की तरह।"

अनिका को अब समझ आया की वोह टैटू वाला आदमी उसे जाना पहचाना क्यों लगा था जो एयरपोर्ट पर उसे लेने आया था। उसने उसे दूर से देखा था जब नाथन ने उसे वार्न किया था की कोई उसका पीछा कर रहा है। वोह आदमी उसे सैन फ्रांसिस्को से फॉलो कर रहा था।

"उसे कुछ नुकसान मत करना," अनिका ने धीरे से फुसफुसाते हुए कहा। डर और चिंता दोनो ही उसकी आवाज़ में झलक रही थी। "नाथन इन सब में बेकसूर है। प्लीज, आप जैसा कहोगे मैं वैसा करूंगी।"

"ओह! माय डियर! वोह तोह तुम करोगी ही। यहां तक की जब मैं कुछ नही कहूँगी तब भी तुम मेरा साथ दोगी। मैने सिर्फ अपने आदमी ही नही तुम्हारे परिवार और दोस्तों के पीछे लगा रखें हैं बल्कि उनके फोन टैप और ईमेल्स हैक भी कर रखें हैं। तोह अगर तुम यह सोचती हो की तुम उन तक किसी को फोन करके पहुँच सकती हो, तोह तुम गलत हो। बिलकुल गलत।" नीलांबरी अपनी ही बात पर खुद हँस पड़ी। "तुम्हारे मुंह से एक गलत शब्द, अपने पति या किसी और से तुम्हारे परिवार को बंधक बनाए जाने के बारे में शिकायत की तोह, उसी वक्त तुम्हारे परिवार का डैथ वारंट निकल जायेगा। अब कोई भागने का रास्ता नही है। अगर तुमने खुद की जान ली या किसी और ने तुम्हे मार दिया तोह मैं तुम्हारे प्रिय जनों को भी नही छोड़ूंगी।"

अनिका दंग रह गई थी नीलांबरी की धमकी सुन कर। नीलांबरी अपने चेहरे पर संतुष्टि लिए, मुस्कुराते हुए, उठ खड़ी हो गई। "मुझे लगता है की तुम इतनी स्मार्ट तो हो की यह समझती हो की तुम्हारा यहां क्या दांव पर लगा है। फिर मैं तुमसे कल मिलती हूं।" नीलांबरी ने बालकनी से कमरे में जाने वाले दरवाज़े को खोलने से पहले एक बार अनिका की तरफ पलट कर देखा, उसके चेहरे पर स्नेही मुस्कुराहट आ गई।
"एंजॉय करो यह आखरी दिन अनिका प्रजापति बन कर, माय लव। क्योंकि कल तुम, अनिका सिंघम बन जाओगी।"

अनिका घूर रही थी उस डरी हुई औरत की परछाई को देख कर जो उसे आइने में नज़र आ रही थी। कंपकंपाते हाथ और सुनी आंखे, वोह खुद को ही नही पहचान पा रही थी।
उसके अंदर निराशा बढ़ने लगी इस ना उमिदी से की वोह कुछ नही कर पा रही उसे रोकने के लिए जो भी उसकी जिंदगी में हो रहा था।

"यह अपना मेकअप खराब कर देगी अगर इसने रोना बंद नही किया तोह," एक औरत ने दूसरी औरत से कहा।

अनिका को धुंधला दिखाई देने लगा क्योंकि आंखों में तोह सिर्फ आंसू भरे हुए थे। कितनी सारी औरते थी वहां लेकिन किसी को भी उसके आंसुओं की परवाह नही थी।

"मुझे तोह समझ नही आ रहा है की यह दुखी क्यों है। यह तोह इसकी जिंदगी का सबसे खुशी का दिन होना चाहिए।" उनमें से एक औरत ने कहा।

बाकी औरतें उसकी हां में हां मिलाने लगी। वोह बस कटपुतली की तरह जो काम सौंपा गया था उसे करने लगी। उन्होंने अनिका के बालों का जुड़ा बनाया और उसे ढेर सारे गहने पहनाने लगी। उन्होंने उसके रोने को नज़रंदाज़ कर दिया जैसे वोह कोई भावहीन खिलौना है।

एक आक्रोश उमड़ पड़ा अनिका के अंदर, क्योंकि वोह बहुत मुश्किल से चुपचाप बैठ कर सब सहने की कोशिश कर रही थी। उसके मन में कोई भाव नहीं थे, कोई खुशी नही थी उस दिन के लिए जिसके लिए कभी उसने सपना देखा था, उसकी शादी का। उसके अरमानों को तोह रौंद दिया गया था।

"देखो इसे, मुझे फिर से इसका चेहरा ठीक करना होगा।" एक औरत ने शिकायत करते हुए कहा और रूई से उसके आंखों के नीचे हल्के हाथों से दबाने लगी ताकी रोने की वजह से जो मॉइश्चर आंखों के नीचे आ गया है उसे हटा सके।

क्या इस जगह में इंसानियत नाम की चीज़ खतम हो चुकी है? किसीको कोई फर्क नही पड़ता मेरी तकलीफ से?

अपना आपा खोते हुई, अनिका चिल्लाई, और एक औरत के हाथ में जो चीज़ थी उसे तैयार करने के लिए उसे छीन कर आइने की तरफ दे मारा। अगले ही पल उस एंटीक आइना जो न जाने कितने वंशों से सुरक्षित चला आ रहा था उसमे दरार पड़ गई।

वोह वार इतनी ज़ोर से था और आइने की टूटने की आवाज़ भी इतनी तेज़ थी सारी औरते एक पल को चीख पड़ी और फिर अगले ही पल कमरे में शांति पसर गई। कमरे में आवाज़ थी तोह सिर्फ अनिका के गुर्राने की और उसकी लंबी लंबी तेज़ चलती सांसों की।

"मुझे अकेला छोड़ दो!" अनिका चिल्लाई। "आप सब मुझे अकेला क्यों नही छोड़ देते!"

ड्रेसिंग टेबल पर रखा सारा सामान, मेकअप का, गहनों के डिब्बे और जो भी चीज़े थी सब नीचे गिरा दिया। एक तेज़ आवाज़ के साथ सारी चीज़े जमीन पर गिरते ही टूट गई और कुछ बिखर गई।

अनिका वैसे एक शांत लड़की थी और इतनी जल्दी अपना आपा नही खोती थी। उसे बहुत गर्व था अपनी विवेक और सहनशीलता पर। पर इस वक्त उसका समझदार दिमाग भी सब कुछ नष्ट करना चाहता था जो भी उसके रास्ते में आएगा। वोह वहशी दरिंदे की तरह निर्दयी हो गई थी। वोह लोग उसे ऐसा बनने पर मजबूर कर रहे थे, बिलकुल अपनी तरह।

जब युद्ध में चारों तरफ से घेर लिया जाता है तो जो भी आपके पास होता है उसी के साथ ही लड़ा जाता है। वोह चाहती तोह थी, पूरे दिल से, पर किसी से भी लड़ नही पा रही थी। उन लोगों ने उसे अपने जाल में फांस लिया था।

वोह अभी भी ज़ोर से चीख रही थी, रो रही थी, उन सभी बिखरी चीजों को बार लात मार कर दूर कर दे रही थी, और जो भी चीज़े उसकी शादी के लिए आई थी वोह उन सब को फेंक रही थी। पूरा कमरा उसने अस्त वियस्त कर दिया था।

एक गहरी, आदेशात्मक आवाज़ ने उसके तोड़ने फोड़ने के काम में दखल दे दिया था।

"गेट आउट, एवरीवन।" एक आदमी की आवाज़ ने उसे झटका दे दिया था।

"सर, आप यहां नही आ सकते।" कंपकपाती हुई एक औरत की आवाज़ ने उस आदमी से कहा। "इससे अपशगुन हो........" वोह औरत अचानक रुक गई बोलते बोलते और कमरे में चारों तरफ शांति पसर गई।

"मेरा यकीन करो। इससे भी बुरा होगा अगर किसी ने मुझे रोकने की कोशिश की तोह।" उस आदमी की आवाज़ शांत थी लेकिन दमदार, रौब जताने वाली जिससे सबके रोंगटे खड़े हो गए थे। और अनिका तोह डर से कांपने लगी थी।

अनिका ने कदमों की आहट सुनी जैसे सब कमरे को खाली कर जा रहीं हो। अनिका एक दम जम सी गई थी। वोह सोचने लगी की इस छोटे से मौके का फायदा उठा ना चाहिए और इन औरतों के साथ ही इस कमरे से निकल जाना चाहिए ताकि उसे यहां से आज़ादी मिल सके। उसकी सोच को तब विराम लगा जब उस आदमी की एक और ठंडी आवाज़ उसके कान में पड़ी।
"सिर्फ दुल्हन यहां रुकेगी।"

अनिका अभी भी हैरान, परेशान एकदम स्थिर सी खड़ी थी। जब सब कमरे से चले गए तोह कमरे में बिलकुल शांति छा गई।

"पीछे पलटो और मेरी तरफ देखो," एक कड़कड़ाती हुई शांत आवाज़ सुनाई पड़ी।

खौफ और डर से अनिका धीरे से पीछे पलट गई और धीरे से अपनी नज़रों को उठा कर सामने खड़े आदमी की तरफ देखा। उसे कुछ धुंधला सा दिख रहा था क्योंकि आंखों में सिर्फ आंसू भरे हुए थे। उसने अपने आंसू पोछे और सामने ध्यान से देखा। एक लंबा चौड़ा आदमी अपनी पीठ अनिका की तरफ किए खड़ा था। वोह आदमी इसलिए पलटा था क्योंकि वोह दरवाजा बंद कर रहा था। दरवाज़ा बंद होते ही अनिका डर से कांप गई और पैर लड़खड़ाते हुए पीछे की तरफ कदम बड़ गए। उसने अपने आप को अपने दोनो हाथों से क्रॉस की तरह ढक लिया। वोह अपनी डरी हुई आंखों से उस आदमी की पीठ की तरफ देख रही थी, और ना जाने किस चीज़ का इंतजार कर रही हो।
जैसे ही वोह आदमी पलटा, अनिका को लगा मानो किसी ने उससे सांसे खीच ली हो, उसे हवा की कमी महसूस होने लगी। वोह ज़ोर ज़ोर से सांस लेने लगी। वोह आदमी देखने में बहुत ही बड़ा था। और उससे ज्यादा इंपोर्टेंट बात यह थी की वोह आदमी जिस तरह से अनिका को देख रहा था मानो एक फूंक से ही अनिका को मार डालेगा। दिन के उजाले में, वोह आदमी किसी मॉन्स्टर जैसा नही लगता था, पहली बार देखने में.... उससे भी कई ज्यादा खतरनाक। उस आदमी ने सलीके से कपड़े पहने हुए थे। वोह बहुत ही हैंडसम और गुड लुकिंग था। उसकी उम्र लगभग अनिका की उम्र के आस पास की थी।
उस आदमी ने कमरे में चारों तरफ अपनी नज़रे घुमाई। पूरा कमरा तहस नहस हो रखा था। उसने बेरुखी से अनिका की तरफ देखा। अनिका को लग रहा था की वोह आदमी गुस्से में होगा लेकिन ऐसा नहीं था।
उस आदमी ने काफी देर तक कुछ नही कहा, बस ऐसे ही अनिका की तरफ देखता रहा। काफी देर बाद उसने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा, "तोह तुम हो मेरी होने वाली दुल्हन।"
'दुल्हन' नाम शब्द ने ही मानो अनिका को तोड़ दिया, मानो उसका ब्लड सर्कुलेशन ही रुक गया हो। वोह बुरी तरह डर से कांप गई।

"गॉड! यह क्या हो रहा है मुझे। मैं क्यों इतना डर रही हूं।"

अनिका जानती थी की वोह अपनी लड़ाई ऐसे ही बीच में नही छोड़ सकती थी, ऐसे ही कोई उससे जबरदस्ती नहीं कर सकता। वोह प्रॉब्लम सॉल्व करने में विश्वास रखती थी, उसे बढ़ाने में नही। अपनी लाइफ में उसने कितने लोगों को अपनी सोच से, अपने नज़रिए से, प्रभावित किया था। वोह एक लॉजिकल थिंकर थी और अपनी लाइफ में ज्यादा तर जीत ही हासिल की थी लोगों को समझाने में, उन्हे मनाने में। वोह उस आदमी को भी तोह कनविंस कर सकती थी जो उसके सामने खड़ा उससे शादी करने वाला था की वोह उसे जाने दे।

"मुझे यह सब नही चाहिए," अनिका ने फुसफुसाते हुए कहा। उसके गले से आवाज़ ही नही निकल रही थी। उसने अपनी नज़रों को सामने खड़े आदमी पर टिका दी। "प्लीज़, ये शादी रोक दो," उसने विनती करते हुए कहा।
उस आदमी ने कुछ नही कहा और ना ही कुछ रिएक्ट किया।
"मैं यह शादी नही चाहती," उसने दुबारा कहा। "हम कोई दूसरा सॉल्यूशन ढूंढ सकते हैं। हम अगर सोचेंगे तोह जरूर इसका कोई न कोई हल......." अनिका की आवाज़ निकलना ही बंद हो गई जब उसने अपने सामने खड़े आदमी को अपने होंठों को ज़ोर से दबाते देखा। वोह आदमी अब अनिका की तरफ बढ़ने लगा था।
अनिका की सांसे तेज़ हो गई। उसका दिल जोरों से धड़कने लगा। उसका मन करने लगा की वोह ज़ोर ज़ोर से चिल्लाई और डर से यहां से भाग जाए। पर उसने अपने आप को संभाले रखा और वहीं खड़ी रही उस आदमी की आंखों में आंखें डाल कर।
अपने लड़खड़ाते होंठों से उसने दुबारा बोलने की कोशिश की, " मैं तुम्हारी दुनिया से नही हूं। मैं इस जगह से भी नही हूं। मुझे मेरी फैमिली के पास वापिस जाने दो।"
जैसे ही उसने बोलना बंद किया उसे याद आया की वोह जिस जगह खड़ी है, ये जगह इंसानों के लिए नही है, यहां कोई रूल्स, कोई शिष्टाचार, इंसानियत, किसी चीज़ की कोई जगह नहीं है।

वोह आदमी उसके करीब आया। वोह इतना नज़दीक खड़ा था जिससे अनिका को अनकंफर्टेबल महसूस ना हो। अनिका को उसे देखने के लिए अपनी गर्दन और नज़रे दोनो ऊपर की तरफ करनी पड़ी। जैसे ही उसकी नज़रे उस आदमी की नज़रों से मिली, उसने उस आदमी की नज़रों से अपने आप को ढाका हुआ महसूस किया। उस आदमी की नज़रे अभी भी अनिका पर थी और चेहरे के भाव ऐसे थे जैसे कितनी नफरत करता है वोह उससे।
"हम इसलिए शादी कर रहें है क्योंकि 'तुम्हारी प्यारी फैमिली' ने मेरे सामने गिड़गिड़ाते हुए कहा है ऐसा करने को। अब तुमने या तुम्हारी फक्किंग फैमिली ने कुछ किया आज शादी के दौरान, या शादी से पीछे हटे, तोह मैं किसी को नही छोडूंगा।" उसने इस तरह से 'तुम्हारी फैमिली' पर ज़ोर दिया था जैसे वोह कोई श्राप हो।

धीरे धीरे उस आदमी की नज़रे अनिका के कपड़ो पर दौड़ने लगी। अनिका इस वक्त शादी के जोड़े में खड़ी थी।
"कोई भी....आज.... हमारी शादी....नही रोक सकता। आज तुम मेरी वाइफ बन जाओगी," उस आदमी ने जैसे कसम खाते हुए कहा।

उसकी बातें सुनते ही अनिका के पैरों से मानो ज़मीन ही खिसक गई। वोह घुटने के बल नीचे गिर पड़ी। वोह हार गई, ऐसा उसे महसूस हो रहा था।

"वोह कैसे अपने आप को इस जाल में इस नर्क में फसा छोड़ सकती थी। आवेग में आके उसके एक गलत निर्णय ने, आज उससे सब कुछ छीन लिया था।"















कहानी अभी जारी है...