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किस्सा एक लवारेंज मैरिज का

आजकल का जो नया चलन प्रारंभ हुआ है उसमें अक्सर युवक-युवती जब प्रेम करते हैं या एक-दूसरे को पसंद करने लगते हैं तो परिवार वालों को विवाह के लिए राजी कर लेते हैं,इसे लव कम अरेंज कहा जाता है,जो अक्सर अंतरजातीय ही होता है, क्योंकि भई,अब प्यार अधिक सोच-विचारकर तो किया नहीं जाता है,जिसे मैंने लवारेंज मैरिज नाम दिया है। लड़के के घर वाले थोड़े नानुकुर के पश्चात यह सोचकर तैयार हो जाते हैं कि अगर बेटा नाराज हो गया तो कहीं रिश्ता न तोड़ ले या जोर-जबर्दस्ती से दूसरी जगह शादी कर भी ले तो निर्वाह न कर सके,फिर बेटा ताउम्र गलत चुनाव का आरोप लगाता रहेगा।बेटी वाले यूँ तैयार हो जाते हैं कि चलो, दान-दहेज बच जाएगा या वही एक कारण कि दूसरी जगह निर्वाह न कर पाई बेटी तो क्या होगा या कोई गारंटी तो है नहीं कि अरेंज मैरिज में लड़का सही ही निकले तो जिंदगी भर कौन बातें सुने।हालांकि यह जो विवाह नाम का कार्यक्रम है मानव जीवन में, वह चाहे लव हो या अरेंज्ड मैरेज, किंतु-परन्तु-काश!तो जीवन भर लगा ही रहता है।

अधिकतर लड़की के माता-पिता अपने सामर्थ्यानुसार बेटी के विवाह हेतु एक बजट बनाकर रखते हैं, जिसमें आवश्यकतानुसार प्लस-माईनस कर दिया जाता है।इस नव पद्धति में भी अक्सर कन्या पक्ष अपने बजट को थोड़े हेर-फेर के साथ लगा ही देता है, क्योंकि जब लव मैरिज में अरेंज अर्थात परिवार जुड़ जाता है तो वर पक्ष अपने मान-सम्मान अर्थात कुछ धन-उपहार की अपेक्षा रखता ही है,क्योंकि वह उसका पुत्रवान होने का जन्मसिद्ध अधिकार है।

कभी-कभी इस लवारेंज में मामला उल्टा पड़ जाता है।मेरी एक सखी है मेघना,यह उसके बेटे रविश के विवाह की मेरी आँखों देखी कहानी है।मेघना एक मध्यमवर्गीय परिवार की गृहणी है जो एक बेटे एवं बेटी की माँ है।समस्त सुख-सुविधाओं से युक्त अपना बड़ा सा मकान है। रविश सरकारी बैंक में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत है।बेटी दो वर्ष छोटी है,दोनों बच्चे विवाह योग्य हो गए थे, इसलिए दोनों के लिए वर -वधु की तलाश जारी थी।अरेंज मैरिज में परिवार का आर्थिक स्तर, शिक्षा, शक्ल-सूरत, जन्मपत्री इत्यादि ढेरों बातों पर विचार किया जाता है।खैर,तीन-चार लड़कियाँ उन्होंने देखी भी।जब परिवार को कन्या पसंद आती थी तो लड़के को नहीं।देखते हुए डेढ़ साल गुज़र गए।अंततः एक दिन अचानक बेटे ने सरप्राइज देते हुए बताया कि कल लड़की वाले आ रहे हैं, मैं उसे तीन साल से जानता हूँ, वह भी दिल्ली में प्राइवेट बैंक में कार्यरत है।पहले उसके घर वाले तैयार नहीं थे,इसलिए मैंने अबतक आप सबसे ज़िक्र नहीं किया था।

मेघना से उसके पति रविन्द्र ने नाराजगी भरे स्वर में कहा कि जब हमनें पूछा था कि कोई लड़की पसंद हो तो बता दो,तभी बता देता तो हम इतने दिन से बेवजह परेशान तो नहीं होते।झुंझलाहट तो मेघना को भी अत्यधिक हो रही थी लेकिन बस वही बात कि इंसान अपने जाए से ही हारता है।खैर, समझा-बुझाकर पति को शांत कराया।दूसरे दिन कन्या के बड़े भाई-भाभी,बड़ी दो बहनें, एक बहनोई एवं तीन भतीजे-भतीजी,बहनौत आए। पिता स्वर्गवासी हो चुके थे।कन्या सबसे छोटी सन्तान थी घर की।अब जब मियाँ-बीबी राजी तो क्या करेगा काजी वाली बात थी,बस औपचारिकता पूरी करनी थी।बातों-बातों में लड़की वालों ने कहा कि ऐसी शादी हमारी बिरादरी में 25-30 लाख से कम में नहीं होती।हमारी स्थिति अच्छी नहीं है, इसलिए हम कुछ दे नहीं पाएँगे।

अब हाँ करने के अतिरिक्त कोई चारा तो था नहीं, जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो क्या हो सकता था,मन मसोसकर इंगेजमेंट, शादी की तिथि निर्धारित कर दिया गया।कन्या पक्ष चाहता था कि बारात उनके ही गाँव में आए,वहाँ दावत का खर्च कम आएगा,फिर आख़िरी शादी में हमारे सभी नाते-रिश्तेदार एकत्रित होंगे।रविन्द्र-मेघना ने इस बात को अस्वीकार करते हुए कहा कि हमारे यहाँ पहली शादी है, हम बारात में किसे ले जाएंगे,किसे छोड़ेंगे, फिर 12 घण्टे की दूरी पर बारात को ले जाने की व्यवस्था हमारे लिए मुश्किल है।तब लड़की वालों ने दो-टूक शब्दों में बता दिया कि हम दावत के लिए बस एक लाख रुपये दे पाएँगे।

रविश पहले तो इसी बात पर नाराज़ हो गया कि जब वे चाहते हैं तो हम बारात लेकर उनके ही गाँव चले जाते हैं।रविश को उनकी परेशानी नज़र आ रही थी लेकिन अपने माता-पिता की नहीं, यह शायद विवाह पूर्व प्रेम का असर था।बाद में मेघना ने समझाया कि सारा ख़र्च जब हमें ही करना है तो फिर हम परेशानी भी क्यों उठाएं।एक लाख रुपये में विवाह की दावत होती है क्या?इतना तो 3-4 दिन में लड़की वालों के ही रहने-खाने में खर्च हो जाएगा।लड़की वालों ने तो एक लाख देने की कहकर पल्ला झाड़ लिया।शादी की दावत,बड़े गाने,शादी के एक-दो दिन पहले से लेकर दो दिन बाद तक खाने-पीने में ही कम से कम 6 लाख खर्च हो जाएंगे।फिर रिश्तेदारों को विदाई में कपड़े वगैरह देने होंगे।बहू को जेवर-कपड़े लेने होंगे।कितना भी खींच-तान कर खर्च करेंगे,तब भी 8 लाख का बजट लग जाएगा।

रविन्द्र का कोई निश्चित इनकम का साधन नहीं था,दुकानों, गोदाम एवं घर के किराए से काम चलता था, फिर घर का कुछ समय पहले ही रेनोवेशन कराया था, तब कहाँ पता था कि बेटे के विवाह में भी उन्हें ही लगाना पड़ेगा।बचत कुछ भी नहीं था।अभी बेटी की शादी के लिए भी 15-20 लाख चाहिए ही चाहिए, सबको इतना अच्छा घर-वर फ़्री में थोड़े ही मिल जाता है।एक तरफ रविन्द्र व्यवस्था करने में परेशान थे,उधर मेघना चिंता में।रविन्द्र भी अपनी भड़ास जबतब मेघना पर ही निकालते रहते।मेघना पति के साथ-साथ स्वयं को भी तसल्ली दिलाती रहती कि हमें क्या,जो कुछ है बेटे का ही है, बचे या पहले खर्च हो जाय,क्या फर्क पड़ता है।

मेघना ने अपने जेवरों को दो हिस्से में बांट रखा था दोनों बच्चों के विवाह के लिए…एक गले का सेट,चार चूड़ियाँ, एक मांगटीका,एक अँगूठी,एक नथ।लेकिन चूड़ी बहू के हाथों में छोटी पड़ रही थी, इसलिए बदलकर दूसरा लेना था,अब बदलने में अच्छे-खासे पैसे और लगाने पड़ रहे थे।एक दिन बेटे ने पूछा कि कौंधनी भी तो होनी चाहिये।मेघना ने कहा कि आजकल की लड़कियाँ कहाँ पहनती हैं तो बेटे ने तड़ाक से जबाब दिया कि सेट औऱ भारी पाज़ेब भी कौन पहनता है,तो वह भी मत चढ़ाओ।मेघना बेटे का मुँह देखती रह गई।

इंगेजमेंट के लिए बेटे ने अपनी पसंद से अँगूठी एवं बहू के लिए पहनने एवं देने के सात जोड़ी कपड़े,मेकअप के ढेरों समान इत्यादि बहू की ही पसंद से खरीदे।इंगेजमेंट की निर्धारित तिथि से मात्र एक दिन पूर्व लड़की वालों की सूचना आई कि उन्होंने एक दिन बाद का प्रोग्राम रखा है।बेटे ने पाँच किलो देशी घी की मिठाई,दो बड़े टोकरे फ़ल, पाँच किलो मेवे लिए।खैर, इंगेजमेंट सकुशल सम्पन्न हो गया, लेकिन विदा में लड़की वालों ने हद ही कर दिया,कुल पाँच लोग थे वे लोग, पाँच जोड़ी कपड़े भी ढँग के नहीं थे,उसपर मात्र आधा किलो लड्डू एवं प्रसाद के 6 केले,चार सेब देकर तो अति ही कर दी,कुछ नहीं तो उन्हीं की दी गई फल- मिठाइयों में से ही दो डिब्बे एवं चार किलो फल दे देते।मेघना तो शार्ट टेम्पर्ड पति के पेशेंस को देखकर हैरान थी।

मेघना के परिवार को वधु पक्ष द्वारा दिए जाने वाले बहुवार या किसी भी समान की कोई जानकारी नहीं थी,न ही उन्होंने पूछा लेकिन डेढ़ महीने पहले ही उनकी 21 जोड़ी साड़ियों की डिमांड आ गई जो उन्हें अपने काम वालों यथा नाई, धोबी,खाना बनाने वालों एवं अन्य सहायकों में वितरित करने थे।रविन्द्र तो मना करना चाहते थे कि आप अपने लेन देन स्वयं कर लो,हम अपना कर लेंगे,लेकिन रविश का कहना था कि जब इतना किया है हमनें तो यह भी सही।।झक मारकर इनकी भी व्यवस्था की मेघना ने।कन्यापक्ष वाले तो विवाह तिथि से दो दिन पूर्व ही लगुन-सगाई के नाम पर आना चाहते थे, सम्भवतः उनकी मंशा एक दिन आसपास के क्षेत्रों में घूमने-फिरने की रही होगी किंतु रविन्द्र जी ने स्पष्ट मना कर दिया कि हमनें सिर्फ़ एक दिन पहले की ही व्यवस्था की है, इससे ज्यादा हमारे वश की नहीं है।

खैर, राम-राम करके विवाह कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।सभी रिश्ते-नातेदार विदा हुए,तब मेघना-रविन्द्र ने राहत की सांस ली।वे सोच रहे थे कि उफ़!यह लवारेंज मैरिज,इससे अच्छा था कि बेटा कोर्ट मैरिज कर लेता,हम बाद में रिसेप्शन दे देते,तो भी 4-5 लाख रुपये बच जाते और परेशानी भी कम होती,लेकिन कुछ तो समाज का दबाव फिर बेटे की इच्छा,अंततः हम यहीं तो हार जाते हैं।

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