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हमारी अधुरी कहानी

"मैं आपको यह अनुमोती नही दें सकता," Judge ने कहा।

"क्यूँ नेही दे सकते? क्या एक साथ रहना गुणा हैं?" टीना चील्लायी।

"एक साथ रहना गुना नेही है, लेकेन आप आपके दोस्त संजीव से एक साथ नेही रहे सकतें। यह court का राय है।"

टीना रो परी। उसे संजीब के साथ बिताये हर लम्हा याद आने लगी। संजीब सिर्फ उसके दोस्त नेही थे, उसके सबकुछ था। संजीब कई बार उसके साथ शादी करने के प्रस्ताब दिये थे लेकेन टीना उसे टालते रही क्यू के उसे पढ़ाई करनी थी।

टीना Judge के पाश बिंन्ते करती रही लेकिन Judge साहब उसकी एक ना सुनी। वे उसे उहा छोड़के चला गया।


यह कहानी शुरु होती है कॉलेज से। टीना अपनी मास्टर्स डिग्री पड़ने के लिये जब वे कलेजे आता है तब वो पहलीबार संजीब से मिलती है।

संजीब कॉलेज मै स्टूडेंट यूनियन के हेड थे। कॉलेज में दाखिला लेने के लिये वे संजीब की help लेते है। तबसे वेदोनों अच्छे दोस्त बने। संजीब पराई में अब्बल था। लेकिन टीनाको भी पराई में लगाओ थी। संजीब उसकी सीनियर था।

कॉलेज के बाद वे लोग हर रोज कॉलेज कैंटीन मै मिलते थे लेकिन पढ़ाई के इलाबा कूछ अर बात नहीं करते थे। वे लोगों के दोस्त उँदोनोंको पाड़ाकू कीड़े काय के बुलाते थे।

एक दिन संजीब कॉलेज नहीँ आया तो टीना उसे पाग़ल के तरहा कॉलेज के हर दिशा ढूंढने लगी थीं। फिर उसकी एक दोस्त से मालूम पड़ा के संजीब बहत बीमार है। उसे हसपताल ले जाना पड़ा। संजीब की माँ के साथ टीना का अच्छा दोस्ताना हो चुकीथी। वे हर sunday उस से मिलने जाती थी।

टीना को इतने दिन मैं एयसास हो चूँकि थी की संजीब उसके कितने खास हैं। वे मनोमन उससे प्यार करने लगी थी। वे उसके साथ शादी भी करने के लिये राजी हो चूँकि थी। वे आज कॉलेज आईथी उसकी भावनाओं को संजीब को बताने। लेकिन उसे आज यह बुरी खबर सुन्ना परा। वे तुरंत संजीब की माँ से मिलने संजीब की घर के ओर राबाना हो गयी।

संजीब की माँ कमला देबी अपनी घरमें किसी के इंतेज़ार कर रही थी। यूसे बहत चिंतित दिखाई दे रही थी। उसने संजीब को बड़े प्यारसे बड़ा किये। संजीब के दश सालके उम्रे में उसका पिता चल बसे। उसे ब्लड कैंसर थे। यह रोग उसका परिबार के हर मर्द का था।

कमला देबी टीना को देखके थोड़ा सुकून मेहसूस किया। वे अपने मनमे टीना को अपनी पुत्रबधू मान चूँकि थी। टीना उसके पास आके उसे गले लगाके रोने लगीं।

"तुजे क्या हुया? तू क्या उसे प्यार करने लेगी हैं।"

टीना अपनी सर हिलाहि अर फिरसे रो पड़ी।

कमला देबि ये सुनकर चिंतिंत हो गयी। उसने अपने आपको सम्हाले और टीना से पूछे।

"तू सुबह से कुछ खाया है क्या?"

"नेही, आंटी।" टीना ने रोते हुये जबाब दी।

"बैठ, मैं तेरे लिये कुछ लाती हूं।" कमला देबी उठने से पहले उसकी मोबाइल बजने लगी। वे मोबाइल पे बात करते करते रसोई की और चली गयी।

टीना यहाँ अकेली बैठी थी। उसे संजीब की याद अराही थी। वे उसके यादमें पूरी तरह खो चुखी थी।

"इतना किसे याद कर रहें हो?" यह अबाज सुन्कर वे चैक गयीं। वे जब आँखे खोली तो वह संजीब को अपने पाश की कुर्सि में बैठा पाया।

"तुम यहाँ कैसे आये?"

"क्यूँ? पैदल से।"

"मेरा मतलब, तुमतो हसपताल थे?"

"हाँ, उंलोगोने मुझे छूट्टि देदी। तो मैं अपने घर आ गया।"

संजीब को सामने देखकर टीना अपने आपको अर रोक नहीँ पायीं। वे उसे कसके पकड़के रोने लगीं।

"तुम मुझे छोड़ के कही मैत जाना। मैं तुम्हारे बिना जिनेही पाउंगी।"

"अचानक तुम्हें क़्या होगयीं?" संजीब उसकी आँखें पूंछे। "में तो ठिक हूँ।"

"मैंने तुम्हें कितनि बार शादी करने को बोलाथा, लेकिन तुम्ही तो राज़ी नहीँ हुईं।"

"मैं आज जाना के तुम मेरे जीबन में क्या हों। में तुम्हे शादी करने के लिये तैहर हूँ।"

येह सुनकर संजीब रोने लगा। रोने के अबाज़ सुनकर टीना जग उथी। उसने देखा के संजीब की माँ रो रही हैं। वे चारों और दिखें, कहि पे उसे संजीब ना दिखी।

"क्या हुयां आंटी, अब रो क्यूँ रही हों?"

कमला देबी टीना को बताया के वो फ़ोन हसपताल से आया था। संजीब को ब्लड कैंसर थी उसकी पिता की तरह, लेकिन उसे ये मालूम नही था। यह बहत दिनों से फाइनल स्टेज में आ चुका था। इसि कारन वो कुछी पल पहलें मार चूका हैं। उसके कुछ दोस्त उसके शबको हॉस्पिटल से ला रहा है।

यह सुनकर टीना की पाओके नीचे जैसे जमीन खिसक गई। उसे बड़ा सक लगी। वे स्वास ले नहीं पा रहीं थीं। संजीब की माँ उसे पानी देके उसको होश मैं लाए।

कुछ देर बाद संजीव की लाश को हॉस्पिटल से लाया गया। उसकी लाश देखकर संजीब की माँ फूट फूट के रोने लगी। लेकिन टीना के आंख से इक भी अंसु नहीं बयि। वे जैसे पत्थर हो चुकीं थीं। उसे संजीव जिन्दा दिखाईं देरही थीं। संजीव उसकीही लाश के येर्टगिर घूम रहा था जैसे के उसे बताने की लिए के वो अभितक जिन्दा है।

रोनेर्धोनके बाद जॉब संजीव की लाश को शमसान घाट लेने की तैयारी हो रहा था तब टीना लाश को शमसान घाट लेने से साफ माना कर दी। वो उसे अइसेही उसके साथ छोड़ने की मांग की।

"मेरा प्यार जिन्दा है अभी। उसे कुछ नहीं हुआ। उससे में अभी शादी करूंगी।"

टीना एक सिंदूर की डिब्बा लेकर संजीव की लाश के पास जाती है और उसकी हात से अपने मांग भर लेती है। ये देखकर संजीव की मां और टीना कि पितामाता उसे रोखते नहीं। वो लोग जान चुके थे के टीना की दिमागी हालत बिगड़ चुकीं थीं।

टीना संजीव की लाश को आपने साथ रखने की मांग की ओर उन लोगों ने इस मांग को स्वीकार कर लिया।

लेकिन लाश को ज्यादा दिन रखा नेहि जा सकता। हालाकि वोलॉग बहुत कोशिश की लाश से बदबू न फैल पाए लेकिन नकमियब रहें।

संजीव की लाश की जब बदबू मोहल्ले में छाने लगा तब उसकी एक परोसी पुलिस मैं कंपलेन कर दी।

पुलिस जब संजीव की लाश उठाकर ले गाई तब टीना थाने पे जा कर संजीव की लाश को अपने घर लाने की पूरी कोशिश की। ये मुंकिन न होने पार टीना ने court जकड़ नाय की भीग मांगी। Court के Judge ने अपना फ़ैसला सुनाया।

"इस लाश को घर में रखा नहीं जा सकता। उसे जल्दी शमसन में जला दिया जय।"

यह Judgement टीना पे परे भरी। उसकी आखरी उम्मीद उससे छीन लिया जा रहा था। उसके सामने उसकी प्यार को जला दे रहे थे पुलिस। वे खुद को और रोक न सकीं। संजीव की जलती चीता में वे खुद कूद पड़ी और जिन्दा भस्म हो गई। यह था टीना की प्यार की कहानी जो ख़त्म हुए दोनो की मृत्यु से।