Nakshatra of Kailash - 29 books and stories free download online pdf in Hindi

नक्षत्र कैलाश के  - 29

                                                                                                   29

अनुपम नज़ारें आँखों में बसे हुए थे। मन में शांति का प्रशाद विराजमान था। हम यात्री अब भाग्यशाली लोगों में से एक थे और क्या चाहिए ? बुधी गाँव के नजदीक एक पूल लाँघने के बाद देव, घोडा लेते हुए पिछे से आ गया और मैं घोडे पर बैठकर आगे बढने लगी। रास्ता ढ़लान का था। यहाँ से ठंड़ कम होने लगती हैं। लेकिन मौसम कभी भी अपना अंदाज बदल देता हैं। निकलते वक्त पूरा आँसमान साफ था  और अब बादल चारों ओर से घिरते हुए आए थे। हरे रंग की कितनी छटाएँ वैविध्यपूर्णता से नजर आ रही थी। पैरोंतले फुलों ने अपने रंग बिखेरे थे। झरनों के शुभ्र प्रपातों में सूर्यकिरणों के कारण इंद्रधनुष तैयार होकर पूरा झरना सप्त रंगों से  उछल रहा था। आँखे तृप्त हो गई। आगे ज़ाते एक छाते के आकार में परिवर्तित झरना दिखाई दिया। कितने सालों लगे होंगे  पत्थर को इस आकार में आने के लिए। शुभ्र सफेद जलधारा का अभिषेक स्विकार करते हुए जैसे शिव ध्यान में लीन हैं ऐसा आभास होने लगा।

अब लखीमपुर की तरफ जाने की चढ़ाई शुरू हो गई। आते वक्त वहाँ से 4444 सिढीयाँ उतरते हुए आए थे, लेकिन अभी सीधे मंगती गाँव ज़ाना था इसलिए सिढीयाँ चढने से बच गए। काली नदी साथ में अभी भी बहती ज़ा रही थी। यहाँ पर नदी का प्रवाह रौद्र रूप में प्रवाहीत हैं। इतने में जोर से बारिश चालू हो गई। पहले धीरे धीरे गिरनेवाली बारिश बाद में जोरशोर से बरसने लगी। जैसी स्थिती हैं उससे आगे बढना क्रम प्राप्त था। बारिश के कारण नदियाँ, नाले,झरने बडे पैमाने पर बहते हुए नजर आने लगे। बारिश रूकने का नाम नही ले रही थी। पुरा रास्ता फिसलाऊ हो गया। नदी का शोर,बारिश का शोर अब इतना बढ गया की पास खडे होते हुए किसी से बात की तो सुन पाना मुश्किल था। यकायक एक जोर के ध्वनी कारण सब भयभीत होकर जहाँ थे वही खडे रह गए। मार्ग में कही पर लँड़स्लायडिंग हो गई थी। हम इतनी ही प्रार्थना कर सकते थे की वह हमारे मार्ग में ना हुआ हो ,नही तो हमारा हाल भगवान ही जाने। बारिश की बुँदे इतनी तीव्र थी की चेहरे पर चुभन सी महसूस होने लगी। बचाव का कोई रास्ता नजर नही आ रहा था। इतने में एक बडा झरना जोर शोर से नादध्वनी करता हुआ सामने आ गया। पानी का आवेग देखते हुए उसे लाँघने की हिंम्मत जूटा पाना मुश्किल हो गया। धीरे धीरे बारिश रूक गई। पोर्टर्स, घोडेवाले,यात्री पुरूष इन्होंने एक बडी रस्सी हाँथ में थामते हुए एक सहारा बना दिया और ईश्वर का नाम लेते हुए वह झरना लाँघने की हिंम्मत  एक दो लोगों ने जुटा ली। पानी के जोर के कारण संतुलन बनाना आसान नही था। मैंने भी भगवान का नाम लेते हुए पानी में पैर रखा तभी ध्यान में आ गया पैर स्थिरता से नही गिर रहे हैं,उतने में पोर्टर ने आवाँज दी “माँजी रस्सी खिंचके पकडो। उसी के साथ चलो।“ एक साल के बच्चे की तरह लड़खडाते पैर से चलने लगी। थोडा चलते ही पैर कैसे रखने हैं, संतुलन कैसा बनाना हैं यह बात ध्यान में आ गई। झरना पार हो गया। दो तीन मिनिटों का खेल मेरे जीवन को एक क्षण में खत्म कर सकता था। एक एक करते पूल लाँघते हुए आने लगे। दो औरतें पानी में पैर रखने की हिंम्मत ही नही जुटा पा रही थी ,सब चिल्लाने लगे तभी पोर्टर्स के सहारे उन्होंने पूल लाँघ दिया। यह जोखिम भरी घटना के बाद किनारे पर पाँच मिनिट तक हम बैठे ही रहे किसी को कुछ सुझ ही नही रहा था। थोडी देर बाद शरीर, मन की झनझनाहट कम होने लगी और काफिला आगे बढने लगा। अब घोडे पर बैठने के लिए जी नही कर रहा था, और चलना भी मुश्किल हो गया। चढ़ान ढ़लान खत्म होने का नाम ही नही ले रहे थे। रास्ते में  जो प्रचंड़ नादध्वनी सुना, वह कहाँ पर हुआ यह पता ना चलने के कारण चिंता का वातावरण फैल चुका था। रास्ते में चलते लामारी गाँव लगा। वहाँ एक चाय की दुकान थी। वह देखते ही सबको हल्कापन महसुस होने लगा। ऐसी जगह पर चाय की दुकान खोलने के लिए उसे शतशः धन्यवाद दिए गए। गर्म ,अद्रक की चाय ऐसी भीगी अवस्था में कितना सुखावह एहसास दे गई। अब हम मालपा के तरफ ज़ा रहे थे। मेरी कमर अकड़ गई थी। धीरे धीरे चलते थोडा आराम आने लगा। अभी झरने तो लग रहे थे लेकिन  वह छोटे होने के कारण उन्हे लाँघना आसान हो गया।। व्यक्ति जब बहुत बडी कठिनाईयों से गुजरता हैं तब छोटी मुश्किले उसके लिए कोई मायने नही रखती हैं। चलते चलते एक ऐसे जगह पर पहुँच गए की यह झरनों का गाँव तो नही? ऐसा सवाल मन में आ गय़ा। एक झरना दुसरे झरने से शायद बात कर रहा हो” अरे देख वह आ गए ,अब इनकी मज़ा लेते हैं ।“ मेरी हँसी देखकर पोर्टर ने पुछा” क्या हो गया माँजी”? “अरे जरा सोच रही थी यह झरने आपस में क्या बात करते होंगे। “बेचारा पोर्टर गर्दन हिलाते आगे गया। माँजी का दिमाग कुछ ठीक नही लग रहा हैं ऐसे शायद सोचता होगा। इतने में पर्बतों से कुछ पत्थर गिरने के निशान दिखाई दिए । मतलब कुछ देर पहले जो आवाँजे सुनी थी वह इसी की थी। यह तो अच्छा हुआ हमारी मार्ग से दूर थे। नही तो और लंबे रास्ते से जाने की नौबत आ ज़ाती। जल्दी ही हम मालपा पहुँच गए। यहाँ खाने की व्यवस्था की गई थी। सब बहुत थके हुए बदन दर्द से बेहाल थे। गर्म खाना खाने के बाद जरा आराम महसुस हुआ। बाद में फिर से चलने लगे। आगे का रास्ता खराब था। उपरी सृष्टी नहा धो के जैसे बाल सुखाने बैठी हो और नीचे पूरा कीचड़ था। लखीमपूर ज़ाते वक्त नजांग फॉल, पूल  लाँघते हुए गए थे वही पूल सामने आ गया। नदी का सफेद पानी उछलता हुआ प्रचंड़ नाद से बह रहा था। धीरे धीरे वह पूल पार कर दिया। चलते हुए अचानक मेरे पैर में क्रॅम आ गया। एक पैर भी आगे रखना मुश्किल हो गया। पोर्टर के ध्यान में यह बात आ गई। उसने पैर को सहलाते हुए एक नस को ऐसे दबाया की वह नस झट से खुल गई। पोर्टर्स को यह ग्यान पहले से ही ज्ञात होता हैं। अब तो घोडे पर बैठना ही अनिवार्य हो गया। कमर और पैर की वेदना के कारण बेचैनी हो रही थी। आखिर लखीमपूर पहुँच गए। वहाँ थोडी देर रूकने के बाद चलने लगे ।लखीमपूर से मंगती अब सीधे रास्ते के कारण सफर आसान हो गया। अगर फिरसे 4444सिढियाँ चढनी पड़ती तो हमारा क्या हाल होता? हम आगे के बारे में पहले ही सोचकर अपना बूरा हाल कर देते हैं। व्यक्ति अगर अपने खयाल वास्तविकता में लाना चाहे तो पूरी दुनिया ही बदल ज़ाएगी क्यों की मनुष्य सोचता ज्यादा हैं और आचरण कम करता हैं। जिन्होंने सोचकर यह मार्ग बनाया उनको धन्यवाद देते हुए मैं आगे निकल गई। देव पोर्टर बडे भक्ती भाव के साथ अपनी भाषा में गाना गा रहा था, उसे सुनते मज़ा आ गया। मन को अगर कुछ काम मिल गया तो शरीर दुःख भी कम हो जाता हैं। खाली मन यह तो दुःख का सागर हैं। इसीलिए नामजाप के साथ नदी के बहते पानी पर मन एकाग्र किया, इससे कमर दर्द से, मेरा ध्यान दूर होकर थोड़ा हल्कापन महसुस होने लगा। पर मन एक जगह ज्यादा देर रूक नही सकता और बढती वेदना उसे एकाग्र नही होने दे रही थी। घोड़े पर से मुझे अभी उतरनाही था। यात्रा का यह सफर बहुत कष्टदायी लगने लगा। चलते चलते अब रास्ता एकदम छोटा हो गया। कुछ मार्ग पर्बतों की खोदाई करते हुए बनाए थे,तो कही जगह पर मार्ग, नदी से गुजर रहा हो ऐसा लगा। देव हाँथ थामते हुए धीरे से ले जाने लगा। पूरे सफर में यह देवदूत जैसे लगते हैं। एक जगह पर मेरा पैर फिसल गया। मुँह के बल गिरने वाली थी की देव ने झट से सँभाल लिय़ा। ड़र के मारे मेरा शरीर काँपने लगा। देव ने नीचे बिठाकर पानी पिलाया, थोडा शांत किया। यहाँ अपनों से दूर कोई अनज़ान आदमी अपनी देखभाल कर रहा हैं इस बात से मन कृतज्ञ हो गया। अब समतल भुभाग का इलाका आ गया। कुछ लोग वहाँ पहुँच चुके थे ,कुछ पिछे थे। एक छोटा मंदिर दिखते ही ,वहाँ प्रणाम करते हुए आ गई। सामने खेती दिखाई दे रही थी। इसका मतलब अब मानवी जगत में प्रवेश कर रहे हैं। दूर जगह देखकर एकांत में बैठ गई। निर्मल पवित्रता से भरा वातावरण, मन की गहराई में उतरने लगा। आँखों की पलके हलके से मुंद गई। अपार आनन्द का सागर चित्त में लहराने लगा। बाह्य जगत से मैं जूदा होने लगी। किसी की आवाज से सजगता आ गई ,आरती आवाँज दे रही थी। उस अवस्था से बाहर आने के लिए प्रयास करने पड़े। मानों आरती से बात करने तक की प्रक्रिया में एक यूग बीत गया हैं। आरती को बात समझ में आ गई। थोडी देर बैठने के बाद, मेरा हाँथ थामकर चलने लगी। सामनेवाले हॉटेल में चायपान चालू था। वहाँ आरती और मैं एक कोना पकड़कर बैठ गए। मुझे बात करने की इच्छा ही नही हो रही थी इसका कारण मैं जानती थी लेकीन आरती क्यों शांत बैठी हैं इस बात का पता नही चल रहा था। आगे का सफर बस से होनेवाला था। तभी ध्यान में आ गया यहाँ से पोर्टर्स हम से बिछड़ने वाले हैं। उनके ऋणानुबंध का दौर यही खत्म हो रहा था। बहुत बुरा लगा। मनुष्य ज़ानता हैं जीवनकाल में क्या क्या घटित होनेवाला हैं, पर फिर भी समय के साथ वह घटना घटित होते ही वह दुःख दर्द से बिलबीला उठता हैं।

(क्रमशः)