Nafrat ka chabuk prem ki poshak - 5 in Hindi Love Stories by Sunita Bishnolia books and stories PDF | नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 5

नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 5

काका की बात बताते समय उनके चेहरे पर दुख या पीड़ा का कोई भाव नहीं होता। वो तो भावों में बहती हुई डूब जाती थी पुराने दिनों में और बताती - "थारे काका खूब चाहते थे मैंने। कोई ना कोई बहाना सूं राणी सा री बग्घी रोज म्हारै घर रै सामणै रोकता था ।"
हम लड़कियाँ भी कम नहीं थी हम भी पूछ बैठते -‘‘अच्छा..! काकी, काका आप के घर के सामने से रोज निकलते तो क्या आप भी उन्हें देखने के लिए बाहर आती थी।’’
हमारी बात सुनकर काकी शर्म से लाल हो जाती और कहती- ‘‘धत् छोरियों थारा काका को टेम तो राणी सा नै मंदर ले जाणै को, अर मै जाया करती म्हारी छोटी बहण ने स्कूल छोड़ण, जद ही देख्या करतो थारों काकों म्हनै।
मैंने बारै आवण री के जरूरत ही।’’
काकी की बात सुनकर हम सारी लडकियां जोर से कहती- ‘‘ओ .... तो ये बात है.. तो काका आपको प्रेम करते थे आप उन्हें प्रेम नहीं करती थी ?’’
इस बात का काकी कोई जवाब नहीं देती और मुस्कुरा देती और हम प्रश्न का उत्तर हमें काकी की आँखों में मिल जाता ।’’
हम फिर शुरू हो जाते - ‘‘तो काकी काका से आपकी शादी हुई कैसे ? क्या आपके पिताजी या माँ ने मना नहीं किया ?’’
तो काकी बताती कि जब वो बहुत छोटी थी तब ही माँ तो गुजर गई थी पाँच बहनों में वो बीच की थी। अब्बू ने पांचों बहनों को बड़े प्यार से पाला और माँ - बाप दोनों का प्यार दिया। काकी आगे बताती थी कि उनके अब्बू इतना अच्छा रिश्ता हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे इसलिए वो काका के घर वालों से मिले।
तुम्हारे काका की अम्मी ने तो मुझे देखते ही पसन्द कर लिया था और तुम्हारे काका की दो बहनें थी जिनको पहले ही काका ने मुझसे मिलवा दिया था। मेरे जेठ बड़े भले आदमी थे पर उनकी बीबी यानी मेरी जेठानी इस शादी से खुश नहीं थी वो तुम्हारे काका से अपनी बहन की शादी करवाना चाहती थी। ’’
माली काकी जब अपनी कहानी सुनाती और आगे की कहानी जानने की जिज्ञासा चरम पे होती थी तभी घर से कोई ना कोई बुलाने आ जाता था। पर हम भी कहाँ मानने वाले थे। दूसरे दिन फिर धमक जाते आगे की कहानी सुनने। पर बात शुरू कौन करे ये भी भारी समस्या होती
फिर भी हम कुछ इस तरह बात करते कि काकी को जवाब देना पड़ताा। कई बार कहानी सुनाते- सुनाते काकी पहुँच जाती थी अपने पुराने दिनों में और हो जाती थी गुमसुम।
दस बार सुनने के बाद भी काकी की शादी के किस्से को आगे सुनने उत्कंठा हमारे मन में हिलोरे मारा करती। इसलिए किस्से को आगे बढाने के लिए हम लड़कियों में आगे आती निर्मला और पूछ लिया करती - ‘‘काकी जब आपकी सास, जेठ और ननदों को काका के साथ आपकी शादी से दिक्कत नहीं थी तो आपकी जेठानी को क्या दिक्कत थी।’’
माली काकी कितनी मासूम कितनी भोली थी ये इसी बात से पता लगता है कि वो काका के बारे बताते हुए कहती -
क्रमशः
सुनीता बिश्नोलिया

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