Nafrat ka chabuk prem ki poshak - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 12

मुझे घर आया देखकर आपा की जान में जान आई। उन्होंने इतनी देर लगाने पर मुझे थोड़ा डाँटा भी।
मुझे पता था कि ये आपा की डांट नहीं बल्कि मेरे लिए उनकी परवाह है इसलिए उनका डांटना मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगा और मैं मुस्कुराते हुए बड़ी आपा के गले लग गई। मेरे ऐसा करने से आपा का गुस्सा शांत हो गया और उन्होंने धीरे से मेरे गालों को खींचकर हल्के हाथ से मेरी पीठ पर मारा और मेरे माथे को चूम लिया।
आपा का अच्छा मिजाज देखकर मैंने आज का किस्सा सुनाते हुए छह आने बड़ी आपा के हाथ में रख कर एक झटके में ये घोषणा कर दी कि अब मैं रोज घोड़ागाड़ी चलाया करूँगी । मेरी बात सुनकर दोनों आपा हक्की-बक्की रह गई। वो कुछ बोलती इससे पहले ही मैंने घर के हालात का हवाला देकर उनको मेरी बात मानने पर मजबूर कर दिया।
दोनों आपा थोड़ा घबराती जरूर थी पर दोनों ने ही मुझे घोड़ागाड़ी चलाने की इज़ाजत दे दी अब वो बच्चों को संभाल लेती मैं कमाकर लाती । मुझे अब पता लगा कि फूलों की दुकान में जितना दस दिन में कमाते है उतना तो घोड़ा गाड़ी की एक दिन की कमाई है।
अब हमारे घर की गाड़ी भी ठीक तरह से चलने लगी और मैं अपने दर्द और राशिद के धोखे को भूलने लगी थी। बाबू पूरा एक साल का हो गया था। मैं पूरे दिन की कमाई लाकर आपा को दे दिया करती थी पर कई बार जल्दी में कुछ पैसे घोड़े गाड़ी में लग गल्ले जैसी छोटी पेटी में डाल देती थी। पर उस पेटी में ताला लगा था और जिसकी चाबी भी मेरे पास नहीं थी इसलिए जो डालती थी वो निकाल नहीं पाती थी। मैंने एक दिन मैंने छोटी बहन को कहा- ‘‘जा घोड़ागाड़ी में लगे गल्ले का ताला तोड़कर पैसे निकाल ला।’’
मेरी छोटी बहन का दिमाग बड़ा तेज चलता था। उससे ताला तो नहीं टूटा पर उसने पेटी का कुंदा ही निकाल दिया और उसमें लगभग पचास रूपये निकले। पैसों के साथ ही निकला एक खत जिस पर ‘‘मेरी जुबैदा’’ लिखा था।
मेरी बहन पैसे देखकर खुश हुई वहीं उसने आश्चर्य के साथ बिना खोले वो खत मुझे दे दिया।
आपा ने पूछा किसने दिया है ये ख़त... मैं ये सुनकर मैं घबरा गई कि आपा कहीं उल्टा-सीधा ना सोचने लगे। इसलिए वो ख़त हाथ में लिया तो देखा कि ये तो राशिद की लिखावट है निकाह से पहले भी वो 'मेरी जुबैदा' लिखकर खत दिया करता था।
पहले तो मन में आया कि फाड़ कर फेंक दूँ इसे, फिर सोचा कि राशिद ने ये खत यहाँ कब रखा और क्यों रखा... ? क्या लिखा है उसने इसमें...?
मैंने छोटी बहन को कहा तू ही पढ़ दे क्योंकि मैं राशिद से इतनी ज्यादा नफरत करती थी कि मैनें उसके लिखे ‘खत’ को पढ़ना भी मुनासिब न समझा।
बहन ने खत पढ़ना शुरू किया तो राशिद के प्यार में डूबे अलफाज सुनकर मेरे दिल की धड़कन बढ़ने लगी मैं सोचने लगी किस पर विश्वास करूँ जो दिख रहा है उस पर या जो इस खत में लिखा है उस पर।
खत का मजमून कुछ ऐसा था-....
क्रमशः..


सुनीता बिश्नोलिया