Dil hai ki maanta nahin - Part 8 books and stories free download online pdf in Hindi

दिल है कि मानता नहीं - भाग 8

उधर निर्भय के पाँव का ऑपरेशन भी सफलतापूर्वक हो गया। उसे भी उसके बाद कमरे में शिफ्ट कर दिया गया। होश में आते ही सबसे पहले उसे कुणाल और उसकी माँ सरस्वती दिखाई दिए।

सरस्वती ने पूछा, “बेटा अब कैसा लग रहा है?”

“मैं बिल्कुल ठीक हूँ माँ।”

सरस्वती ने कहा, “ठीक है बेटा मैं घर जाती हूँ। घर पर श्रद्धा अकेली है वह भी बहुत चिंता कर रही होगी।”  

माँ के जाते ही निर्भय ने अपनी आँखों से आँसू पोंछते हुए कुणाल से पूछा, "कुणाल वह कहाँ है तुझे पता है क्या?” 

कुणाल ने कहा, “वह इसी अस्पताल में है।”

“वह ठीक तो है ना?”

“मुझे नहीं मालूम निर्भय।”

“कुणाल मुझे कुछ याद नहीं, यह सब कैसे हो गया? मैं ... मैं ...  उसे चोट नहीं पहुँचाना चाहता था। मैं नशे में था कुणाल, मैं तो सिर्फ़ उसकी एक झलक देखने ..."

"क्या हक़ है तेरा उस पर? क्या वह बाज़ार में खड़ी गुड़िया है जो तू उसे देखने गया था।"

"मेरा मन नहीं मान रहा था कुणाल …"

"बस कर निर्भय चुप हो जा, शर्म आनी चाहिए तुझे किसी और की पत्नी के ऊपर अपनी नज़र डालते हुए। मैंने तुझे कितनी बार समझाया है भूल जा उसे, यह जीवन है यहाँ सब कुछ हमारे हिसाब से, हमारे मन मुताबिक नहीं होता निर्भय। भगवान जो चाहता है वही होता है। तुझसे कहा था ना मैंने कि हम जबरदस्ती प्यार नहीं करवा सकते पर तू, तू नहीं माना, अपनी ज़िद पर अड़ा ही रहा। उसे भूलने की कोशिश करने के बदले उसके ग़म में जलता रहा। देख लिया उसका नतीजा। इसीलिए तूने हद से ज्यादा शराब पी थी ना कि आज उसके इंकार करने को एक वर्ष पूरा हो गया है ? आख़िरकार आज तूने अपनी हार का अपने अपमान का और उसके इंकार का बदला ले ही लिया। प्यार करने वाले ऐसे नहीं होते निर्भय। इसे प्यार नहीं नफ़रत कहते हैं। प्यार करने वाले अपने प्रेमी को कभी दर्द नहीं देते। पड़ गई तेरे कलेजे को ठंडक। अपना पाँव तुड़वा कर और उसका हाथ। पता नहीं उसका ..." 

"पता नहीं उसका क्या ...?"

"लोग बात कर रहे थे कि शायद वह माँ बनने वाली है और अब पता नहीं उस टक्कर के बाद उसका बच्चा बचेगा या नहीं?"

"यह क्या कह रहा है यार कुणाल?"

"जो सुना है वही कह रहा हूँ। यह तो अभी तक उन्होंने शिकायत दर्ज़ नहीं करवाई है वरना तू तो अंदर जाएगा ड्रिंक एंड ड्राइव के केस में।"

"कुणाल मैंने टक्कर जानबूझकर नहीं मारी। मैं सच कह रहा हूँ, मेरा विश्वास कर, सोनिया की कसम।"

"सोनिया की कसम, ये देख अभी भी तेरी जुबां पर वही नाम आया। निर्भय वह किसी की पत्नी है यार पर तू पागल है तू नहीं समझेगा।"

पाँव पर प्लास्टर चढ़ाए निर्भय पलंग पर बैठे हुए कुणाल की कड़वी लेकिन सच्ची बातें चुपचाप आँसू बहाते हुए सुन रहा था।

उधर डॉक्टर के समझाने के बाद भी सोनिया और रोहन अभी घबराए हुए थे कि कहीं बच्चे को कुछ हो तो नहीं गया होगा? बस यही ख़्याल उनके मन में बार-बार आ रहा था।

सोनिया ने रोहन से पूछा, "रोहन कौन था वह जिसने हमें टक्कर मारी? हम तो किनारे पर थे।" 

"हाँ सोनिया, वह नशे में था। वह भी बाइक के साथ घिसटता हुआ दूर जाकर गिरा था। उठ नहीं पाया था, शायद उसे भी ज़्यादा चोट आई होगी। मैं तो तुम्हें अस्पताल लाने की जल्दी में उसे देख ही नहीं पाया; ना ही उसकी गाड़ी का नंबर ही ले पाया।"

"यदि अपने बच्चे को कुछ हो गया तो मैं उस इंसान को कभी माफ़ नहीं करूंगी।"

उधर निर्भय ने कुणाल से कहा, "चल कुणाल मुझे व्हील चेयर पर बिठा कर उसके पास ले चल। जब तक मैं उससे माफ़ी नहीं मांग लूँगा, मैं चैन से जी नहीं सकूँगा।" 

"तुझे क्या लगता है वह तुझे माफ़ कर देगी?"

"कोशिश तो करने दे यार, फिर वह जो सज़ा मुझे देना चाहेगी मैं स्वीकार कर लूँगा।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः