Dil hai ki maanta nahin - Part 10 - Last Part books and stories free download online pdf in Hindi

दिल है कि मानता नहीं - भाग 10 - अंतिम भाग

निर्भय ने जाते-जाते सोनिया से कहा, "सोनिया शायद तुमने मुझे माफ़ नहीं किया। मैंने तो सिर्फ़ अपने पवित्र दिल से तुम्हें प्यार किया था। तुम नहीं मानी और ना ही मेरा दिल माना। बस मैं तो दिल के हाथों मजबूर था; लेकिन आज मैं होश में आ गया हूँ। मैं यह मान गया हूँ कि जोड़ी तो ऊपर से ही बन कर आती है। हम चाहे  कितना भी किसी को प्यार कर लें लेकिन बदले में प्यार की उम्मीद कभी नहीं रखना चाहिए। यदि वह प्यार से इंकार कर दे तो अपने प्यार को भी वही ख़त्म कर देना चाहिए क्योंकि प्यार कभी किसी से जबरदस्ती तो नहीं करवाया जाता।" 

सोनिया मुस्कुरा दी और कहा, "निर्भय तुम सचमुच बिल्कुल पागल थे शायद अब ठीक हो गए हो। अब जाओ और अपने लिए भी कोई जीवनसाथी ढूँढ लो।"

सोनिया के मुँह से निकले इन शब्दों को आज निर्भय ने अपने मन में बसा लिया। उसने कहा, “चल कुणाल घर चलते हैं।”

“नहीं यार यह क्या कह रहा है तू, अभी डॉक्टर तुझे घर जाने के लिए मना कर देंगे …”

“कुणाल तू डर मत मुझे कुछ नहीं होगा। आज तो मैं पूरी तरह से ठीक हुआ हूँ। तू मुझे व्हील चेयर से कार तक ले चल।”

कुणाल के मना करने पर भी निर्भय नहीं माना और कुणाल ने जैसे ही व्हील चेयर को मोड़ा रोहन तुरंत ही निर्भय के सामने आकर खड़ा हो गया। निर्भय से हाथ मिलाते हुए उसने कहा, “गेट वेल सून निर्भय, हम फिर ज़रूर मिलेंगे।”

तभी पीछे से सोनिया की आवाज़ आई, “निर्भय तुम्हारी शादी पर मुझे बुलाओगे ना? मैं इंतज़ार करुँगी।”

रोहन और सोनिया की बातें सुनकर निर्भय का गला भर आया और वह कुछ भी ना कह सका। जेब से रुमाल निकालकर अपने आँसू पोंछते हुए वह मुड़ा और हाथ जोड़ते हुए दोनों हाथों से थम्स अप करते हुए कुणाल के साथ बाहर निकल गया।

वह कार से घर के लिए निकल गए। कुणाल अपने दोस्त के लिए बहुत ख़ुश था। आज उसे अपना वही पुराना दोस्त निर्भय के अंदर नज़र आ रहा था, जोश से भरा हुआ।

घर पहुँचते ही श्रद्धा और सरस्वती उन्हें देखकर आश्चर्यचकित हो गए। श्रद्धा ने कहा, “अरे निर्भय तुम ऐसे कैसे आ गए, तुम्हारा पाँव …”

“जीजी चिंता मत करो मैं ठीक हूँ और आज बहुत ख़ुश भी हूँ, इतना कहते हुए वह कुणाल का सहारा लेते हुए अंदर आ गया।”

बीच में कुणाल ने कहा, “जीजी मैंने इसे मना किया था पर यह कहाँ कभी किसी की सुनता है। करता वही है जो इसे करना होता है। जीजी मैंने डॉक्टर को झूठ बोल कर कि घर में इमरजेंसी है, इसे डिस्चार्ज करवाया है। अस्पताल की सारी औपचारिकताएं भी मैंने पूरी कर दी हैं।”

श्रद्धा ने कहा, “कुणाल तुम भी अब आराम से बैठो।”

सरस्वती ने कहा, “मैं तुम सबके लिए चाय बनाकर लाती हूँ।”      

निर्भय ने श्रद्धा की तरफ़ देखते हुए कहा, “जीजी लाओ अब दिखाओ तुम किसकी फोटो लेकर आई हो। तब मैं थोड़ा परेशान था, इसलिए मना कर दिया था।”

श्रद्धा ने ख़ुश होते हुए उस लड़की का फोटो दिखाया। फोटो देखकर निर्भय ने कहा, “वैसे जीजी तुम्हारी पसंद इतनी अच्छी होगी, मुझे मालूम नहीं था।”

सरस्वती ने निर्भय से पूछा, “बेटा तू तैयार है ना?”

“हाँ माँ मैं तैयार हूँ, मेरी प्यारी जीजी की पसंद का मान जो रखना है।”

निर्भय ने कहा, “माँ अब तो आप ख़ुश हो ना?”

 “हाँ बेटा बस शराब …”

“अरे माँ आज के बाद कभी हाथ भी नहीं लगाऊँगा।”

कुणाल ने कहा, “अरे निर्भय मुझे भी तो फोटो दिखा, मेरी होने वाली भाभी का।”

“हाँ कुणाल यह ले देख तेरा तो हक़ बनता है, कितना साथ दिया है तूने मेरा।”

“चल यार निर्भय मुझे इमोशनल मत कर,” कहते हुए दोनों दोस्त गले लग गए।

निर्भय का ख़ुशी की दुनिया में लौटने का इंतज़ार उसकी माँ, बहन और कुणाल सब कर रहे थे और आज उनका वह इंतज़ार पूरा हुआ। निर्भय को अब लग रहा था कि आज वह एक बहुत बड़े प्यार के बंधन से मुक्त हो गया जिस पर उसका कभी भी कोई हक़ था ही नहीं। जिस प्यार पर उसका हक़ होगा वह तो उसे अब मिलने वाला है।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

समाप्त