Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 39 books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 39



भाग 38 :जीवन सूत्र

भाग 38 :जीवन सूत्र 44:इंद्रियों को साधें, स्वयं को जीतें


भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है,

तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः।

वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2/61।।

इसका अर्थ है, हे अर्जुन! साधक उन सम्पूर्ण इन्द्रियों को वश में करके मेरे परायण होकर ध्यान में बैठे; क्योंकि जिस व्यक्ति की इन्द्रियाँ वशमें हैं,उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है।

हमारे दैनिक जीवन में आपाधापी की स्थिति है। कारण यह है कि हममें से अनेक लोगों के लक्ष्य आपस में टकराते हैं और एक अनार, सौ बीमार वाली स्थिति बन जाती है। इसका परिणाम यह होता है एक ही लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश कर रहे लोग अगर समझदारी से काम न लें तो उनके बीच तनाव,द्वेष और ईर्ष्या जैसी स्थिति बन जाती है।

भौतिक प्रगति और विकास के इस युग में मनुष्य के जीवन में जटिलताएं भी आ रही हैं। वह अब अनेक कार्यों के लिए यंत्रों और मशीनों पर निर्भर होता जा रहा है।स्वाभाविक है कि इसमें उसका समय भी लगेगा।इसका परिणाम यह होता है कि वह अपनी आत्मउन्नति,एकाग्रता और ध्यान के लिए समय नहीं निकाल पाता है। अब प्रश्न यह है कि मशीनों,सुख-सुविधा के साधनों के संचालन के लिए भी तो बुद्धि चाहिए,विवेक चाहिए,धैर्य चाहिए,एकाग्रता चाहिए।

एक छोटे से उदाहरण से इसे समझने की कोशिश करें। हम बाहर दौड़-धूप के बाद घर के भीतर आते हैं और घर में प्रवेश करते ही पंखों, लाइट आदि के बटनों को एक साथ चालू कर देते हैं।हममें अधीरता है। स्वयं पर हमारा नियंत्रण नहीं है। हम अपना ध्यान अनेक जगहों पर उलझा देते हैं। अगर कोई बटन गलत दब गया तो हमें खीझ होने लगती है और झुंझलाहट में हमारा गुस्सा किसी और व्यक्ति पर निकलने लगता है।यह इस बात का सीधा सा उदाहरण है कि हमने स्वयं पर से नियंत्रण खोने की शुरुआत कर दी है। हम सड़क पर वाहन लेकर निकलते हैं तो चाहते हैं कि ब्रेक न लगाना पड़े। ट्रैफिक के कारण कुछ सेकेंड के लिए भी रुकना पड़ा तो यहां तक कि हम चौक चौराहों के सिग्नल की भी अवहेलना कर जल्दी निकलने की फिराक में रहते हैं। हम तभी रुकेंगे जब सड़क के उस ओर किसी यातायात सिपाही को मुस्तैद देख लें। यह सब हमारा बाह्य उत्प्रेरित व्यवहार है और हमारा स्वयं पर, अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं है। पिछले दो-तीन आलेखों में हमने इंद्रियों और उसके कार्यों के विषय में भी चर्चा की है।

भगवान कृष्ण ने इंद्रियों पर नियंत्रण और हमारे विवेक, हमारी बुद्धि के बीच सीधा संबंध बताया है। अतः हम अपनी इंद्रियों के उनके निर्दिष्ट विषयों पर भटकते रहने के स्वभाव को बदलने की कोशिश करें। तब हमारा विवेक स्थिर रहेगा और जीवन की गाड़ी ब्रेक मारने की स्थिति में भी झुंझलाहट की बजाय आनंद का अनुभव करती रहेगी।

(श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)


डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय

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