Kalvachi-Pretni Rahashy - 21 books and stories free download online pdf in Hindi

कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२१)

कालवाची ने जब स्वयं को सुन्दर युवती एवं कौत्रेय को मानव रूप में परिवर्तित किया तो तभी कौत्रेय ने कालवाची से पूछा....
"अब क्या चेष्टा है तुम्हारी?"
"बस तुम देखते जाओ" कालवाची बोली....
"मैं कुछ समझा नहीं,तुम करना क्या चाहती हो"?,कौत्रेय ने पूछा....
"मैनें कहा ना हस्तेक्षप मत करो,तुम बस देखते जाओ कि अब आगें क्या होगा?",कालवाची बोली...
"मुझे तुम्हारे प्रयोजन पर संदेह हो रहा है"कौत्रेय बोला....
"तुम तो अकारण ही मेरे ऊपर संदेह कर रहे हो"कालवाची बोली...
"संदेह नहीं कर रहा,बस तनिक भयभीत हूँ"कौत्रेय बोला...
"भयभीत....वो भला क्यों?" कालवाची ने पूछा...
"वो इसलिए कि अभी जो बारह वर्षों से कष्ट झेल रही थी उससे मन नहीं भरा क्या? जो अब एक सिद्ध पुरूष से शत्रुता मोल लेने जा रही हो"कौत्रेय बोला...
"अब ऐसा कदापि नहीं होगा,वो सब मैनें प्रेम के वशीभूत होकर किया था किन्तु अब ऐसा कोई विषय नहीं है,मैं मुक्त हूँ एवं अपने संग पहले जैसा कुछ भी नहीं होने दूँगी",कालवाची बोली....
"मुझे विश्वास नहीं होता,क्योंकि तुम्हारे संग संग उन कष्टदायक क्षणों को मैनें भी जिया है",कौत्रेय बोला...
"मुझ पर विश्वास रखो,ऐसा कुछ भी नहीं होगा"कालवाची बोली...
"तुम कहती हो तो ठीक है,किन्तु सचेत रहना"कौत्रेय बोला....
"हाँ....हाँ...मैं सचेत रहूँगी"कालवाची बोली....
"तो फिर करो जो करने वाली हो"कौत्रेय बोला....
इसके पश्चात कालवाची और कौत्रेय भूतेश्वर के घर के द्वार पर पहुँचे एवं किवाड़ों पर लगी साँकल को खड़काया एवं भीतर से त्रिलोचना बोली....
"आती हूँ....आती हूँ"
कुछ समय पश्चात त्रिलोचना ने घर के किवाड़ खोले तो कालवाची और कौत्रेय को देखकर बोल पड़ी....
"जी!आप लोग कौन हैं?"
तब कालवाची बोली...
"जी! मैं कालवाची और ये मेरा भाई कौत्रेय हैं,बहुत दूर से आएं हैं हम लोंग और रहने के लिए आश्रय ढूढ़ रहे हैं,कदाचित आप हमें रहने के लिए किसी उचित स्थान का सुझाव दे सकतीं हैं,क्योंकि हम दोनों इस स्थान से अपरिचित हैं और हम किसी को यहाँ जानते भी नहीं हैं"
तब त्रिलोचना बोली...
"जी!मैं अपने बड़े भ्राता को बुलाती हूँ,कदाचित उनके सज्ञान में कोई ऐसा स्थान हो जो आप दोनों के रहने योग्य हो"
"जी!तो बुलाइए अपने भ्राता को",कौत्रेय बोला...
तब त्रिलोचना ने अपने भ्राता भूतेश्वर को पुकारना प्रारम्भ किया....
"भूतेश्वर भ्राता.....ओ भूतेश्वर भ्राता ...तनिक बाहर तो आओ,देखो कोई आया है,इन्हें तुम्हारी सहायता की आवश्यकता है"...
तभी भूतेश्वर बाहर की ओर आते हुए बोला...
"क्यों चिल्ला रही है? आ तो रहा हूँ"....
एवं जैसे ही वो कालवाची के तनिक समीप तक आया तो उसकी इन्द्रियों को ये अनुभव हो गया कि जैसे यहाँ कोई मायावी शक्ति है,इसलिए वो कुछ सावधान हो गया एवं उन दोनों के समक्ष आकर पूछा....
"कहिए!मैं आपकी किस प्रकार सहायता कर सकता हूँ"?
"जी!हम दोनों भाई बहन के रहने योग्य कोई स्थान मिल जाता तो बड़ी कृपा होती आपकी",कालवाची बोली...
"जी!ऐसा तो कोई भी स्थान मेरी दृष्टि में नहीं है",भूतेश्वर बोला...
"तो अब हम क्या करें?"कौत्रेय बोला...
"कोई बात नहीं,अब हम कहीं और चलते हैं"कालवाची बोली...
इतना कहकर दोनों जाने लगे तो इसी मध्य भूतेश्वर ने मन में सोचा क्यों मैं इन दोनों को रोक लूँ एवं इन पर शोध करूँ ,ऐसा करने से मुझे ज्ञात हो जाएगा कि मैं अपनी सिद्धियों में कितना सक्षम हूँ,कितना योग्य हूँ,जो विद्या मैनें सीखी है उसमें मैं कितना परांगत हूँ,यही अवसर है कि मैं ये ज्ञात कर सकता हूँ कि मेरा ज्ञान कितना गहरा है और यही सब सोचकर उसने दोनों से कहा....
"ठहरिए...तनिक ठहर जाइए"
"जी!कहिए",कालवाची बोली...
तब भूतेश्वर बोला....
"मैं ये कह रहा था कि यदि आप दोनों को कोई आपत्ति ना हो तो आप दोनों हमारे घर पर रह सकते हैं"
"एक बार पुनः सोच लीजिए,क्योंकि हमारे पास कोई धन नहीं है जिसे देकर हम आप का ऋण चुका सकें" , कौत्रेय बोला...
तब भूतेश्वर बोला...
"जी!मैनें पूर्णतः सोच लिया,मुझे कोई आपत्ति नहीं है"....
"किन्तु मुझे आपत्ति है",त्रिलोचना बोला....
"तुम्हें क्यों आपत्ति है भला"?,भूतेश्वर ने पूछा...
"क्योंकि! ये घर मेरा भी है,मैं ही इसे सम्भालती हूँ,ऐसा निर्णय लेने से पहले मुझसे अनुमति भी तो लेनी चाहिए थी ना!",त्रिलोचना बोली....
"तो अब दे दो अनुमति"भूतेश्वर बोला...
"नहीं दूँगीं अनुमति,कदापि ना दूँगी",त्रिलोचना बोली...
"वो तो मैनें शीघ्रता में निर्णय ले लिया किन्तु अब तुम अपनी अनुमति देकर इन्हें घर के भीतर आने दो" , भूतेश्वर बोला....
"अब इतनी विनती कर ही रहे हो तो अपने अतिथियों से कहो कि घर के भीतर प्रस्थान करें", त्रिलोचना बोली...
और त्रिलोचना के अनुमति देने पर कालवाची और कौत्रेय दोनों ने घर के भीतर प्रस्थान किया,तब त्रिलोचना बोलीं....
"मैं तुम दोनों के जलपान का प्रबन्ध करती हूँ"
तब कालवाची बोली...
"इसकी कोई आवश्यकता नहीं है"
"अतिथियों को जलपान तो करवाना ही पड़ता है",त्रिलोचना बोली...
"किन्तु हम दोनों अन्न ग्रहण नहीं करते",कौत्रेय बोला....
"क्यो?तो क्या तुम दोनों वायु एवं जल ग्रहण करके ही जीवित रहते हो",त्रिलोचना बोली....
"नहीं!हमने कुछ माह तक अन्न ग्रहण ना करने का संकल्प लिया है",कालवाची बोली...
"वो क्यों भला?"त्रिलोचना ने पूछा...
"वो हम तुम्हें नहीं बता सकते",कौत्रेय बोला....
"क्यों?,त्रिलोचना ने पूछा...
"वो इसलिए कि हम दोनों का संकल्प टूट जाएगा",कालवाची बोली...
"तो तुम दोनों भोजन ग्रहण किए बिना जीवित कैसें रहते हो?,त्रिलोचना ने पूछा...
"फलाहार एवं जल ग्रहण करके",कौत्रेय बोला....
"ये तो अच्छा हुआ,मुझे भोजन पकाने से मुक्ति मिली",त्रिलोचना बोली....
और इतना कहकर त्रिलोचना ने कलश उठाया और जल भरने बाहर कुएँ पर चली गई तब भूतेश्वर ने कालवाची और कौत्रेय से कहा....
"त्रिलोचना जल भरने कुएँ पर गई है अब सच सच बताओ कि तुम दोनों कौन हो? क्योंकि मुझे अपनी शक्तियों द्वारा ऐसा प्रतीत हो रहा कि तुम दोनों मानव तो नहीं हो,"
"सत्य कहा तुमने"कालवाची बोली....
"तो बताओ कौन हो तुम दोनों?",भूतेश्वर ने पुनः पूछा...
"हम दोनों भाई बहन नहीं हैं,मैं एक प्रेतनी हूँ और ये एक कठफोड़वा है",कालवाची बोली....
"तुम दोनों यहाँ क्या करने आएं हो?"भूतेश्वर ने पूछा....
"हमें केवल कुछ दिनों के लिए यहाँ रहने के लिए स्थान चाहिए",कौत्रेय बोला....
"यहाँ रहने का कोई तो उद्देश्य होगा तुम दोनों का"? भूतेश्वर बोला...
तब कालवाची बोली....
"हाँ!मैं ने जब रात को ये सुना कि तुम्हें सिद्धियाँ प्राप्त हैं तो मुझे लगा कि हम दोनों को यहाँ रूकना चाहिए,क्योंकि मेरा भोजन मानव हृदय है और मैं अब अपने इस प्रेत जन्म से मुक्त होना चाहती हूँ,मैं चाहती हूँ कि तुम अपनी सिद्धियों द्वारा मुझे साधारण युवती में परिवर्तित कर दो,मैं अपने भोजन हेतु हत्याएंँ कर करके उकता चुकी हूँ,अब मैं और निर्दोष प्राणियों की हत्या नहीं करना चाहती,मेरी आत्मा अब इस कार्य हेतु मुझे धिक्कारने लगी है"॥
ये कहते कहते कालवाची का मन द्रवित हो उठा....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....