Kalvachi-Pretni Rahashy - 25 books and stories free download online pdf in Hindi

कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२५)

अब तक सब गहरी निंद्रा में डूब चुके थे,परन्तु कालवाची की निंद्रा उचट चुकी थी,वो सोच रही थी कि यदि किसी दिन माँ पुत्री को ये ज्ञात हो गया कि मैं ही कालवाची हूँ तो तब क्या होगा?कितने विश्वास के संग भैरवी मुझे अपने घर ले आई है,यदि उसका विश्वास टूटा तो उसके हृदय पर क्या बीतेगी? अब जो भी हो,मुझे माँ पुत्री की सहायता करनी ही होगी,उनका राज्य वापस दिलवाना ही होगा,महाराज ने जो व्यवहार मेरे संग किया था, उसका दण्ड इन माँ पुत्री को नहीं मिलना चाहिए,ये दोनों तो बेचारी निर्दोष हैं और यही सोचते सोचते कालवाची निंद्रा की गोद में समा गई...
प्रातःकाल सभी जाग उठे,तब भैरवी ने कालवाची को ध्यान से देखा और बोली...
"सखी!तुम तो अत्यधिक सुन्दर हो,रात्रि में मैं तुम्हें ठीक से देख नहीं पाई थी,किन्तु अभी सूरज के प्रकाश में तुम्हारा रुप तो स्वर्ण की भाँति दमक रहा है"
तब कालवाची बोली....
"भैरवी!तुम अत्यधिक सुन्दर हो ,क्योंकि तुम्हारा हृदय स्वर्ण की भाँति है"
"तुम दोनों यदि एक दूसरे के रूप का व्याख्यान कर चुकी हो तो और कोई वार्तालाप करें",कुबेर बना कौत्रेय बोला...
कुबेर की बात सुनकर कर्बला और भैरवी हँसने लगें,तब कालवाची बनी कर्बला बोली....
"तो भैरवी!क्या विचार किया तुमने,तुम सेनापति व्योमकेश तथा उनके पुत्र अचल को खोजने हेतु तत्पर हो"
"मैं तो तत्पर हूँ किन्तु इस कार्य के लिए माँ की अनुमति आवश्यक है,क्योंकि सेनापति व्योमकेश एवं उनके पुत्र अचल को खोजने हेतु मुझे माँ से कुछ समय के लिए दूर जाना होगा", भैरवी बोली...
"हाँ!ये तो करना ही पड़ेगा"कर्बला बोली...
"हम माँ को अपने संग नहीं ले जा सकते क्या?",भैरवी ने पूछा...
"ये हम उन्हीं से पूछ लेते हैं ना!",कर्बला बोली...
"किन्तु!वें मानेगीं भला,मुझे ऐसा प्रतीत नहीं होता",भैरवी बोली...
"तो चलो उनसे इस विषय में पूछ कर देखते हैं"कर्बला बोली...
तब कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"वें अकेले यहाँ कैसें रह पाएगीं?उनका ध्यान रखने वाला यहाँ कोई ना होगा"
"मुझे इसी बात की चिन्ता तो है",भैरवी बोली...
"तो चलो हम सभी उनसे बात करके अपनी दुविधा को दूर कर लेते हैं"कर्बला बनी कालवाची बोली...
और सभी कुमुदिनी के पास अपनी समस्या का समाधान करने पहुँचे,उस समय कुमुदिनी घर के बाहर थी,स्नान करके वो वटवृक्ष के तले अपने देवता की अराधना कर रही थी,कर्बला बनी कालवाची ने देखा तो वृक्ष के समीप ना गई,क्योंकि वो देवता के समीप नहीं जाना चाहती थी,वो इसलिए कि वो एक प्रेतनी थी,तब वो सबसे बोली....
"अभी रानी कुमुदिनी अराधना कर रहीं हैं,अभी उनके समीप जाना उचित नहीं है"
इसलिए सभी वहीं पर ठहरकर आपस में वार्तालाप करने लगे,जब कुमुदिनी अराधना से निवृत्त हुईं तो कर्बला ने उनसे कहा...
"रानी कुमुदिनी!क्या हम सभी को अनुमति दे सकतीं हैं कि हम सभी सेनापति व्योमकेश एवं उनके पुत्र अचल की खोज कर सकें"
तब कुमुदिनी बोली....
"मैं तो तत्पर हूँ कर्बला!किन्तु तुम सभी उन्हें कहाँ खोजते फिरोगे?उनका पता ठिकाना भी तो तुम सभी को ज्ञात नहीं है"
"प्रयास करने से सबकुछ सम्भव है रानी कुमुदिनी!", कर्बला बोली....
"तो कर लो प्रयत्न,यदि वें मिल जाते हैं तो सबसे अधिक प्रसन्नता तो मुझको ही होगी",कुमुदिनी बोली...
"किन्तु!एक बात की चिन्ता है",कर्बला बोली...
"किस बात की चिन्ता कर्बला!",कुमुदिनी ने पूछा..
"वो ये है कि आप यहाँ अकेले कैसें रहेगीं"?,कर्बला बोली...
"ओह...तो मेरे कारण तुम लोगों की योजना में विघ्न पड़ रहा है",कुमुदिनी बोली...
"माँ!मैं आपको अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहती",भैरवी बोली..
"वो इसलिए कि मैं नेत्रहीन हूँ,असहाय हूँ",कुमुदिनी बोली...
"नहीं!माँ!ऐसी बात नहीं है,मुझे सदैव आपकी चिन्ता रहेगी,मेरा वहाँ मन ना लगेगा",भैरवी बोली...
"मेरी चिन्ता मत करो पुत्री!मैं अपना ध्यान रख सकती हूंँ,तुम तो मेरी चिन्ता इस प्रकार कर रही हो कि जैसे कि तुम किसी राजकुमार के संग विवाह करके विदा हो रही हो",कुमुदिनी बोली...
कुमुदिनी की बात सुनकर सभी हँस पड़े तो भैरवी बोली....
"माँ !ये परिहास का विषय नहीं है,आप यहाँ अकेली रहेगीं,आपको कभी किसी वस्तु की आवश्यकता पड़ी या कभी अस्वस्थ हो गई तो तब क्या होगा"?
"इतनी चिन्ता मत करो मेरी ,मैं अब पीड़ाओं की अभ्यस्त हो चुकी हूँ,अब मुझे किसी पीड़ा से कोई अन्तर नहीं पड़ता पुत्री!",कुमुदिनी बोली.....
तब कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"तो हम सभी रानी कुमुदिनी को भी अपने संग ले चलते हैं ना"!
"ये तो बहुत अच्छा विचार है",कर्बला बोली....
"मैं तुम सभी के संग वहाँ जाकर क्या करूँगी?,तुम सभी को मेरे जाने से कष्ट ही होगा,मेरा ध्यान रखना पड़ेगा तुम सभी को",कुमुदिनी बोली....
"नहीं!हम सभी को कोई कष्ट ना होगा,अच्छा रहेगा यदि आप हमारे संग रहेगीं तो",कर्बला बोली...
"नहीं!मैं नहीं जाऊँगी!तुम सभी चले जाओ,मैं अपना ध्यान रख लूँगीं,तुम सभी को वर्षो थोड़े ही लगने वाले हैं वापस लौटने में",रानी कुमुदिनी बोली...
इस प्रकार रानी कुमुदिनी उन सभी के संग जाने को तत्पर ना हुईं और वें सभी रानी की अनुमति लेकर अपनी यात्रा पर निकल पड़े,दिनभर वें चलते रहते और सेनापति व्योमकेश को खोजते रहते एवं रात्रि में किसी वृक्ष के तले जाकर विश्राम कर लेते,भैरवी अपना भोजन पका कर खा लेती किन्तु कर्बला और कुबेर भोजन ना करते क्योंकि उन्होंने भैरवी से स्वयं के लिए व्रत लेने का कह रखा था,जब रात्रि में सभी विश्राम करने लगते तो कालवाची उड़कर जाती और अपना भोजन ग्रहण कर आती और चुपचाप वृक्ष तले विश्राम करने लगती,ऐसे ही कई दिन बीत गए,वें कहीं भी किसी से भी सेनापति व्योमकेश के विषय में पूछते तो उन सभी के हाथ निराशा ही हाथ लगती,यात्रा करते करते सभी अत्यधिक थक चुके थे,तब भैरवी को विचार आया कि क्यों ना हम अश्व खरीद ले,जिससे यात्रा करने में हमें सरलता रहेगी,यहाँ पर भैरवी का प्रश्न था नहीं तो कर्बला और कुबेर तो अपनी यात्रा उड़कर भी पूर्ण कर सकते थे,किन्तु ये भेद वो भैरवी से कह भी नहीं सकते थे,इसलिए उन दोनों ने भैरवी के इस विचार पर सहमति जताई और कुबेर बोला....
"हाँ!चलो!अपने अपने लिए एक एक अश्व खरीद लेते हैं"
"किन्तु!हम सभी के पास इतना धन नहीं है कि हम अश्व खरीद सकें"भैरवी बोली...
"तो अब क्या करेगें"?कर्बला ने पूछा...
"जो वस्तु धन से प्राप्त नहीं होती तो उसे (स्तेय)चोरी करके प्राप्त किया जा सकता है",भैरवी बोली...
"ओह....ये तो छल होगा",कुबेर बोला....
"तो अब क्या करें ,इसके अलावा और कोई मार्ग भी तो नहीं है",भैरवी बोली...
"हम सभी कोई कार्य करके भी तो धन अर्जित कर सकते हैं," कर्बला बोली....
"सखी!इतना समय नहीं है हमारे पास,माँ को मैं वहाँ अकेला छोड़कर आई हूँ,सेनापति और उनके पुत्र को खोजकर मुझे शीघ्रता से उनके पास पहुँचना है",भैरवी बोली....
"तुम भी ठीक कह रही हो"कर्बला बोली...
"तो अब क्या विचार है कुबेर?,कार्य या स्तेय,भैरवी ने पूछा...
"अब ऐसे में स्तेय ही उचित रहेगा",कुबेर बोला...
"तो चलो खोजते हैं किसी अश्वों के व्यापारी को,जिसके पास अश्व ही अश्व हो,हो सके तो इस कार्य को आज रात्रि ही परिणाम तक पहुँचा दें तो ही अच्छा" ,भैरवी बोली...
"सर्वप्रथम अश्वों के व्यापारी को तो खोजने दो"कुबेर बोला....
"तो बिलम्ब किस बात का ,चलो अश्वों के व्यापारी को इसी समय से खोजना प्रारम्भ करते हैं",भैरवी बोली...
और सभी अश्वों के व्यापारी को खोजने निकल पड़े.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....