Jako Rakhe Saiyan Mar Sake Na Koy in Hindi Classic Stories by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | जाको राखे सांईयां मार सके ना कोय

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जाको राखे सांईयां मार सके ना कोय

जाको राखे सांईयां मार सके ना कोय

 

मध्यप्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर के समीप पतित पावनी नर्मदा नदी के किनारे मोहनिया नामक गांव में रामदास एवं रामेश्वरदास नाम के दो नजदीकी मित्रों के परिवार रहते थे। गांव की भौगोलिक स्थिति अत्यंत रमणीक थी और गांव के निवासी भी सीधे साधे एवं सरल स्वभाव के थे। वहां प्रतिदिन शाम को एक चैपाल भी लगती थी जिसके माध्यम से आपसी मतभेद आदि दूर किये जाते थे। आज रामदास को अचानक ही जीवन में घटी वह पुरानी घटना याद आ गई जिसने उसके मन, मस्तिष्क को व्यथित कर दिया था। वह सोचने लगा कि आज से 30-35 वर्ष पूर्व जब मेरे बेटे राकेश के साथ एक बहुत ही हृदयविदारक घटना घटित हुयी थी। हमारे निकट के मित्र रामेश्वरदास के पुत्र देवीदास जो कि अपने आप को हमारा हितैषी प्रचारित करते थे, वे एक दिन राकेश को मेला घुमाने के लिये कहकर गांव से दूर घने जंगल में ले गये। वहाँ पर उसने राकेश को बताया कि अब तुम्हारा अंतिम समय निकट आ गया है। मैं तुमको मेला घुमाने के लिये नही बल्कि तुम्हें मारकर तुम्हारा जीवन समाप्त करने के लिये लेकर आया हूँ। उस छोटे बालक राकेश ने पूछा कि चाचा आप मुझे क्यों मारना चाहते हैं ? उसने कहा कि इसके पीछे एक गहरा राज है जिसे तुम नही समझ सकोगे ? ऐसा कहकर उसने जबरदस्ती एक पेड से उसके हाथपांव बांध दिये। राकेश डर के मारे बचाओ बचाओ चिल्लाने लगा परंतु उस बियाबान जंगल में उसकी आवाज सुनने वाला कोई भी नही था। ऐसा कहा जाता है कि ईश्वर की कृपा जिस पर होती है उसे संकट से मुक्ति मिलने का कोई ना कोई साधन प्राप्त हो जाता है ऐसी ही प्रभु कृपा हुई और जिस पेड से राकेश को बंाध दिया था और उसमें आग लगाने की तैयारी की जा रही थी तभी उस पेड और उसके आसपास के पेडों पर बहुत सारे बंदर इस घटना को देख रहे थे। जानवरों में भी सही गलत की अंतप्र्रेरणा होती है इसलिये उन्होने बचाव के लिए पेडों पर लगे हुए आमों को तोड तोडकर देवीदास के उपर प्रहार करना शुरू कर दिया जिससे वह लहुलुहान होकर मूर्छित होकर जमीन पर गिर पडा और बंदरों के द्वारा राकेश की रस्सी खोलकर उसे आजाद कर दिया गया।

तभी कहीं से अचानक एक सर्प ने आकर देवीदास को डस लिया और उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। यह देखकर राकेश रोने लगा। उसी समय कुछ लोग वहाँ से गुजर रहे थे। उन्होंने पूरा दृश्य देखा और मामले की गंभीरता को समझते हुए तुरंत नजदीकी पुलिस चैकी तक सूचना भिजवाई। पुलिस के आने के बाद पूछताछ में राकेश बस इतना बता रहा था कि चाचा लेकर आये थे और मुझे इस पेड से बांध कर मार देना चाहते थे। वे कुछ रहस्य के बारे में जान गये थे। राकेश अब भी बहुत डरा हुआ था। पुलिस आसपास का दृश्य देखकर वायरलेस पर अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित करती है मामले की गंभीरता को समझते हुए उच्च अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुँच जाते है। लाश के पास ही उन्हें पेट्रोल से भरी बोतल, लाइटर, सिगरेट का पैकेट एवं मोटर साइकिल बरामद होती है। इसके पश्चात लाश को पोस्ट मार्टम हेतु भेजकर घरवालों को सूचित कर दिया जाता है। कुछ समय पश्चात पोस्टमार्टम की रिर्पोट से यह निश्चित हो जाता है कि देवीदास की मृत्यु सर्पदंश से हुयी थी। सभी पारिवारिक सदस्य उसकी लाश लेकर गमगीन माहौल में घर लौट आते हैं और उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। रामदास, राकेश को हिम्मत से रहने की सीख देते है और कहते हैं कि जब तक ईश्वर की इच्छा ना हो तब तक कोई किसी को जान से नही मार सकता है।

इस गंभीर, अकल्पनीय और दुखद घटना से सभी गांववासी स्तब्ध थे। धीरे धीरे समय चक्र बीतता रहा। इस घटना के लगभग कुछ महिने बाद एक सज्जन जो कि दिखने बुजुर्ग और संभ्रांत दिख रहे थे वे उस गांव में पहुँचे और देवीदास के बारे में पूछताछ करने लगे तो गांव वालों ने बताया कि उसकी तो कुछ समय पूर्व सर्पदंश के कारण मृत्यु हो चुकी है फिर भी वे सज्जन उसके घरवालों से मिलना चाहते थे। गांव की चैपाल पर बैठे हुए लोगों ने सामने मैदान में खेल रहे कुछ बच्चों को बुलाया और बताया कि इन सज्जन को देवीदास के यहाँ छोड आओ। उन्हीं बच्चों में राकेश भी खेल रहा था उसने कहा कि चलिए मैं आपको छोड आता हूँ। राकेश को देखकर वे सज्जन उससे बहुत प्रभावित हुए चलते चलते राकेश का पैर फिसला और वह गिर पडा जिससे उसके कपडे खराब हो गये। उन सज्जन ने उसे उठाया। राकेश ने अपनी खराब हुई शर्ट उतार दी। तभी उन सज्जन ने देखा कि राकेश एक लाकेट पहना हुआ है उसे उन्होंने गौर से देखा तो याद कि यह लाकेट तो उन्होंने अपने पोते को पहनाया था जो कि एक नाव हादसे में कहीं लापता हो गया था। उन्होंने राकेश से पूछा कि यह लाकेट तुम्हे कहाँ से मिला। राकेश ने कहा कि यह तो मैं बचपन से ही पहनता आ रहा हूँ। कुछ ही देर में देवीदास का घर आ गया तभी राकेश ने कहा कि मैं सामने वाले घर में रहता हूँ और अपनी शर्ट बदलने की बात कहकर चला गया।

वे सज्जन देवीदास के घर पहुँचे जहाँ उन्हें पता चला कि उसकी सर्पदंश से मृत्यु हो चुकी है। उन्होनें देवीदास के परिजनों का बताया कि उनका नाम सेठ जमनादास है और वे इलाहाबाद के रहने वाले है। देवीदास उनके यहाँ काम करता था और धीरे धीरे बहुत भरोसेमंद हो गया था पिछले कई दिनों से वह गायब था इसलिये उसकी खोज खबर लेते हुए मैं यहाँ तक पहुँचा हूँ। फिर उन्होने अचानक ही सामने वाले बच्चे राकेश के बारे में पूछताछ की तो देवीदास के परिवार ने ईष्र्यावश उन्हें बताया कि वह उनका अपना बेटा नही है। यह जानकारी मिलते ही सेठ जमनादास आश्चर्यचकित रह गए। वे उनके यहाँ से विदा लेकर तुरंत रामदास के यहाँ पहुँचे। उन्होने सीधे ही रामदास से पूछा कि तुम्हारे बेटे के गले में यह लाकेट कहाँ से आया है ? रामदास आश्चर्यचकित होकर जमनादास जी को देख रहा था फिर उसने कुछ सोचा और कहा कि यह लाकेट तो उसने बहुत समय पहले किसी दुकान से खरीद बच्चे को पहना दिया था। जमनादास जी समझ गये कि रामदास झूठ बोल रहा है। उन्होंने उस समय कुछ नही कहा और चुपचाप वहाँ से चले गये। वे फौरन वहाँ से नजदीकी पुलिस चैकी पहुँचे और पुलिस को सारी बात बताते हुए मदद करने की गुहार लगायी।

अगले दिन सेठ जमनादास पुलिस के साथ रामदास के घर पहुँचे। अब पुलिस ने रामदास से अपने अंदाज मंे पूछा तो रामदास ने सबकुछ सच सच बता दिया उसने बताया कि आज से कुछ वर्ष पूर्व इलाहाबाद में संगम पर स्नान करने के लिये एक युवा दंपति जिनके साथ एक दुधमुंहा बच्चा था आये हुयेे थे। वे जब बीच धार में थे उस समय अचानक ही ज्यादा यात्रियों कारण नाव पलट गई। मैं भी उसी नाव में सवार था मुझे तैरना आता था तो मैंने बच्चे को अथक प्रयास से बचा लिया परंतु तेज बहाव के कारण उसके माता पिता को नही बचा पाया और तेज धार में न जाने वे कहां विलीन हो गये। जैसे तैसे मैं बच्चे को लेकर किनारे तक पहुँचा। वहाँ पर भी अफरा तफरी मची हुयी थी। मैं जल्दबाजी में बच्चे को लेकर घर आ गया और अपनी पत्नी को पूरी घटना से अवगत कराया। कुछ ही दिन में हमारा बच्चे के प्रति बहुत लगाव हो गया चूंकि हमारी भी कोई संतान नही थी इसलिये हम उसे अपना ही बच्चा मानकर उसका लालन पालन करने लगे। उस बच्चे से हमें इतना प्रेम हो गया था कि उससे जुदा होने के बारे में हम सोच भी नही सकते थे यही सोचकर हमने पुलिस को कोई जानकारी नही दी और उसका पालन पोषण करने लगे। यह बात किसी को पता न चले इस कारण हम अपना पैतृक गांव छोडकर अपने मित्र रामेश्वरदास के गांव में रहने लगे। यह बात केवल हमें और हमारे मित्र रामेश्वरदास के परिवार को ही पता थी।

रामदास के मुख से सारी सच्चाई बाहर आते ही सेठ जमनादास बहुत प्रसन्न हुये उन्होंने बताया कि यह मेरा पोता है आज से कुछ वर्ष पूर्व मेरा बेटा और बहु अपने इकलौते बेटे के साथ संगम पर स्नान के लिये गये हुये थे और दुर्भाग्य से वह हादसा हो गया मैंने उसे हादसे के कुछ दिन पूर्व ही अपने सुनार से एक विशेष डिजाइन का लाकेट बनवाया था और उसके अंदर इसके माता पिता की तस्वीर भी डलवाई थी उस लाकेट को खोलने का एक विशेष तरीका था और वह लाकेट मेरे सुनार ने सिर्फ मेरे कहने पर केवल मेरे लिए एक ही पीस बनाया था इस लाकेट की वजह से ही मैं राकेश को पहचान पाया जब रामदास ने कहा कि इसने वह किसी दुकान से खरीदा है तो मैं उसी समय समझ गया था कि यह झूठ बोल रहा है और इनके पडोसी देवीदास की पत्नी ने मुझे बताया था कि रामदास की अपनी कोई संतान नही है उनका यह बेटा उन्हें एक नाव हादसे में मिला था। तभी मैं समझ गया था कि यही मेरा पोता है। अब मैं सभी के सामने उस लाकेट को खोलकर दिखा देता हूँ जिससे आप सब भी इस सत्य को स्वीकार कर पायेंगे उन्होने उसी समय लाकेट को एक विशेष धातु की पिन से खोला तो वह लाकेट तुरंत ही खुल गया और उसमें जमनादास जी के बेटे और बहु की फोटो लगी हुयी थी। यह देखकर सभी लोग दंग रह गये।

पुलिस ने कहा कि यह सभी बातें सत्य हो सकती हैं परंतु कानूनी रूप से राकेश आपका पोता है इसको साबित करने के लिये आपका और राकेश का डीएनए टेस्ट होगा जिसकी रिपोर्ट से साबित हो जायेगा कि राकेश आपका ही पारिवारिक सदस्य है। सेठ जमनादास इसके लिए तैयार हो जाते है। इसी बीच जमनादास भाव विह्ल होकर राकेश को गले लगा लेते है। राकेश कुछ भी नही समझ पाता कि हो क्या रहा है। अगले ही दिन वे लोग नजदीकी शहर में डीएनए टेस्ट के लिये जाते है। कुछ ही दिनों में डीएनए रिपोर्ट आ जाती है और उस रिपोर्ट से साबित हो जाता है कि राकेश जमनादास जी का ही पोता है। इस रिपोर्ट के आते ही रामदास फफक फफक कर रो पडा अब उसे अपने बेटे से बिछडने का भय सता रहा था वही राकेश इस बात को समझ गया था कि रामदास उसके असली पिता नही है वह भी उनसे बिछडने के दुख के कारण बहुत रो रहा था। यह सब देखकर सेठ जमनादास की आंखों से भी अश्रुधारा बहने लगी वे रामदास से कहने लगे कि भले ही तुम राकेश के पिता नही हो परंतु तुमने उसका पालन पोषण एक पिता से भी बढकर किया है मैं भी पिता पुत्र के इस भावनात्मक संबंध के बीच में नही आना चाहता परंतु यही बालक हमारे बुढापे का और हमारे परिवार का भविष्य है।

मेरे मन में एक योजना है अगर रामदास अपने परिवार के साथ हमारे ही घर पर रहे तो हम दोनो की ही मनाकामनाएँ पूरी हो जायेंगी। साथ ही मुझे रामदास जैसा एक ईमानदार और भरोसेमंद व्यक्ति मिल जायेगा पहले मैं देवीदास पर भरोसा करता था और भविष्य में उसे अपनी कुछ संपत्ति भी देना चाहता था परंतु यहाँ आकर जब मुझे देवीदास के बारे में पता चला तो बहुत दुख हुआ। देवीदास से मेरी मुलाकात इलाहाबाद में हुई थी वह शराब के नशे में धुत सडक पर घायल अवस्था में मिला था मैंने ही उसे अस्पताल में भर्ती करवाया और उसका इलाज करवाया। स्वस्थ होने के बाद उसने कसम खाई कि कभी शराब नही पियेगा उससे प्रभावित होकर मैंने उसे अपने यहाँ छोटे मोटे काम के लिये रख लिया। धीरे धीेरे वह हम सब का विश्वासपात्र बन गया परंतु यहाँ आकर मुझे पता चला कि वह राकेश को मारना चाहता था यह बात मेरे लिए भी आश्चर्य का विषय है।

यह बात सुनकर पुलिस एक बार पुनः देवीदास के जानने वालों से पूछताछ करती है तो उनमें से पास ही के गांव के एक व्यक्ति से जानकारी मिलती है देवीदास का कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के साथ मिलना जुलना था। एक दिन वह पास ही के जंगल से गुजर रहा था तो उसने देवीदास को किसी व्यक्ति के साथ बात करते हुए सुना था कि मुझे पता चल गया है कि राकेश सेठ जमनादास जी का पोता है और अगर राकेश जीवित रहा तो कभी न कभी उनकी मुलाकात हो जायेगी फिर सेठ जमनादास जो संपत्ति मुझे देना चाहते थे वो भी हाथ से निकल जायेगी तो मैं एक दिन राकेश को मेला दिखाने के बहाने यही लाकर मार डालूँगा तुम मेरे लिए कुछ चीजों का इंतजाम कर देना। यह सुनकर मैं चुपचाप वहाँ से निकल आया। मैंने सोचा कि अगले ही दिन मैं पुलिस में जाकर बता दूंगा परंतु अगले ही दिन मुझे खबर मिली कि देवीदास की सर्पदंश से मृत्युु हो चुकी है। अब सारी घटना पुलिस के सामने स्पष्ट थी कि देवीदास को राकेश के असली परिवार का पता लग गया था और वह संपत्ति के लालच में राकेश को मारना चाहता था।

समस्त घटनाओं के स्पष्टीकरण के बाद सेठ जमनादास ने पुनः रामदास से कहा कि रामदास बताओं तुमने क्या सोचा है ? क्या तुम मेरे साथ मेरे घर पर रहोगे या यही रहकर खेती करोगे। यह सुनकर रामदास की पत्नी रोने लगी वह अपने बेटे से बिछुडने का दुख सहन नही कर पा रही थी उसने राकेश को सीने से लगा लिया और कहा कि मैं इसे नही छोड सकती यह सिर्फ मेरा बेटा है। यह देखकर रामदास ने पत्नी से कहा कि हमारा और राकेश का साथ सिर्फ इतने ही दिनों का था और राकेश तो वैसे भी किसी और की अमानत है। एक ना एक दिन तो उसे वापस करना ही था। वे बहुत द्रवित हृदय से राकेश को जमनादास को सौंपते है। रामदास के लिये भी राकेश को छोडना बहुत कठिन था फिर भी वह अपने आप को संभालते हुए कहता है कि सेठ जी मैं तो यही रहूँगा परंतु राकेश के उज्जवल भविष्य और बेहतर पढाई के लिये उसे आप अपने पास रखिये हर महिने मैं राकेश से मिलने के लिये आया करूँगा या कभी आप भी राकेश को यहाँ ले आया करिए। यह सुनकर सेठ जी मुस्कुराते हुए हामी भर देते है। सभी लोग पुलिस की कार्यप्रणाली की बहुत प्रशंसा कर रहे थे। इस खुशी के अवसर पर सेठ जी उस ग्राम पंचायत के विकास एवं पुलिस विभाग को भी चैकी के आधुनिकीकरण के लिये पांच पांच लाख रू. दान देते है।