Jununiyat si Ishq - 19 in Hindi Love Stories by Mira Sharma books and stories PDF | ...जुन्नूनियत..सी..इश्क.. (साजिशी इश्क़) - 19

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...जुन्नूनियत..सी..इश्क.. (साजिशी इश्क़) - 19

...!!जय महाकाल!!...

अब आगे...!!

सात्विक के ऐसा करने पर.....द्रक्षता आँखें मूंद चुकी थी.....वो दोनों इतने करीब थे.....जितना द्रक्षता ने कभी सोचा भी नहीं था.....सात्विक धीरे धीरे उसके बेहद करीब चला आया था.....ये पल दोनों के लिए काफी हसीन थे.....जिन में दोनों पूरी तरह डूब गए थे.....
कुछ देर बाद दोनों की करीबी ने रूम का टेंपरेचर बढ़ा दिया था.....दोनों की मदहोशी भरी सांसे रूम को बहुत ज्यादा रोमांटिक बना रहा था.....

अगली सुबह...!!

सात्विक का रूम...!!

बेड पर द्रक्षता चैन की नींद सोई हुई थी.....कल की रात उसके लिए काफी थका देने वाला था.....उसके चेहरे पर थकावट साफ झलक रही थी.....सात्विक की नींद बहुत पहले ही खुल चुकी थी.....वोह उसे निहार रहा था.....कुछ देर उसे देखते रहने के बाद.....वो उठ कर रूम से बाहर चला गया.....
तकरीबन आधे घंटे के बाद द्रक्षता की नींद खुली.....थोड़े कसमसाने के बाद उसने अपनी आँखें खोल.....सीलिंग को देख.....तो यह उसे अनजाना सा लगा.....द्रक्षता डर से उठ कर बैठ गई.....फिर उसे याद आया कि.....उसकी शादी हो चुकी हैं.....
द्रक्षता टाइम देखती है.....तो सुबह के साढ़े छः बज रहे थे.....द्रक्षता उठ कर अपनी साड़ी सही कर अपने बैग के पास जा ही रही थी.....कि रूम का डोर नॉक हुआ.....
दरवाजे पर सुरुचि,,राम्या और आर्या थी.....सुरुचि अपने हाथ में पकड़ी थाली द्रक्षता को दे देती है.....द्रक्षता सुरुचि को असमंजस सा चेहरा लिए देखती है.....
सुरुचि उसकी नजरों का मतलब समझते हुए:आज तुम्हारा इस घर में पहला दिन है.....तोह हम चाहते है.....तुम यही पहनो.....और सास होने के नाते मैं तुम्हे यह देना चाहती थी.....तो तुम ये पहन तैयार हो जाओ.....!!
द्रक्षता हां में सर हिला दी.....
राम्या उससे पूछी:हमने तुम्हे डिस्टर्ब तो नहीं किया.....कल से थकी हुई थी तुम.....और अब हमने तुम्हे आकर जगा दिया.....!!
द्रक्षता ना में सर हिलाते हुए:नहीं चाची.....आपने मुझे डिस्टर्ब नहीं किया.....मैं तो उठ गई थी.....बस वाशरूम ही जा रही थी.....नहाने के लिए.....!!
राम्या:ओह.....मुझे लगा तुम सो रही थी.....वैसे मैं ना अपनी शादी के अगले दिन लेट तक सोती रही.....दीदी और मां जी.....दरवाजा खटखटाते हुए परेशान हो गए.....लेकिन मैं थी जो उठ ही नहीं.....!!
द्रक्षता राम्या के बात पर हस दी.....फिर सुरुचि द्रक्षता को फ्रेश होकर नीचे आने को कह कर.....उनके साथ चली जाती है.....
द्रक्षता नहा धोकर तैयार हो गई.....उसने सुरुचि की दी हुई साड़ी पहनी थी.....वो साड़ी पीच और रेड कलर में था.....उसके ऊपर किए गए वर्क्स से वो साड़ी काफी भारी भी थी.....द्रक्षता को ज्यादा साड़ी पहनने की आदत नहीं थी.....जिससे उसे काफी परेशानी भी हो रही थी.....लेकिन वो जैसे तैसे कर के संभाल रही थी.....
उसने फटाफट उस थाली में रखे हल्के ज्वैलरी पहन ली.....उसे यह सब पहनना तो नहीं था.....फिर भी पहन ली.....क्योंकि अगर वो नहीं पहनती तो.....कहीं ना कहीं सुरुचि को बुरा लग सकता था.....
वो रेडी होकर एक बार अपने आप को आईने में देखती है.....तो थोड़े समय के लिए स्तब्ध हो गई.....
वो अपने आप से बोली:ये मैं हु.....(आइने में अपने अक्ष को छूते हुए)क्या तुम सच में इतनी सुंदर हो द्रक्षता.....(थोड़ा रुक कर)आज मैं किसी की पत्नी,,बहु,,भाभी हु.....मैं कैसे इतने रिश्तों को लेकर चल पाऊंगी.....(गहरी सांस भर कर)लेकिन इस घर के किसी भी रिश्ते पर.....मेरे वजह से दरार नहीं आने दूंगी.....अपनी पूरी कोशिश करूंगी कि हर कोई खुश रहे.....हर किसी के रिश्ते एक दूसरे से मजबूत रहे.....!!
इतना कह कर एक नजर खुद को देख दरवाजे के पास आई.....तो सामने से सात्विक चला आ रहा था.....उसका शरीर पूरा पसीने से भीगा हुआ था.....
सात्विक द्रक्षता को देख उसके पास आकर.....उसे उसके कमर से पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया.....द्रक्षता उसके इस एक्शन के लिए तैयार नहीं थी.....इसलिए वो उसके सीने से टकरा गई.....और उसके सर पर सात्विक के मजबूत सीने के कारण चोट आ गई.....
द्रक्षता उसे पीछे धकेलने लगी.....जिसे इग्नोर कर सात्विक उसे अपने और करीब कर लिया.....और उसके गले में अपना सर घुसा लिया.....सात्विक की करीबी द्रक्षता को काफी ज्यादा बेचैन कर रही थी.....वो अभी बस किसी भी तरह नीचे जाना चाहती थी.....
सात्विक मदहोशी से:इतना भी हिलना डुलना.....खा तो नहीं जा रहा मैं.....तुम्हे.....खामोशी से मुझे तुम्हे अपने पास रहने दो.....!!
द्रक्षता उसकी बात सुन बिल्कुल शांत हो गई.....कुछ दस मिनट बाद सात्विक धीरे से उससे अलग हुआ.....द्रक्षता शर्म से अपने नजरे उससे नहीं मिला रही थी.....
सात्विक उसे देख तिरछा मुस्कुरा कर.....वाशरूम चला गया.....
द्रक्षता जल्दी से अपने आप को ठीक कर.....बाहर चली जाती है.....
हॉल में सभी एक साथ बैठे हुए थे.....द्रक्षता नीचे आकर सबको देख.....दादी के पास जाकर नीचे झुकने को थी ही.....विनीता जी उसे अपने पैर छूने से रोक देती हैं.....और अपने पास बिठा ली.....
विनीता जी:बेटा तुम्हारी जगह मेरे पैरों में नहीं है.....तुम बहु नहीं बेटी हो.....हमारे लिए.....आगे से हमारे सामने कभी झुकना मत.....सीधे आकर गले लग जाना.....!!
द्रक्षता मुस्कुराते हुए हां में सर हिला दी.....
फिर सुरुचि उससे पूछी:अच्छा द्रक्षता.....खाना बना पाओगी तुम.....आज चूल्हा छूने की रस्म होगी तुम्हारी.....इसलिए कुछ बनाना होगा तुम्हे.....!!
द्रक्षता नर्म लहजे से:मां आप शायद भूल रही है.....मैं अपनी मां के साथ बेकरी संभालती थी.....तो मुझे खाना बनाना आता है.....!!
सुरुचि उसे किचेन में ले जाके उससे गैस की पूजा करवा कर.....उससे पहले कुछ मीठा बनाने को बोल देती है.....अब द्रक्षता को समझ नहीं आ रहा था.....की वोह क्या बनाए.....
इसलिए उसने सुरुचि से ही पूछा:मां.....मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा.....आप कुछ बताइए ना.....क्या बनाना चाहिए.....या सबको ज्यादा क्या पसंद हैं.....!!(यह बोलते वक्त वो थोड़ी नर्वस थी)
सुरुचि:किसी चीज का हलवा बना दो.....या हो सके तो गाजर का हलवा ही बना लो.....स्पेशली सात्विक को ये काफी पसंद है.....वोह ज्यादा मीठा नहीं खाता.....लेकिन ये हलवा बना तोह वो जरूर खाएगा.....!!
द्रक्षता सर हिला दी.....
सुरुचि उसे नौकरों की मदद लेने को बोल.....किचेन से बाहर आ गई.....
द्रक्षता सर्वेंट्स से सामान का पता पूछ पूछ कर.....सब कुछ करने लग जाती है.....हलवा बना लेने के बाद वो सर्वेंट्स के खाना बनाने में भी मदद कर देती है.....
तब सुरुचि वहां आकर.....उसे यह सब करता देख.....उसके पास आकर उसे थोड़ा सा हलवा लेकर अपने साथ चलने को बोली.....
सुरुचि उसे घर के मंदिर में लेकर आई.....और उसके बनाए गए हलवे को मंदिर में खुद से चढ़वा दी.....
डाइनिंग टेबल पर सब आकर बैठने लगे..…क्योंकि नाश्ते का समय हो गया था.....और राजपूत फैमिली का रूल था.....सब का एक साथ एक समय पर खाना या नाश्ता करने का.....इस रूल को आज तक सिवाय सात्विक के किसी ने नहीं तोड़ा था.....
सर्वेंट्स नाश्ता टेबल पर लगा चुके थे.....ऑलमोस्ट सभी आ गए थे.....कुछ देर बाद सात्विक भी आया.....लेकिन उसका ध्यान अपने कान पर लगाए फोन में बात करने पर था.....
वोह भी डाइनिंग टेबल पर अपने चेयर पर बैठ गया.....उसके एक्शन बहुत जल्दबाजी से भरा था.....कॉल कट कर.....उसने अपना पूरा फोकस नाश्ते पर कॉन्संट्रेट कर दिया.....
सुरुचि द्रक्षता को भी सात्विक के बगल वाली सीट पर बैठा दी.....सात्विक को अब जाकर द्रक्षता के प्रेजेंस का एहसास हुआ.....तब उन दोनों ने एक दूसरे को देखा.....
द्रक्षता ने तुरंत अपना फोकस नाश्ते पर टीका दिया.....सात्विक को ये देख बेहद गुस्सा आया.....उससे किसी का इग्नोरेस बर्दाश्त नहीं होता था.....जो द्रक्षता कर रही थी.....
वो भी चुपचाप अपना नाश्ता करने लगा.....सब ने नाश्ता कर ही लिया था.....तब सर्वेंट्स उन्हें द्रक्षता का बनाया हलवा सर्व करने लगे.....सात्विक जो उठने वाला था.....हलवे को देख रुक गया.....
सब ने उसके बनाए हलवे की बहुत तारीफ की.....लेकिन किसी को ये नहीं पता था.....की हलवा द्रक्षता ने बनाया है.....
सुरुचि ने सात्विक से पूछा:कैसा लगा हलवा बेटा.....!!
सात्विक:अच्छा है.....किसने बनाया.....आपने तो नहीं बनाया है.....आपके हाथ का टेस्ट जानता हु मैं.....!!
सुरुचि मुस्कुराते हुए:द्रक्षता ने बनाया है.....!!
यह सुन सभी ने द्रक्षता की खूब तारीफ की.....सब ने उसके पहले रसोई के तौर पर कुछ न कुछ गिफ्ट दिया.....लेकिन सात्विक को ऐसा कुछ भी होता है.....ये तक नहीं पता था.....इसलिए उसने बाद में उसे देने को बोल दिया.....
विनीता जी ने द्रक्षता को गोल्ड और डायमंड के कॉम्बिनेशन का एक कंगन दिया था.....
सात्विक धर्म जी से:दादा जी.....मुझे कुछ दिनों के लिए.....यू एस जाना होगा.....वहां के ब्रांच में कुछ प्रॉब्लम आ गई है.....और जाना बहुत इंपॉर्टेंट हैं.....!!
धर्म जी अपनी करक आवाज में:लेकिन कल ही आपकी शादी हुई है.....आपको नहीं लगता.....आपको अपनी पत्नी के साथ भी कुछ समय बिताना चाहिए.....!!

...!!जय महाकाल!!...

क्रमशः...!!