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@chhatrapalverma20141
अहमदाबाद
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मैं भारतीय रेलवे यातायात सेवा 2000 बैच का सेवानिवृत्त अधिकारी हूँ| मूलतः उत्तरप्रदेश का निवासी हूँ, परंतु पिछले 35 वर्षों से गुजरात में ही स्थायी निवास है| अप्रैल 2016 में मैं रेल दावा अधिकरण -अहमदाबाद बेंच से अपर निबंधक (Additional Registrar) के पद से सेवानिवृत हुआ हूँ| मेरी चार पुस्तकें - भाषाई हुड़दंग (2011) एवं मैख़ाने की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं (2015),THEY SAID IT, ENGLISH-VINGLISH-MATH-BATH प्रकाशित हो चुकीं हैं| अभी भी लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित होने के लिए प्रायः तैयार हैं |
अधर उनके रससिक्त अधर छूने की मेरी चाहत| अधर में लटक कर, कर गई मुझे आहत|
बाकया सच्चा है| रेलवे में बुलावा पत्र मिलने पर मैं महाराष्ट्र के एक अंजान (मेरे लिए) सोलापुर मण्डल पर आवश्यक कागजात लेकर पहुँच गया| बड़े बाबू ने सारे आवश्यक कागजात जमा कारवा कर आवश्यक शुल्क जमा करवाने व चिकित्सकीय जांच के आदेश दिये| इतना सब करने में पाँच दिन गुजर गए| छठे दिन मैं सिर पकड़ कर बैठ गया जब बड़े बाबूजी ने कहा की चूंकि मैं राजपत्रित अधिकारी का प्रमाणपत्र नहीं लाया लिहाजा मुझे नियुक्ति पत्र नहीं मिल सकता| थक चुका था, दिल रोने को कर रहा था कि हिम्मत की और चपरासी के माना करने के बावजूद मण्डल के सबसे बड़े अधिकारी (मण्डल रेल प्रबन्धक) जो की एक दक्षिण भारतीय थे के कक्ष में घुस कर रोटी हुई आवाज में कहा "सर, मुझे मेरा पैसा वापिस दिलवाने के आदेश दिये जाएँ क्योंकि मैं इस नौकरी के काबिल नहीं समझा गया| पाँच मिनट में मुझे नियुक्ति पत्र मिलगाया, और बड़े बाबू को डांट| प्रेषक छत्र पल वर्मा , 35-शिवम टेनेमेंट्स, आई। पी। स्कूल के पास , वल्लभ पार्क, साबरमती, अहमदाबाद, 382424, चल दूरभाष:- 7600554981,
#Kavyotsav - "जनक (पिता) शीश नत मैं विनत सेवक, हे जनक स्वीकार हो, नमन बारंबार मेरा, नमन बारंबार हो| आप थे सारा जहां था, मुट्ठियों में दास की, आपके बिन यूं लगे, ज्यों जिंदगी धिक्कार हो| है जमी ज़र, शान भी है, मान भी बेहिस मिला, पर पिता के वक्ष सा, क्या दूसरा आधार हो? थाम कर जिस तर्जनी को, हम चले पहला कदम, आज भी सबलम्ब बनती, राह जब दुश्वार हो| आर्त वाणी राम की सुन, ज्यों प्रकट दशरथ हुये, पार्श्व में पाता सदा, हालात से दो-चार हो| भूल मैं पाता नहीं, व्याकुल नयन करुणा भरे, जो विदाई के समय, झर-झर बहे लाचार हो| बन पिता मैं जान पाया, अब पिता की पीर को, हो बिलग संतान से, लगता लुटा संसार हो| मैं अभागा पेट की खातिर, वतन से दूर था, दे न पाया आग भी, जिसने दिया आगार हो| राज रानी सी ठसक, माँ की नदारद हो गई, हो न कैसे भाल से, जिसका पुछा शृंगार हो? चाह है संतति में देखूँ, अक्स हर पल आपका, इस बहाने ही सही, संताप का उपचार हो| हे परम गोलोक वासी, आपको सद्गति मिले, मोक्ष की है कामना, बस आपका उद्धार हो| कवि- छत्र पाल वर्मा 35-शिवम बंग्लो, आइ पी स्कूल के पास वल्लभ पार्क, साबरमती,अहमदाबाद 382424,
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