मुझे हमेशा अंकों में उलझते हुए भी शब्दों से खेलते हुए सुकून की तलाश रही है। बचपन से ही मनोभावों को डायरी के पन्नों में छुपाया है, कविताओं के रूप में। प्रकृति से राग और अपनों से अनुराग के कुछ पल, मानवीय संवेदनाओं में डूबा मन कभी खुश होता, कभी उदास, कभी प्रेम में डूबा तो कभी अलगाव की पीड़ा से बेचैन। जिंदगी के कई पहलुओं को नजदीक से जाना तो कुछ आज तक अनछुए ही रहे। जीवन की संगति और विसंगति से उपजी रचनाओं में खुशी, उदासी, प्रेम, पर्व, अलगाव, संस्कार और अपनत्व जैसे जिंदगी के रंग भरने का प्रयास रहता है।

समय बहाकर ले जाता है नाम और निशां...
कोई हममें रह जाता है और किसी में हम...!!

-Dr. Vandana Gupta

Dr. Vandana Gupta लिखित कहानी "भूल (विज्ञान-गल्प)" मातृभारती पर फ़्री में पढ़ें
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लम्हें बोए थे
समय की जमीं में
उगी ज़िन्दगी

-Dr. Vandana Gupta

मैं अपने शब्दों के लिए उत्तरदायी हूँ, किसी के द्वारा निकाले गए अर्थ के लिए नहीं...!

Dr. Vandana Gupta लिखित कहानी "सीमारेखा" मातृभारती पर फ़्री में पढ़ें
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लिख दूँ सब कुछ... तो फायदा क्या ??
कभी तुम वो भी तो पढ़ो... जो हम लिख नहीं पाते !!

-Dr. Vandana Gupta

जरा सी खाँसी होती है तो दिल डरता है...
कहीं ये वो तो नहीं...!!
फिर बारिश होती है तो राहत लाती है...
कि ये मौसम का असर है...!!
😢🌧️🎶🌧️😅

-डॉ. वन्दना गुप्ता

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ज़िन्दगी की गति इस कदर तेज़ है!
सुबह के दर्द को शाम से परहेज़ है!!
#गति

जिंदगी में प्यार औ तकरार अभी बाकी है...
दिल में ख़्वाहिशों की जंग अभी जारी है...!
चलते चलते कदम लड़खड़ाने लगे क्योंकि...
प्यार का कर्ज और फ़र्ज़ बहुत भारी हैं...!!

#भार

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पढ़िए एक प्रेम-उपन्यास... !

Dr. Vandana Gupta लिखित उपन्यास "कभी अलविदा न कहना" मातृभारती पर फ़्री में पढ़ें
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