Phir bhi Shesh - 9 in Hindi Love Stories by Raj Kamal books and stories PDF | फिर भी शेष - 9

फिर भी शेष - 9

फिर भी शेष

राज कमल

(9)

रितुपर्णा को पहले चरण में सफलता बहुत आसानी से मिल गई। यह सफलता शिक्षा—परीक्षा से संबंधित नहीं थी। पढ़ाई में उसकी रुचि तो पहले ही नहीं थी। स्कूल के बंधन से मुक्त होते ही वह कालेज की खुली आबोहवा में उड़ गई। वह सोचने लगी थी, ‘उसे ऐसा

कुछ करना है, जो कुछ अलग हो, एक पहचान के साथ उसका व्यक्तित्व उभरे...

आम लड़कियां—स्त्रियां उससे इर्ष्या करें। औरत की ‘रुटीन लाइफ' शादी—बच्चे और सेवा...यह सब नहीं चाहिए! वैसे उसके इन विचारों से परिजन कतई परिचित नहीं थे। घर में वह बहुत शांत दिखने वाली जिद्‌दी लड़की है, बस। कॉलेज शुरू होते ही पहनावे को लेकर उसकी बदलती रुचियाें को लेकर हिमानी ने जरूर टोका था, लेकिन उसके जिद करने और उट—पटांग बोलने पर खुद को समझा लिया था। जेठानी कमला के लिए यह नया मुद्‌दा था। ‘लड़की के अभी से रंग—ढंग देखो, कोई कहने वाला नहीं है, जो खींच के रखे इसे। हाय राम! छातियां ऐसे उठाये घूमती है, जिसे देखकर हमें शर्म आती है।'

आर्थिक तंगी का फंदा भी रितु बचपन से महसूस करती आई है। घर में ब्लैक—एंड—व्हाइट टीवी है, एक टूटा—फूटा ट्रांजिस्टर, बस! एक स्टीरियो तक नहीं है, जिस पर वह अपनी पसंद के गाने सुन सके। सहेलियां अक्सर नये एलबम और कैसेट का जिक्र करती हैं, तब रितु स्वयं को हीन महसूस करती है। क्या करे, किससे कहे? मौसी का दुःख वह समझती जरूर है, लेकिन उसके लिए वह स्वयं को दोषी क्यों माने? पहले मौसी का उनकी मां बनना कुछ समझ नहीं आता था, पर अब उसे सब मालूम है ‘मौसी की पढ़ाई छूटी, उसकी इच्छा के विरुद्ध, अपने से काफी बड़े जीजा से शादी कर दी, खुद मां नहीं बनी। दो बच्चों को पाला है अनेक काम करके। पर इस सब से उसे क्या? अपने साथ घटे हादसों का खमियाजा मौसी हमसे क्यों वसूलना चाहती है? क्या मैं भी वही करूं जो वे कहें? उन्हें अपने मां—बाप का कहा मानकर क्या मिला? मैं क्यों चुनूं ऐसा

रास्ता, जिस पर मुझे भरोसा न हो...नहीं, हरगिज नहीं। मैं इस रुटीन को तोड़ूंगी। मैं इस परिधि से बाहर आकर ही रहूंगी। मुझे ऐसा मुकाम चाहिए, जहां मेरी मेरे नाम से पहचान हो।'

हर पल रितु की आंखों में सेलिब्रिटी बनने की आकृतियां आकार लेती रही हैं। शिखर या चर्चित लक्ष्य पर पहुंची स्त्रियों में उसकी दिलचस्पी है। उनके बारे में पढ़ना, सुनना, देखना उसे अच्छा लगता है। उनके चित्र, बुकलेट वह संजोकर रखती रही है। इनमें फिल्मों की मशहूर अभिनेत्रियां, विज्ञापनी दुनिया की मशहूर मॉडल्स, सौंदर्य—स्पर्धाओं में ख्याति अर्जित कर चुकी मिस इंडिया, मिस एशिया, मिस वर्ल्ड की ही तस्वीरें अधिक थीं। दूसरे क्षे़त्रों जैसे खेल, मेडिकल, विज्ञान, व्यवसाय और प्रशासनिक क्षेत्रों में चर्चित महिलाओं से भी वह प्रभावित थी और उनकी खोज—खबर भी रखती थी, किंतु उनके रास्ते उसे दुर्गम लगते थे, या वहां ‘हर्डल्स' बहुत थीं। उनमें जाने के लिए पूंजी और शिक्षा में अव्वल होना आवश्यक था, जो उसके पास नहीं थे। वह एक बात और सोचती, ‘यदि डॉक्टर, साइंटिस्ट या बड़ी अधिकारी होकर भी वही शादी, बच्चे, सेवा—घर में ही लगे रहना है तो क्या फायदा। उसे तो कुछ अलग चाहिए।'

तभी उसे याद आती हैं—मीना कुमारी, सुरैया, मधुबाला आदि जैसी अभिनेत्रियां, जो उस दुनिया में भी उस ‘रुटीन' से बगावत नहीं कर सकीं। तब रितु बहुत मायूस हो जाती। एक क्षेत्र राजनीति का भी था, जिसमें पूंजी और अव्वल शिक्षा की आवश्यकता

नहीं थी, लेकिन इसमें घुसने के लिए अनेक सहारों की ज़रूरत थी। वह सोचती, ‘सभी तो किसी मंत्री या नेता की बेटी—पत्नी नहीं हो सकतीं और न ही अब आजादी की जंग का जमाना है, जिसमें कूद पड़ने से अरुणा आसफअली या सुचेता कृपलानी, सरोजनी नायडू बन जाएंगी।'

ऐसी सोच रखते हुए भी रितु ने अभी कोई प्रयास इस दिशा में किया नहीं था। मात्र संयोग था कि इधर पूरे देश के सामाजिक—चिंतन में सौंदर्य स्पर्द्धाओं की महत्ता, एकाएक माहमारी—सी उठ रही थी। इसमें व्यवसायी घरानों का रुझान विशेष रहा था। अब ‘सौंदर्य स्पर्द्धाएं' और ‘फैशन शो' जैसे आयोजन आम हो गए थे।

क्लबों और अनेक संस्थाओं द्वारा सफल आयोजनों के बाद अब विश्वविद्यालयों ने भी ‘मिस यूनिवर्सिटी' चुनने का फैसला किया। यह कुछ—कुछ ‘मिस यूनिवर्स' का भ्रम पैदा करता था। इससे युवा वर्ग में सनसनी—सी फैल गई। बातचीत और हंसी—मजाक के लिए एक मुद्‌दा मिल गया। तमाम जुमले सुनने को मिलने लगे।

‘बाअदब! साैंदर्य की देवी ‘मिस यूनिवर्सिटी' पधार रही हैं।'

‘नखरे देखो साली के, जैसे ‘मिस यूनिवर्स' का ताज पहन रखा हो।'

‘ओ! हाय मिस यूनी!' वगैरह—वगैरह।

कुछ विद्वानों और कुछ सांस्कृतिक विरासत के रखवालों या जड़ों की ओर लौटने का आग्रह करने वाले चिन्तकों ने इसका विरोध किया। किसी ने कहा, ‘यह बंदर के हाथ में उस्तरा देने जैसा साबित होगा।' एक पत्रिका में टिप्पणी की गई कि ‘यह शिक्षा के मंदिरों में ‘देवदासी—प्रथा' का ही बदला हुआ रूप है।'

इस स्पर्द्धा में भाग लेने की सीधी छूट नहीं थी। केवल महाविद्यालयों से चुन कर भेजी गई सुंदरियां (छात्राएं) ही मान्य होती थीं। इस नियम के फलस्वरूप महाविद्यालयों में भी अपने स्तर पर सौंदर्य—प्रतियोगिता का आयोजन हो गया। बाकायदा कई चरणों में प्रतियोगियों के ‘नख—शिख' और अदाओं का लेखा—जोखा तैयार किया गया। छात्रों के तो आनंद की सीमा ही नहीं थी। वे मन बना चुके थे कि इस बार छात्र—संगठन चुनाव में उसी पार्टी को जिताएंगे, जो इस प्रकार की गतिविधियोें का समर्थन ही नहीं, उन्हें बढ़ाने का भी संकल्प लेगी।

छात्र जानते थे कि एक संगठन, जो इस समय सत्ता में है, इसका घोर—विरोधी होते हुए भी खामोशी साधे हुए है। कुछ महाविद्यालयों ने अपने प्रशासनिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए इस स्पर्द्धा में भाग न लेने का ऐलान कर दिया था। उनके छात्रों में मायूसी थी। वे दूसरे महाविद्यालयों में जाकर इस मेले का आनंद लेने का जुगाड़ कर रहे थे। एक बात आश्चर्यजनक थी कि सभी महिला महाविद्यालय पूरे जोश—खरोश से इस स्पर्द्धा में हिस्सा ले रहे थे।

दूसरी ओर एक महाविद्यालय ऐसा भी था, जिसकी प्रिसिंपल एक महिला थीं, जिन्हाेंने पिछले वर्ष से छात्राओं के ‘जीन्स—पैंट' और ‘टॉप' पहनने पर पाबंदी लगा दी थी। वे चाहती थीं, छात्राएं सलवार—कमीज़ या साड़ी पहन कर ही आएं ताकि वातावरण शालीन बना रहे। तब लड़कियों ने इसका जमकर विरोध किया था, पर वे टस से मस नहीं हुर्इं। मीडिया तथा अन्य माध्यमों से उनकी खूब आलोचना हुई। तथाकथित प्रगतिवादी स्त्री—पुरुषों ने उन्हें धिक्कारा। प्रिंसिपल का विचार था, ‘कुछ मामलों में हमें सख्त होना ही चाहिए। ये मसले दिखावे या ढोंग के नहीं, सभ्यता की बुनियादी आचार—संहिता से जुड़े हैं, जिसे कहीं लिखा नहीं गया वरन्‌ माना गया है, रीति—रिवाजों की तरह।' पिं्रसिपल साहिबा ने इस आयोजन का भी बहिष्कार कर दिया था।

रितुपर्णा इस कॉलेज की छात्रा नहीं थी, वरना यह सुयोग उसे कैसे मिलता? यही वह पहला चरण था, जिसमें रितु ने सफलता हासिल की थी। उसे ‘मिस—यूनिवर्सिटी' सौंदर्य—स्पर्द्धा में भाग लेने के लिए चुन लिया गया था। इसी खुशी को बांटने या कहें दोगुना करने के लिए रितु के ‘ग्रुप ने पार्टी का इन्तजाम किया था। यह ‘दावत' या ‘ट्रीट' रितु की मेजबानी में होनी चाहिए थीं। रितु ने कहा भी था, ‘‘ठीक है कॉलेज कैंटीन चलते हैं, बेसन के लड्‌डू और कॉफी हो जाए...कोल्ड ड्रिंक्स लेना चाहें...तो वो भी चलेगा।'' सभी ने ‘‘नो ऽऽ नो ऽऽ वी वांट मोर...'' का शोर मचाकर प्रस्ताव निरस्त कर दिया था।

बहुत समय तक रेस्तरां, कैफेटेरिया के तमाम नाम उछाले गए। इनमें से कोई दूर था, कोई महंगा था तो किसी के ‘पित्जे' में वो मज़ा नहीं था तो कहीं आइसक्रीम की वैरायटी का सवाल था तो कहीं के बेयरे बहुत मुंहफट या बदतमीज थे। इस सारे शोरगुल के बीच रितुपर्णा खामोश थी। मन ही मन मायूस थी कि ‘वह इतना खर्च कैसे ‘मैनेज' करेगी और अगर अब किसी से ‘उधार' भी ले तो चुकाएगी कैसे?' उसने सोचा, ‘यह तो ‘मनी—मैटर' है, जैसे—तैसे चुका भी देगी, लेकिन इस सारे प्रकरण के दौरान उसके ग्रुप के लड़के—लड़कियों ने जो उसे प्रोत्साहन दिया था, वह अमूल्य था।' विशेषकर उसकी अंतरग सहेलियां—प्राची और शगुन तो उसकी हर समस्या के समाधान में अंत तक साथ खड़ी रहीं। आर्थिक या अन्य औपचारिकताएं देखते—देखते निबटा ली गई थीं, लेकिन उसकी तीसरी आत्मीय सहेली कृतिका उसके स्पर्द्धा में भाग लेने से ही असहमत थी। कुछ लड़कियां इस मामले में ‘हाय राम' कहकर पीछे हटने वाली थीं, लेकिन वे दूसरी लड़कियों को उस सोपान पर कौतुक से देखना भी चाहती थीं। कम से कम कृतिका ने स्पष्ट विरोध तो किया। उसे अच्छा लगा, पर उसके विरोध का आधाररितु के पारिवरिक स्तर की सोच और उसका चरमराता आर्थिक ढांचा था। रितुपर्णा को इससे पीड़ा हुई थी, पर वह अपने इरादे पर अधिक मजबूत हो गई थी। ‘इसी हीनता से तो वह मुक्ति चाहती है। शुरुआत का अवसर मिला है तो क्यों नहीं आगे बढ़े।' उसने कृतिका से इतना अनुरोध अवश्य किया कि वह अपनी असहमति को द्वेष में न बदले अर्थात किसी तरह यह खबर घरवालों तक न पहुंचने दे। चूंकि वही उसके घर के काफी करीब है। संयोग से उसके आस—पास का कोई और छात्र—छात्रा इस कालेज में नहीं है।

सभी ने उसे शुभकामनाओं और फूलों से लाद दिया था। बाद में उसने सारे गुलदस्ते, ग्रीटिंग कार्ड उठाकर प्राची की मारुति कार में डाल दिए थे और स्वयं पूर्वत सहज—सामान्य ढंग से घर पहुंची थी। उसके जीवन का वह कितना महत्त्वपूर्ण दिन था, किंतु घर पर सब कुछ साधारण, रोजमर्रा वाला। वह अपनी खुशी किसी से नहीं बांट सकी। न पापा से, न मौसी से... नन्नू तो अभी नशामुक्ति केंद्र से लौटा ही नहीं था। हरदयाल के परिवार से जिक्र करना तो ‘आ बैल मुझे मार' वाली बात होती। वैसे भी उसकी दादी को गुजरे अभी ज्यादा समय नहीं बीता था। हकीकत में न भी सही, पर दिखावे के तौर पर घर में अभी खुशियों के प्रवेश पर रोक लगी हुई थी।

उस रात वह खूब रोई भी, परन्तु अंदर खुशी इतनी थी कि चेहरे पर रिस ही जाती थी। तभी मौसी ने पूछ लिया था, ‘‘बहुत खुश है आज रितुरानी!''

‘‘कुछ नहीं, बस यूं ही, खुश रहना तो अच्छा होता है न मौसी?''

‘‘हां—हां, पर कोई कारण? तू कोई पगली नहीं है, जो बिना बात हंसती फिरे।''

‘‘हर्ज क्या है मौसी? सुख में तो सभी खुश रहते हैं। मैंने सोचा, दुःख में जो मुस्कराते हैं, उनकी बात ही कुछ और है।'' बात को उसने मजाक में उड़ाना चाहा था, ‘‘बेटा, वे संत होते हैं, हम जैसे सांसारिक नहीं।'' मौसी ने बाद में बताया कि वह जल्दी ही घर में बुटीक खोलने वाली है। अगर चल गया तो सारी मुसीबतें खत्म हो जाएंगी। उसने आगे कहा था, ‘‘जब तक तू है इस घर में, तू ही संभालना उसे... ससुराल जाने के बाद तो फिर कहां होगा?'' रितु को तब अपनी खुशी ‘काफूर' होती लगी थी। वह जल्दी से बोली थी, ‘‘मौसी, यह जिम्मेदारी नन्नू को सम्भालनी चाहिए। उस पर भी भरोसा करिए, मुझे तो उम्मीद है वह कर लेगा...क्यों?''

मौसी ने तब गहन अवसाद से रितुपर्णा को देखा था। उसकी चितवन जैसे कह रही थी, ‘बिना भरोसा किए ही जीती रही हूं क्या अब तक?'

इतने शोर गुल के बीच भी जाने क्या—क्या सोच गई थी रितु। एकाएक सब चुप हो गए थे और गौर से रितु को घूर रहे थे। चैतन्य होकर जब रितु ने स्थिति को समझा तो झेंप गई, सब हंसने लगे।

शगुन ने चुटकी ली, ‘‘क्या मिस यूनी' के ताज की कल्पना करके गदगद हो रही थी।'' उन्मेष ने उसमें आगे जोड़ दिया, ‘‘किसी कम्पनी के साथ कांटे्रक्ट साइन कर रही थी या शायद कोई फिल्म।''

‘‘ए, नो जोक्स... तो क्या तय किया तुमने?'' रोहन ने पूछा।

‘‘कहीं भी चलो यार...'' हताश—सा होकर सुमित बाली बोला तो कई जनों ने उसकी हां में हां मिलाई।

‘‘फॉर गॉड सेक, लेट्‌स मूव यार, पेट में चूहे कूद रहे हैं रितु।''

‘‘ठीक है।'' रितु ने अपने बैग से पर्स निकाला और उसमें जितने नोट और सिक्के थे, सबके सब सामने रख दिए। कई जोड़ी आंखाें ने जोड़ लगाया लगभग डेढ सौ रुपए थे। रितु ने सबकी ओर देखते हुए कहा, ‘‘हेयर लाइज द प्वाइंट... कुल पूंजी यही है, अब जैसी पार्टी करनी है, कर लो। बट रिमेम्बर, नो ओवर ड्राफ्ट फैसिलिटी...''

‘‘ओह नो।'' कहकर कई जोड़ी पैर फर्श पर पटके गए।

पार्टी हुई और जोरदार हुई। हुआ ऐसे कि जब कुछ तय होते नहीं दिखा तो कमान प्राची ने तुरंत अपने हाथ में ले ली। लड़कियों और लड़काें का काफिला एक कार और कुछ मोटरसाइकिलों पर सवार होकर शहर के दक्षिणी भाग में पॉश कॉलोनी के एक शानदार बंगले के गेट पर जाकर रुका तो एकाएक परिसर की नीरवता भंग हो गई। चौकीदार ने अदब से गेट खोला। सामने हरी घास का लान था। गेट के दोनों ओर बाउंड्री के साथ अशोक के वृक्ष शालीनता से खड़े थे। बाएं से घूम कर गाड़ी सामने पोर्टिको में रुकी। वहीं से दाएं घूमते हुए गेट से बाहर निकला जा सकता था। प्राची की मां ने लिपस्टिक की चमचमाती मुस्कराहट और आशीर्वाद ने सबको छुआ। वे तैयार लग रही थीं और जल्दी में थीं, शायद प्रतीक्षा ही कर रही थीं। बोली, ‘‘सॉरी यंग्स, आय हैव टू गो जस्ट नाउ...आय कांट ज्वाइन यू..., ओके! इन्ज्वाय योरसेल्फ...सी यू अगेन, बाय...'' उत्तर में प्राची ने आगे बढ़कर ‘माम' का गाल अपने गाल से छुआ, ‘‘बाय माम, हैव ए नाइस टाइम।'' ‘माम' फिर मुस्करार्इं, ‘‘यू टू डॉर्लिंग।''

सभी ने बाय कहा और अंदर दाखिल हो गए। गाड़ी ड्राइव करते हुए प्राची की मां बंगले के गेट से बाहर हो गर्इं। रोहन और सुमित मोटर साइकिल से आए थे। उन्मेष को कार की पिछली सीट पर तीन लड़कियों के साथ एडजस्ट किया गया था। रितु, प्राची के साथ अगली सीट पर थी। उन्मेष ने अपने दुर्भाग्य को कोसा था, ‘काश, उसकी बगल में नैना सिद्धू न होकर रितु होती तो पहली बार उसके करीब होने का एहसास ले पाता। उसने मन को समझाया ‘खैर, यह अनुभव भी बुरा नहीं है...बस, कल्पना में रितु की छवि बना लो।' लेकिन सामने आईने में प्राची या रितु की आंखें उससे टकरा जाती थीं तो वह असहज हो उठता और कसमसाकर यह जताने की कोशिश करता कि ‘देखो मैं तो इस स्थिति का बिल्कुल लाभ नहीं ले रहा...नैना के कंधे—कूल्हे उससे रगड़ खा रहे हैं, मेरा शरीर तो निर्लिप्त है।'

चलने से पहले प्राची ने अपनी ‘माम' को फोन कर दिया था और कुछ जरूरी हिदायतें भी दे दी थीं। यही कि उसके किस—किस फ्रेंड्‌स को इन्फॉर्म करना है और शुभम्‌ को भी कह दें कि वह अपने फ्रेंड्‌स को बुलाना चाहे तो बुला ले। साथ ही उसने मैन्यू भी तय कर दिया था।

पार्टी का इन्तजाम बड़े हाल में किया गया था। तीन ओर मुलायम गद्‌देदार सोफे रखे थे। उन पर मोटी—मोटी गदि्‌दयां अतिरिक्त रखी हुई थीं। बीच में बारीक काम किया गया कालीन बिछा था, जिसके ठीक ऊपर भारी भरकम, लेकिन नफीस फानूस झूल रहा था। चौथी तरफ सागौन की लकड़ी पर नक्काशी की हुई मेज थी, जिस पर खाने—पीने का सामान सजाया गया था। छत को लगभग छूती हुई शीशेदार खिड़कियों में लकदक करते हल्के रंगों वाले परदे लटक रहे थे।

बंगले की भव्यता का प्रभाव तो सभी पर पड़ा था, किंतु कृतिका, उन्मेष, सुमित और रितु ज्यादा ही आतंकित लग रहे थे। कारण शायद यही था कि वे निम्न मध्यवर्गीय परिवारों से थे। नैना, शगुन और रोहन की पारिवारिक सम्पन्नता इतनी न सही, पर वे इसे सहजता से ले रहे थे। ऐसी पार्टीज में ‘मूव' करना उनके लिए नयी बात न थी। कॉलेज के इस दल के अलावा प्राची का भाई शुभम्‌ भी मौजूद था। उसके कुछ मित्र भी आए थे, जैसे रिंकी, जो उसी के साथ—साथ परछार्इं—सी दिख रही थी। दो नौजवान और थे, जिनमें एक ने प्राची को आते ही सबके सामने चूमा था। अन्य लड़कियों ने इधर—उधर देखने का नाटक किया था, लेकिन वे सब उसके इस दोस्त को जानती थीं। अक्सर कॉलेज के बाहर कांटेसा में आता था। जिस दिन प्राची अपनी गाड़ी नहीं लाती थी, उस दिन उसे छोड़ना और ले जाना जैसे निश्चित था। तीसरा लड़का, जिसके लंबे—लंबे बाल थे, कद भी ऊंचा था, शुभम्‌ का दोस्त था। उसके कंधे पर लटके बैग से सहज अनुमान लग गया था कि वह फोटोग्राफर है। इससे यह भी अंदाज़ा लग रहा था कि प्राची के घर वाले रितु के इस कम्पटीशन के बारे में सब जानते हैं और उसे हर प्रकार का सहयोग देने का प्रयास कर रहे हैं।

पार्टी के ‘मैन्यू' में काफी आइटम्स के साथ—साथ वाइन, व्हिस्की और बीयर का इन्तजाम भी था। पूरा घर संगीत से सराबोर था। पॅाप म्युजिक फुल वाल्यूम पर चल रहा था। उस धुन पर अवश से सभी के शरीर हिल रहे थे। एक अदृश्य निर्देशन पर उनके कदम—ताल बदल जाते थे और थिरकन जारी रहती।

यह जादू था, माया थी, क्या था? पता नहीं। हकीकत यह थी कि पांच—छह बजे तक घर पहुंचने वाले लड़के—लड़कियों को रात के बारह बज गए थे। उस पर, प्रकृति का अन्याय देखिए कि दोपहर बाद तक मौसम एकदम साफ था, लेकिन शाम उतरते ही

बादल घिर आए थे और ऐसे घिरे कि झमाझम बरसे। वैसे तो ज्यों—ज्यों सुई की घड़ियां टिक—टिक करती आगे बढ़ रही थीं, वैसे—वैसे रितु की घबराहट बढ़ रही थी। ऊपर से बरसात ने बेचैनी और बढ़ा दी थी। वह बार—बार प्राची से जाने की इजाजत मांग रही थी, लेकिन पार्टी उसी के लिए दी गई थी और सभी को छोड़कर वह कैसे पलायन कर सकती थी। दोस्त लोग क्या कहेंगे? यही एक नुक्ता था, जिसके आधार पर जीवन में पहली बार उसे बीयर के घूंट लेने पड़े थे। एक गिलास उसे जबरन पिलाया गया, जिससे उसका सिर भारी हो गया था और शरीर में एक अजीब—सी मस्ती छा गई थी।

एक बजने पर उसने हाथ खड़े कर दिए, ‘‘अब और नहीं...अब तो मौसी मेरा कत्ल ही कर देगी।''

‘‘बस! घबरा गर्इं?'' कृतिका ने व्यंग्य से कहा।

‘‘यह इब्तिदा—ए—इश्क है..., मिस रितु!'' फोटोग्राफर दोस्त ने पास आकर कहा था, ‘‘जो मंजिल तुम्हें हासिल करनी है, उसमें टाइम इज नो बार...नो एनी रिस्ट्रिक्शन रितु, नो,...यू कांट से नो...। इट्‌स ट्‌वन्टी फोर आवर जॉब...तुम समझ रही हो न...'' वह बात करते हुए रितु के इतना करीब आ गया था कि उन्मेष का मूड उखड़—सा गया। प्राची कह रही थी, ‘‘यार, मौसी से कब तक डरती रहोगी। ...नाउ यू आर एडल्ट बेबी! हिम्मत करो, अपने लिए जीने में कोई बुराई नहीं।''

किंतु कृतिका इससे सहमत नहीं थी, ‘सिर्फ अपने लिए सोचना और जीना,

तो ‘सोशल कांसेप्ट' को ही खत्म कर देगा गाइज... आफ्टर ऑल यू शुड हैव

लिमिट। संबंध हमें उत्साह देते हैं, विश्वास देते हैं... हमारी जडें़ हैं, जो हमें जोड़े रखती हैं।' पर वह बोली नहीं।

जब वे लोग विदा हुए, बारिश तब भी हो रही थी। प्राची और शुभम्‌ यूं बीच में उसे छोड़ने जाने से कतरा रहे थे। उनके हिसाब से पार्टी अभी अपने चरम पर पहुंचेगी। माम—डैड भी अभी नहीं लौटे थे। इसलिए रितु को घर छोड़ने की ज़िम्मेदारी शुभम्‌ के फोटोग्राफर दोस्त आबिद ने संभाली। जाने वालों में रितु, कृतिका और उन्मेष ही थे। शेष अभी रुकने के मूड में थे। नैना, सुमित और रोहन ने फोन पर अपने—अपने घर वालों से ‘परमीशन' ले ली थी। फोन तो रितुपर्णा भी कर सकती थी, परंतु फोन ताउजी के घर करना पड़ता, जो मुसीबत को बुलावा देने जैसा था। फिर भी रितु स्थिर थी। चिंताओं के बावजूद उसे अच्छा ही लग रहा था। यह पार्टी सममुच उसके जीवन का नया अनुभव था।

वह ड्राइविंग सीट के साथ वाली सीट पर बैठी थी। उन्मेष और कृतिका को पहले ड्राप कर दिया था। उसने हाथ बाहर निकलकर वर्षा की रफ्तार का अंदाजा लिया, बहुत हल्की थी। फिर उसने ड्राइव करते आबिद को देखा। वह सामने देख रहा था। उसने सोचा, ‘आबिद उसमें कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहा है।' पार्टी के दौरान भी बार—बार उसके पास आ जाता था। ज्यादातर उसके साथ ही नाचता रहा। हां नाचना! कितना मजा आ रहा था। पास आते हुए, दूर जाते हुए। वह कभी ऐसे किसी के सामने नहीं नाची थी। हां! घर पर, कमरा बंद करके, कभी—कभी कोशिश जरूर करती रही थी, किंतु यहां तो आज सब कुछ उसे करना था, किसी माडल की तरह। एक आदर्श...! वह नाचेगी तो सब नाचेंगे, वह पिएगी तो सब पिएगें। उसने याद किया, शुभम्‌ ने कहा था, ‘‘रितु! यह है आबिद! तुम्हें कैसे क्या करना है—लुक, वॉक, ड्रेसेज, स्पीच... हर स्टेज पर तुम्हारी मदद करेगा। बड़े—बड़े माडल्स के साथ और फैशन डिजायनर के साथ काम किया है इसने...अच्छे सोर्सेज हैं इसके...'' फिर उसके कान के पास मुंह लाकर फुुसफुसाया, ‘‘पकड़कर रखना उसे...छोड़ना मत, बहुत काम आएगा...ओके!''

उसने एक बात और महसूस की। सिर्फ कृतिका को छोड़कर शेष सभी लड़कियां उस पर रश्क कर रही थीं। ‘काश! यह मौका हमें मिला होता। यह निम्नवर्गीय परिवार की लड़की उस ‘हाई—फाई' सोसाइटी में कहां फिट हो पाएगी।' किंतु आबिद और शुभम्‌ को उसमें सभावनाएं दिखी थीं। रितु ने आबिद की वह टिप्पणी सुनी थी, जो उसने रितु को लक्ष्य करके शुभम्‌ और प्राची से कही थी, ‘‘गजब का बॉडी—बैलेंस है इसका... यदि थोड़ा—सा ‘मोराल टिप्स' को समझ ले और अंग्रेजी का ‘प्रोनंसिएशन' ठीक कर ले तो कोई बीट नहीं कर सकता।''

‘‘इसीलिए तुम्हारे हवाले किया है ‘आबू'...थोड़ा तराश दो, क्यों...'' प्राची ने शरारत से आबिद को आंख मारी थी। इस पर आबिद ने भी अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ कहा था, ‘‘देखते हैं उसकी रजा क्या है।'' और अपने दोनों हाथ ऊपर उठा दिए थे।

रितु ने फिर आबिद की ओर देखा। उसी क्षण आबिद की नजर भी उसकी ओर घूमी और टकरा गई। दोनों मुस्करा दिए।

‘‘कुछ बोलिए...अब तो बारिश का शोर भी कम है।''

कुल पल और खामोशी के बाद रितुपर्णा ने बेहद मुलायम स्वर में कहा, ‘‘ज्यादा खुशी और ज्यादा गम में बोलने के लिए कुछ होता नहीं है... और मेरे लिए आज जितनी ज्यादा खुशी है, उतना ही अधिक दुःख भी। ऐसे में, मैं ...मैं क्या बोलूं? कुछ सूझ ही नहीं रहा। हां! अपने दोस्तों—सहेलियों का जितना भी उपकार मानूं, कम है।''

‘‘ओ! कम आन...रितु! दोस्तों का भी कोई एहसान मानता है! अरे...फ्रेंड्‌स तो होते ही इसीलिए हैं। अगर वाकई फ्रेंड्‌स हैं तो,'' कहते हुए आबिद ने अपना बायां हाथ उसके दाएं हाथ पर हौले से रखा। नजर मिलते ही हाथ का दबाव तनिक बढ़ाकर कहा, ‘‘अब देखना, यह दोस्त तुम्हारे लिए क्या करता है? कहां से कहां पहुचाता है तुम्हें, लेकिन यह सब तुम्हारे चाहने पर है। देखना, एक दिन सारी दुनिया तुम्हारी दीवानी होगी।''

‘‘यहां से बाएं...हां—हां लेफ्ट।'' कहते हुए रितुु ने अपना हाथ मुक्त करा लिया। निर्देश एकाएक हुआ था, इसलिए मोड़ पर ब्रेक मारते हुए गाड़ी चिचियाई, और एक तिपहिया स्कूटर को छूने से बाल—बाल बची।

‘‘बहुत तेज चलाते हैं आप।''

‘‘हूं,...स्पीड का जमाना है। दौड़ में जो जीतता है वही सिकंदर... बाकी फिसड्डी।''

‘‘तेजी मुझे पसंद है, पर डर भी लगता है।''

‘‘हां, याद आया। अभी तुम कह रही थीं— खुशी भी है और डर भी...डर कैसा, किससे? कॉम्पटीशन में सब लड़कियां तुम्हारे जैसी ही होंगी...बस, कॉन्फीडेंस इज

मस्ट...उसे लूज़ मत करना...अभी तीन महीने का टाइम हमारे पास है...डोंट वरी।'' आबिद उम्र में कुछ बड़ा और प्राची के बड़े भाई का दोस्त होने के नाते सहज और अधिकार भाव से बातें कर रहा था, जबकि रितु न तो उतनी सहज हो पा रही थी, न ही उतना अधिकार और अनौपचारिकता दिखा पा रही थी। पहली ही तो मुलाकात थी।

‘‘नहीं! वो बात नहीं...अच्छा, फिर कहूंगी...। चौक से पहले ही रोक लीजिए हां इधर, बस, बस यहीं...चली जाऊंगी।''

‘‘क्या दूर है अभी...। ''

‘‘नहीं—नहीं! बस दाएं मुड़कर तीसरी गली में है।''

चौराहे के पार बार्इं ओर टैक्सी स्टैंड था। वहां का ठेकेदार तथा अन्य ड्राइवर, सुखदेव के पूरे परिवार को पहचानते थे। उनके देख लेने का भय था। यदि वह दाएं मुड़कर गली के सामने उतरती तो वहां परिवार के किसी सदस्य से मुठभेड़ हो सकती थी।

‘...हो सकता था, मौसी सड़क की ओर लगने वाली बॉलकनी में ही खड़ी हाें या चिन्ता में परेशान—सी सड़क पर ही आ जाएं। ऐसे में एक अनजान युवक के साथ अकेली इतनी रात में गाड़ी से उतरकर उसका क्या परिचय देगी?' सोचते हुए उसने दुपट्‌टे को सिर पर डाल लिया। वह विश्वास से भरे कदम उठाती हुई दार्इं ओर मुड़ गई। आबिद उसे जाते हुए देख कर, सोच रहा था, ‘जिस्म है..., खूबसूरती है... और दिमाग भी ठीक ठाक होगा, पर ‘बोल्डनेस' नहीं, अंग्रेजी बोलचाल में भी रियाज की जरूरत है...बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी आबिद बेटा! चलो देखते हैं! हमने तो कई खोटे सिक्के तक चला दिए। आज बाजार में अच्छी कीमत है उनकी। रुबीना, शैली, रोज सब ऐसी ही थीं, जो आज खूब चल रही हैं और वो पहाड़न... क्या नाम... हां कंचन! दसवीं पास, अंग्रेजी में ‘ओके' थैंक्यू से आगे नहीं थी। बाद में ‘इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स' की किताबें रटा—रटा कर बात करने के काबिल बनाया। बहुत अच्छे क्लाइंट मिले उसे... कुछ ‘लक' भी होता है यार! देखते हैं, रितु बेगम! आबिद सुल्तान का सितारा इस बार बुलंद होता है या नहीं...'

रितु जैसे ही आंख से ओझल हुई, आबिद ने ‘यू टर्न' लेकर एक्सीलेटर दबा दिया।

***

Rate & Review

Manish Saharan

Manish Saharan 3 years ago

Kamal Prabha

Kamal Prabha 3 years ago

Smita

Smita 3 years ago

Right

Right 4 years ago

Sunhera Noorani

Sunhera Noorani 4 years ago