यमहि मन्दिर का अभिशाप ( 5 )
कुछ देर बाद वह बूढ़ा आदमी अपने हाथों में एक कटोरी लाई और एक गिलास पानी लेकर बाहर निकले ।
मसाननाथ के सामने पानी रखकर बूढ़ा आदमी बोला - " गरीब का घर है इसीलिए इससे ज्यादा कुछ और नहीं कर पाया । "
लाल चबाते हुए मसाननाथ बोले - " किसने कहा आप गरीब हैं अनजाने व्यक्ति को जो बैठकर खिला सकता है वही असल में धनी है । "
यह बात सुन बूढ़ा आदमी संतुष्ट हुआ कि ऐसी बातें कोई अच्छे व्यक्तित्व वाला ही कर सकता है ।
कुछ देर बाद बूढ़ा आदमी बोला - " ठीक है मैं सब कुछ आपको बताता हूं इसके बाद जो भी पूछना हो मुझसे पूछ लीजियेगा । मेरे बातों को ध्यान से सुनने पर आपके सभी प्रश्नों का उत्तर मिल जाएगा । "
बूढ़ा आदमी बोलता रहा ।
" मेरा नाम मणिप्रसाद दीक्षित है । इस शिवपुर गांव के पुरोहित वंश का मैं अंतिम व्यक्ति हूं । मेरा एक लड़का है लेकिन वह इस गांव में नहीं रहता । शहर में पढ़ने भेजा था पढ़ते हुए ही उसे नौकरी मिल गई । उसके बाद शादी करके वही अपना जीवन बसा लिया है । शिवपुर में फिर लौटकर आएगा ऐसा नहीं लगता । सरकारी नौकरी में है इसीलिए उसे इन पूजा-पाठ में कोई रुचि नहीं है । इसीलिए पुरोहित वंश में मैं ही बचा हुआ हूं । हमारे पुरोहित वंश में कुछ नियम हैं । मरने से पहले पिता अपने पुत्र को या दादा अपने पौत्र को उस मंदिर के बारे में विशेष कुछ तथ्य बताकर जाते हैं ।
वंश परंपरा के अनुसार उस तथ्य को बचाए रखना ही हमारा कर्तव्य है । भगवान की कृपा से हमारे हर एक वंश में एक पुत्र अवश्य पैदा हुआ है । "
मसाननाथ बोले - " कैसा तथ्य ? "
" बताऊंगा सब कुछ बताऊंगा लेकिन पहले इस मंदिर का इतिहास बता देता हूं । मैंने अपने दादा जी से सुना था कि सुल्तान बाबर के भारत आने से पहले ही इस मंदिर को बनाया गया था । निर्माणकर्ता का नाम व दिवस इस बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता ।1500 ईस्वी के समय यहां पर विदेशी लोगों द्वारा आक्रमण किया गया । इस आक्रमण में नारी , पुरुष बच्चे सभी हताहत हुए थे । लेकिन कुछ गांव वाले अपनी जान बचाकर उस मंदिर में छुपे थे । क्योंकि उस मंदिर के अंदर एक बहुत बड़ा भूल भुलैया है । जिसका समाधान केवल हमारे वंश के लोग ही जानते हैं । गांव वालों के साथ हमारे वंश के कुछ लोग भी उस मंदिर में छुपे थे । उन्हीं में से तीन बड़े पंडित थे । विदेशी शत्रु उनका पीछा करते हुए उस मंदिर के अंदर गए थे लेकिन कुछ भूल भुलैया में खो कर मर गए और कुछ रास्ता पहचान कर बाहर निकल आए । उसके बाद एक बड़े पत्थर से मंदिर का दरवाजा इस प्रकार बंद कर दिया गया कि उसे केवल बाहर से ही खोला जा सकता था । हजारों लोग भी अंदर से धकेलने पर उसे नहीं खोल सकते थे । जो लोग मंदिर के बाहर यानि गांव में छुपे थे वे सभी विदेशी सैनिकों द्वारा मार डाले गए । गांव वालों की हत्या करके इस जगह को अपने कब्जे में कर लिया । तीन पुरोहित पंडित जो मंदिर के अंदर थे उनका नाम योगानंद , मार्कण्डेय और हिरामन था । वह सभी जानते थे कि जितना अनाज मंदिर के अंदर है वो कुछ ही महीने में खत्म हो जायेगा । इसीलिए जितना जल्दी हो उस पत्थर को हटाना था । लेकिन उन हरामियों ने पत्थर को इस प्रकार बंद किया था कि उसे केवल बाहर से ही सरकाया जा सकता था । मंदिर में ही सब मर जाएंगे यही सोचकर सभी ने भगवान से प्रार्थना करना शुरू कर दिया । इसे प्रार्थना ना बोलकर व्यवसाय कहा जा सकता था । भगवान अगर हमें यहां से बाहर निकाल दो तो यह दूंगा । अगर उस पत्थर को हटा दो तो आपको ये भेंट करूंगा । लेकिन भगवान ने उनके प्रार्थना को नहीं सुना क्योंकि असल में भगवान कभी व्यवसाय नहीं करते । विपत्ति के समय उनको बुलाना और दूसरे समय उनके ऊपर अविश्वास रखना यह बहुत ही निम्न सोच है । "
" लेकिन वहां पर अन्य लोगों के साथ आपके वंश के तीन बड़े पुरोहित भी तो थे । "
" हाँ थे लेकिन मंदिर के अंदर ऐसे कुछ गांव वाले थे जो केवल अपने काम के लिए प्रार्थना कर रहे थे । क्योंकि भगवान के प्रति उनका कभी भी आस्था व विश्वास नहीं था ।
इसी तरह कुछ दिन बीते फिर धीरे-धीरे सभी लोग अपना धैर्य खोने लगे । भगवान के ऊपर भरोसा टूट जाने के कारण हमारे वंश के तीनों पुरोहित ने ही शैतान की उपासना शुरू कर दिया । किसी भयानक नकारात्मक शक्ति का आह्वान उन्होंने किया और लगभग एक महीने 11 दिन इस यज्ञ को किया गया था । शैतान के प्रकट होने पर योगानंद , मार्कण्डेय , हिरामन. तीनों ने उसे स्वीकार किया हालांकि इसके लिए उन्हें अपना प्राण देना पड़ा । इसके बाद वहां एक ऐसी शक्ति प्रकट हुई जिसने मंदिर के बाहर के पत्थर को तोड़ डाला । "
मसाननाथ चौंक गए - " जिस पत्थर को सैकड़ो लोग एक इंच भी नहीं हिला पाए वह एक झटके में टूट गया । इसका मतलब उस शक्ति का आधार बहुत ही भयानक है । "
" हाँ वह बहुत ही शक्तिशाली और देखने में उतना ही विभत्स रूप आधा मनुष्य और आधा पशु के मिश्रण जैसा था । लेकिन वह शक्ति भगवान का नहीं शैतान का था । इसीलिए उसका उद्देश्य कभी भी सही नहीं हो सकता । इधर गांव वाले मंदिर से तो निकल गए लेकिन सैनिको से रिहाई नहीं मिला । उन्हें जब समझ में आया कि ये कुछ गांव के भूत उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते तब उन्होंने दूसरा उपाय अपनाया । बच्चे और पुरुषों को नौकर व महिलाओं को दासी बनाकर अपने गंदे शौक पूरे करते रहे । लेकिन उन्होंने
इस पर ध्यान नहीं दिया कि प्रतिदिन उनका एक सदस्य कम हो रहा था । गांव वाले इस बात को पहले ही जान गए थे । वह शक्तिशाली शैतान लोगों को ऐसे गायब करता कि उनके परिवार का कोई भी समझ नहीं पाता । गांव वालों ने कहना शुरू कर दिया कि विदेशियों को यमहि ने मारा है । असल में योगानंद , मार्कण्डेय , हिरामन इन तीनों के नाम से ही उस शैतान का नाम यमहि रखा गया था । इसी तरह कुछ साल बीत गए शिवपुर में फिर से धीरे-धीरे लोगों ने अपना जीवन शुरू किया क्योंकि विदेशी सैनिकों की संख्या कम होने लगी थी । लेकिन इसके बावजूद यमहि का आतंक नहीं रुका ।
गांव वालों को होश तब आया ज़ब हमारे वंश का एक लड़का गायब हो गया । दोस्त व रिश्तेदार कोई भी उसे नहीं खोज पाए । लड़का अचानक से गायब हो गया था और इधर उसके माता पिता का विचार बहुत ही अद्भुत , उनका कहना था कि उनका कोई लड़का ही नहीं है । पहले सभी ने सोचा कि उसके माता-पिता पागल हो गए हैं या डर के कारण कुछ भी नहीं बोल रहे । लेकिन कुछ ही दिनों में आसपास के सभी लोग उस लड़के को भूल गए । केवल कुछ साधक पुरोहित के दिमाग से वह लड़का नहीं गायब हुआ । इसके बाद वो समझ गए कि यमहि केवल विदेशी शत्रुओं को नहीं हमारे लोगों को भी समाप्त कर रहा है । अगर ऐसे ही चलता तो हमारे वंश के साथ आसपास के गांव वाले भी धीरे धीरे
गायब हो जाते । इसीलिए यमहि को रोकने के लिए उन्होंने भगवान शिव की पूजा शुरू कर दिया लेकिन इससे विशेष लाभ नहीं हुआ । कुछ दिन बाद ही एक और गांव वाला गायब हो गया । सभी जान गए थे कि उस मंदिर में ही यमहि वास करता है इसीलिए गायब सभी लोग उसी मंदिर के किसी कोठरी में मारे गए थे । यमहि इतना शक्तिशाली था कि वह जिसका भी शिकार करता उसका अतीत सभी भूल जाते थे । इसी समय शिवपुर में प्रकट हुई एक बूढ़ी महिला ,
लेकिन वह कोई साधारण बूढ़ी महिला नहीं थी । साधना के शीर्ष पर पहुंचने से शरीर में एक आभा उत्पन्न होता है वह उनके शरीर से साफ झलकता था । सभी गांव वाले उन्हें साध्वी मां कहकर पुकारते थे । जब गांव वालों को कोई उपाय नहीं सुझा तब वो सभी साध्वी मां के शरणों में उपस्थित हुए । इसके बाद शुरू हुआ एक भयानक युद्ध , एक तरफ शैतान शक्ति यमहि और दूसरी ओर साधिका साध्वी माँ । उस युद्ध में शुभ शक्ति की विजय हुई लेकिन यह ज्यादा दिनों के लिए नहीं था । इसीलिए साध्वी माँ ने मंत्र शक्ति के द्वारा यमहि को उस मंदिर में बंद कर दिया था । इसके बाद कोई भी उस मंदिर में प्रवेश ना कर पाए इसलिए
उन्होंने अपने तपस्या शक्ति से अजय नदी के बहाव को बदलकर इस मंदिर को पानी के अंदर डाल दिया । "
मसाननाथ आश्चर्य होकर बोले - " तपस्या शक्ति से नदी का बहाव बदल दिया । तब तो वो अमर हैं क्योंकि जलम विद्या में सिद्ध होने के लिए एक यज्ञ सम्पूर्ण करना पड़ता है जिसका लाभ अमरत्व है । "
यह सुन बूढ़ा आदमी और भी आश्चर्यचकित होकर बोला - " इसका मतलब साध्वी माँ अभी भी जिन्दा होंगी ? "
मसाननाथ ने हाँ में सिर हिलाया ।…..
अगला भाग क्रमशः..
@rahul