यमहि मन्दिर का अभिशाप ( 9 )
किसी तरह सभी उस गड्ढे बाहर निकल गए थे । कुछ देर में नरेंद्र उन पत्थरों के बीच पिस जाता लेकिन मसाननाथ ने किसी तरह उसे उसे बाहर खींच कर निकाला । दोनों ने उठकर देखा तो मणिप्रसाद बाहर पत्थर की दीवार को आश्चर्य ढंग से देख रहे थे ।
यह देखकर मसाननाथ बोले - " क्या हुआ पंडित जी वहां पर खड़े होकर क्या सोच रहे हैं ? "
मणिप्रसाद ने उत्तर दिया - " तांत्रिक जी मेरे द्वारा इस पत्थर को दबाने से वह पत्थर का दरवाजा खुल जाता है । लेकिन साहब जब उन पत्थरों के बीच अटके हुए थे तब मैंने इस पत्थर को बहुत बार दबाया लेकिन वह दरवाजा नहीं खुला । आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? "
मसाननाथ आश्चर्य होकर बोले - " आपके हाथों से दरवाजा नहीं खुला है इसका मतलब पूरा मंदिर अब यमहि के कब्जे में है । और अब हम उसके मौत के जाल में फंस गए हैं । "
मणिप्रसाद कुछ उत्तर देने वाले थे लेकिन अचानक खड़खड़ की आवाज़ सुन सभी ने पीछे देखा ।
मसाननाथ ने देखा कि मणिप्रसाद के बिना पत्थर दबाए ही सामने गड्ढे का दरवाजा अपने आप खुल रहा था । और कई लोगों के फिसफिसाहट की आवाज उससे सुनाई दे रहा था । एक तरल रुपी अंधेरा मानो बाहर निकल सभी जीवित वस्तु को खा जाना चाहता है । मसाननाथ ने जल्दी से सभी को अपने पास बुला लिया । उसके बाद कंपित आवाज में देवी नाम जप करने लगे ।
" हे देवी चामुंडा , काली - कपालिनी हमारी रक्षा कीजिए । " यही बोलते हुए मसाननाथ ने अपने पास रखें मंत्र रुपी हल्दी को काले तरल की तरफ फेंक दिया । तुरंत ही उस हल्दी ने एक चक्र का रूप धारण कर सभी के चारों तरफ फैल गया ।
मसाननाथ ने चिल्लाकर कहा - " कोई भी इस चक्र से बाहर नहीं निकलेगा । अगर निकले तो मृत्यु निश्चित है । "
मसाननाथ के कहने से दिनेश , नरेंद्र और मणि प्रसाद भी पीले घेरे के अंदर खड़े हो गए ।
उधर गड्ढे से एक काला तरल रुपी धुआँ निकलता ही जा रहा था । वह अंधेरा जितना बड़ा हो रहा था उतना ही फिसफिसाहट की आवाज़ बढ़ती जा रही थी । मणिप्रसाद ने ध्यान दिया कि धीरे - धीरे पीले आभा वाला चक्र छोटा होता जा रहा था ।
मणिप्रसाद ने मसाननाथ से पूछा - " आपके द्वारा बनाया गए ये सुरक्षा लकीरें धीरे-धीरे छोटी क्यों हो रही है ? "
मसाननाथ ने चिल्लाकर कहा - " मैं नहीं कर पा रहा । मैं इस सुरक्षा क्षेत्र को नियंत्रण नहीं कर पा रहा । यह बहुत ही शक्तिशाली नकारात्मक शक्ति है इसके साथ लड़ना मेरे लिए असंभव है । "
" आप क्या होगा तांत्रिक बाबा , अगर यह सुरक्षा चक्र खत्म हो गया तो हम मारे जाएंगे । "
" भगवान से प्रार्थना कीजिए अब वही एकमात्र सहारा हैं । मेरा कोई भी मंत्र काम नहीं कर रहा । "
सभी समझ गए कि यमहि का नकारात्मक शक्ति इतना शक्तिशाली है कि उसके प्रभाव से तांत्रिक मसाननाथ अपने ईश्वरीय मंत्र का भी प्रयोग नहीं कर पा रहे । इधर पीला सुरक्षा चक्र पैर के पास पहुंच गया है शायद कुछ देर बाद ही यह खत्म हो जाएगा । सभी ने अपने सामने मौत देखकर भगवान से प्रार्थना करते रहे ।
अचानक एक सफेद कांच का बोतल उनके सुरक्षा चक्र में कहीं से हम लुढ़कते हुए आया और तुरंत ही चारों तरफ किसी के मंत्र फटने की आवाज सुनाई दी । इधर उस सफेद बोतल के सुरक्षा चक्र में प्रवेश करते ही वह पीला चक्र फिर सभी के चारों तरफ फैलने लगा । और सामने गड्ढे से निकलता तरल उस मंत्र की गूंज को सुनकर धीरे - धीरे फिर गड्ढे के अंदर चला गया लेकिन इस बार दरवाजा नहीं बंद हुआ । मणिप्रसाद ने कांपते हुए उस बोतल को उठा लिया ।
मसाननाथ से उन्होंने पूछा - " तांत्रिक बाबा यह मंत्र पाठ कौन कर रहा है और यह बोतल कहां से आया ? "
मसाननाथ ने चैन की सांस ली और हंसते हुए कहा - " ये कार्य किसी एक विशेष तांत्रिका का है जो प्रकृति के किसी भी वस्तु में अपने मंत्र की स्थापना करने में सक्षम हैं । "
मणिप्रसाद कुछ और बोलना चाहते थे लेकिन किसी के आवाज़ ने उन्हें रोक दिया ।
" स्वागत नहीं करोगे हमारा "😀
यह सुनते ही मसाननाथ के साथ सभी ने उस ओर देखा । मंदिर के शिखर पर चढ़ने की सीढ़ी के पास थोड़ा अंधेरा है उसी के पास कोई आदमी खड़ा है ।
मसाननाथ ने कहा - " इनसे मिलिए ये हैं हमारे दोस्त तांत्रिक कालीचरण । कालीचरण अँधेरे से बाहर निकलो । "
कुछ ही देर में कालीचरण शिखर के बीच में आकर खड़े हुए । इसके बाद मणिप्रसाद से बोलें - " इधर लाइए मेरे बोतल को यह मेरे बहुत काम आता है । हालांकि इसके अंदर पहले जो था वो भी मुझे बहुत पसंद है । "
मणिप्रसाद के हाथ से उस बोतल को लेकर कालीचरण ने अपने थैले में रख लिया ।
इसके बाद मसाननाथ से पूछा - " आप भी गजब के हैं मुझे चिट्ठी लिखकर अकेले ही इस शैतान से लड़ रहे हैं । मैं सही समय पर आया वरना अब तक आप सभी मरकर भूत हो गए होते । "
" लेकिन तुमने इस नकारात्मक शक्ति को रोका कैसे ? जहां मेरे पितांबर चक्र ने हार मान लिया । "
" ज्यादा कुछ नहीं जैसे लोहा लोहे को काटता है ठीक वैसे ही इस नकारात्मक शक्ति के लिए मैंने उसके उत्पन्न शक्ति का आह्वान किया और मेरे बोतल में जितना शराब था उसे मंत्र शक्ति में बदलकर आपके सुरक्षा चक्र में लुढ़का दिया । "
" इसका मतलब कालीचरण तुम शैतानी शक्ति का मंत्र भी जानते हो ? "
" ज्यादा कुछ नहीं जानता । कहीं से मुझे ये विशेष मंत्र जानने का अवसर मिला था इसीलिए आज मैंने इसका प्रयोग किया और इसमें काम भी किया । इस मंत्र के बारे में आपको भी जानना है । "
" नहीं , नहीं केवल तुम साथ रहो यही हमारे लिए अच्छा है । वैसे तुम यहां पहुँचे कैसे ?"
कालीचरण ने हंसते हुए उत्तर दिया - " मसाननाथ जी आप शायद भूल गए हैं कि देवघर के उस श्मशान में त्रिलोक तांत्रिक के शक्ति को देखकर मैंने आपसे कहा था कि एक दिन मैं इस पंचतत्व साधना में अवश्य सिद्धि प्राप्त करूंगा । "
" तो क्या तुमने साधना सिद्धि प्राप्त कर ली है ? "
" नहीं अभी नहीं कर पाया , तीसरे पर अटक गया हूं ज्यादा समय वायु माध्यम से नहीं चल पाता । और इसीलिए मंदिर के पास आते ही पानी में गिर गया । यह देखिए भीगा हुआ । "
मसाननाथ ने देखा कालीचरण के कमर के नीचे पूरा भीगा हुआ था । वैसे कहना होगा इस आदमी के कलेजे में दम है । केवल तृतीय श्रेणी तक पहुंचकर और साधना में सिद्धि लाभ किये बिना ही यह फैसला करने में जरा सा भी संकोच नहीं किया ।
मसाननाथ सही थे श्मशान में उस दिन कालीचरण को देखकर समझ गए थे कि इस व्यक्ति के अंदर कुछ ऐसा है जो आजतक किसी साधु , सन्यासी , तांत्रिक , अघोरी किसी के अंदर नहीं है । लेकिन उनका अतीत कितना ख़राब है इसे मसाननाथ हमेशा जानना चाहते हैं ।
कालीचरण बोले - " वैसे मैं साधना की शक्ति से यहां तक पहुंचा लेकिन तुम सब क्या वहाँ तैरते उस नाव से यहां तक आए हो । "
" हाँ बाबाजी , मैंने ही नाव चलाकर सभी को यहाँ पर ले आया । "
यह सुनकर कालीचरण ने पीछे देखा शाम के इस कम उजाले में उन्होंने दिनेश को नहीं देखा था ।
लेकिन इस बार दो कदम आगे बढ़ते ही दिनेश का चेहरा उन्हें स्पष्ट नजर आया । दिनेश को देखते ही कालीचरण के दोनों आंख गुस्से से लाल हो गया ।
उन्होंने चिल्लाते हुए कहा - " साले हरामजादे तू यहां कैसे ? "
यह बोलकर वो आगे बढ़े और दिनेश के शरीर पर एक लात मारा । खुद को न संभाल पाने के कारण वह मंदिर के शिखर से नीचे पानी में गिर पड़ा ।
मसाननाथ आश्चर्य होकर बोले - " यह क्या किया तुमने ? "
" वही किया जिसे कानून को बहुत पहले ही कर देना चाहिए था । "
" तुमने तो दिनेश को पानी में फेंक दिया अब वह मर जाएगा । "
" मरने दो यही उस गैंग का सरदार है । इसका नाम जानते हो ? "
" नहीं "
" दिनेश पाल ठरकी बुड्ढा । "
" लेकिन इन सब में वह कैसे दोषी है । "
" नहीं इस मंदिर से उसका कोई संबंध नहीं किसी दूसरे कारण से वह दोषी है । "
" कोई दूसरा कारण , हमें तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा । "
" केवल इतना बता सकता हूं कि मैंने ही दोषी को उचित दंड दिया है । वो सब छोड़ो मुझे इस मंदिर के बारे में पूरा इतिहास बताइए । "
मसान नाथ ने कालीचरण को ध्यान से देखा । उन्हें दिनेश के मौत से कोई फर्क नहीं पड़ रहा ।
इधर मणिप्रसाद दोनों तांत्रिक के काम को देखकर और ज्यादा आश्चर्य में हैं । और नरेंद्र को भी यह सब कुछ भी समझ नहीं आ रहा ।
शांति को भंग करते हुए मसाननाथ बोले - " ऐसा कृपया फिर मत करना । और वैसे भी हम नदी में उसे बचाने नहीं उतर सकते । इस पानी में मगरमच्छ भरे हुए हैं । नदी का सही रास्ता भी उसी को मालूम था । "
इन सब बातों से कालीचरण को कोई फर्क नहीं पड़ रहा । उन्हें अपने कार्य पर अटल गर्व है ।
मणिप्रसाद बोले - " आपको मैं इस मंदिर के बारे में पूरा इतिहास बताता हूं । "
पंडित जी ने मसाननाथ को जो कुछ भी बताया था फिर से कालीचरण को बताया । लेकिन उस बार मसाननाथ को मरे हुए लोगों के बारे में जिस प्रश्न को किया था । कालीचरण के उस प्रश्न को करने से पहले ही पंडित जी ने उन्हें इसका जवाब दे दिया ।
सब कुछ सुनकर कालीचरण , मसाननाथ से बोले - " इसका मतलब इस ठरकी बूढ़े के मरने से अच्छा ही हुआ । क्योंकि पानी में मगरमच्छ से लड़ाई नहीं किया जा सकता । यमहि को हराने के लिए किसी तरह उसे इस मंदिर से बाहर निकलना होगा । और यही काम दिनेश का मरा हुआ शरीर करेगा । दिनेश के मरने के बाद यमहि उसे खाने के लिए बाहर जरूर आएगा । उसी समय आप यमहि को बंदी बनाकर दूसरे जगत में भेज देना । "
" वह क्यों इस क्रिया को आप नहीं कर सकते । "
कालीचरण अपने चेहरे पर एक कृतिम मुस्कान लाते हुए बोले - " मुझे जगत परिवर्तन करना नहीं आता क्योंकि उतना बड़ा तांत्रिक मैं नहीं हूं उसे केवल मसाननाथ जी ही कर सकते हैं । "
" ठीक है , कालीचरण और सभी इस सुरक्षा इस सुरक्षा चक्र के अंदर आ जाओ क्योंकि दिनेश के मरते ही यमहि बाहर निकलेगा । और यहीं एक मौका हमारे पास होगा । "
मसाननाथ के कहे अनुसार कालीचरण पीतांबर चक्र के बीच में आकर खड़े हुए । इस ऐतिहासिक अभिशाप का सभी आंख फैलाकर प्रतीक्षा करते रहे ।……..
अगला भाग क्रमशः...
@rahul