Mout Ka Khel - 6 PDF free in Detective stories in Hindi

मौत का खेल - भाग-6

खेल में मौत

रायना भी यही समझ रही थी कि डॉ. वरुण वीरानी मरने की एक्टिंग कर रहा है। जब वह इस तरह से गिर गया तो उस के मुंह से भयानक चीख निकल पड़ी। रायना की चीखने की आवाज सुन कर मेहमानों में शामिल एक डॉक्टर ने तेजी से आगे आते हुए कहा, “यह एक्टिंग नहीं हो सकती है। मुझे मामला कुछ गड़बड़ लग रहा है। आप लोग किनारे हटिए... मुझे चेक करने दीजिए।”

इस के बाद वह आदमी जमीन पर बैठ कर डॉ. वीरानी की नब्ज चेक करने लगा। उसने अपने कान डॉ. वीरानी के दाहिने सीने पर टिका दिए। वह कुछ देर कान लगाए सुनता रहा। उस के चेहरे से घबराहट के आसार साफ नजर आ रहे थे। उसने एक नजर घेरा बना कर आसपास खड़े लोगों पर डाली। वह डॉ. वीरानी की नाक के पास हाथ ले जा कर सांसों को चेक करने लगा।

डॉक्टर ने जमीन से उठते हुए बहुत मायूसी से कहा, “डॉ. वीरानी इज नो मोर।”

यह बात सुनते ही डॉ. वरुण वीरानी की पत्नी रायना जमीन पर धड़ाम से बैठ गई और लाश से लिपट कर बेतहाशा रोने लगी। तमाम लोग अभी भी लाश के पास खड़े हुए थे। सभी के चेहरे पीले पड़ गए थे। किसी के कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। नए साल की सारी खुशियां काफूर हो गईं थीं। ‘मौत का खेल’ सचमुच मौत के खेल में तब्दील हो गया था। हर तरफ मौत का सा सन्नाटा पसरा हुआ था।

रायना बेतहाशा रोए जा रही थी। कुछ देर बाद मेहमानों में शामिल कुछ अन्य महिलाएं बैठ कर उसे ढांढस बंधाने लगीं। तमाम लोग अभी भी वहीं जड़ खड़े थे। ऐसा लगता था जैसे सभी पत्थर के हो गए हों। यहां तक कि किसी में हिलने तक की ताकत नहीं बची थी। उनके बीच का एक साथी अब इस दुनिया में नहीं था।

डॉ. वीरानी बड़ा खुश मिजाज आदमी था। उसे कभी किसी ने नाराज होते नहीं देखा। हमेशा हंसते हुए ही लोगों से मिलता था। इतनी उम्र हो जाने के बावजूद वह अपनी इसी खुशमिजाजी की वजह से नौजवानों में भी आसानी से घुलमिल जाता। यही वजह थी कि उस की मौत का सदमा हर किसी को था।

वनिता एक कोने में खड़ी सिगरेट पी रही थी। उसका चेहरा एकदम सपाट था। चेहरे पर किसी तरह के कोई भाव नहीं थे। ऐसा लगता था जैसे उसे पता ही न हो कि डॉ. वीरानी अब इस दुनिया में नहीं हैं।

बंद दरवाजा

वह आदमी अभी भी अपने कमरे में बैठा हुआ था। उस ने जेब से सिगार निकाली और लाइटर से उसे जला कर कश लेने लगा। उसे देख कर ऐसा लगता था, जैसे उसे इस मौत के बारे में पता ही न चला हो! वह पूरे इत्मीनान से बैठा सिगार पी रहा था। शायद उसे सुबह होने का इंतजार था, ताकि वह यहां से जा सके। कोहरे की वजह से तमाम लोगों की तरह वह भी यहां आ कर फंस गया था। उसने एक नजर कलाई घड़ी पर डाली। उसके बाद खिड़की से बाहर देखने लगा। खिड़की से जरा सा पर्दा हटा हुआ था। वहां से बाहर धुंआ-धुंआ सा नजर आ रहा था।

थर्टी फर्स्ट नाइट का आर्गनाइजर और इस कोठी का मालिक राजेश शरबतिया दबे पांव बड़ी खामोशी से धीरे-धीरे अजनबी के कमरे की तरफ बढ़ रहा था। वह कमरे के सामने जा कर रुक गया। कुछ देर यूं ही खड़ा कमरे के अंदर की गतिविधियों को भांपने की कोशिश करने लगा। इस के बाद उसने बड़ी खामोशी से दरवाजे में बाहर से सिटकिनी लगा दी।

इस काम से फारिग होने के बाद राजेश शरबतिया चुपचाप उसी तरह से दबे पांव लाश के पास लौट आया। चूंकि सभी लोग कोठी के बाहर लॉन में ही मौजूद थे, इसलिए कोई भी उस की यह हरकत देख नहीं सका। वैसे भी वह इस कोठी का मालिक था। किसी को ख्याल भी नहीं हुआ कि वह अंदर क्या करने जा रहा है!

राजेश शरबतिया लाश के पास आने के बाद कुछ देर यूं ही सबसे पीछे खामोशी से खड़ा रहा। उस के बाद उसने लोगों को मुखातिब करते हुए धीमा आवाज में कहा, “मित्रों! हम लोग यहां एक खेल खेल रहे थे। उस खेल के अंत के रूप में हमारे सामने एक लाश पड़ी हुई है। यहां कोई भी किसी का दुश्मन नहीं है। ऐसी हालत में किसी को इस कत्ल के लिए जिम्मेदार ठहराना सही नहीं होगा। इस मौत को महज एक हादसा या इत्तेफाक ही माना जाना चाहिए।”

कुछ देर की खामोशी के बाद राजेश शरबतिया ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “हम में से किसी को नहीं मालूम कि इस खेल में किस का किया रोल था। मैं सभी मेहमानों से गुजारिश करूंगा कि वह अपनी-अपनी पर्चियां नष्ट कर दें, ताकि यह पता न चल सके कि इस खेल में किस का क्या किरदार था। पर्ची डिस्ट्राय करने तरीका यह है कि बारी-बारी से मेहमान, हाल के आतिशदान तक जाएं और अपनी पर्ची आग के हवाले कर दें। इस तरह किसी को किसी पर शक करने का मौका नहीं होगा।”

दुनिया का कोई भी समझदार आदमी कत्ल के जुर्म में शामिल होना नहीं चाहेगा। नतीजे में लोगों ने तुरंत ही इस तजवीज को मान लिया। लोग बारी-बारी से हाल में गए और अपनी पर्ची आतिशदान के हवाले कर आए। इस काम से फारिग हो कर लोगों ने चैन की सांस ली। सबूत आग में जल कर राख हो चुका था। अब कभी नहीं पता लग सकता था कि कातिल की पर्ची किसके नाम निकली थी।

हालांकि अभी सबसे बड़ी मुश्किल बाकी थी। डॉ. वीरानी की लाश?

राजेश शरबतिया ने कुछ मेहमानों को राजी किया कि डॉ. वीरानी की लाश फार्म हाउस में ही दफ्ना दी जाए। लाश अगर फार्म हाउस से बाहर जाती है तो मामला खुलने का डर रहेगा। बेहतर है कि यहीं फार्म हाउस में उस का अंतिम संस्कार कर दिया जाए।

मसला यह था कि रायना को कैसे राजी किया जाए। हालांकि डॉ. वरुण वीरानी का रायना के अलावा इस दुनिया में कोई भी नहीं था। रायना खुद मौके पर मौजूद भी थी।

राजेश शरबतिया ने रायना से इस मुद्दे पर बात की तो उस ने कहा कि वह डॉ. वीरानी की लाश घर ले जाना चाहती है। वह पूरे विधि-विधान से उनका अंतिम संस्कार करेगी। वह लाश को कैंपस में दफ्नाने के लिए राजी नहीं हुई।

रायना के राजी न होने पर सभी के चेहरे से परेशानी झलकने लगी। लोगों को डर था कि अगर लाश बाहर जाती है तो भेद खुल सकता है। वह हर हाल में फार्म हाउस में ही अंतिम संस्कार करना चाहते थे। राजेश शरबतिया ने रायना को समझाने की जिम्मेदारी अबीर को दी। अबीर ने किसी तरह से समझा-बुझाकर रायना को फार्म हाउस में ही लाश को दफ्नाने के लिए राजी कर लिया।

अभी सुबह होने में कुछ घंटे बाकी थे। तुरंत ही कुछ लोगों ने फावड़े और कुदाल से कब्र खोदना शुरू कर दिया। कफन के लिए नए कपड़े का इंतजाम घर से ही हो गया। सुबह होने से पहले ही लाश को चुपचाप दफ्न कर दिया गया।

लाश दफ्न होते ही सभी मेहमान अपने-अपने घरों के लिए रवाना हो गए। अब यहां कोई भी किसी भी कीमत पर रुकने के लिए तैयार नहीं था। किसी ने भी कोहरे की फिक्र नहीं की।

रायना भी विदा हो गई। महज 12 घंटे में उस की दुनिया बर्बाद हो गई थी। वह पति डॉ. वरुण वीरानी के साथ यहां आई तो थी खुशी-खुशी, लेकिन अब गम में डूबी बिना पति के घर के लिए रवाना हुई थी।

आखिरी मेहमान

लोगों के रवाना हो जाने के बाद राजेश शरबतिया एक बार फिर चुपचाप उसी कमरे की तरफ बढ़ चला। इस बार भी वह दबे कदमों ही वहां तक गया था। उस ने बहुत आहिस्ता से कमरे की सिटकनी खोल दी। इस के बाद वह वापस आ गया।

अजीब बात यह हुई थी कि अपने उस मेहमान का राजेश शरबतिया ने हालचाल भी नहीं पूछा था। शरबतिया लौटा तो देखा कि उस की पत्नी आतिशदान के पास बैठी आग सेंक रही थी। वह उसे ले कर बेडरूम में चला गया। उसका बेडरूम फर्स्ट फ्लोर पर था। वहां पहुंच कर उसने नाइट गाउन पहना और चुपचाप कंबल ओढ़ कर लेट गया।

तकरीबन एक घंटे बाद आखिरी मेहमान अपने कमरे से निकला। उसे यह देख कर बड़ा अजीब लगा कि पूरी कोठी खाली पड़ी थी। कोई भी मेहमान नजर नहीं आ रहा था। उसे राजेश शरबतिया भी कहीं नजर नहीं आया।

यह सारा मंजर उसे बड़ा अजीब लगा। वह कोठी से बाहर आ गया। बाहर तेज हवा चलने से कोहरा तो छंट गया था, लेकिन आसमान पर अब्र होने की वजह से धूप नहीं निकली थी। वह पार्किंग लाट की तरफ बढ़ गया। वहां वह अपनी कार पर सवार हुआ और कार स्टार्ट हो कर तेजी से आगे बढ़ गई। राजेश शरबतिया खिड़की से कार को जाते हुए चुपचाप देख रहा था। उस के चेहरे पर गहरी चिंता की लकीरें उभर आईं थीं।

*** * ***

डॉ. वरुण वीरानी की मौत कत्ल था या हादसा?
क्या डॉ. वीरानी किसी साजिश का शिकार हो गए थे?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...


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