Stree - 13 in Hindi Fiction Stories by सीमा बी. books and stories PDF | स्त्री.... - (भाग-13)

स्त्री.... - (भाग-13)

स्त्री.......(भाग-13)

अगले दिन सब काम निपटा कर डांस एकेडमी में खड़ी थी....कुछ और लड़के लड़कियाँ भी थे, जिनको सिखाया जा रहा था.....मुझे कुछ देर इंतजार करने को कह लड़की ने सामने कुर्सी पर बैठने का इशारा कर दिया......चुस्त टॉप और स्कर्ट पहने वो मुझे साड़ी में देख ऊपर से नीचे आँखों ही आँखों में तोल रही थी, जिसकी रत्तीभर मुझे चिंता नहीं थी..। क्योंकि मेरी नजरे उन लड़कों को भी देख रही थी, जो उस लड़की को आँखो ही आँखो में सिर्फ तौल ही नहीं रहे थे बल्कि और कुछ दिख जाए या फिर उसकी कल्पना में डूबे से दिखाई दिए.... उसको जी भर देखने के बाद 4 आँखो को मैंने अपनी पीठ पर भी महसूस की....और मैं मुस्करा दी। शायद हमारे पास टाइम पास करने को कुछ और था नहीं तो यही सही.....!! कुछ ही देर में एक 30-35 के आस पास के आदमी कहूँ या युवक बाहर निकल कर आए.....पीछे पीछे कुछ लड़के लड़कियाँ भी बाहर आ गए....शायद एक क्लॉस खत्म हो गयी थी। बाहर बैठी लड़की ने हमारी तरफ इशारा करते हुए कहा कि हम इंतजार कर रहे हैं......उन्होंने मुस्करा कर हमारी तरफ देखा और बोले मैं शेखर मित्रा हूँ, मैं वेस्टर्न डांस सिखाता हूँ और एक मैडम आती हैं जो क्लासिकल सीखाती हैं.....आप लोग क्या सीखना चाहेंगे !! कहते हुए वो मेरे चेहरे की पर उनकी नजरे गड़ गयीं, मैं अब थोड़ी नर्वस हो रही थी.....पर मैंने ये जाहिर नहीं होने दिया....सर, मैं जानकी हूँ, मुझे क्लासिकल में भरतनाट्यम आता है, मैं वेस्टर्न सीखना चाहती हूँ। मेरे बाद जो और थे उन्हें भी वेस्टर्न सीखना था...हफ्ते में तीन दिन क्लॉस होगी और तीन दिन प्रैक्टिस होगी, सो जो यहाँ आ कर प्रैक्टिस करना चाहे कर सकता है....बता कर उन्होंने हमें नाम और एड्रेस नोट करवाने को कहा...... सो मैं अपना नाम लिखवा कर अगले दिन का टाइम पता करके जाने को जैसे ही मुड़ी, जानकी आप रूको, ये सर की आवाज थी...यस सर....जानकी मैं देखना चाहता हूँ कि तुमने क्या और कितना सीखा है..। उनकी बात सुन कर मैं रूक गयी और मैंने कुछ स्टेप उनको करके दिखाए। वैरी गुड....बोलते हुए उनकी आँखो में भी अपने लिए प्रशंसा देख ली थी...। मुझे उस दिन वाकई बहुत अच्छी नींद आई।अगले दिन बहुत उत्साह था मन में और सीखने की ललक भी मेरे चेहरे की रौनक को बड़ा रही थी। माँ रिश्ते से मेरी सास भले ही थी, पर वो मुझे खुश देख कर खुशी महसूस करती थीं, बस यही बात मुझे उनके बेहद करीब ले आयी थी....।
शेखर मित्रा मेरे नए गुरू थे, जो हमेशा उत्साह से भरे हुए और पूरे जोश के साथ हमैं सीखाते थे, बहुत मजा आ रहा था मुझे सीखने में.....मेरे पति ने भी मुझ में एक फर्क महसूस किया था शायद, पर कुछ कहा नहीं हमेशा की तरह और मुझे सच में अब कोई फर्क भी नहीं पड़ता था।
जिंदगी अपने ढर्रे पर चल रही थी, मेरे अंदर कुछ बदल रहा था। एक बार फिर मेरा गुरू मुझे आकर्षित कर रहा था। धीरे धीरे मैं उनके व्यक्त्तिव ले इंप्रेस हो रही थी....उनके होठों पर एक छोटी सी स्माइल उनकी विशेषता थी.....शायद मेरी अबूझ प्यास का असर मेरी आँखो में उन्हें दिखा या फिर अपने लिए आकर्षण उन्होंने महसूस किया हो ठीक वैसे ही जैसे मैं अपने लिए उनकी आँखो में देखती थी.......मैं ऐसे ही एक दिन हमेशा की तरह प्रैक्टिस करने गयी तो वहाँ कोई नहीं था, पर शेखर सर थे। उन्होंने बताया कि आज सब लड़के लड़कियों ने क्लॉस पर न आ कर बाहर घूमने का प्रोग्राम बनाया है, तुम मैरिड हो तो उन लोगो ने तुम्हें नही पूछा। चलो आज अकेले ही प्रैक्टिस कर लो.....कोई बात नहीं सर मैं कल आ जाऊँगी। क्या बात है जानकी तुम मुझसे इतना झिझक क्यों रही हो, कह कर उन्होंने म्यूजिक लगा दिया और मेरी तरफ हाथ बड़ा दिया, ज्यादा न सोच कर मैंने हाथ पकड़ लिया।कपल डांस कराने के लिए वो मेरी कमर पर हाथ रख रहे थे, उस दिन मैंने वही महसूस किया जो पहले गुरूजी के छूने से महसूस हुआ था.....वो मुझे अपने करीब ले आए और बोले You are very beautiful Jaanki...कह उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा लिया। कुछ देर को वक्त मानो थम गया था....न जाने कब मेरे दिमाग में आया कि ऐसे किसी को ही मेरा पति होना चाहिए था, दूसरे ही पल पति का भावविहीन चेहरा सामने आ गया और मैं छिटक कर दूर हो गयी......नहीं ये गलत है.....मैंने मुड़ कर ही नहीं देखा, बिना देर किए सीढियाँ उतरती चली गयी। साँसे धौकनीं जैसे चल रही थी, पीछे से शेखर सर ने न जाने क्या कहा क्या नहीं, मुझे सुनाई नहीं दिया और घर आ कर ही दम लिया। मुझे बदहवास देख कर माँ ने पूछा भी कि क्या हुआ? तबियत तो ठीक है ? माअ मैं ठीक हूं, बस अचानक सिरदर्द होने लगा तो आ गयी। ठीक है बेटा, सुमन के आने तक आराम कर ले..।
कहने को आराम कर रही थी पर दिमाग में तो वही सब चल रहा था....गलती सामने वाले की कभी नहीं होती, बस अपनी होती है.....जब गाँव में थी तब भी मेरा अपरिपक्व दिमाग गुरूजी पर आसकित हो गया था, अब तो युवती हूँ, क्यों मैं इतनी कमजोर हो गयी कि सामने वाले की हिम्मत तो बड़ी ही साथ ही उनको बढ़ावा भी दिया !! मैं विवाहिता हूअ, और मैं इस दुनिया में पहली नहीं हूँ जिसका पति उसकी इच्छा का सम्मान न कर रहा हो या उसको संतुष्ट न कर पा रहा हो!! सब जीती हैं न जानकी, तू भी जी लेगी.....पर मन के किसी कोने से आवाज आने लगी पर इसमें दोष जानकी तेरा नहीं है, तेरी किस्मत का है। ये मन इतना चालाक बन जाता है न बस अपने को सही ठहराना चाहता है, अब मैं जानती हूँ कि आकर्षण होना गलत नहीं होता ये तो Opposite sex में होना नार्मल है....अब जानती हूं कि हमारी अपनी संतुष्टि भी उतनी ही जरूरी है, जितनी सामने वाले की यानि अपने पाटर्नर की......जिंदगी में बहुत इम्तेहान लिखवा कर आयी है तू जानकी, बस तुझे कुछ ऐसा नहीं करना जो मर्यादा के बाहर हो खुद को समझाने की एक और कोशिश की.. सुमन दीदी के बोर्ड के एग्जाम्स शुरू होने वाले थे तो वो दिन में हमारे कमरे मैं ही पढा करती और मैं माँ के पास ही रहती......डांस सीखना जाना बंद कर दिया था....सबने पूछा तो बताया कि बस इतना काफी है.....सुनील भैया मेरे लिए किताबें ले आते थे......मैंने कितना सीखा सबसे वो कभी कभार चेक करने के लिए इंग्लिश में बात करने लगते.....वो मुझे बताते रहते कि लोग ज्यादातर क्या पूछते हैं, कैसे जवाब देना चाहिए....एक दिन संडे को वो बैठे बैठे बोले चलो भैया आज सब घूम आते हैं और भाभी के लिए कुछ ड्रैसेस भी खरीद लेते हैं, जब से हमारे घर आयी हैं ,वही सब पहन रही हैं, साड़ी पहने काम करने में भी दिक्कत होती होगी....मेरे पति ने कुछ जवाब नहीं दिया पर माँ ने कहा हाँ ठीक कह रहा है सुनील, चलो कुछ देर के लिए ही सही बाहर चलते हैं....।
उस दिन दो जोड़ी सलवार सूट, सुमन दीदी की तरह जींस जो तब के समय में खुली खुली मोरी हुआ करती थी और 2-3 टॉप भी लिया गया.....सुमन दीदी ने जिद करके मेरे लिए एक नाइट गाउन लिया तो मैंने एक मां के लिए भी नाइट गाउन ले लिया और सुमन दीदी के लिए एक सुंदर सा सूट जिसे वो देख रही थी, पर लेने को नहीं कहा तो मैंने चुपके से उनके लिए ले लिया....। बाहर जाने के बाद खाना घर पर आ कर खाने का किसी का नहीं होता तो बस बाहर ही खा कर हम घर आ गए.....एक चीज और देखी थी मैंने उस दुकान पर वो थी हाथ की कढाई की साडियां, दुप्पटे और चादर। मैंने जब एक साड़ी का रेट पूछा तो बहुत मंहगी थी। अपनी जरूरतों की तरफ से ध्यान हटाने का हल मैंने ढूंढ लिया था। घर आ कर मैंने माँ को वैसी ही साड़ी दिखाते हुए बताया कि ऐसी साड़ी के रेट यहाँ बहुत ज्यादा हैं, मुझे ये कढाई करना आता है.....क्या मैं ऐसी कढाई की चादर, बैग, साड़ी, दुप्पटे कढाई करके अपना काम शुरू कर सकती हूँ?? मेरे पति को गुस्सा आ गया....वो बोले क्यों हमारी कमाई से घर नहीं चल रहा क्या जो अब तुम भी काम करना चाहती हो?
मैं सिर्फ अपने हुनर का इस्तेमाल करना चाहती हूँ माँ, सारा दिन काम ही कितना होता है, उसके बाद का खाली समय का इस्तेमाल हो जाएगा, पहले तो ये सब मैं दीदी के लिए बना कर रखना चाहती हूँ और अपनी देवरानी के लिए भी....पैसे कमाने की बात बाद में आती है....मैंने सीधा उनको जवाब न दे कर अपनी सास से बात की......माँ ने बुरा और कठिन समय देखा हुआ था, उन्होंने भी कपडे सी कर और लिफाफे बना कर घर चलाया हुआ था। शायद इसलिए वो मेरी बात से सहमत हो गयीं......यही एक तरीका था जो मुझे भटकने से रोक सकता था....।।
क्रमश:
स्वरचित
सीमा बी.

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