तांत्रिक और पिशाच - 2
शाम हो गई है। सूर्य पश्चिम की ओर ढल चुका है। पूरे गांव में एक अद्भुत सन्नाटा फैला हुआ है। चारों तरफ से केवल झींगुर की आवाज ही सुनाई दे रहा है। आसमान के कोने में काले बादलों ने डेरा डाला है। दूर कहीं से बादल के गरजने की आवाज सुनाई दे रहा है । शायद यही काल बैसाखी के आने का संकेत है , जोकि चैत्र महीने के शामों को अक्सर होता है।
गांव के प्रधान राजनाथ तिवारी अपने आंगन में बैठकर हुक्का पी रहे थे। अचानक ही बाहर से बारिश गिरने की आवाज सुनाई देने लगा। क्रमशः बारिश की गती बढ़ता ही गया तथा इसी के साथ तेज हवा भी चल रहा था। राजनाथ जी बाहर की ओर देखकर ना जाने क्या सोच रहे थे। शायद प्रधान जी यही सोच रहे थे कि उनके इतने दिन की समस्या के समाधान का कार्य कल से शुरू होगा।
इसी कारण प्रधान जी मन ही मन काफी खुश थे , जोकि उनके चेहरे की हंसी को देखकर ही समझा जा सकता है। राजनाथ जी यही सब सोच ही रहे थे कि अचानक उनके घर के सामने वाले दरवाजे को किसी ने जोर से खटखटाना शुरू कर दिया। राजनाथ जी चौंक गए। जल्दी से उठकर वो दरवाजे के पास गए। दरवाज़े के पास जाकर उन्होंने पूछा ,
" कौन है ? इतनी तेज आँधी - बारिश में क्या काम है? "
दरवाजे की दूसरी तरफ से आवाज आई।
" बाबूसाहब मैं गोपाल, मैंने ही सुबह उस कुएं को तोड़ा था। प्रधान जी मैं कुछ बात करने आया हूं कृपया कर दरवाजे को खोलिए। "
प्रधान जी सोचने लगी कि इतनी बारिश में गोपाल यहां पर क्या कर रहा है? आखिर वह इस वक्त क्या बताना चाहता है? राजनाथ जी के मन में कुछ संदेह होने लगा। उन्होंने उत्तर दिया ,
" हाँ रुको खोलता हूं। "
दरवाजा खोलते ही बारिश की छीटे और ठंडी हवा लेकर गोपाल ने घर के अंदर प्रवेश किया। गोपाल ऊपर से नीचे तक बुरी तरह भीगा हुआ था।
आंगन में आते ही गोपाल कांपते हुए बोलने लगा ,
" बाबू साहब, मेरे साथ सुबह कुएं को तोड़ने विनय गया था न उसका मृत शरीर कुछ देर पहले ही घर के अंदर मिला है। "
यह सुनते ही राजनाथ जी आश्चर्यचकित हो गए। उत्तेजित होकर बोलो ,
" क्या ? क्या बोल रहे हो ? पागल हो गए हो , अभी दोपहर के बाद ही तो तुम दोनों आए थे बताने के लिए कि कुएं के मुंह को खोल दिया है। उसने कहा भी था कि वह कल सुबह काम पर लग जाएगा , फिर अचानक क्या हुआ? मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा? "
गोपाल ने फिर से कांपते आवाज़ में बोलना शुरू किया ,
" हां बाबू साहब , मैं भी पहली बार यह खबर सुनकर चौंक गया था। कुछ देर पहले ही मैं उसके घर देखने गया था। वहां जाकर देखा तो उसकी पत्नी रो रही थी। और प्रधान साहब सबसे आश्चर्य की बात यह है कि उसके पूरे शरीर में खून का एक कतरा भी नहीं था। क्या हुआ है मुझे नहीं पता बाबू साहब मुझे नहीं पता। अब शायद मेरी बारी है। "
राजनाथ जी के माथे पर आप पसीने की बूंद दिखाई देने लगा। उन्होंने गोपाल से पूछा ,
" आखिर तुम ऐसा क्यों कह रहे हो? तुम्हें क्या होगा? वह मर गए इससे तुम्हें क्या ? तुम क्यों मरोगे ? बोलना क्या चाहते हो कहीं सचमुच तुम पागल तो नहीं हो गए। मैं तुम्हारे किसी भी बात को समझ नहीं पा रहा।"
इस प्रश्न के उत्तर में गोपाल आंगन के एक किनारे पर जाकर बैठ गया और फिर डरते हुए बोला ,
" नहीं बाबू साहब , इसका भी कारण है। आज सुबह जब मैंने और विनय ने उस कुएं को खोला फिर उसके बाद हम दोनों अंदर की ओर झांककर देख रहे थे। उसी वक्त हमें कुछ महसूस हुआ। उस वक्त हम दोनों को ऐसा लगा कि कोई हमें अंदर की ओर खींच रहा है। अगर मैं नहीं संभलता तो मैं अंदर ही गिर जाता। मेरा सिर चकरा रहा था। कुछ क्षण के लिए मुझे अपने शरीर पर नियंत्रण नहीं था। किसी तरह हमने उस सीमेंट की परत को फिर से कुएं के ऊपर लगा दिया। इसके बाद ही हमने आकर आपको सबकुछ बता दिया था। इसके बाद हम दोनों अपने अपने घर चले गए। बाबू साहब मुझे ऐसा लगता है कि वह कुआँ अभिशापित है। मुझे नहीं लगता कि वहां पर कोई काम करना सही है। प्रधान जी उस कुएं को खोलकर शायद हमने बहुत बड़ी गलती कर दिया है। इसके बाद मेरी ही बारी है। "
गोपाल के बातों को सुनकर राजनाथ जी चिंतित हो गए। लेकिन इस घटना से राजनाथ जी ज्यादा स्तब्ध नहीं हुए थे। इससे पहले भी उन्होंने कई बार उस कुएं के बारे में बातें सुनी थी। रात होते ही उस कुएं से अद्भुत प्रकार की आवाजें सुनाई देती। हालांकि उन्होंने इन बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था पर आज उन्हें भी थोड़ा डर लगा है। लेकिन राजनाथ जी ने अपने डर को गोपाल के सामने प्रकाशित नहीं किया।
पास ही रखे हुए लकड़ी की कुर्सी पर प्रधान जी बैठ गए। उनके पूरे चेहरे पर चिंता भावना स्पष्ट है।
कांपते हुए आवाज में राजनाथ जी बोले ,
" अरे ! ऐसा बोलने से कैसे चलेगा। मैंने बहुत कुछ सोच रखा है। मेरा केवल एक ही उद्देश्य है कि इस गांव के जल संकट को दूर करना है । यह काम हमें करना ही होगा। अगर तुम ऐसा मानते हो तो मैं किसी ब्राह्मण को बुलाकर वहां पर पूजा करवा लूंगा। तब तो सब कुछ सही हो जाएगा। अगर वहां पर किसी अशुभ शक्ति का दोष है तो पूजा से सब कुछ समाप्त हो जाएगा। लेकिन यह काम बंद नहीं होना चाहिए। गर्मी आने से पहले ही मुझे पानी की समस्या को दूर करना होगा। "
इन बातों को सुनकर आंगन के कोने में बैठे गोपाल ने हां में सिर हिलाया लेकिन उसके चेहरे पर डर की साया साफ दिख रही थी। वह धीरे-धीरे खड़ा हो गया। कब तक बाहर बारिश भी धीमी हो गई थी। काल बैसाखी का बारिश ऐसा ही होता है। एक बार मूसलाधार पानी बरस कर अचानक ही बंद हो जाता है लेकिन इसके फलस्वरूप जो परिवेश बनता है वह शीतल और मनोरम है।
धीरे-धीरे प्रधान जी के घर से निकलकर गोपाल अपने घर की ओर रवाना हो गया। दूर के अंधेरे में वह धीरे-धीरे गायब हो गया। प्रधान जी दरवाजे के पास ही खड़े थे। इस मुहूर्त उनके दिमाग में कई प्रकार की चिंता भावना चल रही है। गोपाल के चले जाते ही राजनाथ जी दरवाजे को बंद करके अपने दूसरे तल्ले के कमरे में चले गए। वहां जाकर कुछ देर चिंता भावना करने के बाद अचानक ही टेबल के सामने रखी कुर्सी को खींचकर बैठ गए।
और इसके बाद कलम लेकर ना जाने क्या लिखते रहे?
उस वक्त रात हो गया। राजनाथ जी ने अपने सेवक हरिहर को बुलाया। राजनाथ जी के घर में कई सेवक हैं लेकिन हरिहर उनमें सबसे पुराना और भरोसेमंद आदमी है। हरिहर के आते ही राजनाथ जी ने उसके हाथ में एक चिट्ठी देकर उसे कुछ निर्देश दिया। हरिहर अपने मालिक की सहमति लेकर वहां से चला गया। इसके बाद राजनाथ जी भी अपने शयनकक्ष की ओर चले
गए ।......
क्रमशः....