तांत्रिक व पिशाच - 5
कल अमावस्या है इसीलिए आसमान में चाँद नहीं दिखाई दे रहा। आसमान के एक कोने में हल्की रोशनी है , शायद वही चाँद है। इस वक्त रात के 2 बज रहे हैं। पुराने जमाने की एक घड़ी जोर से टिक - टिक करके समय को बता रही है।
उस दिन मसाननाथ को राजनाथ जी के घर पहुंचने में शाम हो गई थी। वैसे उन्हें रास्ते में कोई भी चोर या डकैत नहीं मिला। सफर की थकान के कारण उस दिन मसाननाथ खा - पीकर जल्दी ही सो गए थे।
पूरे गांव में एक अद्भुत सन्नाटा है। गांव के सभी लोग इस वक्त गहरी नींद में खोए हुए हैं। मसाननाथ भी निश्चिंत होकर सो रहे थे। लेकिन अचानक ही उनकी नींद एक अद्भुत आवाज की वजह से खुल गई। आवाज़ को सुन मसाननाथ जल्दी से उठकर बैठ गए। नींद से जागते ही उन्हें समझ आया कि यह एक बिल्ली के रोने की आवाज़ है। उनके कमरे से बाहर एक बिल्ली लगातार रोती ही रही थी। इस सुनसान रात में वह आवाज़ सुनने में काफी डरावना लग रहा था। कुछ देर बाद ही वह आवाज अचानक रुक गई। अचानक ही मसाननाथ को महसूस हुआ कि उनके सिर के पास ही जो खिड़की है वहां मानो कोई खड़ा है। खिड़की के उस पार से मानो एकटक कोई उन्हें देख रहा था। मसाननाथ ने यह भी अनुभव किया कि जो कोई भी खिड़की के पास है वो बहुत ही गुस्से में है। मसाननाथ ने धीरे-धीरे अपने सिर को खिड़की की ओर घुमाया लेकिन उन्होंने देखा कि वहां पर कोई भी नहीं है। कोई वहां पर नहीं था लेकिन मसाननाथ ने महसूस किया कि वहां शायद कोई महिला खड़ी थी , क्योंकि पायल के छम - छम जैसी आवाज़ मसाननाथ ने सुनी। जल्दी से बिस्तर को छोड़ खिड़की के पास जाते ही मसाननाथ ने देखा कि एक बिल्ली दौड़ते हुए अंधेरे में गायब हो गई।
मसाननाथ ने कुछ देर सोचा और फिर अपने मन का भ्रम समझकर सोने चले गए। कुछ देर बाद ही उन्हें नींद आ गई।
सुबह - सुबह प्राणायाम करना मसाननाथ की आदत है। इसलिए सुबह जल्दी उठकर अपने अपने प्राणायाम क्रिया को समाप्त कर लिया। इसके बाद मुंह - हाथ धोकर अपने कमरे के कुर्सी पर चाय पीने बैठ गए। राजनाथ जी उस वक्त भी नींद से नहीं जागे थे। इसलिए उनके घर के सेवक ने केवल मसाननाथ के लिए चाय बना दिया था। राजनाथ जी अक्सर थोड़ी देर से ही जागते हैं।
मसाननाथ ने अपने चाय को समाप्त ही किया था कि उसी वक्त उनके कमरे में हरिहर ने प्रवेश किया।
हरिहर को देखते ही मसाननाथ ने उसके और उत्सुकता से देखा और बोले,
" अरे हरिहर ! क्यों काम पूर्ण हुआ? उन्होंने कोई उत्तर दिया ? वैसे तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए , चल कर गए होगे तो इतनी जल्दी तो नहीं लौट पाते। "
हरिहर बोला,
" आपका आदेश पाते ही मैं तुरंत निकल गया था। कुछ दूर जाते ही अचानक से एक आदमी ने मुझसे आकर पूछा कि मैं कहां जा रहा हूं। वह आदमी हमारे ही गांव का था। उसका नाम लालू सरदार है , वह भी बैलगाड़ी चलाता है। असल में अपने मालिक मुखिया साहब के साथ रहने के कारण लोग मुझे भी जानते हैं इसलिए लोग मेरा भी थोड़ा बहुत सम्मान करते हैं। इसके फलस्वरूप ही लालू सरदार ने मुझे पहचान लिया। मैंने उसे बताया कि मैं कहां जा रहा हूं। यह सुनकर वह खुद ही मुझे पहुंचाने के लिए राजी हो गया। उसी के साथ उसके बैलगाड़ी से गया था। कल पूरी रात वह मेरे ही साथ था, अभी - अभी मुझे पहुंचाकर वह अपने घर गया। इसी कारण मैं इतनी जल्दी वहां से लौट आया। "
इतना बोलकर हरिहर ने मसाननाथ की ओर एक चिट्ठी बढ़ा दिया। चिट्ठी को हाथ में लेकर मसाननाथ कुछ देर उसे देखते रहे और फिर हरिहर से बोले,
" वैसे हरिहर क्या तुमने सन्यासी शिवराज बाबा को सब कुछ खुलकर बताया था? "
हरिहर ने जवाब दिया ,
" हाँ बाबाजी , आपने जो चिट्ठी दिया था उसे देकर , मैंने उन्हें पूरी घटना बता दिया। इसके बाद उन्होंने मुझे बाहर बैठने को बोलकर घर के अंदर चले गए। "
लिफाफे को फाड़कर मसाननाथ ने अंदर से चिट्ठी को निकाला। लिफाफे के अंदर से चार - पांच पन्ने की चिट्ठी बाहर आ गई। चिट्ठी को किसी बूढ़े आदमी ने लिखा है यह देखकर ही समझा जा सकता था। चिट्ठी को पढ़ने से पहले उन्होंने सभी पन्ने को उलट पलट कर देख लिया।
अचानक ही हरिहर बोला,
" बाबा जी मुझे बात बतानी है। एक बात मुझे बहुत ही आश्चर्यजनक लगी है। उन्हें जब मैं घटना को बता रहा था तो मुझे ऐसा लगा कि वो इस घटना को जानते हैं। अब और भी आश्चर्य लग रहा है कि इस चिट्ठी को केवल 10 मिनट के अंदर ही उन्होंने घर के अंदर से लाकर मुझे दे दिया। शायद उन्होंने पहले से ही इसे लिख रखा था या उन्हें पता था कि कोई उनके पास मदद मांगने आएगा। आखिर बात क्या है मुझे कुछ भी समझ नहीं आया? "
मसाननाथ थोड़ा मुस्कुराकर बोले ,
" असल में हरिहर उस कुएं को तंत्र क्रिया द्वारा एक बांधा गया था। अगर कोई तांत्रिक किसी स्थान को तंत्र क्रिया द्वारा बांध देता है और बाद में वह अगर खुल जाए तो उस तांत्रिक को यह बात अपने आप पता चल जाता है। "
मसाननाथ की बातें हरिहर के समझ नहीं आई यह उसके चेहरे पर साफ दिख रहा था। जो भी हो अब मसाननाथ ने चिट्ठी की ओर ध्यान दिया। एक ही बार में मसाननाथ ने पूरी चिट्ठी को पढ़ लिया। पांच पन्ने की चिट्ठी को पढ़ने में उन्हें लगभग 15 मिनट समय लगा। चिट्ठी को पूरा पढ़ने के बाद मसाननाथ ने हरिहर से कहा ,
" वैसे सन्यासी शिवराज बाबा को तुम पर ज्यादा भरोसा नहीं हुआ। "
यह सुनते ही हरिहर आश्चर्य से कहा ,
" आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं बाबा जी , मैं समझ नहीं पाया। "
मसाननाथ बोले,
" क्योंकि मैंने उन्हें खुला हुआ चिट्ठी दिया था लेकिन उन्होंने इस चिट्ठी को अच्छी तरह लिफाफे में डालकर उसे गोंद द्वारा चिपकाकर भेजा है। जिससे कोई भी इस चिट्ठी को ना पढ़ सके। इसीलिए मैंने ऐसा कहा। मैं तुम्हें कुछ सामानों के नाम लिख देता हूं। जितनी जल्दी हो सके इन सामानों को लाने की कोशिश करना। तुम्हारे लौटने के बाद इस चिट्ठी में क्या-क्या लिखा हुआ है सब कुछ मैं तुम्हें बताऊंगा। आज रात को हमें बड़ा कार्य करना है। और मैं आशा करता हूं कि इससे ही सभी समस्या का समाधान हो जाएगा। इससे पूरा किशनपुर गांव इस अभिशाप से मुक्त हो जाएगा। एक कागज और कलम लेकर आओ। मैं सब कुछ लिख देता हूं। "
" हाँ बाबाजी, लेकर आता हूं। " बोलते हुए हरिहर चला गया।
ऊपर के कमरे से एक कागज व कलम लाकर हरिहर ने मसाननाथ को दिया। मसाननाथ भी गिनते हुए उस कागज पर ना जाने क्या लिखने लगे। लिखने के बाद उस कागज को हरिहर को देते हुए बोले ,
" यह 9 सामान तुम्हें कहीं से भी जुगाड़ करके लाना है। "
हरिहर बोला ,
" बाबाजी इस गांव में ही सबकुछ मिल जाएगा या नहीं ? "
मसाननाथ ने मुस्कुराते हुए कहा ,
" हाँ, गांव में ही मिल जाएगा लेकिन खोजना होगा। अब जल्दी से तुम इन्हें लाने चले जाओ वरना धूप निकल जाने पर दिक्क़त होगी। "
यह सुनते ही हरिहर कमरे से बाहर चला गया।
इसके बाद मसाननाथ बिस्तर पर जाकर बैठ गए , फिर अपने माथे पर हाथ रखकर गहरी चिंता में खो गए। शायद चिट्ठी में लिखी बातों को सही से मिलाने की कोशिश कर रहे थे। और साथ ही साथ धीमी आवाज़ में कुछ बड़बड़ा भी रहे थे।.....
क्रमशः...