तांत्रिक व पिशाच - 8
आज शाम से ही आसमान काले बादलों से घिरा हुआ है। दूर कहीं से बादल गरजने की आवाज भी सुनाई दे रही है। तापमान में दिन के मुकाबले काफी कम हो गया है।
अचानक ही हांपते हुए हरिहर बोला ,
" आज जो हुआ बाप रे बाप। "
यह सुनकर मसाननाथ बोले,
" इतने में ही थक गए। अभी तो रात में बहुत कुछ होना बाकी है। तब तुम्हारा क्या होगा ? "
हरिहर चेहरा उतर गया। पर मसाननाथ उस तरह कोई ध्यान नहीं दिया।
फिर से मसाननाथ बोले,
" सभी हरड़ को ठीक से कूटकर चूर्ण बनाओ और उसे सरसों के साथ मिला दो। वैसे तुम्हारे लिए मेरे पास कुछ है। "
बोलकर मसाननाथ ने अपने पोटली में हाथ डाला। कुछ देर खोजने के बाद पोटली से उन्होंने एक ताबीज़ को निकाला।
उसे देखकर हरिहर ने पूछा ,
" बाबा जी यह क्या है , आखिर यह मेरे किस काम में आएगा। "
" लो इस ताबीज को अपने गले में पहन लो । यह तुम्हारे बहुत काम आएगा। यह श्री कृष्ण मंत्र से सिद्ध एक ताबीज है। अगर यह तुम्हारे साथ रहा तो कोई भी नकारात्मक शक्ति तुम्हारे पास नहीं आएगा। "
हरिहर ने भी तुरंत उस ताबीज़ को एक धागे में डालकर अपने गले में पहन लिया।
अब फिर हरिहर ने पूछा ,
" बाबा जी कृष्ण मंत्र से सिद्ध मतलब , मैं कुछ समझा नहीं। मुझे तो पता था कि तंत्र साधना में देवी काली मंत्र को सबसे शक्तिशाली कहा जाता है फिर कृष्ण मंत्र कैसे ? "
मसाननाथ बोले,
" तुम्हारा कहना भी सही लेकिन कुछ और भी सही है।
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥
इसे कभी सुना है? "
यह सुन आश्चर्य होकर हरिहर बोला,
" यह क्या मंत्र पढ़ा बाबा जी आपने …"
मसाननाथ हंसते हुए बोले,
" मंत्र नहीं हरिहर यह तो महामंत्र है। श्रीमद्भागवत गीता के 18 वें अध्याय के 66 वें श्लोक में यह उल्लेखित है। जिसे भगवान श्री कृष्ण ने अपने खुद के मुँह से बोला है। जो भी हो तुम्हें यह समझ नहीं आयेगा और मैं बताने लगूंगा तो काफी समय बीत जाएगा। केवल इतना जान जाओ कि भगवान श्री कृष्ण ने उस श्लोक के माध्यम से कहा है कि सर्व धर्म का परित्याग करके तुम उनकी शरण में चले जाओ , श्री कृष्ण तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर देंगे। याद रखना सभी से ऊपर श्री कृष्ण। कुछ समझे? "
हरिहर को कुछ समझ तो नहीं आया लेकिन फिर भी वह बोला ,
" हाँ, हाँ बाबा जी समझ गया। लेकिन क्या बाबा जी आज रात वहां ना जाएं तो नहीं चलेगा कल सुबह भी तो जा सकते हैं? "
" नहीं जो भी करना है हमें आज रात ही करना होगा। आज रात मतलब रात 12 बजकर 55 मिनट से पहले , क्योंकि इसके बाद ही अमावस्या लग जाएगी। इसलिए जो भी करना है इस चतुर्दशी तिथि को करना होगा। अमावस्या के वक्त इन पिशाचों को अपने वश में लाना बहुत ही कठिन है।
तब ना तुम बचोगे , ना मैं और ना ही यह पूरा गांव। "
अब कुछ देर चुप रहने के बाद अचानक ही हरिहर ने पूछा ,
" एक बात पूछना तो मैं भूल ही गया था। हमने शंख क्यों बजाई वहां पर शंख का क्या कार्य था ? मैं जब शंख बजा रहा था तब भोला सरकार की लड़की वैसे छटपटा क्यों रही थी ? क्या इसके पीछे भी कोई विशेष कारण है? "
इसके उत्तर में मसाननाथ बोले,
" प्राचीन काल से ही यह शंख हमारे अशुभ शक्ति के विनाश का प्रतीक रहा है। अगर तुम महाभारत जानते हो तो तुम्हें पता होगा कि युद्ध शुरू होने से पहले जितने भी योद्धा व महा योद्धा थे सभी अपने शंख को बजाते थे। जैसे भगवान श्री कृष्ण अपने पान्चजन्य शंख को बजाते थे। उस शंख को बजाते ही कुरुक्षेत्र के चारों तरफ की अशुभ शक्ति खत्म हो जाती थी। इसी तरह प्रेत - पिशाच भी शंख की आवाज को सहन नहीं कर पाते। जिसके कारण वह पिशाच जो कि भोला सरदार की लड़की के अंदर था वह अपने कार्य को भूल गया। इसके साथ ही मेरे मंत्र की शक्ति से वह पिशाच कमजोर हो गया और भोला सरदार की लड़की के शरीर को छोड़कर चला गया। "
इन सभी बातों को हरिहर ध्यान से सुन रहा था। अब हरिहर ने पूछा ,
" वैसे तांत्रिक बाबा सन्यासी शिवराज बाबा ने जिस चिट्ठी को भेजा था क्या उसके अंत में कुछ और नहीं लिखा था? "
" लिखा था, लेकिन वह सब तुम्हारे जानने के बारे में नहीं है। तंत्र - मंत्र की कुछ महत्वपूर्ण बातों को वहां लिखा गया था जो कि मेरे बहुत ही काम आने वाली है। आज रात हमें उसी की जरूरत पड़ेगी। वैसे हरिहर आज तुम रात को सात्विक भोजन खाना और हमें शुद्ध वस्त्र पहनकर रात में उस कुएं के पास जाना होगा। इन बातों को याद रखना।"
हरिहर ने सिर हिलाकर सहमति जताई। अचानक ही दूर कहीं बिजली गिरने की आवाज आई। बाहर शायद कुछ ही देर में बारिश शुरू होने वाली है।
बिजली गिरने की आवाज सुनकर हरिहर बोला,
" बाबा जी , अगर बारिश शुरू हुई तो हमें और परेशानी होगा। "
" अब चाहे कुछ भी हो लेकिन आज ही हमें वहां जाना होगा। इस गांव को बचाने के लिए अब हम पीछे नहीं हट सकते। तुम राजनाथ जी से अनुमति ले लेना। अब समय ना व्यर्थ करते हुए जल्दी से रात का खाना खा लेते है। कुछ देर विश्राम करने के बाद हमें कुएं की ओर जाना होगा। देरी मत करना। "
इतना बोलकर मसाननाथ खड़े हो गए और अपने कमरे की ओर चले गए।
हरिहर भी दूसरे तल्ले की ओर चल पड़ा शायद वह इसी वक्त अपने मालिक से इस बारे में बातचीत करना चाहता है।......
क्रमशः