तांत्रिक व पिशाच - अंतिम भाग
कुएं में मशाल और सुरंग के पास हरिहर ने मोमबत्ती जला दिया।
अब मसाननाथ ने हरिहर से कहा,
" इधर आओ और हरड़ की चूर्ण और सरसों से जो मिश्रण बनाया था उससे झोले से निकालो। "
यह सुनते ही हरिहर ने तुरंत ही उस मिश्रण को झोले से निकालकर मसाननाथ के हाथ में दे दिया। तांत्रिक मसाननाथ उस मिश्रण से जमीन पर कुछ आकृति बनाने लगे। देख कर ऐसा लग रहा था कि तांत्रिक बाबा कोई रंगोली बना रहे हैं।
पहले उन्होंने उस मिश्रण द्वारा एक गोल वृत्त बनाया और फिर उन्होंने उस वृत्त के अंदर पांच तारा के जैसा कुछ आकृति बनाया। अब उन्होंने अपने झोले से पांच सफेद कौड़ी को निकालकर पांच तारा आकृति के बीच में रख दिया।
हरिहर यह सब बड़े ध्यान से देख रहा था। अब उसने मसाननाथ से पूछा,
" अच्छा तांत्रिक बाबा इन कौड़ी से क्या होगा ? "
इसके उत्तर में मसाननाथ बोले,
" अब मैं नवग्रह मंत्र का पाठ करूंगा। सूर्य मंत्र से शुरू होकर प्रत्येक ग्रह के लिए अलग-अलग मंत्र का पाठ करना होगा। हरिहर तुम जो चार लकड़ी के टुकड़े को लाए हो उससे मुझे दो। "
हरिहर ने अपने बड़े झोले से चार लकड़ी के टुकड़े को निकालकर मसाननाथ को दे दिया। अब
मसाननाथ ने अपने झोले से एक लाल धागे को निकाला। अब उन लकड़ी और धागे से जमीन के ऊपर तांत्रिक बाबा कुछ करने जा रहे थे और उसी वक्त हरिहर ने फिर प्रश्न किया ,
" तांत्रिक बाबा यह क्या कर रहे हैं ? "
मसाननाथ थोड़ा गुस्से में बोले ,
" अभी इतना प्रश्न मत पूछो। अभी समय नहीं है तुम्हारे सभी प्रश्नों का उत्तर मैं बाद में दूंगा। "
इतना बोलकर मसाननाथ अपने काम में लग गए। वृत्त के चारों कोने में उन्होंने चार लड़की को गाड़ दिया और धागों से वृत्त के ऊपर एक - दुसरे से वर्गाकार में बांध दिया। अब मसाननाथ ने अपने आंख को बंद करके नवग्रह मंत्र का पाठ शुरू कर दिया।
मसाननाथ द्वारा मंत्र पाठ शुरू करते ही पूरे कुएं में एक हलचल सी उठने लगी। मानो कुएं के अंदर एक हल्की भूकंप आई है। उसी के साथ वृत्त के अंदर रखे 5 सफेद कौड़ी भी हिलने लगे थे। तांत्रिक मसाननाथ ने फिर भी मंत्र पाठ बंद नहीं किया। हरिहर डरते हुए बार-बार इधर उधर देख रहा था। उसे बार-बार ऐसा लग रहा था कि किसी अदृश्य शक्तियों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया है लेकिन उसे स्पर्श नहीं कर पा रहे।
इसी बीच हरिहर ने देखा कि तांत्रिक मसाननाथ के सामने वृत्त में रखे 5 सफेद कौड़ी में से एक कौड़ी का रंग काला हो रहा है। यह देख कर हरिहर के मन में कई प्रकार के सवाल उठे लेकिन उसने मसाननाथ से कुछ भी नहीं पूछा। वह चुपचाप खड़े होकर मसाननाथ के आंख खोलने का इंतजार करने लगा।
अचानक ही हरिहर को महसूस हुआ कि कुएं के दक्षिण की ओर जो सुरंग है वहां से कोई आवाज आ रही है तथा इसके अलावा उस अंधेरे में कोई परछाई जैसा खड़ा है। नहीं वह खड़ा नहीं है वह परछाई धीरे-धीरे उनके तरफ आगे बढ़ रहा है।
अब मोमबत्ती के पास आते ही उस परछाई की आकृति और बड़ी हो गई। अब उस परछाई ने एक रूप लिया, जिसे देखकर समझ आया कि यह किसी महिला की भयानक आत्मा है। उस महिला का चेहरा बालों से ढका हुआ है , बालों के बीच से केवल दो चमकते आँख ही दिख रहे हैं।
वह भयानक महिला की परछाई जैसे - जैसे आगे आ रही है , उस तरफ की मोमबत्ती भी बुझती गई।
मानो वह परछाई किसी अदृश्य शक्ति द्वारा मोमबत्ती को एक - एक कर बुझा रही थी।
यह सब देखकर हरिहर डर से कांपने लगा और फिर मसाननाथ से बोला,
" तांत्रिक बाबा, वो क्या है ? एक भयानक परछाई इधर आ रही है। मुझे डर लग रहा है बाबा जी। आखिर वह क्या है ? "
मसाननाथ मंत्र पाठ बंद करके हरिहर से बोले,
" तुमसे मैंने पहले ही कहा था , जो भी हो डरना नहीं। डर ही तुम्हारी दुर्बलता है और यह दुर्बलता ही उसकी शक्ति है। "
अब हरिहर ने देखा कि वह भयानक परछाई एक जगह खड़ी हो गई है। सभी मोमबत्ती बुझ गई अब केवल मशाल जल रहा है लेकिन किसी कारणवश मशाल के पास वह भयानक परछाई नहीं आ रही।
उसी वक्त हरिहर ने देखा एक और अस्पष्ट परछाई मशाल के पास खड़ा है। ऐसा लग रहा है कि वह परछाई उन मशालों को उस भयानक महिला की आत्मा से बचा रहा है जिससे वह उन्हें बुझा ना सके।
यह सबकुछ हरिहर के समझ से परे था लेकिन उसने तांत्रिक बाबा को फिर नहीं टोका। उसके मन में कई प्रकार के सवाल दौड़ रहे थे।
अब मसाननाथ की आवाज़ आई ,
" हरिहर, जल्दी से यहाँ आओ और उस काले कौड़ी की तरफ मिट्टी खोदो। "
हरिहर ने जल्दी से जाकर मसाननाथ के बताए स्थान पर मिट्टी खोदने लगा। कुछ देर खोदते ही अंदर से एक छोटा सा घड़ा निकल आया। उस छोटे से घड़े के मुंह को काले कपड़े द्वारा बाहर गया था। उसे जमीन से बाहर निकालकर हरिहर ने मसाननाथ की ओर बढ़ा दिया।
इसी बीच उस भयानक महिला की आकृति ने
गुर्राना शुरू कर दिया लेकिन वो भयानक आकृति किसी भी तरह उनके तरफ आगे नहीं बढ़ पा रही।
किसी अदृश्य शक्ति ने उसे रोक रखा था।
मसाननाथ ने उस छोटे से घड़े को हाथ में लेकर हरिहर को आदेश दिया कि झोले से बाकी लकड़ियों को भी बाहर निकालो। हरिहर ने भी जल्दी से उन लकड़ियों को निकालकर मसाननाथ के सामने रख दिया।
मसाननाथ ने उन लकड़ियों में से चार लकड़ी को लेकर जमीन पर एक वर्ग बना दिया और लकड़ी के वर्ग के बीच में उस छोटे से घड़े को रख दिया।
मसाननाथ के कहने से पहले ही झोले से दियासलाई निकालकर हरिहर ने मसाननाथ को दे दिया।
मसाननाथ दियासलाई से उन लकड़ियों में आग लगाने ही वाले थे कि एक पत्थर का बड़ा सा टुकड़ा उड़ते हुए उस बूढ़े आदमी के सिर पर लगा।
वह बूढ़ा आदमी वहीं गिर पड़ा। मसाननाथ ने देखा कि उस बूढ़े आदमी के सिर से बहुत सारा खून निकल रहा है। यह देखकर मसाननाथ को आने वाले संकट का अनुभव हो गया। उन्होंने जल्दी से अपने झोले के अंदर से तांबे के सिक्के को निकाला और उस सिक्के के एक तरफ हल्दी और दूसरी तरफ सिंदूर लगा दिया। फिर उस ताँबे के सिक्के पर कुछ मंत्र पढ़कर हरिहर को दे दिया।
" हरिहर इस सिक्के को उनके माथे पर लगा कर पकड़े रहना। जब तक मैं ना कहूं तब तक उनके माथे से उस सिक्के को मत हटाना। "
यह सुनकर हरिहर उस सिक्के को लेकर डरते हुए उस बूढ़े आदमी की ओर गया।
इसी बीच वह बूढ़ा आदमी उठकर बैठ गया और पागलों की तरह हँसने लगा। हरिहर को अपने तरफ आता हुआ देख उस बूढ़े आदमी ने कुछ बोलना शुरु कर दिया और हरिहर को मारने के लिए आगे बढ़ाने लगा।
यह देखकर हरिहर डर से वही अपने जगह पर खड़ा हो गया। अब मसाननाथ ने पीछे से कहा,
" हरिहर डरने से नहीं चलेगा। याद रखना कि तुम्हारे साथ स्वयं भगवान श्रीकृष्ण हैं। तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं। "
यह सुनकर हरिहर के अंदर का डर कुछ कम हुआ । उसका पैर किसी अद्भुत मंत्रशक्ति के वजह से अपने आप आगे बढ़ने लगा। दूसरी तरफ हुआ बूढ़ा आदमी हरिहर के ऊपर झपट्टा मारने लगा, उसी वक्त हरिहर ने किसी तरह उसके माथे पर तांबे के सिक्के को चिपका दिया। अब हुआ बूढ़ा आदमी चिल्लाने लगा। देखकर ऐसा लग रहा था कि उसके शरीर में जलन शुरू हो गया है।...
उधर हरिहर उस बूढ़े आदमी को संभाल रहे थे।
इधर मसाननाथ अपने काम में लगे हुए थे। उन्होंने उन लकड़ियों के बीच में रखे छोटे से घड़े पर आग लगा दिया।
उस घड़े पर आग लगाते ही वह बूढ़ा आदमी जिसके अंदर शायद मालती की आत्मा थी , वह नहीं - नहीं चिल्लाने लगा। यह देखकर मसाननाथ ने उस आग में चार-पांच सूखा मिर्च डाल दिया। अब मसाननाथ ने उस आग में घी डाल दिया।
वह बूढ़ा आदमी अब और तेज बड़बड़ाते हुए नहीं - नहीं करने लगा , मानो वह उस आग को बुझाने के लिए कह रहा है।
इसी बीच कुएं में कंपन होने लगा। और अचानक ही कुएं के दक्षिण तरफ जिधर सुरंग बना हुआ था वहां से कुछ टूटने की आवाज आई तथा पानी की आवाज़ भी सुनाई देने लगी।
मसाननाथ जल्दी से उस घड़े को जलाने का कार्य करते रहे। फिर से थोड़ा सा घी आग में डालकर मंत्र पढ़ते लगे।
अब वह पागल बूढ़ा आदमी बोलने लगा,
" बाबा आप मेरी चिंता मत कीजिए और जल्दी से अपना काम समाप्त करके यहाँ से भाग जाइए। "
फिर से आवाज़ हरिहर और मसाननाथ के कानों में आई। उन्होंने अनुभव किया कि कुछ तेज गति से उनके तरफ आ रहा है। आवाज को सुनकर ऐसा लग रहा था कि पानी बहने की आवाज़ है।
हरिहर से मसाननाथ बोले,
" शायद लग रहा है मालती ने कुएं के पानी के स्रोत को जहां से बंद किया था वह जगह टूट गई है। अब जलाशय का पानी फिर कुएं में आ रहा है।
अगर हम यहां से नहीं निकल पाए तो डूब कर मर जाएंगे। चलो जल्दी से ऊपर.."
यह सुन हरिहर बोला,
" लेकिन इस आदमी को क्या हम यहीं पर छोड़ जाए ? "
इसका उत्तर मसाननाथ ने नहीं बल्कि उस पागल बूढ़े आदमी ने दिया,
" तुम दोनों जाओ , वह तुम्हें नहीं पकड़ पाएगी। वह मेरे अंदर है। "
" चलो हरिहर देरी मत करो , जिसके भाग्य में जो लिखा है वह होगा। तुम चलो। "
यह सुनकर हरिहर ने उस बूढ़े आदमी को छोड़ दिया और वह बूढ़ा आदमी अपने में ही बड़बड़ करता रहा।
" तुझे मैं अपने अंदर से नहीं जाने दूंगा। तुम मेरे अंदर से बाहर नहीं निकल पाओगी। तुम्हें नहीं जाने दूंगा।..... "
शायद वह पागल बूढ़ा आदमी अपने अंदर ही मालती के आत्मा को रोकने की कोशिश कर रहा था। जिससे वह आत्मा हरिहर और मसाननाथ को ना रोक सके। उस बूढ़ा आदमी ने अपनी पूरी शक्ति द्वारा मालती के आत्मा को अपने अंदर ही रोक लिया।
फिर वह बूढ़ा आदमी बोला,
" आप दोनों जाइए। आपको मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है इसीलिए मेरे जिंदा रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता । मैं अपनी जान देकर भी आपके इस कार्य को पूरा करूंगा। "
अब मसाननाथ और हरिहर कुएं के सीढ़ी को पकड़कर धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने लगे। उस घड़े को जलाने के लिए जो आग जलाई गई थी वह लगभग बुझने ही वाली थी तथा वह अब पूरी तरह राख में बदल गया था।
ऊपर चढ़ते वक्त हरिहर ने मसाननाथ से पूछा,
" तांत्रिक बाबा मालती की आत्मा तो अब भी सक्रिय है , फिर उस घड़े को जलाकर क्या फायदा हुआ? उस घड़े के अंदर क्या था तांत्रिक बाबा। "
तांत्रिक मसाननाथ बोले,
" उस घड़े के अंदर ही मालती की प्राण प्रतिष्ठा किया गया था। घड़ा तो जला दिया लेकिन अभी अस्थि का विसर्जन नहीं हुआ। उसका विसर्जन ना होने तक मालती की आत्मा को शांति नहीं मिलेगा। यह कार्य कुएं के अंदर बहकर आता हुआ पानी ही पूर्ण करेगा। "
अचानक ही कुएं के अंदर पानी भरने लगा। इसी के साथ कुएं के नीचे से कई प्रकार की भयानक चिल्लाने की आवाज भी सुनाई देने लगी।
यह सुनकर मसाननाथ बोले,
" अब कार्य पूर्ण हुआ। उस घड़े को जलाने से पिशाच की शक्ति कम हो गई थी। पानी के अंदर राख विसर्जित होते ही मालती की आत्मा के साथ बलि दिए गए सभी लोगों की आत्मा को भी शांति मिल गया। "
यह सब बातें करते हुए किसी तरह वह दोनों कुएं से बाहर निकल आए।
....
अगले दिन सुबह मसाननाथ अपने सामान को समेटकर राजनाथ जी के घर से जाने की तैयारी करने लगे। अंतिम बार के लिए वो राजनाथ जी से मिलने के लिए ऊपर गए हैं। राजनाथ जी के कमरे में उस वक्त हरिहर चाय देने गया था।
हरिहर ने मसाननाथ को देखकर कहा,
" तांत्रिक बाबा मेरे मन में अब भी दो प्रश्न है। अगर आप इसका उत्तर दे देते तो मेरे लिए अच्छा रहता। "
मसाननाथ हंसते हुए बोले,
" हां पूछो , फिर ना जाने कब यहां आऊं ? "
हरिहर ने पूछा ,
" तांत्रिक बाबा , कल उस कुएं के अंदर मालती की भयानक परछाई के अलावा भी एक आकृति परछाई हमने देखा था। वो कौन थे? "
मसाननाथ बोले ,
" वह जमींदार शेर सिंह की आत्मा थी। हमारी सहायता के लिए सन्यासी शिवराज बाबा ने ही उसे अपने तंत्र शक्ति द्वारा हमारे पास भेजा था। क्योंकि उनकी आत्मा को अब भी मुक्ति नहीं मिली है। हमारे हिंदू शास्त्र में आत्महत्या को महापाप माना गया है। जो भी आत्महत्या करते हैं उनकी आत्मा को कभी भी मुक्ति नहीं मिलती। मैंने शेर सिंह के आत्मा की उपस्थिति को घर से निकलते ही अनुभव कर लिया था। मुझे ऐसा लगा था कि कोई हमारे पीछे - पीछे चालता हुआ आ रहा है। शेर सिंह की आत्मा ने ही हमारे इस पूरे कार्य को करने में सहायता की है वरना इस कार्य को संपूर्ण करना कभी भी संभव नहीं था। अगर वह सभी मशाल बुझ जाते और कुएं में अंधेरा फैल जाता तो हमारी मृत्यु वहीं पर आ जाती। उन्होंने किसी भी तरह से उस मशाल को बुझने नहीं दिया। उस बूढ़े आदमी के अंदर मालती की आत्मा ने प्रवेश तो कर लिया लेकिन जमींदार शेर सिंह की आत्मा ने उसे उसके अंदर ही रोक दिया। अगर मालती की आत्मा उस बूढ़े आदमी के शरीर से निकल जाती व हमारे ऊपर आक्रमण कर देती तो हम वह कार्य पूरा नहीं कर पाते। "
यह सुनकर हरिहर आश्चर्यचकित हो गया और बोला ,
" जो भी हो इस बार उनकी कृपा से बच गया। उस बूढ़े आदमी को आप किसी कारण की वजह से ही उस कुएं अंदर ले गए थे , क्या आप जानते थे कि ऐसा कुछ होने वाला है? "
यह सुनकर मसाननाथ कुछ देर चुपचाप खड़े रहे और फिर बोले,
" अगर मैं कहूं कि मैं कुछ भी नहीं जानता था तो यह गलत होगा। मुझे पहले से ही आभास हो गया था कि कुछ ना कुछ होने वाला है लेकिन ऐसा कुछ होगा इस बारे में मैंने सोचा भी नहीं था। मुझे ऐसा लगा था कि किसी को अपने प्राण की आहुति देना पड़ेगा। जब उस बूढ़े आदमी ने कहा कि वह अपनी जान देकर भी हमारी सहायता करेगा इसीलिए मैं उसे कुएं के अंदर लेकर गया। मैं जानता था कि मालती की आत्मा इतनी आसानी से यह कार्य पूरा करने नहीं देगी। "
मसाननाथ के मुंह से यह सब घटना राजनाथ जी आश्चर्य होकर सुन रहे थे। मसाननाथ की बात समाप्त होते ही राजनाथ जी ने प्रणाम करके बोला,
" मसाननाथ जी आपको कोटि - कोटि प्रणाम। आपकी वजह से कई लोगों की जान बच गई। आपका ये उपकार में कभी भी नहीं भूलूंगा। "
मसाननाथ बोले,
" अरे ऐसा कुछ नहीं, यह तो मेरा कर्तव्य था। यही तो मेरा कार्य है लोगों को उनकी समस्या से छुटकारा दिलाकर मुझे खुशी मिलती है। और अगर हरिहर मेरे साथ नहीं होता तो यह कार्य शायद अब भी पूर्ण नहीं होता। "
तांत्रिक बाबा के मुंह से अपनी प्रशंसा सुनकर हरिहर का चेहरे खिल उठा। हरिहर बहुत ही खुश हुआ है यह उसके चेहरे की हंसी को देखकर समझा जा सकता था।
यही सब बात करते हुए वह सभी नीचे आ गए।
नीचे आने के बाद राजनाथ जी बोले,
" यहां आने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। बाबा जी आपको दक्षिणा कितना दूं ? "
मसाननाथ बोले,
" मुझे अपने लिए तो कुछ नहीं चाहिए। मैं यहां से सीधा तारापीठ जाऊंगा। अमावस्या का शुरुआत हो गया है इसीलिए देवी के नाम की एक जप करना होगा। अगर आप मेरे पूजा के लिए कोई दक्षिणा देंगे तो आपकी जितनी मर्जी आप मुझे दे सकते हैं। "
" आप कुछ मिनट रुकिए मैं लेकर आता हूं। "
यह बोलकर प्रधान जी अपने ऊपर वाले कमरे में फिर चले गए।
अब हरिहर बोला,
" तांत्रिक बाबा आपसे एक अनुरोध करुं। इस बार तो मैं बच गया इसीलिए मेरे नाम की भी अगर एक पूजा देवी तारा के सामने दे देते। आप तारापीठ जा रहे हैं मेरी दक्षिणा भी आप मालिक से ले लीजिए। "
मसाननाथ हंसते हुए बोले,
" अरे उसकी कोई जरूरत नहीं मैं तुम्हारे नाम की पूजा दे दूंगा। तुम चिंता मत करो। "
इसी बीच राजनाथ जी दक्षिणा लेकर नीचे आ गए।दक्षिणा को तांत्रिक मसाननाथ के हाथ देकर, उन्होंने पैर छूकर प्रणाम किया। उनको देखकर हरिहर ने भी पैर छूकर प्रणाम किया।
तांत्रिक मसाननाथ ने उनको बहुत सारा आशीर्वाद देकर वहां से अपनी यात्रा को आगे बढ़ाया।
हरिहर पीछे से बोलता रहा ,
" तांत्रिक बाबा फिर आइएगा और मेरे नाम की पूजा अवश्य दे दीजिएगा। "
मसाननाथ आँगन से बाहर की ओर जाते हुए बोले ,
" हाँ तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं , मैं पूजा दे दूंगा। "
समाप्त....