Tulsi ki patti in Hindi Short Stories by Teena Sharma books and stories PDF | तुलसी की पत्ती

तुलसी की पत्ती

हमेशा याद रहेगा वो एक कप चाय का प्याला, बहुत स्पेशल जो था। होता भी क्यूं ना? किसी के प्यार की मिठास जो थी इसमें।
जिंदगी की भागमभाग में न जाने कहां खो गई वो चाय की चुस्की.. वो स्वाद और वो मिट्टी का प्याला...।
जो हर सुबह अन्नपूर्णा देवी के नाम के बाद ही गले में उतारी जाती थी। यह स्वाद अब मेरी जीभ को फिर कभी नसीब नहीं होगा। यह भी चला गया उसी के साथ, जो अपनी मखमली आवाज और नरम हथेलियों के साथ मेरे हाथों में पकड़ाया जाता था...।
मलाल तो इस बात का रहेगा, एक आखिरी बार उसके गांव जाकर वही पुरानी यादें न जी सकी। जो इसी एक कप चाय के प्याले के साथ में शुरु हुआ करती थी।
अभी कानों में गूंज रहे हैं ये शब्द....
"ऐ टिनकी दिन चढ गया, दादो बा ने चाय रख दी हैं"
काश! मुझे फिर से इसी प्यारी आवाज से वो नींद से जगा दें, और प्यार से मुझे एक कप चाय की वो ही मिट्टी वाली प्याली हाथ में देकर कहे, पहले अन्नपूर्णा को पिलाओ, फ़िर तुम पीना, लेकिन अब ऐसा न होगा।
आज जब मेरे हाथ में वासु ने चाय का प्याला पकड़ाया तो उसकी महक ने मुझे वो ही दिन याद दिला दिया और स्वाद भी तो लगभग वहीं था, भला वो पल क्यों न याद आते?
मुझे लगता है शायद तुम्हें चाय पसंद नहीं आई.....? शायद चीनी कम है....।
वासु ने मुझसे यह सवाल करके मुझे पुरानी यादों से खींच कर अपनी ओर लौटाया....। नहीं ....नहीं...। चाय तो एकदम फर्स्ट क्लास हैं।
मैंने इस तरह अपनी उपस्थिति उन्हीं की तरफ होने का एहसास कराया।
असल तो मैं सचमुच में तुलसी की पत्ती वाली चाय में खो गई थी। वही पुरानी महक जरा स्वाद भी तो चखूं....काफी हद तक वही हैं।
कुछ दिन पहले ही मुझे खबर मिली कि ‘नानी‘ अब नहीं रही। इस खबर ने मुझे वाकई में गहरा दुःख पहुंचाया। अब ये कहने वाला कोई नहीं, ‘ऐ टिनकी दिन चढ गया, दादो बा ने चाय रख दी हैं.....।
गर्मी की छुटिृटयों में अकसर मैं अपने नाना-नानी के गांव जयसिंहपुरा जाया करती थी।
यह गांव म.प्र. के नीमच जिले में पड़ता है। बहुत ही खूबसूरत गांव है ये। बचपन से किशोरीवस्था तक के जीवन काल के दौरान जब भी मुझे यहां आने का मौका मिला तब तक एक ही परंपरा चली, नानाजी मिटृटी के चूल्हे या कभी-कभार पीतल के स्टोव पर चाय बनाते।
नानी ,मैं और मामाजी चाय छलने का इंतजार करते। नानाजी चाय को खूब उबालते और जब चाय कड़क हो जाती तब हमें कप में भरकर देते।
लेकिन इस चाय के प्याले का स्वाद उस वक्त और बढ जाता जब नानी इसमें तुलसी की पत्तियां डाल देती।
आज जब वासु ने मुझे चाय का प्याला दिया तो यही महक और स्वाद इस प्याले में था। जिसने मुझे इस प्यारी याद को फिर से ताजा करा दिया।
नानी तो नहीं रही, मगर उनकी तुलसी की पत्ती वाली चाय का स्वाद अब भी मेरी जीभ पर चढ़ा हुआ है...।
ओह! नानी.....।


टीना शर्मा 'माधवी'
पत्रकार/ कहानीकार
kahanikakona@gmail.com

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Teena Sharma

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Riya Tiwari 8 months ago

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