गायत्री शर्मा गुँजन

गायत्री शर्मा गुँजन Matrubharti Verified

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-गायत्री शर्मा गुँजन

रावण प्रवृति के मानुष

पद और धन के लोभ में मद में चूर चूर वे रहते हैं
नारी को नारी ना समझे क्रूर क्रूर बन छलते हैं
धर्म की आड़ में नीच अधम निर्णायक पुरुष हो जाएं तो
नारी के अपमान अग्नि में खाक खाक हो जाते हैं ।

धर्म कर्म परिवार सामाजिक रीति रिवाजें हमसे हैं
लंबी उम्र को करवा , वट पत्नी से कराते पूजन हैं
पत्नी पीड़ित पुरुष कुछेक भरी सभा में वक्ता बन
खिल्ली का खुद पात्र बने तो हमे गंवारन कहते हैं।

दुशासन की दुष्ट प्रवृति रावण का अभिमान घटा
मर्यादा के प्रवर्तक श्री राम का जग में मान बढ़ा
कंस बहन को बहन ना समझा लाचारी पर घात किए
पलट के देखो साक्ष्य पुराने दुष्टों का क्या हाल हुआ।
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मां के लाड़ले

बेटियाँ पापा की परी होंगी बेशक
मां के लाडले भी कमतर नहीं हैं
बेटियां पराई होती हैं तो कोई गम ना करे
बेटे भी घर रहने को वरदान ना पाते हैं
जरूरतें ,जिम्मेदारियां इस कदर हावी हैं उन पर
नई गर्लफ्रेंड बनाने को टाइम नहीं है
वालिदैन की दवाई बच्चो की जरूरत
बीवी की जिम्मेदारी काम बहुत है
खुद के लिए फुरसत ही नहीं किंतु
कोल्हू के बैल से वे खटते बहुत हैं
फिर भी कहते हैं लोग निकम्मे निठल्ले
और आवारा होते हैं लड़के मगर
अपने दुख में रोना उन्हे आता नहीं है

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बढा लिए कदम अब रूक ना पाएँगे
जो मार्ग हो कठिन ठहर ना पाएँगे
गर हौसला बुलंद हम बढते जाएँगे
कश्ती क्यों ङूबे किनारा जब मिला
गर मान लेते हार ना खुद पे होता नाज

-गायत्री शर्मा गुँजन

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मेरी राहें कठिन हों तो उन्हें आसान मत करना
फिरूं अभिमान में मगरूर मेरी संभाल मत करना
मुझे ठोकर से चलना है ना फूलों सा हो जीवन ये
सदा सन्मार्ग दिखलाकर मेरी भक्ति प्रबल करना।।

मुझे कुछ सीख लेना है जिज्ञासु बन के रहना है
ना हो अभिमान जीवन में मुझे अज्ञात रहना है
मेरे कर्मों के पतरे में नियति का लेख क्या जानूं
मैं जानूं एक ईश्वर को मुझे खुद से ही मिलना है

खिले मुस्कान अधरों पर दुखों का पात गिर जाए
मेरे हिस्से में हो पतझड़ या जीवन में वसंत आए
घिरे बदरी घनी काली घिरे तूफान जीवन में
फिरूं बेफिक्र मलंग होकर उमंग ए बहार आ जाए।।

अगर दुख की बयारें हों तो पुरवाई सुखों की हो
मिलेगा जन्म दोबारा ना रुसवाई जहां में हो
ये जीवन है तो पतझड़ भी खिलेंगे पुष्प दोबारा
हमें हर हाल में जीना सुखद अंतिम विदाई हो।।

-गायत्री शर्मा गुँजन

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अंतस खोज निरंतर हो
मन हो प्रभु में लीन
आंख मूंदकर ध्यान धरो
कृष्ण में हो तल्लीन

-गायत्री शर्मा गुँजन

खामोशी से छू लेने दो इन नाजुक फूलों को
हर बार अभिव्यक्त करूं यह जरूरी तो नहीं

सरोजनी नायडू जन्मदिवस विशेषांक साझा काव्य संग्रह ( नारी नर की खान )