स्त्री.... - Novels
by सीमा बी.
in
Hindi Fiction Stories
स्त्री एक ऐसी खूबूसरत औरत की कहानी है जिसका जीवन संघर्ष से भरा हुआ था। जिसने हर चुनौती से लड़ते हुए अपने आत्मसम्मान को बचाए रखा और अपने आप को समाज में स्थापित कर ये दिखा दिया कि एक औरत चाहे तो क्या नहीं कर सकती? बस यही है कहानी की नायिका जानकी की कहानी उसकी जबानी.....
स्त्री......
मैं जानकी एक बहुत ही साधारण परिवार में असाधारण खूबसूरती लिए पैदा हुई थी। पिताजी एक सरकारी कर्मचारी थे और माँ गृहिणी। हम लोग तीन बहन भाई थे और मैं सबसे बड़ी। मुझे पढ़ना बहुत अच्छा लगता था पर हमारे यहाँ लड़कियों को ज्यादा पढ़ाया लिखाया नहीं जाता था आज से लगभग 30 साल पहले। वैसे तो हम तीनों ही होशियार थे, बहुत मुश्किल से पिताजी ने 8 कक्षा तक पढने दिया क्योंकि आगे पढने के लिए लड़को के साथ सहशिक्षा स्कूल जो एकमात्र सरकारी स्कूल था जाना पढता.....इसलिए गाँव में लड़कियों को पढने के सपने को आँखों में ही दफनाना पड़ता..।
स्त्री एक ऐसी खूबूसरत औरत की कहानी है जिसका जीवन संघर्ष से भरा हुआ था। जिसने हर चुनौती से लड़ते हुए अपने आत्मसम्मान को बचाए रखा और अपने आप को समाज में स्थापित कर ये दिखा दिया ...Read Moreएक औरत चाहे तो क्या नहीं कर सकती? बस यही है कहानी की नायिका जानकी की कहानी उसकी जबानी.....स्त्री.........मैं जानकी एक बहुत ही साधारण परिवार में असाधारण खूबसूरती लिए पैदा हुई थी। पिताजी एक सरकारी कर्मचारी थे और माँ गृहिणी। हम लोग तीन बहन भाई थे और मैं सबसे बड़ी। मुझे पढ़ना बहुत अच्छा लगता था पर हमारे यहाँ लड़कियों को ज्यादा पढ़ाया
स्त्री.........(भाग-2)हमारी कक्षाएँ बहुत अच्छी चल रही थी। इस बार रामलीला में मुझे सीता नहीं बनाया गया। मुझे बहुत बुरा लग रहा था। फिर माँ ने बताया कि अब मैं सयानी हो गयी हूँ, इसीलिए पिताजी ने ही मना किया ...Read Moreलड़कियाँ ही सीता बनती हैं, माहवारी शुरू होना मतलब स्त्री की श्रेणी में मैं आ गयी हूँ, माँ ने मुझे समझाते हुए कहा.........मेरे मन में बहुत सवाल थे पर माँ के गुस्से को भी मैं जानती थी फिर भी हिम्मत करके बोल ही दिया की माँ सीता माता भी तो स्त्री ही थीं......माँ ने कहा," हाँ मुझे पता है, पर
स्त्री.......(भाग-3)बारात दूर से आने वाली थी तो 2-3 दिन रुकने का इंतजाम किया गया था.... 10-15 लोगो की बारात थी और बाकी हमारे गाँव के लोग और रिश्तेदार....शादी हँसी खुशी निपट गयी...पिताजी ने बहुत कहा कि विदाई एक दिन ...Read Moreकर की जाए पर दूल्हे ने बहुत काम है, कह कर अगले दिन ही चलने की ठान ली....पर मेरी सास ने कहा कि विदाई में दुल्हन का भाई साथ जाता है और फिर अपनी बहन को पग फेरे के लिए साथ ले आता है, पर हम बहुत दूर रहते हैं तो परेशानी होगी ...ये सोच कर राजन हमारे साथ गाँव
स्त्री.......(भाग-4)जब बहुत देर हो गई बैठे हुए तो मैं हाथ मुँह धोने के लिए उठ गयी.....मन तो कर रहा था कि नहा लूँ, पर समझ नहीं आ रहा था कि ऐसे नहाने जाऊँ या नहीं? काफी सोचने के बाद ...Read Moreसंदूक से कपड़े निकाले और नहाने चली गयी।नहाने के लिए गुसलखाने में पानी का ड्रम भरा रखा था। ड्रम देख कर याद आया कि ननद ने बातो ही बातों में बताया था कि यहाँ पानी की किल्लत बहुत है, तो सब संभल कर इस्तेमाल करते हैं.....मैंने वहीं पास रखी बाल्टी में पानी लिया और कुछ देर में नहा कर निकली......जैसे
स्त्री.....(भाग-5)धीरे धीरे मैं अपनी सास के निर्देशों का पालन करते हुए घर के सभी उनकी तरहसे करना सीख रही थी.....वो जैसे कहती मैं वैसे बिना कुछ कहे और पूछे करती जाती, इससे वो बहुत खुश रहती थीं और उनके ...Read Moreरहने से मुझे भी खुशी होती...। मेरी ननद और देवर का व्यवहार मेरे साथ बहुत अच्छा था। सच कहूँ तो दीदी मेरी सहेली बन गयी थी......मैं पढाई में बहुत मेहनत कर रही थी। समय रेत की तरह हाथ से फिसलता सा महसूस हो रहा था। दिन भर घर के काम और पढाई में ही उलझी रहती......बस पति से एक दूरी
स्त्री.......(भाग-6) परिणाम देख कर मेरे पति ने मुझे बधाई दी और आगे भी मन लगा कर पढने को कह, मेरी तरफ पीठ करके सो गए.....कभी कभी मुझे ऐसा लगता कि वो सोए नहीं है, बस सोने का नाटक करते ...Read Moreपर मैं हिम्मत करके उनसे कभी कह नहीं पायी कि आप जाग रहे हो तो मुझसे बातें कीजिए !! उनका गंभीर स्वभाव मुझे उनसे बात करने से हमेशा रोकता रहा.......पिछले काफी दिनों से सुजाता दीदी की बातें दिल और दिमाग में हलचल पैदा कर रही थीं। उनका कहना कि प्यार में ऐसा होता ही है, सोच कर उनके शरीर के निशान
स्त्री.....(भाग-7)रेलगाड़ी कहने में जो मुझे खुशी होती थी वो ट्रेन कहने में नहीं...पर फिर भी समय के साथ बदलाव जरूरी है, ये मैंने अपने पति के मुँह से कई बार अपनी माँ को कहते सुना है, पर हर बार ...Read Moreलगता कि ये मेरे लिए ही कहा जा रहा होता था...।गाड़ी चलने का समय हो गया था, सुनील भैया ने एक बार फिर मुझे समझाते हुए एक सांस में कई हिदायतें दे ड़ाली। घर से चली थी तो मेरी सास ने कुछ रूपए दिए थे ,घर के लिए कुछ फल और मिठाई ले कर जाने के लिए और कुछ खर्च
स्त्री......(भाग-8)पिताजी से बात करते करते कुछ देर पहले जो थकान लग रही थी वो बहुत दूर भाग गयी थी......शायद पिताजी भी अपनी पुरानी जानकी की कमी महसूस कर रहे होंगे तभी तो अब वो चमक उनकी आँखों में देख ...Read Moreथी, जिसकी जगह कुछ देर पहले शायद असमंजस के भाव थे......शायद भी इसलिए कह रही हूँ क्योंकि ये उन्होंने नहीं कहा था, बस मैंने अपनी समझानुसार सोच लिया था। ताँगे वाले काका भी हमारी बातें बड़ी ध्यान से सुन रहे थे।तभी बीच बीच में पिताजी की हाँ में हाँ मिला रहे थे, बस यूँ ही बातें करते करते घर पहुँच
स्त्री......(भाग-9)अगले दिन से माँ के बहुत मना करने के बाद भी मैं कपड़े धोने बैठ गयी.....ससुराल में काम करते रहने से यहाँ खाली बैठा नहीं जा रहा था। मैंने माँ को कहा कि मैं सब काम देख लूँगी, तुम ...Read Moreकरो.....पर माँ को चैन कहाँ। मैंने काम नहीं करने दिया तो वो साड़ी ले कर बैठ गयी हाथ से काढने के लिए.....। माँ ने ये हुनर मुझे भी सीखा कर भेजा था और मेरे दहेज में माँ और मेरे हाथ की कढाई की साडियाँ थी, जिसमें एक साड़ी सास की भी थी.....हमारे गाँव में खाली समय में यही काम बहुत
स्त्री......(भाग-10)उस दिन सुमन दीदी को बहुत बार आराम करने को कहने के बाद भी वो मानी नहीं, "भाभी तुम जा कर आराम करो, कल से सब तुम्हें ही तो देखना है"! जो सामान मेरी माँ ने दिया था वो ...Read Moreसास को दिखा ऊपर चली गयी, माँ ने आते हुए यही तो समझाया था कि जो यहाँ से लेकर जा रही है, सासू माँ को दिखाना और उनके पास ही रख देना। अपने कमरे में आयी तो कमरे में सब सामान फैला था, शायद सुमन दीदी को ऊपर आने का भी समय नहीं मिला होगा, सब सामान ठीक किया और
स्त्री.......(भाग-11)उस रात मैं ठीक से सो नहीं पायी। अपने पति से कही बातों पर मुझे अफसोस हो रहा था कि अगर वो मुझसे बात ही नहीं करना चाहते तो मैं क्यों मरी जाती हूँ। मैंने बड़े बेमन से घर ...Read Moreसब काम निपटाए। माँ ने पूछा भी एक दो बार की तबियत खराब है क्या? मेरी तरफ से कोई जवाब न सुन उन्होंने दोबारा टोका, तेरा ध्यान कहाँ है बहु? तबियत ठीक नहीं है तो जा आराम कर ले.....नहीं माँ बस थोड़ा सिर में दर्द है!! माँ तेल उठा लाई और मेरे सर पर तेल लगाने लगी.....मैंने मना भी किया
स्त्री........(भाग-12)साड़ी ठीक करके मैंने अपने आप को शीशे में निहारा.....और मन फिर अभिमान से भर गया.....क्या कमी है मुझ में !! तब तक पतिदेव कमरे में आ गए...मैंने उन्हें शीशे में ही देख लिया था, कभी मैंने उन्हें यूँ ...Read Moreसाथ भले ही पीछे खडे़ थे, देखा नहीं था.......दिल में आया कि मुझसे दिखने में कमतर ही दिखते हैं....वो क्या कहते हैं हाँ याद आया मुझसे उन्नीस ही हैं फिर भी बस पुरूष होने का कितना अभिमान है....पता नहीॆ क्यों ये ख्याल मेरे मन में इस पल आया कि उन्हें अभिमान ही है शायद पढाई का या फिर पिता के
स्त्री.......(भाग-13)अगले दिन सब काम निपटा कर डांस एकेडमी में खड़ी थी....कुछ और लड़के लड़कियाँ भी थे, जिनको सिखाया जा रहा था.....मुझे कुछ देर इंतजार करने को कह लड़की ने सामने कुर्सी पर बैठने का इशारा कर दिया......चुस्त टॉप और ...Read Moreपहने वो मुझे साड़ी में देख ऊपर से नीचे आँखों ही आँखों में तोल रही थी, जिसकी रत्तीभर मुझे चिंता नहीं थी..। क्योंकि मेरी नजरे उन लड़कों को भी देख रही थी, जो उस लड़की को आँखो ही आँखो में सिर्फ तौल ही नहीं रहे थे बल्कि और कुछ दिख जाए या फिर उसकी कल्पना में डूबे से दिखाई दिए....
स्त्री.......(भाग-14)मेरी सास की सहमति के बाद मेरे पति ने विरोध करना ठीक नहीं समझा.... सुनील भैया हमेशा से ही मेरे साथ खड़े रहे हैं, उस दिन भी उन्होंने अपने भाई साहब को मना ही लिया क्योंकि वो माँ के ...Read Moreचुप तो रहे, पर उनकी आँखो में गुस्सा सबको साफ दिखायी दे रहा था। अगले ही दिन माँ के साथ जा कर एक साड़ी और एक डबल बेड की चादर खरीद ली....उनको सब पता था कि कौनसी चीज कहाँ मिलती है, कपड़े की जानकारी भी थी तो कपड़े से लेकर छपाई और धागे सब ले कर आ गए। आने वाला टाइम
स्त्री.......(भाग-15)हम सब इस अच्छी खबर से बहुत खुश थे......माँ ने मुझे सूजी का हलवा बनाने को कहा और खुद भगवान का शुक्रिया अदा करते हुए पाठ करने लगी.....अगले दिन मेरे पति ने बैग में एक जोड़ी कपड़े भी रख ...Read Moreउन्होंने बताया कि काम ज्यादा है, अगर देर हो गयी तो वहीं सो जाऊँगा......खाने की चिंता मत करना माँ मैं खा लूँगा....कह टिफिन ले कर चले गए। मैं, दीदी और माँ बाजार चले गए, दीदी की पसंद की साड़ियों और 2-3 चादरो के कपड़े ले लिए......डिजाइन छपवा और धागे ले कर पाव भाजी खा कर घर आ गए...बहुत दिनो के
स्त्री......(भाग -16)कामिनी तो चली गयी थी। कामिनी के पिताजी ने एक आया रख दी, जो सिर्फ बच्चे को देखती थी......मेरी सास के लिए उनका पोता कान्हा, गोपाल और बाबू था पर कामिनी के लिए वो निशांत था...। मैं और ...Read Moreएक दो बार उनके घर गए बच्चे से मिलने.....वो ज्यादा देर बच्चे को उसकी दादी के साथ छोड़ती नहीं थी, झट आया को बुला कर बच्चे को ले जाने के लिए कह देती......उस दिन हम जैसे ही घर आने के लिए उठे तो कामिनी ने कहा...."भाभी अब आप भी बच्चा पैदा कर लो देखो न माँ जी को बच्चे के
स्त्री.....(भाग--17)सुबह का उगता सूरज तो बहुत बार देखती रही थी....पर उस सुबह मुझे अपना शरीर बहुत हल्का लग रहा था।रिश्ते के बोझ से कंधे झुक गए थे, तो झुक कर चलने लगी थी, मतलब नजरें झुकी रहती थी हमेशा ...Read Moreकी तरफ।वो सूरज मेरे आत्मविश्वास को बढावा दे रहा था......ऐसा लग रहा था कि मेरा सही सफर अब शुरू हुआ है। मेरी हिम्मत लौट आयी थी। 16 साल की उम्र में शादी और 9-10 साल पुरानी शादी ने कुछ जल्दी ही बढा कर दिया था.....। अभी मुझे बहुत कुछ करना है अपने सपने पूरे करने के लिए.....सिर्फ शादी ही तो
स्त्री......(भाग--18)माँ की तबियत उस दिन के बाद ठीक ही नहीं हुई.....डॉक्टर्स को दिखाया वो दवा देते और कहते आप इन्हें खुश रखिए...सुमन दीदी और सुनील भैया अपने बच्चों के साथ मिलने आते पर कुछ भी काम नहीं कर रहा ...Read Moreदोनो बहन भाई अपने बड़े भाई साहब को भी माँ की तबियत का कहते तो वो फिक्र तो जताते पर कहते कि नया काम है, छुट्टी मिलते ही आता हूँ........माँ को फोन मिला कर भी दिया कि बात करो पर माँ ने मना कर दिया। माँ की हालत देखी नहीं जा रही थी...बस चुपचाप लेटी रहती। कमजोर होती चली जा
स्त्री......(भाग-19)माँ अपने इस सफर पर अकेले ही बिना कुछ कहे ही चली गयी....मैं बहु थी तो मुुझे घर पर रूकना था सफाई करने के लिए......बाकी सब भी लौट आए थे। घर मैं कुछ खाना बनना नहीं था तो ...Read Moreजी और उनका बेटा बाहर से खाना ले आए। कामिनी को घर जाना पड़ा क्योंकि निशांत परेशान कर रहा था.....घर में मामा मामी, मैं,सुमन दीदी और सुनील भैया रह गए थे और बच्चे अपनी दुनिया में मस्त खेल रहे थे। मामा जी का बेटा और जीजा जी घर चले गए थे। कितना अजीब लगता है न कि कुछ घंटे पहले इंसान
स्त्री.......(भाग-20)मेरे पति वापिस चले गए और मैं बिल्कुल अकेली रह गयी...। सुनील भैया और सुमन दीदी फोन करके हालचाल लेते रहते थे, बाकी अपने अपने काम और घर में बिजी हो गए और मैंने भी अपने आप को काम ...Read Moreबिजी कर लिया। काम बढ़ाने के लिए मुझे अपनी वर्कशॉप के लिए जगह भी बड़ी चाहिए थी, बस उसी की तलाश शुरू कर दी थी। अभी जिस घर मैं रह रही थी वो भी तो पति को उनके मालिक ने रहने को दिया था और अहमदाबाद में वो किराए पर रह रहे थे, पर अब तो वो भी खाली करना
स्त्री.......(भाग-21)उसी रात मेरे पति का मेरे पास फोन आया था, उन्होंने मुझे बताया कि," तलाक के पेपर्स तैयार हो गए हैं, मेरा वकील आ कर कल दे जाएगा तुम साइन कर देना। मुझे नहीं लगता कि तुम्हें इससे कोई ...Read Moreहोगा। आपसी सहमति से तलाक लेना अच्छा रहेगा नहीं तो कोर्ट में केस जाएगा तो हम दोनों ही परेशान होंगे"...."जी आपने बिल्कुल ठीक कहा...मैं साइन कर दूँगी पर सबके सामने। आप को सुनील भैया ने बोला ही है आने के लिए तो जब आप आएँगे तो ये काम भी हो जाएगा", मैंने बिल्कुल शांति से अपनी बात बोल दी....वो बोले,"
स्त्री......(भाग-22)मैं सोने की बेकार कोशिश कर रही थी। नींद का आँखो में नामो निशान नहीं था और मेरा भी सो जाने का मन भी नहीं कर रहा था......वो अपने कमरे में चले गए और दरवाजा भी लॉक करने की ...Read Moreआयी। उस रात माँ पिताजी और सबकी बहुत याद आ रही थी, माँ के जाने की चिट्ठी मैं लिखना चाह रही थी ये सोच कर कि उन्हें आना चाहिए, पर मामाजी ने कहा कि बहु रहने दो, बहुत समय लगता है आने जाने में, बेकार ही वो लोग परेशान होंगे घर की ही बात है रहने दो। वैसे भी महीनों
स्त्री......(भाग -23)सड़क और उस पर आने जाने वाले लोगों को देखते देखते वक्त का पता नहीं चला।उगते सूरज से टाइम का आभास हुआ तो अपने रोज के कामों की शुरूआत की...काम के साथ साथ आगे कैसे और क्या करना ...Read Moreये भी प्लान करती जा रही थी....अभी अपने ही विचारों में गुम थी कि फोन की घंटी ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींचा....पति का फोन था जो ये कहने के लिए आया था कि जब मैं अपना सामान शिफ्ट कर लूँ, तो उन्हें फोन करके बता दूँ जिससे वो उनके मालिक चाभी के लिए किसी को भेज देंगे। उसी दिन
स्त्री......(भाग-24)जब मेरी जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा होता है तो अक्सर मुझे डर लगने लगा है कि अब कुछ गलत होने वाला है।डर लगना तो वाजिब ही है.....अपने अनुभव की वजह से डरती हूँ। कुछ भी मुझे ...Read Moreसे कभी मिला भी तो नहीं। कभी कभी लगता है कि मेरा नाम जानकी गलत रखा गया है, मेरा नाम तो संघर्ष या फिर मेहनत या मुसीबत होना चाहिए था....काश जिंदगी को जीना आसान होता!! पर शायद फिर सब कुछ अच्छा ही रहता तो भी नीरसता आ जाती। इंसान कमजोर हो जाता है, जब सब कुछ अच्छा ही अच्छा होता
स्त्री.........(भाग-25)दुनिया की हर औरत माँ बनना चाहती है, उस रात दिल अलग अलग कल्पनाओं को शक्ल देता रहा, पर कोई भी साफ तस्वीर नहीं बना पाया। रात बीत गयी और नयी सुबह हो गयी। ऊपर घर और नीचे ...Read Moreके होने से बहुत कुछ आसान हो गया था मेरे लिए....। धागे और बाकी सलमा सितारे,दबका, ज़रकन, मोती और कुंदन जैसा बहुत सारा सामान लाना होता था, इसके साथ ही साड़ियो और दुपट्टों का कपड़ा अपने सैंपल्स के लिए ले आते थे, कई बार जिस फैब्रिक पर बनाना होता था वो शोरूम वाले ही देते थे या फिर हमारे बनाओ गए
स्त्री........(भाग -26)काम के वक्त सिर्फ काम ही याद रहता है। थोड़ा आराम करने बैठो या खाली समय मिल जाए तो दिल कभी गाँव तो कभी पुरानी बातों की तरफ चला जाता है। अब पिताजी से कभी कभार फोन पर ...Read Moreकर ही लेती थी। पिताजी रिटायर होने वाले थे और उसके बाद राजन की जहाँ नौकरी होगी, वो लोग वहाँ चले जाएँगे, पर वक्त का कोई भरोसा नहीं। ज्यादातर लड़कियों को सास ससुर के साथ अब रहना पसंद नहीं आता, ये कामिनी को देख कर समझा। यह बात और है कि गाँवों में लोग ससुराल भरा पूरा पसंद करते थे.......चलन
स्त्री.........(भाग-27)हाँ, कामिनी दीदी मैं जानता हूँ कि इनका रिश्ता भी तुम्हारे बराबर ही था, पर अब तो नहीं है न!! तो फिर जिसकी वजह से रिश्ता था वो वजह ही खत्म हो गयी तो फिर क्या सेंस बनती है ...Read Moreउन रिश्तों को निभाने की ? भाई क्या बात कर रहे हो? तुम ये कह रहे हो कि अब मुझे सुनील और सुमन दीदी से रिश्ता तोड़ लेना चाहिए ? मैं उन दोनों की बातें सुन रही थी और कामिनी मेरी तरफ देखने लगी कि जैसे कह रही हो कि मैं चुप क्यों हूँ। विपिन जी आपने ठीक कहा कि
स्त्री........(भाग-28)विपिन जी के जाने के बाद मैंने अनिता को समझाया कि तुम अपने काम में परफेक्ट हो तो कोई भी आ जाए, उसके सामने नर्वस होने की जरूरत नहीं है।बिल्कुल कांफिडेंट हो कर बात किया करो....मैडम वो जो आयीं ...Read Moreवो इंग्लिश में बात कर रही थीं तो मैं बोलने में अटक रही थी, पर अब ध्यान रखूँगी......। उसका नर्वस होना ठीक भी था, कोई ऐसे बात करने वाला अभी तक हमारे पास कोई आया भी नहीं था.....विपिन जी के जाने के बाद मैं भी अपने कुछ आर्डर की डिलिवरी के लिए चली गयी....उस दिन मेरे पुराने क्लाइंट और मेरे
स्त्री.......(भाग-29)उन लोगों के जाने के बाद मैं ऊपर चली गयी....तारा भी मेरे पीछे पीछे ऊपर आ गयी। मैं जब तक कपड़े बदल कर आयी, पानी का गिलास टेबल पर रखा था और तारा चाय बना रही थी......मैं तब तक ...Read Moreबंद करके लेट गयी। तारा की आवाज से आँखे खोली तो वो चाय वे कर खड़ी थी...। "तुमने अपने लिए चाय नहीं बनायी तारा"? ट्रे में एक कप देख कर मैंने पूछा तो बोली, "नहीं दीदी अभी नीचे के लिए बनाऊँगी तब पी लूँगी....जाओ इस चाय को दो कप में कर दो, बाद में तुम दोबारा पी लेना। वो जल्दी
स्त्री.......(भाग-30)विपिन जी से बात करके लगा कि मैं फिर से बच गयी, ये तीसरी बार है जब मैं कुछ गलत करने से बच गयी....मैं क्यों हर बार एक ही गलती करने लगती हूँ! मैं झूठ नहीं कहूँगी पर विपिन ...Read Moreजिस तरीके से मुझसे बात करते थे वो बहुत ही अच्छा था और मुझे कुछ खास होने का एहसास दिलाते रहना मुझे भा गया....पहले गोपालन सर उसके बाद शेखर मित्रा और अब विपिन अग्रवाल ! तीनों ही दिखने में अपनी अपनी जगह हैंडसम और आकर्षक लगे भी तो क्या मैं अब तक सिर्फ बाहरी खूबसूरती को ही सबकुछ मान लेती
स्त्री.......(भाग-31) वो शाम बहुत सुंदर बीती, सोमेश जी मुझे छोड़ कर जल्दी मिलते हैं का वादा करके वापिस चले गए, कह रहे थे कि अब शायद सीधा अपनी डयूटी पर जाऊँगा।आरती अपने काम में लगी हुई थी और सब ...Read Moreअपने काम में.......हमेशा रेडियों धीमी आवाज़ में बजता रहता है।कारीगर अपने अपने परिवारों की बातें भी एक दूसरे से करते रहते हैं और कई बार मैं भी उनकी बातों में शामिल हो जाती हूँ, अब तो ये मुझे अपना परिवार लगने लगा है....गुडडु भैया, अनवर चाचा, हाजी बाबा, सरोज दीदी, छोटू, मालती मौसी वगैरह वगैरह......पर काम के वक्त मैडम हूँ सबकी.......इस
स्त्री.......(भाग-32)सोमेश जी को खाना बहुत पसंद आया, ऐसा उन्होंने ही बताया। खाने के बाद सोमेश जी ने पहले गुलाब जामुन खाया और बाद में आइसक्रीम भी.....कुछ देर बातें करने के बाद उन्होंने विदा ली। इतना शांत इंसान मैंने पिताजी ...Read Moreबाद किसी को नहीं देखा था....मैंने उन्हें भी बताया कि मेरा पूरा परिवार मिलने आ रहा है......वो बोले फिर तो अगली मुलाकात में उनसे भी मिल लूँगा....। उस दिन भी उन्होंने न मेरे डिवोर्स की बात की न अपनी पत्नी के बारे में बताया। मैंने भी जिक्र नहीं छेड़ा क्योंकि डर रही थी कि कहीं उन्हें तकलीफ न हो। उनके
स्त्री.......(भाग-33)सब के जाने के बाद घर समेटने में छाया भी तारा का हाथ बटाँने लगी तो तारा ने कहा नहीं, छोटी दीदी मैं कर लूँगी....आप बस आराम करो। ससुराल में काम करते ही हो अब मायके में कुछ दिन ...Read Moreकरो......एक कमरे में छाया और उसके बच्चे सो गए। दूसरे कमरे में राजन और पिताजी सोए......लिविंग रूम में गद्दे बिछा कर बाकी हम तीनों सो जाँएगे सोच तारा के साथ मैं जगह बना रही थी तो तारा बोली, दीदी आप और माताजी आराम से सो जाओ, मैं नीचे वर्कशॉप में सो जाऊँगी......नहीं तारा नीचे नहीं सोना है.....तुम्हे लग रहा है
स्त्री......(भाग-34)मैं बहुत खुश थी उस रात। पिताजी ने माँ को समझा कर मना लिया। छाया और राजन दोनों ही सोमेश जी की बातें कर रहे थे। पिताजी के चेहरे पर भी सुकून लौट आया दिख रहा था जो मेरे ...Read Moreकी खबर सुन कर गायब हो गया था और उसकी जगह चिंता ने ले ली थी। अब सब अच्छा ही अच्छा दिख रहा है। तारा को कैसे भूल सकती हूँ? जब से हमने एक दूसरे का हाथ थामा है, सब अच्छा ही हो रहा है। सही टाइम पर तारा मुझे विपिन जी के लिए आगाह नहीं करती तो मैं मूर्खता
स्त्री......(भाग-35)सोमेश जी चाहते थे कि उनका ड्राइवर ही हमें छोड़ आए, पर पिताजी ने मना कर दिया....क्योंकी ड्राइवर को फिर इतनी दूर वापिस आना पड़ता। राजन के साथ तारा, माँ,पिताजी और बच्चों को कार में भेज दिया। छाया और ...Read Moreलिए टैक्सी सोमेश जी का ड्राइवर ही ले आया। घर आने तक 10 बज चुके थे। सब का पेट भरा ही था। बच्चे तो कार में ही सो गए थे। बच्चों को कमरे में सुला कर हम बड़े शादी को बारे में बातें करने लगे और काम सोचने लगे कि क्या क्या जरूरी है। पिताजी सुमन दीदी और सुनील भैया
स्त्री.......(भाग-36)हमारी तरफ के सब लोग आ गए थे। मेरी इस खुशी में मेरा पूरा परिवार मेरे साथ है, पर मेरी सास नहीं थी, जिन्होंने मुझे माँ से भी ज्यादा प्यार और इज्जत दी....माँ ने मुझे आगे तलाक ले कर ...Read Moreबढने को कहा था, आज उनकी ये इच्छा भी पूरी हो जाएगी। पिताजी ने सुमन दीदी और सुनील भैया के परिवार से बिल्कुल सहजता से परिचय कराया.....कामिनी के पिताजी से परिचय कराते हुए पिताजी ने कहा,"भाई साहब ये वैसे तो हमारे समधी हैं, पर जानकी का एक पिता की तरह ध्यान रखते हैं, तभी हमारी बेटी इस शहर में आराम
स्त्री.....(भाग-37)मैं होटल से लेकर घर तक के पूरे रास्ते मन ही मन में लिस्ट तैयार कर रही थी कि क्या क्या काम करने हैं, वो भी 3-4 घंटो में! तकरीबन 30 लोगो का स्टॉफ और 8-10हम घर के लोग ...Read Moreहम हैं ही। मैं खुद पर गुस्सा हो रही थी कि किसी केटरर्स को ही खाने का आर्डर दे देती। पर अब क्या किया जा सकता है! अब तो इतने कम टाइम में कैसे होगा, खैर जो हो पाएगा देखते हैं! तारा और राजन बार बार कह रहे थे कि परेशान न हो, सब हो जाएगा।बस इसी सोचते सोचते घर
स्त्री ........(भाग-38)उनकी बात माननी पड़ी और हम घर आ गए.....गेट फूलों से सजा हुआ था और गेट से लेकर घर की चौखट तक फूल बिछे हुए थे। बहुत सुंदर लग रहा था सब कुछ और अविश्वसनीय भी.....चौखट पर गृह ...Read Moreकी तैयारी हो रखी थी। माँ और केयर टेकर जिन्हें सोमेश जी ममता कह रहे थे....मेरी आरती उतार रहे थे। कलश को गिरा मैंने अपना पैर अंदर आलता के थाल में रखे वहाँ सफेद चादर बिछी थी। मैं उस चादर पर पैर रखती हुई अंदर चली गयी....। अंदर माँ ने अपने पास सोफे पर बिठाया....तब तक चाय नाश्ता आ गया।
स्त्री......(भाग -39)सुबह मैं अपने टाइम पर उठ गयी तो सोमेश जी बोले इतनी जल्दी उठ कर क्या करना है, सो जाओ कुछ देर!! मेरी नींद अपने टाइम पर अपने आप खुल जाती है, तो दोबारा आएगी नहीं। आप सो ...Read Moreमैं फ्रेश हो जाती हूँ। मैं नहा धो कर तैयार हो गयी, तब तक सोमेश जी भी उठ गए और वॉक पर चले गए। मैं नीचे गयी तब तक 6:30 ही बजे थे। मैं मंदिर में पूजा करने चली गयी, वहाँ पूजा के लिए फूल टोकरी में ममता रख रही थी। मैं पूजा करके किचन में चली गयी। वहाँ कुक
स्त्री......(भाग-40)हम सब बहुत खुश थे.....और सबसे ज्यादा मैं। माँ, पापा, तारा और घर के सब दूसरे नौकर सब के लिए आशु(आशुतोष) जैसे एक बेशकीमती खिलौना था। माँ और तारा दोनो मिल कर उसको संभाल लेती थी जब भी मैं ...Read Moreमें होती। ममता भी तो थी तारा के साथ तो सब कुछ संभला रहता था....माँ की हेल्थ भी और आशु भी....! पापा बहुत खुश थे कि मेरा काम भी बढ़ रहा है...सोमेश जी और आशु के साथ मैं माँ पिताजी और राजन से मिलने हरियाणा हो कर आयी थी। वहाँ सब ठीक और खुश थे, देख कर मुझे भी तसल्ली