भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - Novels
by Kishanlal Sharma
in
Hindi Biography
"क्या देख रही हो?"
उन दिनों मैं साल 1966 की बात कर रहा हूँ।तब कालेज आज की तरह जगह जगह नही हुआ करते थे।मेरे पिता रेलवे में थे और उनके ट्रांसफर होते रहते थे।इसलिए मेरी शिक्षा टुकड़ो में हुई। जामनगर, राजकोट,बांदीकुई, अछनेरा और ब्यावर के बाद मैने हायर सेकंडरी की परीक्षा आबूरोड से पास की थी। तब मेरे पिता आबूरोड में इनेपेक्टर थे। आबूरोड के पास फालना और सिरोही में कालेज थे और फिर जोधपुर में।आगे की पढ़ाई के लिए मैने सन 1966 में जोधपुर यूनिवर्सिटी में एड्मिसन ले लिया।पहली बार घर से निकलना था। पिताजी ने एक सिपाही श्याम सिंह को मेरे साथ भेजा था।-उसने मुझे एड्मिसन दिलाया और हाई कोर्ट रोड़ पर मुरलीधर जोशी भवन में किराए पर कमरा दिलाया था।वही नीचे फ़ोटो ग्राफर का स्टूडियो था और दूसरी मंजिल से कोई पत्रिका निकलती थी।नाम अब ध्यान नही है।तीसरी मंजिल पर कई कमरे थे।जिनमें स्टूडेंट रहते थे।कुछ नाम याद है।मकराना का असलम और नागौर के शिव चंद जोशी और रामप्रकाश थे।बाकी नाम याद नही।
"क्या देख रही हो?"उन दिनों मैं साल 1966 की बात कर रहा हूँ।तब कालेज आज की तरह जगह जगह नही हुआ करते थे।मेरे पिता रेलवे में थे और उनके ट्रांसफर होते रहते थे।इसलिए मेरी शिक्षा टुकड़ो में हुई।जामनगर, राजकोट,बांदीकुई, ...Read Moreऔर ब्यावर के बाद मैने हायर सेकंडरी की परीक्षा आबूरोड से पास की थी।तब मेरे पिता आबूरोड में इनेपेक्टर थे।आबूरोड के पास फालना और सिरोही में कालेज थे और फिर जोधपुर में।आगे की पढ़ाई के लिए मैने सन 1966 में जोधपुर यूनिवर्सिटी में एड्मिसन ले लिया।पहली बार घर से निकलना था।पिताजी ने एक सिपाही श्याम सिंह को मेरे साथ भेजा
जोधपुर का जिक्र हो और कचोड़ी की बात न हो।वहाँ की मावे की और प्याज की कचोड़ी मशहूर थी।आजकल तो कई जगह मिल जाएगी लेकिन वहां का जवाब नही था।उन दिनों 40 पैसे की कही पर 30 पैसे की ...Read Moreथी।ज्यादा से ज्यादा 2 मावे की कचोड़ी में आदमी का पेट भर जाता था।प्याज की कचोड़ी शनिवार को ही बनती थी।कालेज की छुट्टी होने पर मैं जोधपुर से आबूरोड जाता था।उसके लिए मारवाड़ आना पड़ता और मारवाड़ से दूसरी ट्रेन बदलनी पड़ती।तब छोटी लाइन थी।रास्ते मे लूनी जंक्सन पड़ता।यहाँ के सफेद रसगुल्ले मसहूर थे।उन दिनों दो रु किलो मिलते थे।उस
मुझे जो गुरु पढ़ाते उनका नाम था दीक्षित। पांचवी पास करने के बाद पिताजी का ट्रांसफर बांदीकुई हो गया था।यहां पर मेरी छठी और सातवी की पढ़ाई हुईं थी।पिताजी को गार्ड लाइन में क्वाटर मिला था।मेरे ताऊजी रेलव में ...Read Moreथे।उन्हें बंगला मिला हुआ था।पास वाले बंगले में लोको फोरमैन रहते थे जो मुसलमान थे।सामने और बगल के बंगलो में अंग्रेज ड्राइवर भी रहते थे।उनमें से दो रिटायर होने के बाद इंगलेंड चले गए थे।उसी समय 1962 का युद्ध हुआ था।जब चीन ने भारत पर हमला कर दिया था।अभी तक याद है ब्लेक आउट और लोगो का चन्दा इकट्ठा करना।उस
और यहाँ पर एक शादी का जिक्र जरूरी है।जैसा मैं पहले कह चुका हूँ। मेरे तीन ताऊजी थे।कन्हैया लाल सबसे बड़े।यह रेलवे में ड्राइवर थे।दूसरे देवी सहाय जो खेती करते और अविवाहित थे।तीसरे गणेश प्रशाद और यह मास्टर थे।मेरे ...Read Moreरेलवे में आर पी एफ में इंस्पेटर थे।गणेश प्रशाद के बड़े बेटे और मेरे चचेरे जगदीश भाई की शादी थी।उन दिनों पांच या छः दिन की शादी होती थी।इनकी शादी मेहसरा गांव से हुई थी।जैसा मैं पहले बता चुका हूँ।उन दिनों न इतनी ट्रेन थी और न ही हर जगह बस जाती थी।बारात भी सौ से ऊपर हो जाती क्योकि
ताऊजी और मामा बेटिकट।ताऊजी उन दोनों को लेकर झांसी पहुंच गए थे।रास्ते मे ताऊजी ने टी टी ई से बात की थी।वह बोला बाकी स्टाफ तो सही है लेकिन हमारे यहां राम सिंह टी टी ई है।वह स्टाफ को ...Read Moreनही छोड़ता है।"ताऊजी को कलकत्ता जाना था।झांसी आने पर वह गेट पर खड़े टी सी के पास गये।टी सी किसी से बात कर रहा था।उन्होंने जाकर टी सी से बात की और बोले,"मुझे बताया है कि बाकी स्टाफ तो सही है लेकिन राम सिंह किसी को नही छोड़ता।"ताऊजी की बात सुनकर टी सी से बात कर रहा आदमी बोला,"मैं ही
धनी राम जी हेड पोस्ट मास्टर से मिलकर बोले,"अनपढ़ मा को दे सकते हो और जो लड़का आठवी मे पढ़ रहा है।उसे मनी आर्डर क्यो नही दे सकते?"और मुझे मनी आर्डर देना पड़ा।उन दिनों प्रसारण मंत्रालय द्वारा पिक्चर भी ...Read Moreजाती थी।हमारे क्वाटर के सामने पार्क था।और काफी जगह भी खाली थी।अक्सर वही पर स्क्रीन लगाया जाता था। हमारे क्वाटर के बाई तरफ कुछ फासले पर भी क्वाटर थे।एक क्वाटर में एक नर्स और एक आदमी रहते थे।किसी से वह बोलते नही थे।कुछ दिनों बाद उसमें एक नर्स और आ गयी।पहली वाली नर्स गोरी और सुंदर थी।जबकि दूसरी काली।कुछ दिनों
तब ब्यावर में कोई वेटिंग रूम नही था।इंद्रा गांधी आर पी एफ आफिस में ही कुछ देर बैठी थी।मैं भी देखने के लिए गया था।उस समय लाल बहादुर शास्त्री प्रधान मंत्री थे।उन दिनों ही टेरेलिन के कपड़े की शुरुआत ...Read Moreथी।मेरा स्कूल घर से दूर था।मैं पैदल ही स्कूल आता जाता था।उस समय अनाज की समस्या थी।तब शास्त्रीजी ने सप्ताह में एक दिन एक समय उपवास की अपील की थी।मैं शास्त्रीजी के जीवन से काफी प्रभावित रहा।सन 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया था।उसी समय पिताजी ने रेडियो खरीदा था।बुश कम्पनी का रेडियो उस समय दो सौ
माया के दीवानों की कमी नही थी।माया मोडर्न और फ्रेंक थी।वह लड़को से बात करने में न शर्माती न झिझकती थी।उसे तंग करने में भी लोगो को मजा आता था।लड़के वैसे भी शैतान होते है।एक घटना का जिक्रहिंदी हमे ...Read Moreपढ़ाते थे।किसी लड़के ने एक दिन शरारत की।पंखे की पंखड़ी पर सूंघने वाली तमाकू न जाने कब रख दी।पहला पीरियड हिंदी का होता था।प्रार्थना के बाद लड़के क्लास में आकर बैठ गए।उसके बाद शास्त्रीजी आये।वह जैसे ही हाजरी लेने लगे।किसी लड़के ने पंखा चला दिया।पंखा चलते ही तम्बाकू ज्यो ही उड़ी लड़को का छींकते छींकते बुरा हॉल हो गया।माया कई
और पिताजी को आराम आया तब नौ बजे वह बोले,"दिवाली है,पूजा नही करोगे?"और पिताजी ने(हम उन्हें बापू कहते थे)हम सब को बैठाकर लक्ष्मी पूजन किया फिर हमारे साथ खाना खाया और फिर बोले,"फटाके चला लो।"फटाके दीवाली से कई दिन ...Read Moreआ जाते थे।पिताजी ने बरामदे में बैठकर हम सब से फटाके चलवाये थे।काम सब हो रहे थे।लेकिन मेरी माँ के चेहरे पर भी अनहोनी की आशंका साफ दिख रही थी।और फिर हम लोग सो गए।नींद मेरी और माँ की आंखों में नही थी।सुबह चार बजे पिताजी के पेट मे दर्द उठा।हमारे पीछे वाली लाइन में क्वाटर में काशी राम गौतम
लेकिन मैं ज्यो ही वार्ड के दरवाजे पर पहुंचा।मुझे रोक दिया और दरवाजा बंद हो गया था।यो तो दीवाली की छुट्टी थी लेकिन पिताजी के एडमिट होने का समाचार मिलते ही सी एम ओ और अन्य डॉक्टर आ गए ...Read Moreऔर सब वार्ड में थे। कुछ देर बाद एक नर्स मेरे पास आई और बोली,"आपके पिताजी का नाम क्या था?"और इस था ने मेरा संसार मुझ से छीन लिया था।मेरे सिर से पिता का साया उठ गया था।पिताजी के गुज़र जाने की खबर आग की तरह फैल गयी थी।मैं समझ नही पा रहा था।पिताजी ने क्यो मुझे भेज दिया और
तेहरवीं तक रिश्तेदार रुके और फिर चले गए।दोनो ताऊजी अपने बेटों इन्द्र और रमेश को साथ ले गए।दोनो नौकरी कर रहे थे।पर उन्होंने सोचा होगा अब इनकी तनखाह यहां खर्च होगी।तरहवी के बाद हम बाजार गए तब मेरे साथ ...Read Moreअवतार जीजाजी साथ थे।वह बोले कमजोर हो गया है।वजन तौल ले।वजन के साथ जो टिकट आया उस पर लिखा था--आपका जीवन साथी सुंदर होगा लेकिन उसके साथ जीवन काटना आसान नही होगा।हमारी कॉलोनी में अग्रवालजी रहते थे।वह रेलवे में पी डब्लू आई थे।उन्हें जब पता चला में नौकरी करना चाहता हूं तो उन्होंने मुझे बुलाकर अपने आफिस में केजुल लेबर
पिताजी के बारे मे लिखकर मुझे नौकरी देने की विनती की गई।मेरे सामने ही पंवार साहब ने लिखा एज ए स्पेशल केस इनका पोस्टिंग किया जाता है।मेरी पोस्टिंग खलासी के पद पर हुई थी।मुझ से पूछा गया।वर्क शॉप में ...Read Moreकरोगे या आफिस में मुझे मालूम था यहां मूझे कुछ दिनों के लिए काम करना है।मैने अनुकम्पा के आधार पर आर पी एफ में सब इंस्पेक्टर के पद पर नौकरी के लिए अर्जी दी थी।इसलिए मैंने ऑफिस में काम करने की इच्छा जाहिर कर दी।मुझे पे शीट क्लर्क के साथ लगा दिया गया।मेरा काम उनकी मदद करना था।मैं रोज सुबह
इसलिए मुझे जो पगार मिलती थी।उसी में हम लोगो का गुजारा होता था।आम आदमी या मिडिल क्लास के लिए हमेशा ही महंगाई एक समस्या रही है।यहां मैं एक बात और बता दूं।मेरे किसी भी रिश्तेदार ने मतलब ताऊजी या ...Read Moreकोई न भी फिर पीछे मुड़कर नही देखा।तेरहवीं के बाद गए तो फिर नही आये।मेरे मामा भी उनकी तो जिम्मेदारी थी अपनी बहन के प्रति पर ना वे आये। आगे बढ़ने से पहले कुछ और घटनाये।मेरे कजिन इन्द्र की सगाई हो गयी थी।उस समय मेरे पिताजी आबूरोड में ही पोस्ट थे।मेरे पिताजी ताईजी को बहुत मानते थे।इसकी वजह थी।जब पिताजी
और शादी अच्छे माहौल में हुई।पिताजी ने न जाने क्या जादू चलाया की लड़की के पिता ने थड़े में थाली में 5100 रु डाले थे।यह बात आज से 55 साल पुरानी है।उनका समस्या को हल करने का अपना तरीका ...Read Moreमामा नीरस किस्म के आदमी थे।मै जब पिताजी थे तब उनके साथ जरूर ननसार गया था।पिताजी की मृतुयु के बाद शायद एक या दो बार ही जा पाया था।वो भी कोई शादी होती तभी आते थे।वैसे कभी नही और उनके बच्चे बड़े हो गए तब वो ही आने लगे थे।समय किसी के न रहने से रुकता नही है।न ही जीवन
आगे बढ़ने से पहले एक व्यक्ति का जिक्र जरूरी है।नरोति लाल चतुर्वेदीनरोति लाल आगरा फोर्ट स्टेशन पर मारकर के पद पर थे।यह पद रेलवे में चतुर्थ श्रेणी में आता था। यह पद पार्सल और माल गोदाम में होता है।मारकर ...Read Moreकाम मारका डालना होता है।वह मेरे से उम्र में बड़े थे और न जाने क्यों उन से मेरी आत्मीयता हो गयी थी।हम सभी को केंटीन से चाय नाश्ता खाना मिलता था।पर वह सात्विक थे और किसी के हाथ का कुछ नही खाते थे।इसलिए अपने साथ स्टॉप और बर्तन आदि लाये थे।उन्होंने कमरे में खाना पकाने की इजाजत ले ली थी।वह
स्कूल प्रशासन ने पोस्टिंग का फार्मूला निकाला जो परीक्षा में फर्स्ट और सेकंड आये थे।उन्हें बुलाया गया।फर्स्ट नीमच का प्रेम और सेकंड मैं आया था।हम दोनों ने कोटा मण्डल चुन लिया।बाकी को मुम्बई भेज दिया गया।मैं ट्रेनिंग स्कूल से ...Read Moreबांदीकुई आया था।मेरी माँ और भाई बहन आबूरोड से बांदीकुई आ चुके थे।मैं यहाँ से कोटा गया था।कोटा जाने के लिए दो रास्ते थे।जयपुर होकर या भरतपुर होकर।मैं बांदीकुई से जयपुर गया और वहाँ से सवाई माधोपुर उन दिनों दिल्ली अहमदाबाद मीटर गेज थी और सवाईमाधोपुर भी।सवाई माधोपुर से कोटा के लिए बड़ी लाइन की ट्रेन मिलती थी।कोटा जाने का
पूरे 10 साल बाद 24 अक्टूबर को मैं आगरा पहुंचा था।पहली बार मे अकेला आया और अपनी प्रथम नियुक्ति पर आया था।न यहां मुझे कोई जानता था ,न ही कोई रिश्तेदारी तब मुझे अचानक निरोति लाल चतुर्वेदी का ख्याल ...Read Moreट्रेन से उतरते ही उनके बारे में पूछा तो मुझे पार्सल में जाने को कहा।वहां उनका नाम लेते ही बाबू ने मुझे बैठाया था।चाय पिलाई और जब नौ बजे निरोति लाल जी आये तो मुझे देखते ही खुश हो गए।पार्सल आफिस के ऊपर रिटायरिंग रूम था।उसमें मुझे ले गए और वहाँ रहने के लिए कहा।घर से खाना मंगाकर मुझे खिलाया
मेहताजी एक्स सर्विस मेन थे।सेकंड वर्ल्ड वॉर में वह मिश्र में लड़ाई में भाग ले आये थे। वह अनुशासन प्रिय और सख्त स्वभाब के थे।उनके पास जाने से सभी घबराते थे।और मैं सबसे जूनियर था।छोटी लाइन बुकिंग में कोई ...Read Moreआर नही था।इसलिए मुझे भेज दिया गया।यहां से ही मुझे जमुना ब्रिज भेजा गया था।यह सन 1971 की बात है।उन दिनों में 15 सी एल और 39 पी एल लिव मिलती थी।उन दिनों पी एल जुड़ती नही थी ।अब तो 10 महीने तक की पी एल जुड़ती है और रिटायरमेंट के समय इसका पैसा मिलता है।पहले पी एल छुट्टी को
शायद सितम्बर 71 की बात है।मैं दस दिन की पी एल लेकर गांव गया था।उन दिनों आगरा के लिए बांदीकुई से आगरा के लिए छः बजे पेसञ्जर ट्रेन जाती थी।जो आगरा से चार बजे चलकर नौ बजे बांदीकुई आती ...Read Moreट्रेन जोधपुर और आगरा के बीच चलती थी।यह आगरा से फुलेरा तक पैसेंजर थी।यह ट्रेन बांदीकुई 1 बजे आती और तीन बजे आगरा के लिए जाती।यह ट्रेन सुबह 8 बजे आगरा से चलकर करीब 2 बजे बांदीकुई आती थी।एक ट्रेन अहमदाबाद और आगरा के बीच एक्सप्रेस चलती।यह दोनों तरफ से रात में ही बांदीकुई आती थी।मैं जब भी शाम की
मेरे बड़े कजिन जगदीश जो गणेश ताऊजी के सबसे बड़े बेटे थे।इन्द्र जो ताऊजी कन्हैया लाल के बड़े बेटे थे और मैं हम तीनों का गुट था और हम में अच्छी पटती थी।मेरे गांव पहुचने के दूसरे दिन मैं, ...Read Moreऔर जगदीश भाई चबूतरे पर बैठे थे।तब ताऊजी मुझ से बोले,"कल जाकर लड़की देख आओ।"मेरे ताऊजी मास्टर थे।काफी साल पहले वह झर में रहे थे।उस समय झर स्टेशन पर मेरे नाम राशि किशन लाल सहायक स्टेशन मास्टर थे।उनसे ताऊजी की दोस्ती हो गयी।उस समय उनके लड़की का जन्म हुआ था।ताऊजी ने उस लड़की क गोद मे खिलाया था।वर्षो बाद एक
और ट्रेन चल दी।करीब 20 मिनट बांदीकुई पहुँचने में लगते थे।मैं ट्रेन से उतरकर भाई के घर चला गया।वहां से हम स्टेशन आ गए।स्टेशन पर ताऊजी का पत्र भाई के हाथ मे देकर मैं बोला,"गुरु(भाई को मैं गुरु ही ...Read Moreथा।वह टीचर था)मैं कहीं नही जाऊंगा तुम ही पता करना।'"हा मैं कर लूंगा'।और निश्चित समय पर ट्रेन रवाना हुई।चौथे स्टेशन पर हमें उतरना था।पेसञ्जर ट्रेन थी।इसलिए हर स्टेशन पर रुक रही थी।करीब पौने तीन बजे ट्रेन खान भांकरी स्टेशन पर पहुंची थी।मैं ट्रेन से उतरकर बेंच पर बैठते हुए बोला,"गुरु तू पता कर आ। मैं यहाँ बैठा हूँ "भाई एस
और करीब सात बजे हमारे लिए खाना लगाया गया।हलवा,पूड़ी,सब्जी और खाना खाने के बाद भाई बाबूजी से बोला था,"कोई साधन हो तो हम चले जाएं।"कुछ देर बाद एक मालगाड़ी से हमे भेज दिया।रास्ते मे भाई मुझसे बोला,"लड़की कैसी है?""मुझे ...Read Moreकरनी ही नही है""लड़की मे क्या कमी है।खाना कितना स्वादिष्ठ बनाया था।मुझे तो पसन्द है।मैं हॉ कर देता हूँ।""तू करे तो कर दे"मैने भाई को जवाब दिया था।और ताऊजी हमारा इन्तजार कर रहे थे।जब उन्होंने मेरी राय पूछी तब जगदीश भाई ने हां कर दी।और इस तरह रिश्ते वाली बात हुई।उधर लड़की का नाम इंद्रा ।जब हम वहाँ से आ
सन 1972 मे भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ था।जैसा पहले बताया।3 दिसम्बर को पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया था।जिसका जवाब भारत ने 4 दिसम्बर से देना शुरू किया।बाद में इस युद्ध का विस्तार हुआ और भारतीय ...Read Moreने मुक्ति वाहिनी जे साथ मिलकर बंगला देश का युद्ध लड़ा था।इस युद्ध से पूर्वी पाकिस्तान पाकिस्तान से अलग हो गया।और दुनिया के नक्शे पर बंगला देश नाम के नए देश का उदय हुआ था।इस युद्ध मे पाकिस्तान की बुरी तरह पराजय हुई थी।और पाकिस्तान की सेना के 93000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया था।यह तब तक इतिहास में सब
1973यह साल मेरे लिए खास था।जैसे हर कुंवारी लड़की अपने भविष्य का सुंदर सपना देखती है।वैसे ही हर कुंवारा लड़का भी सपना देखता है।लड़की का सपना होता है,सुंदर राजकुमार सा पति।ऐसे ही लड़का भी चाहता है सुंदर पत्नी।अब यह ...Read Moreफैसला हो चुका था कि मेरी मंगेतर कोन है।लेकिन उस दिन मैं यह सोचकर गया था कि मुझे यहाँ रिश्ता नही करना है और मैं आकर मना कर दूंगा।पर मेरे कजिन ने हां कर दी थी। अब हां तो गयी थी।इसलिए मैं एक बार फिर से अपनी होने वाली पत्नी को देखना चाहता था।इसलिए मैं अपने होने वाले साले कमल
और 24 जून 1973इस दिन मेरी बरात खान भांकरी स्टेशन गयी थी।जैसा मैं पहले भी बता चुका हूँ।यह छोटा सा रोड साइड स्टेशन भांकरी और दौसा स्टेशन के बीच पड़ता था।पहले यह मीटर गेज का रूट था।जब दिल्ली अहमदाबाद ...Read Moreको बड़ी लाइन में परिवर्तित किया गया।तब यह स्टेशन खत्म कर दिया गया।बरात 7 उप ट्रेन से गयी थी।इसमें मेरे सहकर्मी जे सी शर्मा और बी के सैनी के साथ मे हमारे इंचार्ज ओम दत्त मेहता भी गए थे।छोटी जगह थी।उन दिनों उस स्टेशन पर लाइट भी नही थी।लेकिन मेरे श्वसुर साहब ने क्वाटर के आगे टेंट की व्यवस्था के
फिर मुझे देखा गया।मैं नीचे कही नही मिला।तब सब बोले कहा गया।किसी ने बताया ऊपर की छत पर हूँ।कोई बोला, बुला लाओ। लेकिन मेरे स्वभाव से सब डरते थे।सबने मुझे जगाने से मना कर दिया तब सुशीला बहनजी मुझे ...Read Moreसे बुलाकर लायी थी।मैं बैठना नहीं चाहता था।इसलिए बड़ी मुश्किल से आया था।मेरी नवब्याहता पत्नी कमरे में बैठी सब सुन रही थी। बहु के पास बैठ जा वह मूझे कमरे में छोड़कर चली गयी थी।मैं खड़ा रहा तब पहली बार वह बोली, बैठ जाओ। मैं फिर भी नही बैठा तब उसने फिर कहा था, बैठ जाओ क्यो? मैं कह रही हूँ। और मै बैठ गया।उसने घूंघट निकाल रखा था।पर उसकी
शादी के बादएक दिन शाम को भार आया तो देखा पत्नीअब यहां आगे बढ़ने से पहले पत्नी का नाम बताना जरूरी है।उसका नाम इंद्रा है लेकिन एक दूसरा नाम जो स्कूल में या सर्टिफिकेट में नही है।वह उसका घरेलू ...Read Moreहै,गगन और प्यार से उसके मम्मी पापा उसे गगगो नाम से बुलाते थे।और मैने भी ऐसा ही किया। क्या देख रही हो? मैं कमरे से बाहर आया तो मैंने उसे ढूंढते हुए देखकर कहा। खाना बनाना है।लकड़ी नही मिल रही चूल्हा जलाने के लिए। पहले भी शायद बता चुका हूँ।उन दिनों गांव में चूल्हा और शहरों में अंगीठी पर खाना बनता था।स्टोव आदि भी
उन दिनों सिनेमा हॉल हर जगह नही होते थे।खान भांकरी छोटा स्टेशन था।कोई दुकान नही थी।रेल्वे स्टाफ को सामान लेने के लिए बांदीकुई या दौसा जाना पड़ता था।सिनेमा हॉल जयपुर में ही था।और हम लोग यानी मैं और पत्नी ...Read Moreतीन साले सुबह सवारी गाड़ी से जयपुर पिक्चर देखने के लिए गए थे।हमने दोपहर को बारह बजे से तीन बजे का शो देखा था।मैंने अपनी पत्नी के साथ पहली पिक्चर देखी।वो थी जंजीर।अभिताभ और जया की जंजीर।आज भी जब टी वी पर यह पिक्चर आती है तो मैं देखने लगता हूँ।इस पिक्चर को देखकर मुझे पत्नी के यौवन की याद
मै बांदीकुई गया तब ताऊजी से बात करने पर पता चला।वह बांदीकुई में कई जगह गया और एक दूसरे से रिश्तेदारियों का जिक्र करकेऔर मेरी पत्नी मेरे पास आ गयी थी।तब मैं रावली में रहता था।पहले कमरा पहली मंजिल ...Read Moreथा।पर शादी से पहले सबसे ऊपर एक कमरा था वह किराए पर ले लिया था।।बात पत्नी के पहली बार नाराज होने कीउस दिन मेरा रेस्ट था।रेस्ट वाले दिन हम पिक्चर देखने जाते थे।घर से आते समय नुक्कड़ पर एक पान की दुकान थी।कभी कभी मैं पान खा लेता था।मैंने उससे पान लिया और खा लिया।पत्नी से नही पूछा तो वह