इश्क़ ए बिस्मिल - Novels
by Tasneem Kauser
in
Hindi Fiction Stories
लगभग तीन घंटों से उसका कमरा अजीबो-ग़रीब नक्शा पेश कर रहा था। कमरे की हालत देखकर ये जान पाना मुश्किल हो रहा था कि यह उसे बिगाड़ने की कोशिश थी या उसे संवारने कि जद्दोजहद।
बेड पे लगभग पूरा कमरा उन्डेला हुआ था। अलमारी के सारे कपड़े फैले हुए थे, कुछ किताबें थीं, कुछ पैकेट्स, कुछ खिलौने , कुछ boxes और उनमें बसी ढेर सारी यादें। यह उसके रोज़ का मआमूल सा बन गया था। यादों को उधेड़ना और फिर से बुन्ना। इस उधेड़बुन में उसने 6 साल गुज़ारे थे। ६ साल यूं तो उंगलियों पे बड़ी आसानी से गिने जा सकते हैं, मगर उन लम्हों का कोई हिसाब नहीं लगा सकता जो किसी के इंतज़ार में गुज़ारे गए हों।
शुक्र है, आज वह इंतज़ार ख़त्म होने को थी, इसलिए आज इन साथियों कि शुक्रगुज़ारी की जा रही थी। मुश्किल वक़्त मैं इन चीज़ों ने उसका बहुत साथ दिया था। साथियों को उनके मक़ाम पर पहुंचाने के बाद एक बार फ़िर से उसे फ़िक्र सताने लगी थी। आज शाम क्या पहना जाए। कपड़ों का ढेर था। मगर आज के ख़ास मौके के लिए उसे कुछ जच नहीं रहा था।
तेरा इंतज़ार!है फ़र्ज़ जैसा मुझ पेगर मुलाक़ात रद हुईतो ये इबादत मुझ पे क़र्ज़ हुई।ये क़ज़ा मैं कैसे चुकाउंगी?तेरी रज़ा मैं कैसे पाउंगी?लगभग तीन घंटों से उसका कमरा अजीबो-ग़रीब नक्शा पेश कर रहा था। कमरे की हालत देखकर ये ...Read Moreपाना मुश्किल हो रहा था कि यह उसे बिगाड़ने की कोशिश थी या उसे संवारने कि जद्दोजहद।बेड पे लगभग पूरा कमरा उन्डेला हुआ था। अलमारी के सारे कपड़े फैले हुए थे, कुछ किताबें थीं, कुछ पैकेट्स, कुछ खिलौने , कुछ boxes और उनमें बसी ढेर सारी यादें। यह उसके रोज़ का मआमूल सा बन गया था। यादों को उधेड़ना और
बहुत मसरूफ़ हूं मैं,जाने किस इल्हाम में हूं?मुझे ख़बर ही नहीं,के मैं किस मक़ाम पे हूं,वह नाश्ता कर रहा था जब अज़ीन कालेज के लिए तैयार हो कर नाश्ता करने डाइनिंग रूम में दाखिल हो रही थी, मगर आधी ...Read Moreपर ही उसके कदम ठहर गए थे। हदीद की पीठ उसकी तरफ़ थी और वह अपने आस पास से बेगाना उसकी पीठ को एक टुक तके जा रही थी, उसे होश तब आया जब आसिफ़ा बेगम की नागवार आवाज़ उसकी कानों तक पहुंची “तुम वहां खड़ी क्या तक रही हो? अगर नाश्ता नहीं करना है तो कालेज जाओ”मां की आवाज़
तुम्हारी यादों के झुरमुट में,एक उम्मीद जुगनू सी हैसुना है लोग बिझड़ते हैमिलने के लिए।घर तो वहीं था जहां उसने अब तक १२ साल गुज़रे थे, मगर आज से पहले उसे यह घर इतना खास नहीं लगा था। हालांकि ...Read Moreघर असाइशों और अराइशों (luxuries) का नमुना था। वहां की हर एक चीज़, हर एक सजावट, वहां के रहने वालों की बेमिसाल पसंद और ज़बरदस्त choice का आइना था। जितना आलीशान वह two-storey bunglow था उतना ही शानदार उसका गार्डन भी था जिसे माली के साथ साथ अज़ीन ने भी सींचा था। उसे गार्डेनिंग का शौक था। इस गार्डन से
पहले थे कुछ और,अब कुछ और हो गए होपहले थे फ़क़्त "यार",अब "जनाब" हो गए हो।पहले तो वह डर गई और उसे अपना दिल डर के कारण बंद होता महसूस हुआ मगर अगले ही लम्हे सामने खड़े बन्दे को ...Read Moreकर उसका दिल ज़ोरो-शोरो से धड़कने लगा। हाथ दिल को थामे हुआ था, और आंखें फटी हुई थीं। चारकोल कलर की ट्रेक पैन्ट और ब्लैक कलर की टी-शर्ट में ६ फ़ीट का क़द काफ़ी शानदार लग रहा था वह यक़ीनन बहुत हैंडसम और डैशिंग था। वह बिना अपनी पलक झपकाए बस उसे देखे गई थी।"तुम हो? मुझे लगा कोई चुड़ैल
वो राह मेरी मंज़िल को जाती ना थी,तेरी रामगिरी ने मेरे क़दम उठा दिए।"तुम ने ड्राइविंग नहीं सीखी?" हदीद ने कार स्टार्ट करते हुए उससे पूछा था।"सीखी है, मगर आपी ने चलाने कि इजाज़त नहीं दी है।" अज़ीन को ...Read Moreबात का काफ़ी मलाल था।"ओह! भाभी अभी भी तुम्हें लेकर उतनी ही फ़िक्र मन्द रहती है?" उसने हंसकर कहा।थोड़ी देर दोनों ख़ामोश रहे थे और यह ख़ामोशी अज़ीन को बहुत खल रही थी इसलिए उसने पूछा था।"तुम बताओ, तुम्हारा क्या प्लान है, जाब करोगे या भाईजान के साथ बिज़नेस जोइन?" "फ़िलहाल तो आराम करुंगा, मौज-मस्ती करुंगा, जब तक कोई काम
बोलना था ना लफ़ज़ों मे तोलना था ना इस ख़मोशी से तो भली ही रहती ये दूरियाँ तो टली ही रहती उसने साहिर को खा जाने वाली नज़रों से देखा था। वह हिम्मत जुटा कर ख़ुद से खड़ी हुई ...Read Moreगुस्से और अफ़सोस की मिली-जुली कैफ़ियत में उसने उससे कहा था "यह तुम ने क्या किया साहिर? आख़िर क्यूं किया ऐसा? तुम्हें समझ क्यूं नहीं आता कि मैं तुम से मोहब्बत नहीं करती हूं। तुम समझ क्यूं नहीं जाते? वह रोते हुए कह रही थी। साहिर के सभी दोस्त जो उसके साथ वहां मौजूद थे वह भी थोड़ी दूरी पर
बोलना था नालफ़ज़ों मे तोलना था नाइस ख़मोशी से तो भली ही रहतीये दूरियाँ तो टली ही रहती उसने साहिर को खा जाने वाली नज़रों से देखा था। वह हिम्मत जुटा कर ख़ुद से खड़ी हुई थी, गुस्से और ...Read Moreकी मिली-जुली कैफ़ियत में उसने उससे कहा था "यह तुम ने क्या किया साहिर? आख़िर क्यूं किया ऐसा? तुम्हें समझ क्यूं नहीं आता कि मैं तुम से मोहब्बत नहीं करती हूं। तुम समझ क्यूं नहीं जाते? वह रोते हुए कह रही थी। साहिर के सभी दोस्त जो उसके साथ वहां मौजूद थे वह भी थोड़ी दूरी पर खड़े होकर तमाशा
तुम्हारे साथ की ज़रूरत है,लम्हों की रानाईयां अकेले समेटी नहीं जाती,चलो माना हूं मैं ख़ुदग़र्ज़ ही सही,ज़िंदगी की कठिनाईयां अब अकेले झेली नहीं जाती।।नेहा के जाने के बाद वह थोड़ा नार्मल फ़ील कर रही थी। दिमाग़ में मची खलबली ...Read Moreशांत हुई थी। उसने नसरीन(मैड) से कह दिया था के वह अपने कमरे में है और उसे कोई डिस्टर्ब ना करें जबहि चाहने के बावजूद अरीज उसके कमरे में नहीं आई थी। लेकिन जब डिनर के लिए भी वह नीचे नहीं आई तो अरीज उसका खाना लेकर उसके कमरे में आ गई।वह आंखें बंद करके लेटी हुई थी। अरीज बिना
तन्हाइयों का गीत मेरी ख़ामोशियाँ गुनगुनाने लगीमेहफ़िलों की रीतजब हम पे क़हर ढाने लगी।"सर, मैडम इनसे मिलये, यह है मिस्टर शब्बीर हसन है, हसन ग्रूप आफ़ॅ इन्डस्ट्रिज़ के चैयरमेन।" उनकी कम्पनी का मेनेजर आसिफ़ा बेगम और जावेद शफ़ीक ख़ान ...Read Moreउनका इन्ट्रोडक्शन करवा रहे थे। जावेद ने उनसे हाथ मिलाया था। आसिफ़ा बेगम भी उनसे बड़ी ख़ुशदिली से मिलीं थीं। उनका मेनेजर अगर शब्बीर हसन का introduction as an industrialist कह कर ना भी करवाता तो भी उनके सूट बूट से उनकी रइसी का पता चल रहा था। उनकी उम्र लगभग ५५ के क़रीब होगी मगर वह इतनी उम्र के
उदासी मेरे दिल में आ,देख यहां है क्या क्या बसा,कुछ किरचियां हैं उम्मीदों की,कुछ यादें हैं तस्वीरों सी,यहां सुकून का गुज़र तक नहीं,मुझे तोड़ने वाले को ख़बर तक नहीं,उदासी मेरे दिल में आदेख यहां है क्या क्या बसा।।ब्लू सूट ...Read Moreवह ग़ज़ब का डैशिंग लग रहा था। पूरी महफ़िल में सबसे नुमाया दिख रहा था। उसके साथ खड़ी वह लड़की जो अपने पहनावे से काफ़ी मोडर्न लग रही थी उसपर जैसे बिछी जा रही थी और वह भी उसे ख़ूब लिफ़्ट करा रहा था।अज़ीन उसके पास पहुंची थी। मगर वह बहुत मग्न दिखाई दे रहा था। वह उसके बिल्कुल सामने
तेरे अल्फ़ाज़ की चादर मैं ओढ़ूं और निचोड़ूं।यूं तिनका तिनका बिखरी हूंकिस तरह खुद को जोड़ू।तेरे अल्फ़ाज़ की चादर मैं ओढ़ूं और निचोड़ूं।काफ़ी रात हो गई थी मगर अरीज की निंद जैसे उड़न छू हो गई थी। दिल आज ...Read Moreही लय में धड़क रहा था, उसे समझ में नहीं आ रहा था यह थकावट की वजह से है या फ़िर किसी अनहोनी के होने का अंदेशा।उसने अपने बगल में सो रहे उमैर को देखा था, किसी सोते हुए बच्चे की तरह वह बेखबर था। उसके चेहरे पर हमेशा एक नूर सा रहता था, शायद यह नूर नेक होने की
जो तुम्हारा हो ना पाया, सोचो भला क्यों? उसे दिल मे बसाया बहुत क़दरदान थे तुम्हारे इस मकान के, काश के तुमने इशतेहार ना होता लगाया। अज़ीन बहन से लिपट कर उन्हें डरी हुई नज़रों से देख रही थी। ...Read Moreसे पहले वह उनसे इतना तब डरी थी जब वह इस घर में पहली दफ़ा आई थी। "तुम्हें क्या लगता है लड़की? अगर गलती से मेरे एक बेटे की शादी तुम्हारी बहन से हो ही गई है, तो क्या मैं यह गलती दोबारा दोहराना पसंद करूंगी? आसिफ़ा बेगम अपने मुंह से जैसे ज़हर उगल रहीं थीं। अरीज ने इस बेइज़्ज़ती
समझौता करते करते,एक उम्र के बादआदी हो गए हमऐ ज़िन्दगी!तेरे इम्तिहान के।अरीज और अज़ीन के बाबा इब्राहिम ख़ान श्यामनगर के एक एक्साईड मैनूफ़ैक्चारिन्ग कम्पनी में एक अच्छे ओहदे पे काम करते थे और मां इन्शा ज़हूर एक छोटे से ...Read Moreस्कूल की टीचर। दोनों कोलकाता में गोयनका काॅलेज ऑफ काॅमर्स एंड बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन में पढ़ते थे। इब्राहिम ख़ान एम्.काॅम कर रहे थे और इन्शा ज़हूर बी.काॅम। इन्शा पूरे काॅलेज में सबसे ख़ूबसूरत और हसीन लड़की थी। सुनहरा रंग, बड़ी बड़ी काली आंखें और उन आंखों को साया देती लम्बी घनी पलकें, भरे ख़ुबसूरत होंठ, काले लम्बे बाल, पतली खड़ी नाक,
यूं तो जि़न्दगी के मेले है.....फिर भी यहॉ हम सब अकेले है....मेहफ़िलों में तन्हाई है....यूं तो रौनकों के रेले है....दर्द किसी का ले सकते नही....ख़ुद ही अपनों ने झेले है....सफ़र होता तमाम नही....मन्जि़लों के झमेले है....काश के ख़्वाहिशों पे ...Read Moreहोता....हसरतों ने अज़ाब उन्डेले है।उस लिफ़ाफे के देने के ठीक दो दिन बाद इन्शा जो रात में सोई तो फिर उसकी कभी सुबह नहीं हुई।वह अरीज और अज़ीन को तन्हा छोड़ कर चली गई थी। कितना मुश्किल होता है ज़िन्दगी मां बाप के बग़ैर गुज़ारना। मां-बाप का साया औलाद को बेफ़िक्र बनाता है, एक ग़ुरूर बख़्शता है, निडर बनाता है।
रोना पड़ता है! कौन यक़ीन करता है? दिल की हालत पे यहाँ जीते जाते है मुकद्दमें आँसुओं के दस्तावेज़ पे। उसे अचानक से याद आया उसकी मां ने लिफ़ाफे के उपर किसी सुलेमान ख़ान का नाम लिखा था और ...Read Moreकिसी ख़ान विल्ला का था जो के कोलकाता में था। वह लम्हें में पहचान गयी थी, घूर फीर कर वह लिफ़फ़ा उसके हाथ में था। उसने झट से पलट कर देखा लिफ़ाफे का सील खुला हुआ था। उसके हाथ बड़ी तेजी से काम कर रहे थे जैसे वह एक लम्हा भी बर्बाद करना नहीं चाहती हो, उसे जानना था कि
कुछ देर के लिए ख़ामोशी छा गई थी। ज़मान साहब उसके जवाब के इंतजार में थे। अरीज की नज़र फ़र्श पर टिकी हुई थी। उसने सर उठाकर कहा था “मैं अपने बाबा से बहुत प्यार करती थी इसलिए नहीं ...Read Moreवह मेरे बाबा थे बल्कि इसलिए कि वह बहुत अच्छे इंसान थे। बहुत नर्म दिल थे और अपनी ज़ुबान के पक्के। वह कभी भी किसी बात पे वादा नहीं करते थे इसलिए नहीं कि वह निभा नहीं सकते थे बल्कि इसलिए कि उनकी आम लफ़्ज़ों में कहीं बात भी पत्थर की लकीर जैसी होती थी। अगर उन्होंने कुछ कह दिया
उमैर को चार सौ चालीस वाॅट का शाॅक लगा था। क्या उसके बाबा उस से मज़ाक कर रहे थे? या फिर शादी को ही मज़ाक समझ रहे थे। वह हैरानी और काफ़ी ग़ौर से उनका चेहरा देख रहा था ...Read Moreशायद वह मज़ाक ही कर रहे हो, अब शायद वो हंस पड़ेंगे, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ था। उसने कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोला था मगर कुछ कह नहीं सका।“क्या हुआ उमैर? तुम ने अभी अभी कहा था कि तुम मुझे इन्कार नहीं करोगे। तुम्हारी इस चुप्पी से मैं क्या समझूं? तुम्हारा इन्कार या फिर इकरार?” ज़मान ख़ान
उसने कभी नही सोचा था उसकी शादी ऐसे होगी। जल्दबाज़ी की बात अलग वह उस लड़की को जानता नहीं होगा, उस से पहले कभी मिला नहीं होगा यहां तक कि तस्वीर में भी नहीं देखा होगा। उसे उस लड़की ...Read Moreबहुत गुस्सा आया था जिसने उस से निकाह के लिए हां की थी। उसने अपने बाबा को ज़बान दी थी कि अगर वह लड़की शादी के लिए राज़ी हो जाती है तब वह भी तैयार हैं। वह अपनी ही कहीं बातों में फंस गया था। अब पीछे कोई रास्ता नहीं था। ज़मान ख़ान बहुत ख़ुश नज़र आ रहे थे। वह
यह उसके घर के पेपर्स थे, वह घर जिसमें वह रहता था, वह घर जो उसके नाम था, और अब ज़मान ख़ान चाहते थे कि वह यह घर अरीज के नाम कर दे। आख़िर क्यों? उसे समझ नहीं आ ...Read Moreथा, लेकिन अब वह कुछ कर नहीं सकता था, निकाह हो चुका था और अब आज या कल हर हाल में उसे अरीज को उसका हक़ देना था इसलिए उसने अपने दिमाग़ में उठ रहे कईं सवालों को पीछे छोड़ पेपर्स साइन कर दिया था और गुस्से से अरीज के सामने टेबल पर उन पेपर्स को पटक दिया था, सब
हालातों के बीच एक गहरा समन्दर है, उस पार उतरूं तो कैसे? अफ़सोस तैरने का हुनर कहां मेरे अंदर है। अरीज पूरी रात सो नहीं पाई थी इस डर से के कहीं उसकी आंख लग जाए और उमैर ना ...Read Moreजाए, सुबह फ़ज्र की अज़ान की आवाज़ कान में पड़ते ही वह सोफे से उठी थी। अज़ीन उसकी गोद में सर रखकर सोफे पर ही सो गई थी। उसने अज़ीन का सर अपनी गोद से उठाकर सोफे के कुशन के निचे रख दिया था। नज़रें इधर उधर दौड़ाते ही उसे कमरे में एक स्लिडिंग डोर दिखा था अरीज को लगा
इस चाक दिल की मरम्मत कर दो हौसला टूटने से पहले थोड़ी अज़मत कर दो। “तुम यहां क्या कर रहे हो?” ज़मान ख़ान उमैर को ढूंढते हुए अपने पुराने बंगले में आ गए थे, जो अरीज को देन मेहर ...Read Moreदिए गए बंगले के बिल्कुल बगल में ही था। इस बंगले को उन्होंने किराए पर दिया हुआ था लेकिन चार महीने पहले ही बंगला खाली हो गया था जिस वजह से वहां काफ़ी धूल और गर्द था। उमैर बंगले की सफ़ाई के लिए घर से ही दो नौकर ले आया था। बंगले में हो रही हलचल महसूस कर के ज़मान
हदीद!” उमैर अभी अभी बाहर से आ रहा था और उसने अज़ीन को धक्का देते हुए देख लिया था। वह हदीद पर चिल्लाते हुए दौड़ाते हुए आया था। अज़ीन औंधे मुंह गिरी हुई थी। उसने हदीद को घूरते हुए ...Read Moreपर घुटने के बल बैठकर अज़ीन को सीधा किया था और परेशान हो गया, झूले के सामने नीचे हदीद की रीमोट कन्ट्रोल कार थी जिसके उपर गिरने से अज़ीन की पेशानी पर चोट लगी थी और उसमें से बहुत ख़ून निकल रहा था। अज़ीन दर्द के मारे रो रही थी, उमैर उसकी पेशानी का जायज़ा ले रहा था कि कितना
वह लोग घर पहुंच गए थे, उमैर ने कार से उतर कर अज़ीन को गोद में उठा लिया था और उसे लेते हुए उपर अपने कमरे कि तरफ़ जा रहा था, अरीज उसके पीछे पीछे थी जबहि आसिफ़ा बेगम ...Read Moreनज़र उन तीनों पर पड़ी। “यह क्या नाज़ नखरे उठाए जा रहे हैं?” उमैर वहीं रुक गया था और मां को देखने लगा था, वहीं दूसरी तरफ़ अरीज का ख़ून सूख गया था। उमैर कुछ कहने ही वाला था कि तभी उनके पीछे से आवाज़ आई थी। “क्या हुआ? सब खैरियत?” ज़मान ख़ान औफ़िस से अभी अभी लौटे थे। उनकी
वह कमरे में चुप बैठी, ख़यालो में खोई हुई थी जब आसिफ़ा बेगम उसके कमरे में आई थी, बिना दरवाज़ा खटखटाए, वह बस जैसे रेड डालने आई थी। अरीज उन्हें देखते ही अंदर से सहम गई थी और अपनी ...Read Moreसे उठ भी गई थी, वही हाल अज़ीन का भी था। “बहुत हो गई ख़ातिरदारी, तुम्हारे बाप-दादा ने तुम्हारे लिए कोई नौकर नहीं छोड़ गए हैं, जो तुम महारानी बनकर इस कमरे में आराम फरमा रही हो।“ जाने आसिफ़ा बेगम की ज़ुबान थी या दो धारी तेज़ तलवार, जो ना आव देखती थी ना ताव, बस धुएंधार वार पे वार
वह सिढ़ियां चढ़ती, सोनिया के कमरे में पहूंची थी, उसका कमरा काफ़ी बड़ा और साथ ही साथ बोहत ख़ूबसूरत भी था। वह आते ही काम में लग गयी थी। उसका रूम काफी ज़्यादा बिखरा और गंदा था, उसका रूम ...Read Moreकर मालूम हो रहा था कि बहुत दिनों से वहाँ की सफाई नही की गयी हो। इतने ज़्यादा गंदे कमरे की सफाई में देर तो होनी ही थी, मगर एक एक चीज को संभल संभल कर साफ करने में और भी ज़्यादा वक़्त लग गया था। तीन घंटे की मेहनत के बाद उसका कमरा बिल्कुल साफ हो गया था। वह
“तुम क्या सच में पागल हो?” यह क्या खिला रही हो तूम उसे, तुम्हारा दिमाग तो ठीक है?.....वह बच्ची खाना नहीं चाह रही हैं ये।“ उमैर सच में हैरान रह गया था। दुसरी तरफ अरीज को आसिफ़ा बेगम की ...Read Moreहुई धमकी याद आई थी। उमैर उसे ग़लत पे ग़लत समझे जा रहा था मगर वह अपनी सफाई में एक लफ़्ज़ भी नहीं कह सकती थी। अरीज उमैर को कुछ नही कह सकती थी की वह ऐसा खाना अपनी छोटी बहन को क्यों खिला रही है, मगर ९ साल की अज़ीन को वाकई बोहत जोरों की भूक लगी थी और
अरीज किसी गहरी सोच की खाई में डूबी हुई बेड पर लेती हुई थी। हाँ एक सोच ज़ेहन में ज़रूर थी...मगर बेवजूद सी, बेनाम सी। बदन दर्द से अलग टूट रहा था, भूक ने पेट में अलग ऐठन लगाई ...Read Moreथी, तो ज़हन भी सुना पड़ा हुआ महसूस हो रहा था। उसकी आँखें सीलिंग पर टिकी जाने क्या निहार रही थी जभी उमैर कमरे में दाखिल हुआ। वह हड़बड़ा कर उठ बैठी थी, जैसे उसने उमैर के बेड पर लेट कर कोई बड़ा गुनाह कर दिया था। अरीज की इस हड़बड़ाहट को देख कर उमैर शर्मिंदा हो गया जैसे उसने
Waiter…..? Menu please….?” उमैर ने वेटर को एक बार फिर से menu लाने को कहा था। जो वह ऑर्डर लेते वक़्त अपने साथ ले गया था।वेटर उसे फिर से menu थमा कर चला गया था। उमैर ने वो मनु ...Read Moreके आगे रखी थी और खुद फिर से खाने में मशगुल हो गया था। इस बार अरीज ने अपनी choice का हिंदुस्तानी खाना ऑर्डर किया था। वेटर उसका खाना उसके आगे टेबल पर रख कर चला गया था। अरीज खाना खा रही थी मगर उसका ज़हन उमैर की कही हुई बातों में उलझ हुआ था। इतनी देर में ना अरीज
अरीज की टैक्सी खान विल्ला के गेट के बाहर रुक गयी थी। अरीज टैक्सी में बैठ तो गई थी मगर उसके पास किराया देने के लिए पैसे नहीं थे इसलिए उसने अपने कान में पहनी हुई एक सोने की ...Read Moreसी बाली उतार कर उस driver को दे दी। उसकी इस हरकत पर driver हैरान रह गया था। वह एक अच्छा इंसान था। किसी की मजबूरी का फायदा उठाने वालों में से नहीं था इसलिए उसने वह सोने की बाली लेने से इंकार कर दिया लेकिन दूसरी तरफ़ अरीज भी किसी का क़र्ज़ अपने सर रखने वालों में से नहीं
वह बे मकसद ड्राईव करते करते बोहत दूर निकल गया था। इतनी दूर की अब कच्ची पक्की सड़के ही मिल रही थी .... शहर बोहत पीछे रह गया था और वह बोहत आगे सिर्फ़ सड़कों के मुआम्ले में ही ...Read Moreज़िंदगी के मुआमले में भी। उसके सामने अब सिर्फ़ हरियाली थी, सब कुछ हरा भरा था, उसे सुकून की ज़रूरत थी, ताज़ी हवा की ज़रूरत थी, सो इनकी तलाश में वह भटकता हुआ यहाँ तक पहुंच गया था। एक नदी के किनारे उसने अपनी गाड़ी रोकी थी। वह गाड़ी से बाहर निकल कर बोन्नेट से टेक लगा कर खड़ा हो
उमैर की बात खत्म होते ही सनम वहाँ पर ठहर ना सकी, वह गुस्से में चलती हुई कार में आकर बैठ गई थी। उमैर वहीं पे खड़ा रह गया था। सूरज पूरा डूब चुका था और अब अंधेरे में ...Read Moreअपनी मद्धम सी रोशनी को बिखेरने की कोशिश में लग गया था। वह जगह काफी सुंसान थी... आस पास उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था। झिंगुर(एक कीड़ा) की आवाज़ ने अलग ही शोर मचा रखा था उमैर अब और भी ज़्यादा मायूस हो चुका था। वह भी चलता हुआ कार में आ कर अपनी ड्राइविंग सीट संभल चुका
अरीज को यकीन नहीं हो रहा था। वह आसिफ़ा बेगम को इतना कुछ सुना चुकी थी मगर बदले में उन्होंने उसे एक लफ्ज़ भी नहीं कहा था। वह थोड़ी देर उनके बोलने का इंतज़ार करती रही मगर जब उन्होंने ...Read Moreनहीं कहा तो वह कमरे से जाने के लिए मुड़ गयी और अपने सामने दरवाज़े पर उमैर को खड़ा पाया। अरीज ने एक पल उसे देखा और दूसरे ही पल उसे नज़र अंदाज़ कर के उसके बगल से निकल गई, मगर उमैर उसे नज़र अंदाज़ नहीं कर सका। वह अपनी आँखों में तमाम तर नफरतें लिए उसे घूरता रहा यहाँ
ये क्या उनके बेटे को ऐसी लड़की पसंद आई है जिसके माँ और बाप separate हैं और जो ख़ुद नौकरी कर के अपना गुज़ारा कर रही है। अगर ऐसा है तो फिर क्या फ़र्क है सनम मे और अरीज ...Read Moreहाँ फ़र्क तो है...सनम इंशा ज़हूर और इब्राहिम खान की बेटी नहीं है...मगर अरीज है। सबसे बड़ा फ़र्क भी यही है...और आसिफ़ा बेगम की नफ़रत की वजह भी। इब्राहिम खान वही इब्राहिम खान था जिसने आसिफ़ा बेगम की छोटी बहन अतीफ़ा को ठुकरा कर इंशा ज़हूर से शादी की थी। अतीफ़ा अपने मोहब्बत के हाथों ठुकराए जाने का गम बर्दाश्त
मैंने मोम से बात कर ली है... वह तुमसे मिलना चाहती हैं।“ उमैर और सनम दोनों एक कैफ़े में बैठे हुए थे जब उमैर ने उसे ये खुशखबरी सुनाई थी। “सच वह मान गई?” सनम ने खुशी के मारे ...Read Moreचीखते हुए उस से पूछा था।“हाँ।“ उमैर उसकी ख़ुशी देख कर मुस्कुरा रहा था।“मुझे यकीन नहीं हो रहा है....हमारी शादी होने वाली है। “ वह ख़ुशी के मारे पागल हुई जा रही थी। “बात करवा दूँ उनसे?” उमैर ने तुरंत अपना मोबाइल फोन अपनी जेब से निकाला था। “नही नहीं.... मैं already बोहत nervous हूँ। सनम ने बड़ी फुर्ती से
“आई एम सॉर्री उमैर....मैं बोहत मायूस हो गई थी इसलिए फ्रस्ट्रेशन में वो सब बोल गई....मुझ से गलती हो गई...please मुझे माफ कर दो।“ वह बोहत जल्दी जल्दी बोल रही थी। उमैर ने अपनी कार रिवर्स में की थी। ...Read Moreसॉर्री कहने की देर थी की उमैर ने उसके पास वापसी का इरादा बना लिया था। मगर उसके पास पहुंच ने से पहले, वह भी अपने दिल का हाल कह देना चाहता था सो उसने गाड़ी वापसी के रास्ते में डाल कर गाड़ी को साइड पर लगा दी थी। “आई लव यू सनम....आई लव यू सो मच...मैं तुम्हे खोना नहीं
आप कुछ कह रहे थे।“ उमैर को चुप देख अरीज ने उसे टोका था। वह जैसे अपने होंश में वापस लौटा था। उसे समझ नहीं आ रहा था की कैसे कहे। उसने थोड़ा सोच कर अपनी बात की शुरुआत ...Read Moreथी। “Actually मुझे तुम से कुछ पूछना था। तुम ने उस दिन कहा था की जिस तरह बाबा ने इस निकाह के लिए मेरे साथ जबरदस्ती की थी उसी तरह तुम्हारे साथ भी की थी तो क्या.... “ उमैर कह ही रहा था की अरीज ने उसे टोक दिया था। “नहीं... उन्होंने मेरे साथ कोई ज़बरदस्ती नहीं की थी.... मेरी
मोम मेरा निकाह अलग चीज़ है और सोनिया का ये रवैय्या अलग चीज़। इकलौती कह कह कर आपने उसे ऐसा बना दिया है। अगर वह इकलौती है तो उसने हम पर या किसी पर कोई एहसान नहीं किया है ...Read Moreहम उसकी हर खुदसरी को बर्दाश्त करते रहेंगे।“ उमैर की बात पे अब आसिफ़ा बेगम को तीख लग गई थी मगर फिल्हाल वह उमैर से बहस कर के अपना प्लेन बर्बाद नहीं करना चाहती थी। उमैर के साथ के बदोलत ही उसे अरीज को इस घर से और उसकी ज़िंदगी से बाहर करना था। उमैर की बात पर अरीज ने
आज रात ही ज़मान खान वापस घर आ गए थे और आते ही उन्होंने सब से पहले अरीज और अज़ीन को देखने उसके रूम गए थे। उन्हे देखते ही अरीज उन्हे सलाम कर के उनके सीने से जा लगी ...Read Moreजैसे एक बेटी को उसके बाप के आने की ख़ुशी होती है ठीक वैसे ही। “मैंने आपको बोहत मिस किया।“ अरीज उनसे अलग होते ही कहने लगी थी। “मेरा भी पूरा ध्यान आप दोनों की तरफ़ ही लगा हुआ था। कैसी है आप?... मेरे पीछे आपको किसी ने तंग तो नहीं किया?” वह थोड़ा संजीदा हो कर पूछ रहे थे।
अज़ीन बिना कुछ कहे बस हदीद को देखे जा रही थी। वह जितना उसे देख रही थी हदीद का खून उतना ही ज़्यादा सूख रहा था। “इतने दिन हो गए और अभी तक तुम्हें इसका नाम तक नहीं पता ...Read Moreज़मान खान को इस बात पर हैरानी हुई थी। उनकी बात पर हदीद का गला सूख गया था सो उसने फिर से पानी पीना शुरू कर दिया। उमैर हदीद की घबराहट को समझ गया था की वह क्यों अज़ीन को अपनी दोस्ती की औफर कर रहा है, उसे हदीद पर हँसी आ रही थी मगर फ़िल्हाल वह अपनी हंसी दबा
वह कल रात ही स्टोर रूम में शिफ़्ट हो गई थी। उस कमरे का एहसास ही उसे सुकून दे गया था। उस कमरे की हर एक शय में उसे उसके बाबा के होने का एहसास हो रहा था। उस ...Read Moreके हर एक सू में जैसे एक पॉज़िटिव वाइब्ज़ थी जिसमें वह खुद को घिरा हुआ महसूस कर रही थी। सुबह फज्र की नमाज़ अदा कर के वह लॉन में निकल आई थी चहल क़दमी के इरादे से। चलते चलते वह वहीं पहुंच गई थी जहाँ वह कल उमैर के साथ मौजूद थी और वह काफी हैरान हुई थी जब
ज़मान खान को ना तो अरीज ने कुछ बताया था और ना ही अज़ीन ने। दरासल वह अपनी बेगम आसिफ़ा को बोहत ही ज़्यादा अच्छी तरीके से जानते थे। उन्हें पता था उनकी बीवी किसी ना पसंद शख़्स के ...Read Moreक्या सलूक कर सकती है, वो भी अरीज जो उनके दुश्मन की बेटी थी। वह उसके साथ कुछ उल्टा सीधा ना करे ऐसा तो हो ही नहीं सकता था। वह अरीज और अज़ीन को हरगिज़ भी छोड़ कर business के सिलसिले में शहर से बाहर नहीं जाना चाहते थे, लेकिन अगर वो नहीं जाते तो फिर और कौन जाता? जब
ज़मान खान उन दोनों बहनों को खिला कर उमैर को ढूंढते हुए उसके कमरे में आए थे। उमैर अपनी बेड पे सीधा लेटा हुआ था उसकी टांगें बेड से नीचे लटक रही थी। “बोलो क्या बात करनी थी तुम्हें?” ...Read Moreखान आते ही उस से पूछ बैठे थे। “बाबा अगर आपको याद होगा तो आपने मुझ से कहा था की आपके लिए मेरी ख़ुशी ज़्यादा एहमियत रखती है?” वह बेड पर से उठ कर खड़ा हो गया था और अब ज़मान खान के बिल्कुल आमने सामने खड़ा था। “हम्म! ये सच है मेरे नज़दीक तुम्हारी खुशी बोहत एहमियत रखती है।“
अरीज बिल्कुल खामोश थी हालांकि उसके दिल में तबाही जैसा आलम मचा हुआ था। वह पत्थराई हुई आँखों से एक टक उमैर को ही देख रही थी। आज उसे पता चला था इस रिश्ते से इंकार करने की असल ...Read Moreक्या थी? एक वादा था... किसी का भरोसा था जो उमैर नहीं तोड़ना चाहता था भले ही इसके लिए वह बाकी रिश्तों को तोड़ देता या फिर किसी के दिल को। हाँ! दिल तो टूटा था अरीज का मगर बेआवाज़ इसलिए शायद उमैर को अंदाज़ा नहीं हुआ था अरीज के तकलीफ का। वह बड़ी ढिटाई से अरीज को देख रहा
उमैर खुद को किसी पाताल में गिरा हुआ महसूस कर रहा था। वह अपनी लड़ाई खुद लड़ने आया था मगर उसे ऐसा लग रहा था की अरीज ने उसे जीत भीख में दे दी हो। वह अपनी लड़ाई लड़े ...Read Moreही जीत गया था और उसे ये जीत हरगिज़ नहीं भा रही थी। लेकिन अब वह कर भी क्या सकता था? सनम के साथ शादी से इंकार? सिर्फ़ अपनी अना (ego) में इसलिए की अरीज ने उसे सनम की भीख दी थी?... और अरीज वह कौन थी? उसे अचानक से हॉस्पिटल का वो admit फॉर्म याद आया था जब वह
उमैर की नज़रें उन काग़ज़ के टुकड़ों के ढेर पर टिकी हुई थी। अभी अभी ये क्या हुआ था? क्या कोई ऐसा भी कर सकता था? ये जानते हुए भी की इस घर पर उसका हक़ है। एक हक़ ...Read Moreइस घर के वारिस होने का.... और दूसरा हक़ उसके मेहर का। उसने इतनी आसानी से दोनों हक़ ठुकरा दिए थे। उमैर को यकीन नहीं हो रहा था। वह ऐसा कैसे कर सकती थी? “इतनी छोटी सी उम्र में इतना ख़ुराफ़ाती दिमाग़ कहां से मिला तुम्हें?” उमैर के कानों में अपनी ही कही गई बात गूँज रही थी। अरीज से
लगभग एक घंटा वह वैसे ही बैठा रहा था। बिल्कुल खामोश, विरान सा। ज़मान ख़ान भी उसे छोड़ कर कहीं जाने को तय्यार नहीं थे। वह उठा था और बिना एक लफ्ज़ कहे कमरे से जा रहा था। ज़मान ...Read Moreने उस से बेचैन होकर पूछा था। “कहाँ जा रहे हो उमैर?” इस सवाल पर उसके बढ़ते क़दम थमे थे मगर वह मुड़ा नहीं था। “घबराए नहीं। मैं मरने नहीं जा रहा।“ उसकी इस बात पे ज़मान खान तड़प गए थे। उनका जवान बेटा इस क़दर टूट चुका था। उन्हें बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था की ज़िंदगी में कभी ऐसा भी
दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई थी। उमैर घर नहीं लौटा था। ज़मान खान ऑफिस नहीं जा सके थे, उनकी हिम्मत नहीं हुई थी कहीँ भी जाने की। अरीज अपने कमरे में बंद थी, सोनिया दोस्तों ...Read Moreसाथ आउटिंग पे गई हुई थी मगर आसिफ़ा बेगम बेचैनी से पूरे घर में उमैर को ढूंढ रही थी…. उन्हें वह अन्नेक्सी में नहीं मिला तो वह उसे ढूँढती हुई उसके कमरे में चली गई फिर उसके बाद नौकरों से कह कर अपने दूसरे बंगले भी उसे धुंधवा लिया मगर उसका कोई आता पता नहीं था। दरासल उन्होंने दोपहर में
अरीज!.... अरीज!” आसिफ़ा बेगम उसका नाम ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही थी। तभी नसीमा बुआ वहाँ उनकी आवाज़ सुनकर पहुंची थी।“क्या हुआ बेगम साहिबा…?” नसीमा बुआ घबराई हुई उनसे पूछ रही थी।“तुम्हारा नाम है अरीज?... हाँ?... बोलो?...” वह उन्हीं ...Read Moreबरस पड़ी थी।“बेगम साहिबा वह तो अपने कमरे में है”।“कमरे से तो मैं आ रही हूँ, नहीं है वहाँ पे वो मनहूस”। उनका बस नहीं चल रहा था की वह अपना सारा गुस्सा नसीमा बुआ पर ही निकाल दे।“जी… वह उमैर बाबा के कमरे में नहीं… अपने कमरे में है”। नसीमा बुआ ने उनकी सोच को सही किया था।“अपने कमरे
अरीज अपना दर्द भूल कर अब आसिफ़ा बेगम को फटी फटी आँखों से देख रही थी। कुछ देर पहले उसके गाल पर रखे उसके हाथ अब मूंह पर रखे थे। दूसरी तरफ़ आसिफ़ा बेगम के आँखों में जैसे खून ...Read Moreआया था। वह एक घायल शेरनी की तरह ज़मान खान को देखे जा रही थी। “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई उसे हाथ लगाने की?.... क्या सोच कर तुमने उस पर हाथ उठाया?...” ज़मान खान जैसे अपने लफ़्ज़ों को चबा चबा कर बोल रहे थे। उनकी आँखें गुस्से से लाल हो रही थी। “आपने मुझ पर हाथ उठाया?... वो भी इस दो
अरीज अज़ीन को अपने कमरे में पढ़ा रही थी तभी अचानक से हदीद वहाँ पर आ गया। अज़ीन उसे देख कर थोड़ी देर के लिए लिखना भूल गई थी। अज़ीन का यूँ ठेहरा हुआ अंदाज़ देख कर अरीज ने ...Read Moreनज़रों का पीछा कर के अपने पीछे मुड़ कर देखा और हदीद को पाया। “वहाँ दरवाज़े पर क्यों खड़े हो?... अंदर आ जाओ।“ अरीज ने खुश दिली से कहा था, अज़ीन थोड़ा घबरा गई थी। उसका अब पड़ने में ध्यान नहीं लग रहा था। हदीद थोड़ी देर रुक कर दरवाज़े पर खड़े होकर कुछ सोचता रहा उसके बाद फिर अंदर
अरीज बोहत सोच समझ कर उनके ऑफिस के बाहर खड़ी थी। उसने एक हाथ में ज़मान खान के लिए चाय पकड़ी हुई थी और दूसरे हाथ से वह उनके ऑफिस के दरवाज़े को knock कर रही थी। ज़मान खान ...Read Moreअपने काम पर नज़रें टिकाए हुए आने वाले को अंदर आने की इजाज़त दी। अरीज को अंदर आता देख उनके चेहरे पर मुस्कुराहट फेल गई, उन्होंने अपना लैपटॉप खुद से थोड़ा परे किया। अरीज ने भी मुस्कुरा कर उन्हें देखा। “कसम से... चाय की बड़ी तलब हो रही थी... मैं अभी चाय के लिए बोलने ही वाला था।“ उन्होंने अरीज
मिस्टर खान, अज़ीन की मैथ्स और बंगाली बोहत अच्छी है मगर उसकी इंग्लिश बोहत वीक है इसलिए वह ये टेस्ट पास नहीं कर पाई और मुझे बोहत अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा हम उसे हमारे स्कूल में एडमिशन ...Read Moreदे सकते।“ हदीद के स्कूल की प्रिंसिपल ने ज़मान खान से दो टोक बात की थी। “मैम अज़ीन ने मैथ्स और बंगाली में कितना स्कोर किया है?” ज़मान खान प्रिंसिपल की बात को छोड़ अपना ही सवाल ले कर बैठ गए थे। “In maths 100 upon 100 and in bengali 100 upon 97.” प्रिंसिपल ने एक नज़र पेपर पर दौड़ाते
अरीज... अज़ीन.... अरे! कहाँ हो आप दोनों।“ ज़मान खान उनके कमरे की तरफ़ आते ही उन्हें ज़ोर ज़ोर से पुकारने लगे। अरीज जो बेडशीट लगा रही थी यकायक उसके हाथ थम गए थे और अज़ीन अरीज की कीपैड वाली ...Read Moreपर गेम खेलने में मसरूफ़ थी वह भी चौकन्ना हो गई। ज़मान खान हाथों में मिठाई का डब्बा लिए हुए कमरे में आ गए थे। “चलो मेरी शाहज़दियों जल्दी जल्दी अपना मूंह मीठा करो।“ वह कहने के साथ साथ अरीज और अज़ीन का मूंह भी मीठा करवा रहे थे। “क्या हुआ बाबा?.... मिठाई किस खुशी में?” अरीज ने बध्यानी में
उमैर खुद के लिए शॉपिंग करने के इरादे से शॉपिंग माल आया था। उसके पास सिर्फ़ दो जोड़े कपड़े थे पहनने के लिए। एक जोड़ी जो वो अपने घर से पहन कर आया था और दूसरी जोड़ी वो जो ...Read Moreउसके लिए मजबूरन लेकर आई थी। हदीद के स्कूल से आने के बाद उमैर सनम को मॉल लेकर आ गया था। सनम शॉपिंग के लिए झट से तैयार हो गई क्योंकि आज उसने ऑफिस से छुट्टी ली हुई थी। उमैर ने बोहत सारी शॉपिंग तो नहीं की थी मगर हाँ अपनी ज़रूरत का थोड़ा बोहत समान ले लिया था और
मोम मुझे यकीन नहीं हो रहा है... बाबा ऐसा कैसे कर सकते है?... मुझे याद नहीं की उन्होंने मुझे कभी इतनी सारी शॉपिंग कराई हो...”सोनिया को अरीज की शॉपिंग बैग्स देख कर ही सदमा लग गया था। वह गरदन ...Read Moreउस वक़्त चहल कदमी करते हुए अपने मोबाइल फोन से फेसबुक चला रही थी जब ज़मान खान की गाड़ी मैन गेट से अंदर आई थी। उसने पहले तो ध्यान नहीं दिया, कार गार्डेन के बीच बनी पक्की राहदारी से होते हुए कार पोर्च की तरफ़ बढ़ रही थी, जब उसकी नज़र कार की पिछली सीट पर बैठी अरीज पर गई
ये वही कमरा था जहाँ उसने उमैर को घर से जाने से पहले आखरी बार देखा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था उसका एहसास अभी तक इस कमरे में बाकी है। हदीद उसे इस कमरे में लेकर आया ...Read Moreउमैर के कहने के मुताबिक वह वैसा नहीं कर पाया था। उसे ये काम खुद करना चाहिए था मगर जैसे वह उमैर के कमरे में आया उसे पूरा कमरा घूमता हुआ नज़र आ रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था क्या और कैसे करना है इसलिए वह अपनी माँ आसिफ़ा बेगम के पास गया था मगर उन्होंने तो उसकी
जाने क्यों इतनी शिद्दत की तकलीफ़ सहने के बावजूद उसके आँखों से एक क़तरा आँसू नहीं निकला था। हाँ इतना ज़रूर हुआ था की आगे उसकी हिम्मत नहीं बढ़ी थी की ऐसे कुछ और तस्वीरें देखती। उसने सारे फोटोज़ ...Read Moreसे envalope में डाले थे। मन बोहत भारी हो रहा था मगर फिर भी वह हदीद के दिए हुए काम को दिलो जान से सर अंजाम दे रही थी। थोड़ी देर की और कोशिशों के बाद उसके हाथ wardrobe की चाभी का गुच्छा उसके हाथ लग गया था। एक के बाद दूसरी सारी drawers उसने खोल कर देखी थी और
थोड़ी देर के इंतज़ार के बाद उनके कैबिन का डोर नॉक हुआ था। ज़मान खान से अंदर आने की इजाज़त मिलते ही एक पैन्तालिस साल की ग्रेसफुल औरत अंदर आई। “अससालामु अलैकुम मिसेज़ सिद्दीकी कैसी है आप?” उन्हें सलाम ...Read Moreहुए ज़मान खान अपनी कुर्सी से उठ गए थे। उन्हें ऐसा करते देख अरीज भी खड़ी हो गई थी और अज़ीन तो वहाँ पर रखे मैगज़ीन को उलट पलट कर देख रही थी। “वालेकुम सलाम मिस्टर खान...अल्हमदुलिल्लाह...मैं बिल्कुल ठीक हूँ.... आप कैसे है?”“अल्हमदुलिल्लाह बोहत बढ़िया... इनसे मिलिए ये है मेरी बेटी... अरीज और अज़ीन।“ ज़मान खान उनके पास आए थे
आसिफ़ा बेगम, सोनिया के साथ साथ घर के तमाम नौकर भी अरीज को देख कर हैरान रह गए थे। आसिफ़ा बेगम और सोनिया तो जल भुन गई थी... मगर नसीमा बुआ ने दिल ही दिल में उसे सराहा था। ...Read Moreमें एक वह और दूसरे driver नदीम ही तो थे जो अरीज की हक़ीक़त जानते थे (की वह उमैर की बीवी है) बाकी सभी को बस इतना पता था की वह इब्राहिम खान की बेटी है। अरीज को देख कर ज़मान खान के दिल में टीस उठी थी... वह यही सोच रहे थे की काश अभी उमैर भी उनके साथ
नेहा का साथ अज़ीन के लिए किसी नेमत से कम नहीं था। आज उन दोनों की दोस्ती का पहला दिन था तो यूँ दोनों के दरमियाँ बोहत ज़्यादा बातें नहीं हुई थी। मगर हाँ एक दूसरे की कम्पनी से ...Read Morecomfortable थे। यूँ एक के बाद दूसरा... तीसरा... और बाक़ी सारी classes भी ख़तम हो गई थी। अज़ीन ने चैन का साँस लिया था की अब उसकी जान इन classes से छूटी।सारे बचे rules and discipline फॉलो करके लाइन बना कर अपनी अपनी क्लास से निकल रहे थे। अज़ीन भी क्लास से निकल कर स्कूल के ग्राउंड में हदीद का
पूरा स्कूल लगभग खाली हो चुका था। कुछ ही बच्चे नज़र आ रहे थे। Driver ने पूरे ग्राउंड में छान मार लिया मगर अज़ीन उसे कहीं भी नज़र नहीं आई थी। उसने ऑडिटोरियम, में जाकर देखा मगर उसका कहीं ...Read Moreआता पता नहीं था। चूंकि स्कूल बोहत ज़्यादा बड़ा था इसलिए उसका पूरी जगह तलाश करना मुश्किल था इसलिए उसने दरबान, मासी सब से पूछ लिया मगर उसके सवाल पर अंजान थे। एक दो मासी ने स्कूल के सारे classes में भी देख लिया। जब कहीं भि उसका पता नहीं चला तब हार कर driver ने ज़मान खान को कॉल
हदीद को अपनी मुश्क़िलें खत्म होने की बजाय बढ़ती हुई दिख रही थी। अगर पुलिस अज़ीन को ढूंढ लाती है तो हदीद की खैर नहीं और अगर ना ढूंढ पाती है तो अरीज को कुछ हो जाएगा और अरीज ...Read Moreउसकी भाभी थी। इस से पहले तो उसे अरीज से इतना लगाव नहीं हुआ था मगर अभी उसका जो हाल हदीद देख रहा था उसकी जगह कोई और होता तो उसका भी दिल पिघल जाता ... उपर से हदीद ने अरीज से वादा भी किया था की उसकी हेल्प करेगा। अगर अरीज अभी उस से उस वादे का पूछ बैठती
अज़ीन को देखते ही अरीज की हालत संभल गई थी इसलिए उसे डॉ ने हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया था। ज़मान खान अरीज और अज़ीन को घर ले आए थे और आते ही उन दोनों को आराम करने के ...Read Moreउनके रूम में भेज दिया था और खुद अपने कमरे में जा कर शुक्राने की दो रकत् नफ़ील् अदा की थी। आज उन तीनों पर क़यामत गुज़री थी मगर उन्हें अफ़सोस था की उनकी बीवी और बेटी को किसी के जीने मरने या फिर गुम हो जाने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। उन दोनों ने इंसानियत के नाते भी
हदीद के बढ़ते क़दम वही पे थम गए थे। उसे ज़मान ख़ान की तरफ़ मुड़ कर देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी। “ये नाश्ता अधूरा छोड़ कर क्यों जा रहे हो?” ज़मान खान ने रोबदार आवाज़ में कहा ...Read Moreउनकी बात सुनते ही हदीद की रुकी हुई साँसे बहाल हुई थी। “मैच प्रैक्टिस है... मैं लेट हो रहा हूँ।“ उसने बोहत धीमे लहज़े में कहा था। “कोई लेट नहीं हो रहा... नाश्ता कर के जाओ।“ उन्होंने अपना हुक्म सुनाया था... हदीद को उनकी बात माननी पड़ी थी। हदीद एक नज़र अज़ीन पर डाल कर वापस से कुर्सी पर बैठ
दो सालों के बाद..... वक़्त चाहे कितना भी भारी हो गुज़र ही जाता है। उमैर को घर छोड़ कर गए हुए लगभग दो साल से ज़्यादा हो गए थे। ये नहीं था की ज़मान ख़ान को कुछ पता नहीं ...Read Moreकी वह कहाँ है और क्या कर रहा है। वह एक बाप थे... उनका बेटा घर छोड़ कर चला गया था तो वह ऐसे कैसे उसे भूल सकते थे। उन्होंने बोहत पहले ही अपने आदमियों से पता लगवाया था की वह कहाँ है और क्या कर रहा है... उसकी ज़िंदगी कैसे गुज़र रही है... उसने सनम से शादी की के
इस साल बोहत ज़्यादा गर्मी पड़ी थी... न्यूज़ चैनल्स में हर साल की गर्मियों की रिकॉर्ड टूटने की खबर आ रही थी। कुछ लोग परेशान थे तो कुछ लोग अल्लाह की मर्ज़ी पर सब्र कर रहे थे। ऐसे मे ...Read Moreदोपहर मे अचानक से होने वाली बारिश ने सबको शादमान कर दिया था। और यही हाल सनम का भी था। “कितना अच्छा मौसम हो रहा है उमैर... चलो ना लाँग ड्राइव पर चलते है।“ उमैर अपने लैपटॉप पे अपनी आँखें गाड़े बैठा था। जब सनम ने खिड़की की तरफ़ देखते हुए कहा था। “मुझे बोहत काम है सनम... “ उमैर
उमैर की चुप ने अरीज को मूंह खोलने पर मजबूर कर दिया था। “हम दोनों सेकंड cousins है।“ अरीज ने सनम को जवाब दिया था। उसके जवाब ने उमैर को उसकी तरफ़ देखने पर मजबूर कर दिया था। “What? ...Read Morecan’t believe…” सनम ने हैरानी का मुज़ाहिरा किया था। उमैर बिल्कुल ख़ामोश रहा था। उसके बाद ना सनम ने कुछ कहा था और ना ही अरीज ने। “मेहफ़िल में कैसे कह दे किसी से दिल बंध रहा है एक अजनबी से हाए करे अब क्या जतन सुलग सुलग जाए मन भीगे आज इस मौसम में लगी कैसी ये अगन रिम
अरीज उन दोनों को लेकर लिविंग रूम में पहुंची थी। “आप दोनों बैठें... मैं आंटी को बुला कर लाती हूँ।“ अरीज चहकती हुई आसिफ़ा बेगम के कमरे की तरफ़ बढ़ी थी। “मैं भागा नहीं जा रहा हूँ... तुम पहले ...Read Moreकपड़े चेंज कर लो।“ उमैर खुद को बोहत देर से रोक रहा था...मगर फिर भी उसे देख कर रहा नहीं गया था। अरीज के लिए उमैर की फ़िक्र सनम को अच्छी नहीं लगी थी। “मैं पहले उन्हें बता देती हूँ।“ अरीज भी कहाँ रुकने वाली थी। उसके पैरों में तो जैसे पर निकल आए थे। वह गई थी और आसिफ़ा
उन दोनों को चाय नाश्ता सर्व करके अरीज वहीं पे सिंगल सोफे पर बैठ गई थी। आसिफ़ा बेगम और सनम एक साथ बैठी हुई थी और उन दोनों की अच्छी ख़ासी बन रही थी, उन दोनों को देख कर ...Read Moreसे भी ये नहीं लग रहा था की ये उनकी पहली मुलाकात है। वहीं उमैर सोचों में गुम नज़रें झुकाए बैठा हुआ था। “मैंने सोच लिया है... सनम भी अब कहीं नहीं जाएगी... वह भी अब हमारे साथ इसी घर में रहेगी।“ आसिफ़ा बेगम ने सनम को खुद से लगाते हुए ऐलान किया था। उनकी बात पर उमैर सोचों से
ये क्या किया है तुमने मेरे कमरे का हाल?” उमैर ने काफी गुस्से में चीखते हुए कहा था। अरीज ने पूरा कमरा अपनी नज़रों से छान लिया था मगर उसे ऐसा कुछ नज़र नहीं आ रहा था जिसकी वजह ...Read Moreउमैर का इतना गुस्सा होना जाइज़ था। अरीज समझ गई थी की बात कमरे की नहीं थी... बात उमैर की फ्रस्ट्रेशन की थी जो वो अरीज पार निकालना चाहता था... कोई भी बहाना कर के... ये सब समझने के बाद भी अरीज चुप रही। उसने कोई सफाई नही दी और ना ही ये कहा की उसका कमरा सिर्फ़ सफाई के
ऑफिस से घर आते ही जैसी ही ज़मान खान को उमैर के लौट आने का पता चला वह तुरंत उस से मिलने के लिए उसके कमरे में चले गए थे। उमैर अभी भी लैपटॉप मे अपना सर खपा रहा ...Read Moreज़मान खान को देखते ही उसने अपना लैपटॉप बंद कर दिया था और खड़ा हो गया था। “अस्सलामो अलैकुम बाबा” उमैर काफी संजीदा दिख रहा था। “वालेकुम अस्सलाम.... जीते रहो...” उन्होंने उसके सर पे हाथ रखा था... उमैर ने अपना सर थोड़ा झुकाया हुआ था। उसे थोड़ा अजीब सा लग रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था की उनसे
अपने माज़ी (गुज़रा हुआ वक़्त)) के तसव्वुर (imagination) से हैराँ सी हूँ मैं अपने गुज़रे हुए ऐयाम (दिनों) से नफ़रत है मुझे अपनी बेकार तमन्नाओं पे शर्मिंदा हूँ अपनी बसूद (बेकार) उम्मीदों पे निदामत (पछतावा) है मुझे मेरे माज़ी ...Read Moreअंधेरे में दबा रहने दो मेरा माज़ी मेरी ज़िल्लत के सिवा कुछ भी नहीं मेरी उम्मीदों का हासिल, मेरी काविश (कोशिश) का सिला एक बेनाम अज़ीयत के सिवा कुछ भी नहीं कितनी बेकार उम्मीदों का सहारा लेकर मैंने ऐंवाॅ (महल) सजाए थे किसी की खातिर कितनी बेरब्त ( बिना जुड़ा हुआ) तमन्नाओं के मुबहम (जो साफ़ ना हो) ख़ाके (outlines)
सब ने अपनी अपनी सीटें संभाल ली थी। हदीद और अज़ीन पीछे बैठे थे और अरीज उमैर के साथ सामने। उमैर बिल्कुल खामोश बैठा गाड़ी चला रहा था हलांकी उसके अंदर हलचल मची हुई थी और उसे परेशान कर ...Read Moreथी। तभी उसका सेल फोन बज उठा था। स्क्रीन पर सनम का नाम शो हो रहा था। उमैर न कॉल पिक कर ली थी। “हाँ बोलो क्या बात है?” उमैर ने जानबूझ कर सनम नाम अपने मूंह से निकालने से खुद को रोका था इसलिए नहीं की अरीज उसके साथ थी बल्कि इस लिए के हदीद और अज़ीन भी साथ
उमैर उसकी तरफ़ देखे बग़ैर उसके जवाब का इंतेज़ार कर रहा था। “ये बिल्कुल ग़लत बात है... मैं कोई टॉप नहीं करती कॉलेज में.... पता नहीं बच्चों ने ऐसा क्यों कहा था?” उसने जवाब देते हुए अपनी पेशानी पे ...Read Moreपसीने की नन्ही बूंदों को पोछा हालाँकि गाड़ी में ए. सी. चल रहा था। “तुम कॉलेज में टॉप करती हो या नहीं इस से मुझे कोई मतलब नहीं है। मैं बस तुमहारे कॉलेज का नाम जानना चाहता हूँ ताकि तुम्हें वहाँ पे ड्रॉप कर सकूँ।“ उसने गाड़ी चलते हुए एक नज़र उस पर डाल कर जैसे कुछ जताते हुए कहा
ये अभी अभी क्या हो गया था? अरीज को इस बात का ज़रा सा भी इल्म नहीं था की उमैर इस वक़्त यहाँ इस कमरे में मौजूद है। उसने तो ये सब ज़मान खान को तसल्ली देने के लिए ...Read Moreथा ताकि उनकी शर्मिंदगी और पछतावा कुछ कम हो सके... मगर यहाँ तो लेनी की देनी हो गई थी। पहले ही उमैर अरीज से इतना चिढ़ते है... उस से खार खाते है... हर बात पे उसे ताने देते है... अब उसके मूंह से ये सब सुन लेने के बाद और ना जाने क्या क्या बातें उसे सुनाएंगे। ये सोच कर