युगांतर - Novels
by Dilbag Singh Virk
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Hindi Moral Stories
हर अन्याय का अंत होता है, ग़लत कार्य करने वालों को सज़ा मिलती है। देर हो सकती है, लेकिन अंधेर नहीं चलता। गलत पर सत्य की जीत ही असली युगांतर होता है। इस उपन्यास में नशाखोरी राजनीति की शह पाकर फलती-फूलती है, लेकिन अंत इस उम्मीद से होता है कि युगांतर आ रहा है। धरातल पर यह अभी सपना है और युगांतर की उम्मीद हर कोई कर रहा है।
शहर से दूर, गाँव से बाहर, महलनुमा हवेली यादवेन्द्र की है। यह सिर्फ भूगौलिक रूप से ही गाँव व शहर से अलग नहीं है, बल्कि सामाजिक रूप से भी यह गाँव और शहर से कटी हुई है। क्यों कटी ...Read Moreहै ? शायद इसका कारण यही है कि समाज उनके लिए है, जो समाज के लिए हैं। जो समाज के विषय में नहीं सोचते, समाज उनके विषय में क्योंकर सोचे, लेकिन यादवेन्द्र को इसकी कोई चिंता नहीं। लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं, इसकी उसे परवाह नहीं। वह तो अपनी धुन में मस्त है। वह अपने ढंग से कमाता
शिक्षा तो तपस्या है और तपस्या करनी ही पड़ती है, खरीदी नहीं जाती। धन पुस्तकें खरीद सकता है, ज्ञान नहीं। हाँ, कभी-कभार डिग्रियाँ भी पैसे के बल पर मिल जाती हैं, लेकिन डिग्रियाँ प्राप्त करने और शिक्षित होने में ...Read Moreका अन्तर है। जो लोग डिग्रियाँ खरीदते हैं, उनकी तो छोड़ो, जो पढ़कर डिग्रियाँ हासिल करते हैं, वे भी सारे-सारे शिक्षित हो गए हों, ऐसा नहीं होता। यदि किसी को सिन्धुघाटी, न्यूटन, त्रिकोणमिति आदि का ज्ञान है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह बुद्धिमान है। परीक्षा में अंक प्राप्त करना और जीवन में सफल होना दो अलग-अलग बाते हैं।
स्कूल के अध्यापक को फटकारने के उद्देश्य से वह अगली सुबह स्कूल जा धमका। शिष्टाचार की रस्म को निभाना न तो बेटे ने उचित समझा और न ही बाप ने। मास्टर जी तब बैठे काम कर रहे थे। प्रतापसिंह ...Read Moreपास जाकर गरजे, "आपने मेरे बेटे को क्यों मारा?"मास्टर जी ने यादवेन्द्र की तरफ देखा, जो अपने पिता की ऊँगली पकड़े मुस्करा रहा था और फिर प्रतापसिंह को ओर देखते हुए बोले, "एक तो यह कभी भी घर से स्कूल का काम करके नहीं लाता, दूसरा इसने कल एक लड़के को मारा।""तो बच्चों की लड़ाई में आपको दखल देने की
जब जवानी का जोश और अमीरी का नशा हो, तब पढ़ना कौन चाहेगा? फिर यादवेन्द्र के लिए तो यह पढ़ाई आफत के सिवा और कुछ थी ही नहीं, इसलिए उसका बैल के सींग पकड़ना दुश्कर ही लग रहा था ...Read Moreउसने यह दुस्साहस भी कर ही लिया, क्योंकि उन दिनों 2 स्कूल और कॉलेज दोनों में होती थी और उसने सुन रखा था कि कॉलेज में स्कूलों की तरह न पढ़ने पर मार नहीं पड़ती, अनुशासन भी उतना सख्त नहीं होता और इसी बात को ध्यान में रखते हुए, उसने 10 1 के लिए कॉलेज में दाखिला ले लिया। कॉलेज
कॉलेज के चुनावों में आम चुनावों अर्थात लोकसभा, विधानसभा, नगरपालिका, पंचायत आदि के चुनावों की तरह वोट खरीदे नहीं जाते, क्योंकि कॉलेज के विद्यार्थी जागरूक होते हैं। वे वोट बेचने को अपनी शान और अपने अधिकार दोनों के खिलाफ ...Read Moreहैं, लेकिन कॉलेज के चुनावों पर भी अन्य चुनावों की तरह ही खूब खर्च होता है, क्योंकि वोटरों के लिए पार्टियों आदि का आयोजन होता है, इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से वोट खरीदे जाते हैं। कुछ उन पागल विद्यार्थियों का, जो दूसरी पार्टी के समर्थक हैं, अपहरण भी करना पड़ता है। अपहृत किए हुए विद्यार्थियों से बुरा व्यवहार करना कॉलेज
किसी भी विधायक को मंत्री बनने के बाद अपने सहयोगियों का उद्धार करने की सोच ज़रूर रखनी चाहिए। उसका अपना उद्धार तो उसी दिन हो जाता है, जिस दिन वह चुनाव जीतता है, लेकिन जिन सहयोगियों ने उसकी जीत ...Read Moreमुमकिन बनाया होता है, उनका उद्धार तब तक नहीं हो पाता, जब तक नेता जी अपना आशीर्वाद उन्हें प्रदान नहीं करते। आमतौर पर सभी नेता मलाई मिलते ही अपने सहयोगियों को भी थोड़ा-बहुत हिस्सा देना शुरु कर देते हैं। आखिर इन्हीं सहयोगियों की मदद से तो वे यहाँ तक पहुँचते हैं। फिर ये सहयोगी अपना घर-बार चौपट करते हैं, तो
रास्ते भर विचारों का ज्वार-भाटा उसके मस्तिष्क में उठता रहा। उसने पिताजी से पूछने की बात कही थी, लेकिन पूछने से पहले वह खुद भी इस निर्णय से सहमत होना चाहिए था। वह खुद से पूछ रहा था कि ...Read Moreयह उचित है ? एक पल वह सोचता कि इसमें खतरा है, लेकिन अगले ही पल वह खुद को समझाता कि सरकार अपनी है। कभी वह सोचता कि यह अनैतिक है और कभी उसे लगता कि इसमें पैसा है। यादवेन्द्र जो अपनी आर्थिक हालत से इस वक्त बौखलाया हुआ है, वह जानता है कि 'गरीबी तेरे तीन नाम, झूठा, पाजी,
चिंता और जीवन का तो चोली दामन का साथ है। जीवन रूपी सागर में चिंता रूपी लहरें उठती ही रहती हैं। प्रतापसिंह भी इसका अपवाद नहीं । उसे भी हर वक्त कोई-न-कोई चिंता लगी ही रहती है। वैसे कोई ...Read Moreचिंता स्थायी नहीं होती। यह भी प्रकृति का एक नियम है। हर कोई इस सच को जानता है, फिर भी हम तनावमुक्त रह नहीं पाते। चिंताओं से घबराना हमारी आदत बन गयी है। जिन्दगी के लम्बे सफर में अनेक चिन्ताओं पर अपनी विजयपताका लहराने वाला प्रतापसिंह अब भी चिंतित है। अब उसकी चिन्ताएँ पहले वाली चिंताओं से कुछ भिन्न प्रकार
कारण जो भी हो, परिणाम यह है कि शादी का दिन आ गया। 'शादी पर खर्च न हो' यह हजम होने वाली बात नहीं । हम खर्च कम नहीं कर सकते, भले ही हमें इस खर्चे से निपटने के ...Read Moreचोरी करनी पड़े या डाका डालना पड़े। इस परिवार ने धन कैसे कमाया था, यह बात भूलकर खर्च, इस तर्क के साथ कि और कमाए किस दिन के लिए जाते हैं, बड़ी दरियादिली से किया जा रहा है। सारी हवेली बिजली के बल्बों से चमचमा रही है। लाईट का प्रबन्ध रहे, इसके लिए एक जरनेटर भी चल रहा है। जनरेटर
मायके जाने का ख्याल भले उसे आया, लेकिन उसे पता था कि इस प्रकार मायके जाना अच्छी बात नहीं। 'पति-पत्नी में अगर तकरार हो जाए तो मायके का रौब नहीं दिखाना', यही तो सिखाया था उसकी माँ ने। वह ...Read Moreभी समझती थी कि रूठकर मायके जाने से रिश्ता नहीं निभ सकता। पति अब कैसा भी काम करता हो, अब उसका पति है। पत्नी के नाते वह पति से हर बात जानना चाहती है। पति की उसे चिंता है, इसीलिए वह पति से बात करना चाहती थी, उसे समझाना चाहती थी कि वे गलत कार्य न करें क्योंकि गलत कामों
राजनीतिज्ञों की जिन्दगी में सबसे महत्वपूर्ण चीज है चुनाव। राजनीतिज्ञ चाहे छोटा हो या बड़ा, चुनाव के समय हर खुशी, हर गम को भूल जाया करता है। चुनावों के दिनों में सोते जागते बस यही एक बात ध्यान में ...Read Moreहै कि कैसे जीता जाए, कैसे वोट हासिल किए जाए। तिकड़मबाजी के इस क्षेत्र में अपना कौशल दिखाने का समय फिर आ गया है। यादवेन्द्र अपने माँ-बाप की मृत्यु के गम को भुलाकर चुनावों के लिए प्रचार अभियान में जुट गया। उनकी सरकार ने पाँच वर्ष तक राज्य चलाया था। पहले चार वर्ष तो सरकार वालों ने अपने घर भरे
शांति जानती थी कि बड़ी मंजिल पाने से पहले छोटे-छोटे मोर्चे फतेह करने पड़ते हैं। वह सरकारी नौकरी करती थी, लेकिन नौकरी तक सीमित रहना उसका मकसद नहीं था। उसका पहला पड़ाव था अपने महकमें में धाक जमाना, लेकिन ...Read Moreअफसर मि. चोपड़ा थोड़ा खडूस किस्म का था। नियमों पर चलता था और शांति का लावण्य उस पर असर नहीं दिखा रहा था। शांति अपनी सुंदरता के इस अपमान को सहन नहीं कर पा रही थी, इसलिए वह अपनी फरियाद लेकर यादवेंद्र के पास पहुँची। वैसे भी वह जब से शहर में आई थी, यादवेंद्र से मिलना चाह रही थी।
यादवेंद्र यहाँ क्लीवेज को देख रहा था, वहीं परेशान होने का अभिनय भी कर रहा था। "आप तो गहरी सोच में पड़ गए।" - शांति ने धीरे से उनका हाथ अपने नाजुक हाथो में लेकर सहलाते हुए कहा। "सबूत ...Read Moreचाहिए ही, भले झूठा ही हो।" - यादवेंद्र ने अपनी परेशानी का कारण बताया। आँखों के मयखाने में चतुराई का जाम भरते हुए शांति बोली, "अगर आप चाहें तो हम खुद ही सबूत बन जाएँ।" यादवेन्द्र ने शांति की गर्म साँसो को अपने करीब अनुभव करते हुए और उससे आनन्दित होते हुए कहा, "हम तो चाहेंगे ही।" शांति ने अपने
पुरुष की सबसे बड़ी कमजोरी है औरत और औरत का सबसे सबल पक्ष है उनका औरत होना। शांति एक खूबसूरत, जवान औरत है, उसकी अदाएँ और उसकी मुस्कान, उसकी मनमोहक आवाज़ उसके हथियार हैं और अपने गुणों से पुरुषों ...Read Moreकमजोरी का लाभ उठाना भी वह बखूबी जानती है। मि. चोपड़ा उसके लिए बड़ी समस्या नहीं थी। वह तो सिर्फ यादवेंद्र तक पहुँचना चाहती थी क्योंकि उसको पता था कि वर्तमान में उनके इलाके की प्रमुख हस्ती यादवेंद्र है और इसी सीढ़ी के सहारे उसे काफी आगे तक बढ़ना है। उसका जादू चला भी और यादवेंद्र अब उसकी मुट्ठी में
शांति आज हार न मानने की ठान कर आई थी, इसलिए उसने नया तर्क दिया, "एक गलती को छुपाने के लिए दूसरी गलती करना तो उचित नहीं।" उधर यादवेन्द्र भी आसानी से मानने वाला कहाँ था। वह उसके तर्क ...Read Moreभी तोड़ प्रस्तुत करते हुए कहता है, "उचित है, क्योंकि यही संसार का नियम है, एक झूठ को छुपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं, एक गलती को छुपाने के लिए सौ गलतियाँ करनी पड़ती हैं। तुम्हें तो सिर्फ एक गलती और करनी है। तू हाँ कह, सारी व्यवस्था हो जाएगी और किसी को कानो-कान खबर भी नहीं होगी।"
यह दिल भी न जाने कैसी चीज है, जो पहले गलतियाँ करवाता है और गलती हो जाने पर परिणाम का डर दिखा-दिखाकर सताता है। यादवेन्द्र भी इस दिल का शिकार है। शांति उसके पास चलकर ख़ुद आई थी और ...Read Moreउसको सिर्फ मन बहलावे का साधन मानता था। दिमाग के अनुसार ऐसे लोगों के बारे में ज्यादा सोचना ठीक नहीं होता, लेकिन दिल तो दिल होता है और दिल कह रहा है कि जिसके साथ इतना समय गुजारा हो, जो उसकी खुशी का कारण रहा हो, उसे ऐसे ही कैसे छोड़ा जा सकता है। उसे शांति की चिंता सताती है।
यादवेन्द्र सोच रहा है कि उसे रमन के सामने अब बात रखनी ही होगी। इसकी भूमिका कैसे बाँधनी है, कैसे बात शुरू करनी है, रास्ते भर वह यही सोचता आया है। जब वह घर पहुँचा तो रमन साढ़े तीन ...Read Moreके यशवंत को अपने हाथों से खाना खिला रही है। यादवेन्द्र बेटे की पीठ पर हल्की सी चपत लगाते हुए बोला, "अब तो तुम बड़े हो गए हो, अपने हाथों से खाया करो बेटा।" रमन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया होती न देख फिर बोला, "चलो यही कुछ दिन हैं प्यार मिलने के" "क्यों, फिर क्या होने वाला है।" रमन
यादवेंद्र के मन मुताबिक भूमिका बन चुकी थी या कहें कि जितना उसने सोचा था, उससे बेहतर प्लेटफार्म उसे मिल चुका था। वह भी रमन के पीछे ही चल पड़ा। रसोईघर के पास जाकर उसने पानी माँगा और साथ ...Read Moreकहा, "रमन! मैं सोच रहा हूँ कि हम बेटी गोद ले लें।" "क्यों, मुझे नहीं पालना किसी का बच्चा।" - रमन ने हैरानी और गुस्से भरे लहजे में कहा। थोड़ा चुप रहकर वह फिर बोली, "बच्चा गोद तो वे लें, जिनके अपने बच्चा न होता हो। हमारे तो बेटा है। अगर दूसरा बच्चा चाहिए तो वह अपना होगा। ऐसे नहीं
रश्मि के घर आने के बाद रमन को तो जैसे नया जीवन मिल गया। यशवंत का स्कूल में दाखिला करवा दिया गया। यशवंत के स्कूल जाने के बाद वह रश्मि को संभालने में व्यस्त रहती। यशवंत के आने के ...Read Moreभी कोई समस्या नहीं थी क्योंकि घर के काम के लिए नौकरानी थी ही। उसकी दस साल की बेटी भी साथ आ जाती थी। रमन ने तो पहले भी उसको लाने से मना नहीं किया था और वह उस लड़की को खाने-पीने के लिए वह सब देती थी, जो घर में बनता था। अब उसने नौकरानी को कहा कि अपनी
शंभूदीन ने बदले हुए हालात देखकर यादवेन्द्र को नेक-सलाह दी थी कि तुमने काफी रूपए कमा लिए हैं, अब तुम मुझे अपने व्यवसाय को बंद कर दो और साथ में यह भी कहा कि जो माल गोदाम में है ...Read Moreजल्दी से जल्दी निकाल देना। यादवेन्द्र 'सोने के अण्डे देने वाली मुर्गी' जैसे इस व्यवसाय को छोड़ने के लिए तैयार न था, वह बोला, "इतनी जल्दी इतना माल कैसा निकाला जाएगा।""उसकी तुम चिंता न करो, मैं सारा माल ठिकाने लगवा दूँगा।" - शंभू ने उसकी जिज्ञासा शांत करते हुए कहा।यादवेन्द्र के इस विषय को टालने के लिए कहा, "अभी इतनी
यादवेंद्र को सज़ा मिलने के डर से ज्यादा डर सताता है रमन की प्रतिक्रिया का। बात-बात पर उसके व्यवसाय को लेकर ताने मारने वाली रमन अब तो उसका जीना हराम कर देगी, लेकिन जब जमानत मिलने के बाद वह ...Read Moreआया तो रमन ने कुछ नहीं कहा। दिन-पर-दिन बीत रहे थे और रमन इस मुद्दे को छेड़ नहीं रही थी। यादवेंद्र खुश होने की बजाए परेशान था, उसे लगता था कि न जाने कब विस्फोट हो जाए। वह चाहता था, जो भी होना है, वह जल्दी हो जाए, लेकिन रमन की तरफ से कोई पहल होती न देखकर एक दिन
खुशियाँ मनाने का अवसर जल्द ही मिल गया। रश्मि का पहला जन्म दिन आ गया था। जन्म दिन को धूमधाम से मनाने का फैसला किया गया, जिसमें सभी रिश्तेदारों को बुलाया जाएगा। रश्मि के जन्म प्रमाण पत्र पर माँ-बाप ...Read Moreकॉलम में रमन-यादवेंद्र का नाम था। यूँ तो बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र उसी समय तैयार हो जाता है, जब बच्चे का जन्म होता है, लेकिन उस समय यादवेंद्र सत्ताधारी दल का प्रमुख वर्कर था, ऐसे में जन्मपत्री को रमन से हरी झंडी मिलने के बाद ही फाइनल किया गया। इसके बावजूद रिश्तेदार तो जानते ही थे कि बच्ची गोद
समय का काम है चलते रहना और वह निरंतर चलता जा रहा था। कुछ तो सत्ता में न होने के कारण और कुछ घर का माहौल बढ़िया होने के कारण यादवेंद्र घर में ज्यादा समय व्यतीत करने लगा। यूँ ...Read Moreयशवंत स्कूल वैन पर आता-जाता था, लेकिन कई बार पार्टी दफ्तर जाते समय उसे साथ ले जाता और कई बार उसकी छूट्टी के समय स्कूल से ले आता। उसकी मर्जी की चीजें खिलाता, खिलौने दिलाता और शाम को अपने साथ ही लेकर आता। रमन कहती कि आप बच्चे को बिगाड़ रहे हो। यादवेंद्र बिगाड़ने का अर्थ जानता था। वह अपने
चुनाव हुए और चुनावों का नतीजा उम्मीद मुताबिक ही था। यादवेंद्र की पार्टी 'जन उद्धार संघ' सत्ता में आई। विधायक दल का नेता चुनने में ज्यादा विरोध नहीं हुआ, क्योंकिं विरोध करने वाले कुछ तो पार्टी छोड़ गए थे ...Read Moreजो वापिस आए थे उनको अपनी औकात का अहसास हो चुका था। पुराने नेता राम सहाय मुख्यमंत्री बने और उनके मुख्यमंत्री बनने का अर्थ था, शंभूदीन का मंत्री बनना क्योंकि वह तो मुख्यमंत्री महोदय का दाहिनी हाथ था। जब पार्टी सत्ता में नहीं थी, तब शंभूदीन की वफादारी ने और ज्यादा प्रभावित किया था। यादवेंद्र के लिए अब करने को
संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होगा, जिस पर कभी कोई मुसीबत न आई हो। हाँ, मुसीबतों की संख्या कम-ज्यादा हो सकती है और यह भी कहा जा सकता है कि मुसीबतें बड़ी-छोटी भी हो सकती हैं। वैसे मुसीबत ...Read Moreबड़ी-छोटी मापने का कोई पैमाना नहीं। एक व्यक्ति जिस मुसीबत को बहुत बड़ी समझ लेता है, दूसरा उसे उतनी बड़ी नहीं समझता और इसका कारण है कि हर व्यक्ति की मनोस्थिति अलग-अलग होती है और अलग-अलग मनोस्थितियों के चलते ही कोई व्यक्ति मुसीबत आने पर टूट जाता है, तो कोई निखर जाता है। मुसीबतें व्यक्ति पर कैसा प्रभाव डालेंगी यह
यादवेंद्र की सोच अब विरोधी पार्टी के पूर्व विधायक महेश जैन से दोस्ती गाँठने की थी, लेकिन इसके लिए क्या किया जाए, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। महेश जैन के बारे में प्रचलित धारणा यही थी कि ...Read Moreसैद्धांतिक आदमी है, लेकिन यादवेंद्र को लगता था कि बाहरी छवि और असलियत में अंतर ज़रूर होगा। पिछली बार जब उनकी पार्टी सत्ता में आई थी, तब महेश जैन को पार्टी में कोई विशेष भूमिका नहीं मिली थी। वह न तो अपने कोई विशेष काम निकाल पाया था और न ही इलाके के काम करवा पाया था, इसलिए जनता उनके
यादवेंद्र को इंतजार था, महेश जैन के फैसले का। कई दिन बीत जाने के बाद वह दोबारा जाने की सोच ही रहा था कि उनकी तरफ से किसी का फोन आया कि विधायक जी आपको याद कर रहे हैं। ...Read Moreका समय तय कर लिया गया और निश्चित समय पर वह उनकी कोठी पर जा पहुँचा, लेकिन इस बार उनका स्वागत महेश जैन की बजाए उनके पुत्र सन्नी ने किया। सन्नी ने बड़े अदब से उनके चरण स्पर्श किए, जिससे यादवेंद्र गदगद हो उठा। उसने कहा, "बेटा जी विधायक जी कहाँ हैं।" "पापा को अचानक काम हो गया, इसलिए उन्होंने
परिणाम की घोषणा के दो दिन बाद यादवेंद्र शंभूदीन की कोठी पर पहुँचा। वहाँ मौजूद अमित ने व्यंग्य किया, "बड़ी जल्दी आए यादवेंद्र।""महेश को बधाई देने गए होंगे।" - दूसरे वर्कर ने तंज कसा। शंभूदीन ने न तो अपने ...Read Moreको तंज करने से रोका और न ही साथ दिया। उसने यादवेंद्र को बैठने के लिए कहा और पूछा, "कहाँ रह गए थे यादवेंद्र।""अचानक पत्नी का पथरी का दर्द ज्यादा बढ़ गया था। उसका ऑपरेशन करवाना पड़ा। आप गिनती में गए हुए थे, आपसे उस समय बात न हो पाई और फिर पत्नी को संभालने वाला मेरे सिवा कौन था,
आदमी भी विचित्र जीव है। किसी सिद्धांत पर स्थिर रहना उसकी फितरत नहीं, अपितु वह तो सिद्धांतो को मनमर्जी अनुसार तोड़ता-मरोड़ता रहता है। यादवेंद्र भी इसका अपवाद नहीं। वह तो पेंडलुम की तरह एक छोर से दूसरे छोर तक ...Read Moreरहता है। कभी उसे नशे का धंधा अनैतिक लगता है, तो कभी लगता है कि अगर वह यह धंधा न करेगा, तो कौन सा देश में नशा बिकना बंद हो जाएगा। जब किसी-न-किसी ने यह कार्य करना ही है, तो क्यों न वह ही बहती गंगा में हाथ धो ले। वह सिर्फ हाथ धोने में कहाँ यकीन रखता है, अपितु
यूँ तो हम भगवान की भक्ति करते हैं, लेकिन असल में भगवान को नौकर समझते हैं। भगवान हमें ये दे दो, हमारे लिए ऐसा कर दो। भगवान को धन्यवाद तो कभी देते ही नहीं, जबकि भक्ति का संबन्ध माँगने ...Read Moreनहीं, धन्यवाद करने से है। हमें जैसा जीवन मिला, क्या हम इसके योग्य हैं? क्या जो कुछ हमने पाया है, वह हमारी योग्यता की अपेक्षा किसी परम सत्ता की कृपादृष्टि नहीं? कोई भी धन्यवाद नहीं देता कि हे भगवान तेरी कृपा से हम इस हालत में हैं, वरना इससे बुरी हालत में भी हो सकते थे। हम अंधे, लूले, लँगड़े
यूँ तो हर नेता यही कहता है कि वह सेवा के लिए राजनीति में आया है, लेकिन ऐसा होता नहीं, क्योंकि सेवा तो निष्काम भाव से की जाती है, जबकि नेताओं में पद प्राप्ति के लिए मारामारी होती है। ...Read Moreजीतने के लिए हर प्रकार के हथकंडे अपनाए जाते हैं। अगर मकसद सेवा हो तो जीत की भी क्या ज़रूरत? सेवा तो हार कर भी हो सकती है, लेकिन हार कर पद नहीं मिलता, पॉवर नहीं मिलती और इसी पद-पॉवर के लिए हर कोई राजनीति में आता है। चुनाव में जीतना तो बाद की बात है, पहले चुनाव लड़ने के
'जन चेतना मंच' द्वारा उठाया गया नशे का मुद्दा भी सबसे ज्यादा शंभूदीन को प्रभावित कर रहा था। भ्रष्टाचार के आरोप तो पूरे राज्य में सभी दलों के लगभग सभी नेताओं पर लग रहे थे, लेकिन नशे को राज्य ...Read Moreलाने का आरोप सिर्फ 'जन उद्धार संघ' के उम्मीदवारों पर ही था। यादवेंद्र का नाम तो उछलना ही था, क्योंकि उससे नशा पकड़ा गया था और वह केस अदालत में चल रहा था। यादवेंद्र के कारण शंभूदीन भी सबके निशाने पर था। टी.वी. चैनलों पर होने वाली बहस में अकसर यादवेन्द्र का नाम उछलता। दूसरी पार्टी के लोग यह भी
ग़म का अँधेरा खुशियों के उजाले को लील जाता है। यशवंत का बाहर आना-जाना बंद कर दिया गया, लेकिन जब उसे नशा नहीं मिलता, तो वह तड़पता और उसे तड़पते देख माँ का कलेजा फटता, लेकिन वह कर भी ...Read Moreसकती थी। न उससे बेटे को तड़पते देखा जाता और न ही बेटे को नशा खाने की छूट दी जा सकती थी। यशवंत ने उसे नशा मुक्ति केंद्र में दाखिल करवाने का फैसला किया। जिस दिन उसे नशा मुक्ति केंद्र छोड़ना था, रमन भी साथ गई। नशा मुक्ति केंद्र को देखकर वह और दुखी हुई। बड़े लाड़-प्यार से पला और
उतार-चढ़ाव तो हर किसी के जीवन में लगे रहते हैं, लेकिन किसके जीवन में कितना उतार आता है और कितना चढ़ाव और इससे जीवन कितना बदलता है, यह निश्चित नहीं। यादवेंद्र का जीवन बेटे को नशे की लत लगने ...Read Moreपूरी तरह से बदल गया है। यादवेंद्र अब बेटे को संभालने में इस कद्र व्यस्त हुआ है कि बाहरी दुनिया में क्या हो रहा है, उसे कुछ नहीं पता। उसका धंधा उसके साथी ही चला रहे थे। पहली बार वह जब बेटे को नशा मुक्ति केंद्र छोड़कर आया था, तो उसे लगा था कि उसका बेटा नशे से मुक्ति पा
दुख आदमी को चिंतन करने पर मजबूर करता है। दुखी होकर आदमी अपनी उन गलतियों को याद करता है, जिसे करने से वह बच सकता था। दुख में वह उनके बारे में भी सोचता है, जिनके बारे में उनकी ...Read Moreज्यादा बेहतर नहीं रही होती। रमन से उसके संबन्ध उस समय से बढ़िया थे, जबसे उसने रश्मि को स्वीकार कर लिया था, लेकिन शुरुआत में वह रमन के स्वभाव से परेशान रहता था। रमन का स्वभाव अब भी उसे हैरान कर रहा है। वह सोच रहा है रमन उससे लड़ती क्यों नहीं? बेटे के मौत को वह इतनी आसानी से
जब जीने का कोई मकसद हो, तब जीना बड़ा आसान हो जाता। कोई मुसीबत फिर आपको रोक नहीं सकती। बेटे की मौत के बाद यादवेंद्र बिल्कुल टूट गया था। उसकी पत्नी रमन ने उसे तसल्ली दी, नशे के दानव ...Read Moreसमाज से मार भगाने के लिए बेटी का साथ देने के लिए प्रेरित किया। बेटी का लॉ का अंतिम वर्ष था। उसने वकालत की पढ़ाई शुरू ही इसलिए की थी कि वकील बनकर वह नशे के व्यापारियों को सलाखों के पीछे पहुँचा सके, क्योंकि उसने अपने भाई को तड़पते देखा था और जब भी वह घर आती, भाई की दशा
हर काम की शुरुआत मुश्किल होती है और जब किसी काम की शुरुआत हो जाती है, तो रास्ता अपने आप बनना शुरू हो जाता है। स्मैक के आम होने से हर आदमी दुखी था। सबको डर सताता था कि ...Read Moreउनके बच्चे इसके आदी न हो जाएँ। बहुतों के हो चुके थे। स्मैक के कारण लूट-पाट भी बढ़ी थी। पुलिस को इसकी खबर न होगी, यह हो ही नहीं सकता, लेकिन वह चुप थी। चुप्पी का कारण भी सबको पता था कि पुलिसवालों तक उनका हिस्सा यथासमय पहुँच रहा था। इतना होने के बावजूद कोई खुलकर सामने नहीं आ रहा