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Kalvachi-Pretni Rahashy by Saroj Verma | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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कलवाची--प्रेतनी रहस्य by Saroj Verma in Hindi
Novels

कलवाची--प्रेतनी रहस्य - Novels

by Saroj Verma Matrubharti Verified in Hindi Horror Stories

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त्रिजटा पर्वत श्रृंखला पर घनें वन के बीच एक पुराना महल बना है जहाँ रहती है एक प्रेतनी,जिसका नाम कालवाची है,उसकी आयु लगभग पाँच सौ वर्ष होगी,किन्तु वो अभी भी नवयौवना ही दिखाई पड़ती है,इसका कारण है कि दस दिनों के पश्तात् किसी भी नवयुवक या नवयुवती का हृदय उसका भोजन बनता है,जब उसे किसी नवयुवक या नवयुवती का हृदय खाने को नहीं मिलता तो वो वृद्ध होती जाती है,उसके केश श्वेत होते जाते हैं,आँखें धँस जातीं हैं एवं उसका त्वचा की रंगत समाप्त होती जाती है,इसलिए वो इस बात का बहुत ध्यान रखती है,अपनी इस अवस्था के आने पहले ही वो किसी नवयुवक या नवयुवती का हृदय खा लेती है और इसी कार्य हेतु वो कुछ समय पहले राजा कुशाग्रसेन के राज्य वैतालिक राज्य गई थी...... वैतालिक राज्य में उसने भ्रमण किया और उसे वैतालिक राज्य अत्यधिक पसंद आया तो उसने सोचा क्यों ना मैं कुछ दिनों के लिए इस राज्य में रूक जाऊँ,यहाँ मुझे सरलता से हृदय का भक्षण करने को मिल जाया करेगा,फिर मैं तो प्रेतनी हूँ किसी भी वृक्ष पर सरलता से वास कर सकती हूँ,अपनी गोपनीयता बनने में मुझे यहाँ सरलता भी रहेगी,दिन में सुन्दर युवती का वेष धर लिया करूँगी और रात को किसी वृक्ष पर सो जाया करूँगी और फिर यही सब सोचकर कालवाची ने वैतालिक राज्य में रहने का निर्णय लिया.....

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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - Novels

कलवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(१)
त्रिजटा पर्वत श्रृंखला पर घनें वन के बीच एक पुराना महल बना है जहाँ रहती है एक प्रेतनी,जिसका नाम कालवाची है,उसकी आयु लगभग पाँच सौ वर्ष होगी,किन्तु वो अभी भी नवयौवना ही दिखाई पड़ती है,इसका कारण है कि दस ...Read Moreके पश्तात् किसी भी नवयुवक या नवयुवती का हृदय उसका भोजन बनता है,जब उसे किसी नवयुवक या नवयुवती का हृदय खाने को नहीं मिलता तो वो वृद्ध होती जाती है,उसके केश श्वेत होते जाते हैं,आँखें धँस जातीं हैं एवं उसका त्वचा की रंगत समाप्त होती जाती है,इसलिए वो इस बात का बहुत ध्यान रखती है,अपनी इस अवस्था के आने पहले
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कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(२)
कालवाची मोरनी का रूप धरकर कुशाग्रसेन को निहारने लगी एवं उस पर दृष्टि रखकर उसके क्रियाकलापों को देखने लगी,कुशाग्रसेन ने कुछ समय तक उस वन में कुछ खोजने का प्रयास किन्तु उसे वहाँ कुछ भी दिखाई ना दिया,उसे ये ...Read Moreथा कि उस वन के आस पास ही उन मृतकों के मृत शरीर मिले थे,इसका तात्पर्य था कि वो हत्यारा उसी स्थान पर ही वास करता है किन्तु कुशाग्रसेन को अभी तक उस हत्यारे के विषय में कोई भी चिन्ह्र नहीं मिले थे,इसलिए उन्होंने पुनः राजमहल जाने का सोचा क्योंकि उन्हें अपने माता पिता और रानी कुमुदिनी की चिन्ता हो
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कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(३)
कालवाची वृक्ष पर मोरनी के रूप में यूँ ही अचेत सी लेटी थी,तभी एक कठफोड़वा उसके समीप आया एवं उसके बगल में बैठ गया,पक्षियों की भाषा में उसने कालवाची से कुछ पूछा,किन्तु कालवाची पक्षी होती तो उसकी भाषा समझ ...Read Moreउसकी भाषा समझने हेतु उसने उसे मानव का रूप दे दिया एवं स्वयं युवती का रूप धारण कर लिया.... ऐसा चमत्कार देखकर पक्षी स्तब्ध रह गया एवं अब उसका रूप मनुष्य की भाँति हो गया हो गया था इसलिए वो मनुष्यों की भाँति वार्तालाप भी कर सकता था,अन्ततः उसने कालवाची से पूछा.... तुम कौन हो एवं यहाँ वृक्ष पर क्या
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कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(४)
कुशाग्रसेन ने सोचा क्यों ना वो उसी झरने के समीप वाले वृक्ष के तले रात्रि बिताएं जिस स्थान पर वो रात्रि बिताई थी,यही सोचकर वो उस झरने के समीप बढ़ चला,अग्निशलाका(मशाल) का प्रकाश उन्हें मार्ग दिखाता चला जा रहा ...Read Moreऔर वें उस ओर बढ़े चले जा रहे थे..... कुछ समय पश्चात वें झरने के समीप पहुँचे एवं उन्हें वो वृक्ष भी दिखा,उन्हें उस वृक्ष तले आता देखकर मोरनी बनी कालवाची के मुँख पर प्रसन्नता के भाव प्रकट हुए एवं उसने कौत्रेय को निंद्रा से जगाया,कौत्रेय भी अभी कठफोड़वे के रूप में था,जागते ही कौत्रेय ने कालवाची से पूछा.... मुझे
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कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(५)
कौत्रेय अतिथिगृह में बैठा राजा की प्रतीक्षा करने लगा,कुछ समय पश्चात कुशाग्रसेन अतिथिगृह पहुँचे और कौत्रेय से पूछा..... जी!आपका शुभ नाम जान सकता हूँ... जी!मेरा नाम कौत्रेय है,कौत्रेय बोला... आप को उस हत्यारे के विषय में क्या क्या ज्ञात ...Read Moreने पूछा..... जी!मुझे तो केवल इतना ज्ञात है कि उस हत्यारे को एक युवती ने देखा था और मुझे उसने ही बताया कि उसने हत्यारे को देखा है,कौत्रेय बोला.... युवती ने देखा....किस युवती ने देखा.....कहाँ रहती है वो....?कुशाग्रसेन ने पूछा... वो वन में मिली थी मुझे तभी उसने मुझसे ये बात कही थी,किन्तु वो कहाँ रहती है ये तो मुझे
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कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(६)
कालवाची की दृष्टि जैसे ही कुशाग्रसेन से मिली तो उसने लज्जावश अपने नयनपट बंद कर लिए,कुशाग्रसेन भी अभी तक कालवाची को एकाग्रचित होकर देख रहे थे,दोनों के मध्य का मौन कौत्रेय ने तोड़ने का प्रयास किया एवं वो राजा ...Read Moreसे बोला.... महाराज!इसका नाम कालिन्दी है एवं ये उस ओर एक कुटिया में रहती है,बेचारी अत्यन्त निर्धन है,बेचारी के भाग्य में पर्याप्त मात्रा में भोजन भी नहीं लिखा,मुझे इस पर दया आ गई तो मैने इससे कहा कि हमारे वैतालिक राज्य के राजा कुशाग्रसेन अत्यन्त ही दयालु प्रवृत्ति के हैं,वें अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेगें,इसे तो मेरी बात पर विश्वास
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कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(७)
तभी कालवाची बोल पड़ी.... महाराज!ये तो आपके राज्य में ही निवास करते हैं,मैंने देखा है इनका निवासस्थान,क्योंकि एक दिन मैं इनके निवास पर काम माँगने गई थी तो इनकी पत्नी ने मुझसे बड़ी निर्दयता से बात की और मुझे ...Read Moreसे भगा दिया,मुझे उनका स्वाभाव तनिक भी नहीं भाया.... कौत्रेय!क्या तुम्हारी पत्नी इतनी निर्दयी है?कुशाग्रसेन ने पूछा.... महाराज!वो क्या है ना!मेरी पत्नी अत्यधिक कुरूप है,तन हथिनी की भाँति भारी एवं बैडौल हो गया है,रूप के नाम पर ईश्वर ने ना नैन-नक्श दिए एवं ना रंग ,सो किसी रूपवान युवती को देखकर उसे सहन नहीं होता इसलिए अपने समक्ष वो ऐसे
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कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(८)
कुशाग्रसेन के मुँख पर चिन्ता के भाव देखकर सेनापति व्योमकेश बोले.... महाराज!ऐसे चिन्तित होने से कुछ नहीं होने वाला,अब तो उस हत्यारे को बंदी बनाना अनिवार्य हो गया है,हम ऐसे हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते.... सेनापति व्योमकेश ...Read Moreइतने उत्तेजित क्यों हो रहे हैं?क्या उस हत्यारे को बंदी बनाना इतना कठिन है,राजनर्तकी मत्स्यगन्धा ने पूछा.... राजनर्तकी मत्स्यगन्धा आप यहाँ कैसें?सेनापति व्योमकेश ने पूछा..... जी!मैं तो कालिन्दी के विषय में महाराज से वार्ता करने आई थी,किन्तु यहाँ आकर देखती हूँ कि महाराज तो किसी और ही समस्या से घिरे हुए,मैने उन्हें एक और समस्या बता दी....मत्स्यगन्धा बोली... ओह....महाराज के
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(९)
योजना पर सभी का विचार विमर्श होने के पश्चात सेनापति व्योमकेश एवं राजनर्तकी मत्स्यगन्धा दोनों ही अपने अपने निवासस्थान लौट गए,रानी कुमुदिनी एवं राजा कुशाग्रसेन भी अपने कक्ष में रात्रि होने की प्रतीक्षा करने लगे,रात्रि हुई तो रानी कुमुदिनी ...Read Moreदासी से राजा कुशाग्रसेन के लिए भोजन परोसने को कहा,राजा कुशाग्रसेन भोजन करने बैठे एवं रानी कुमुदिनी उन्हें बेनवा(पंखा)झलने लगी,महाराज कुशाग्रसेन ने शीघ्रतापूर्वक भोजन ग्रहण किया एवं रानी कुमुदिनी को अपनी योजनानुसार किसी कार्य को पूर्ण करने हेतु संकेत दिया,रानी कुमुदिनी शीघ्र ही राजभोजनालय पहुँची एवं वें कुछ भोजन पत्रको में लपेटकर राजा कुशाग्रसेन के समक्ष उपस्थित हुईं,राजा कुशाग्रसेन ने
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१०)
जब कालवाची ने कोई उत्तर ना दिया तो कुशाग्रसेन ने तनिक दीर्घ स्वर से पुनः कालिन्दी से पूछा.... कौत्रेय कहाँ है कालिन्दी!मेरे प्रश्न का उत्तर क्यों नहीं देती? जी!महाराज!वो बाहर गया है,कालिन्दी ने झूठ बोला... किन्तु!क्यों?रात्रि को बाहर क्यों ...Read Moreहै वो?महाराज कुशाग्रसेन ने पूछा... जी!महाराज!अपनी पत्नी से मिलने,कालिन्दी ने पुनः झूठ बोला... ठीक है यदि वो अपने निवासस्थान गया है तो तुम्हें मुझसे झूठ बोलने की क्या आवश्यकता थी कि वो अपने कक्ष में सो रहा है,ये तो समझ आ गया मुझे कि वो अपनी पत्नी से भेट करने गया है,परन्तु!ये कठफोड़वा!यहाँ क्यों है?महाराज कुशाग्रसेन ने क्रोधित होकर कालिन्दी
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(११)
कुछ समय पश्चात सबके मध्य कुछ वार्तालाप हुआ एवं कोई योजना बनी,इसके उपरान्त सेनापति व्योमकेश एवं राजनर्तकी मत्स्यगन्धा अपने अपने निवासस्थान लौट गए,राजा कुशाग्रसेन पुनः रात्रि होने की प्रतीक्षा करने लगें किन्तु उनका पूर्ण दिन बड़ी कठिनता से बीता,रात्रि ...Read Moreएवं वें रानी कुमुदिनी से कुछ वार्तालाप करने के पश्चात शीशमहल की ओर चल पड़े,वें शीशहमल पहुँचे एवं उन्होंने कालिन्दी के कक्ष की ओर प्रस्थान किया,वें अब कालिन्दी के कक्ष के समक्ष थे उन्होंने किवाड़ पर थाप देकर पुकारा..... कालिन्दी.....कालिन्दी!मैं कुशाग्रसेन,किवाड़ खोलो प्रिऐ! किन्तु भीतर से कोई स्वर ना आया,राजा कुशाग्रसेन ने पुनः प्रयास किया,पुनः किवाड़ पर थाप देकर कालिन्दी
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१२)
अब महाराज कुशाग्रसेन अत्यधिक चिन्तित थे,उन्हें शीघ्रतापूर्वक ये समाचार सेनापति व्योमकेश को देना था,किन्तु वें यदि शव को वहीं छोड़कर चले जाते तो कोई ना कोई वन्य जन्तु पुनः उस शव का भक्षण करने हेतु उस स्थान पर आ ...Read Moreइसलिए महाराज कुशाग्रसेन ने इस विषय पर पुनः विचार करके राजमहल जाने की इच्छा त्याग दी और वहीं उस शव का निरीक्षण करने लगें,किन्तु वहाँ उन्हें कठिनता हो रही थी,ना वहाँ बैठने योग्य स्थान था और ना ही वृक्षों की छत्रछाया थी जिसके तले महाराज कुशाग्रसेन अपनी रात्रि काट सकते,चूँकि रात्रि का समय था एवं वहाँ अग्नि प्रज्वलित करने हेतु
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१३)
कालवाची ने मत्स्यगन्धा की ग्रीवा को अत्यधिक दृढ़तापूर्वक पकड़ रखा था,मत्स्यगन्धा बोलने का प्रयास कर रही थी किन्तु वो चाह कर भी बोल नहीं पा रही थीं,वो निरन्तर ही स्वयं की ग्रीवा कालवाची के हाथ से छुड़ाने का प्रयास ...Read Moreरही ,किन्तु सफल ना हो सकी.... कालवाची मत्स्यगन्धा की ग्रीवा पकड़े हुए यूँ ही पवन वेग से उड़कर शीशमहल के प्राँगण की वाटिका में जा पहुँची,कालवाची का बीभत्स रूप एवं अँधियारी रात्रि,आज तो मत्स्यगन्धा के प्राण जाने निश्चित थे,जब मत्स्यगन्धा की दशा अत्यधिक दयनीय हो गई एवं कालवाची को पूर्ण विश्वास हो गया कि वो अपनी सहायता हेतु किसी को
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१४)
कालिन्दी का ऐसा अभिनय देखकर महाराज कुशाग्रसेन एवं सेनापति व्योमकेश अचम्भित थे कि ये हत्यारिन पहले तो अत्यधिक निर्मम प्रकार से निर्दोष प्राणियों की हत्या कर देती है इसके उपरान्त झूठे अश्रु बहाकर अभिनय करती है,एक ओर खड़े होकर ...Read Moreकुशाग्रसेन एवं सेनापति व्योमकेश कालिन्दी का ये स्वाँग देख ही रहे थे कि अब वहाँ कौत्रेय आ पहुँचा,अब कालिन्दी यूँ रो रही थी तो कौत्रेय भी कहाँ शान्त रहने वाला था,उसने भी कालिन्दी की भाँति अपना अभिनय प्रारम्भ कर दिया.... दोनों का ये झूठा अभिनय अब महाराज कुशाग्रसेन एवं सेनापति व्योमकेश के लिए असहनीय था,इसलिए कुशाग्रसेन ने शीघ्र ही सैनिकों
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१५)
इधर शीशमहल में कालवाची और कौत्रेय,कालवाची के कक्ष में बैठकर आपस में वार्तालाप कर रहे थे,जो कुछ इस प्रकार था.... कालवाची!कहीं ऐसा तो नहीं कि महाराज को हम दोनों पर संदेह हो गया हो,कौत्रेय बोला... मुझे तो कुछ भी ...Read Moreप्रतीत नहीं हुआ,मुझे सब सामान्य सा लगा,कालवाची बोली.... तुम्हें सब सामान्य क्यों लगा?कौत्रेय ने पूछा... ऐसे ही,राजनर्तकी की हत्या हुई है तो महाराज एवं सेनापति का चिन्तित होना एक सामान्य सी बात है,किसी भी राज्य का राजा ऐसा ही व्यवहार करता ,जो महाराज कर रहे थे,कालवाची बोली.... यदि ये सामान्य सी बात थी तो महाराज ने इतना पहरा क्यों लगा
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१६)
कौत्रेय के शीशमहल से बाहर जाते ही गुप्तचर हीरामन सुए ने कालवाची और कौत्रेय के मध्य हुई सभी बातें जाकर सेनापति व्योमकेश को बता दीं,सेनापति व्योमकेश तो इसी प्रतीक्षा में थे कि कब कालवाची का शरीर क्षीण हो एवं ...Read Moreकठफोड़वें के रूप में शीशमहल के बाहर जाएं और वें अपनी योजना को परिणाम तक पहुँचा सकें,सेनापति व्योमकेश ने एक बात को सभी से गुप्त रखा था और वो बात ये थी कि उनके तातश्री के मित्र बाबा कालभुजंग आ चुके थे,ये बात सेनापति व्योमकेश ने महाराज कुशाग्रसेन से भी गुप्त रखी थी,सेनापति व्योमकेश नहीं चाहते थे कि ये बात
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१७)
अब कालवाची कक्ष के पटल से नींचे उतर कर आई और अचेत होकर धरती पर गिर पड़ी,क्योंकि वो कक्ष के पटल पर चिपके चिपके निढ़ाल हो चुकी थीं,थकान ने उसके शरीर को मंद कर दिया था,कालवाची की ऐसी दशा ...Read Moreमहाराज कुशाग्रसेन बोले.... कालवाची! क्या हुआ तुम्हें? किन्तु कालवाची ने कोई उत्तर ना दिया,तब महाराज कुशाग्रसेन ने कालवाची के समीप जाकर उसके हाथ को स्पर्श करके डुलाया,तब जाकर कालवाची कराहते हुए बोली.... महाराज!मैं अत्यधिक दयनीय अवस्था में हूँ,जब तक मुझे मेरा भोजन नहीं मिलेगा तो मैं ऐसे ही मृतप्राय सी रहूँगी,मैं बिना भोजन के कई वर्षों तक जीवित तो रह
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१८)
अन्ततः कौत्रेय उन दोनों पक्षियों के समीप वार्तालाप हेतु पहुँचा एवं उसी शाखा पर जाकर उन दोनों के समीप जाकर बैठ गया,तब उन दो पक्षियों में से एक ने पूछा.... मित्र!क्या तुम मार्ग भटक गए हो? तब कौत्रेय बोला.... ...Read Moreमित्र!मैं तो ये ज्ञात करना चाहता था कि अभी जो तुम दोनों के मध्य वार्तालाप हो रहा था क्या वो सत्य है? यदि ये सत्य है तो कृपया करके मुझे उस स्थान के विषय में कुछ बताओगे... तब वो पक्षी बोला... हाँ!मित्र!ये बिल्कुल सत्य है,कल रात्रि मैंने अपनी आँखों के समक्ष ये घटित होते देखा था... तो वो स्थान किस
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१९)
किन्तु कौत्रेय निरन्तर प्रयास करता रहा और ऐसे ही दो वर्ष और व्यतीत हो चुके थे,अन्ततः कौत्रेय को अपने कार्य में सफलता प्राप्त हुई,वृक्ष के तने को फोड़कर उसने कालवाची को उस वृक्ष से मुक्त करवा लिया,किन्तु अभी कालवाची ...Read Moreअवस्था में नहीं थी कि वो कोई कार्य कर सके,वो अत्यधिक वृद्ध एवं निष्प्राण सी हो चुकी थी,कालवाची को भोजन की आवश्यकता थी एवं उसका भोजन किसी प्राणी का हृदय था,कौत्रेय ये सोच रहा था कि कालवाची के लिए भोजन कहाँ से लाएं? इसके लिए वो विचार कर रहा था, वह कालवाची को यूँ ऐसी दशा में छोड़ भी नहीं
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२०)
कालवाची की बात सुनकर कौत्रेय बोला... "कालवाची!इतनी उदास मत हो,कदाचित यही तुम्हारा भाग्य और समय की नियति है,मैं तो स्वयं एक कठफोड़वा था,किन्तु तुम्हारे कारण मैं ये मानव रूप लेकर तुमसे वार्तालाप कर पा रहा हूँ,सभी को यहाँ सबकुछ ...Read Moreइच्छा अनुसार नहीं मिलता,संसार में हमें जीवन जीने के लिए कोई ना कोई समझौता करना ही पड़ता है," "कदाचित तुम सत्य कह रहे हो कौत्रेय!"कालवाची बोली.... "अच्छा अब ये सब छोड़ो एवं ये बताओ कि तुम इसी वृक्ष पर रहना चाहोगी या हम दोनों कहीं और चलें" ,कौत्रेय ने पूछा.... तब कालवाची बोली... "नहीं! कौत्रेय!मैं यहाँ कदापि नहीं रहना चाहूँगी,यदि
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२१)
कालवाची ने जब स्वयं को सुन्दर युवती एवं कौत्रेय को मानव रूप में परिवर्तित किया तो तभी कौत्रेय ने कालवाची से पूछा.... "अब क्या चेष्टा है तुम्हारी?" "बस तुम देखते जाओ" कालवाची बोली.... "मैं कुछ समझा नहीं,तुम करना क्या ...Read Moreहो"?,कौत्रेय ने पूछा.... "मैनें कहा ना हस्तेक्षप मत करो,तुम बस देखते जाओ कि अब आगें क्या होगा?",कालवाची बोली... "मुझे तुम्हारे प्रयोजन पर संदेह हो रहा है"कौत्रेय बोला.... "तुम तो अकारण ही मेरे ऊपर संदेह कर रहे हो"कालवाची बोली... "संदेह नहीं कर रहा,बस तनिक भयभीत हूँ"कौत्रेय बोला... "भयभीत....वो भला क्यों?" कालवाची ने पूछा... "वो इसलिए कि अभी जो बारह वर्षों से
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२२)
कालवाची की बात सुनकर भूतेश्वर बोला.... "आज मेरी इच्छा पूर्ण हुई" "कौन सी इच्छा"?,कालवाची ने पूछा... "प्रेत देखने की",भूतेश्वर बोला... "तो बताओ मेरी सहायता करोगे"कालवाची ने पूछा... तब भूतेश्वर बोला... "मुझे सिद्धियाँ तो प्राप्त हैं किन्तु मैंने ऐसी विद्या ...Read Moreनहीं की जो किसी प्रेत को मानव रूप में परिवर्तित कर सके" "ओह!तो मुझे निराश होना पड़ेगा"कालवाची बोली... तब भूतेश्वर बोला... "तुम्हें निराश होने की आवश्यकता नहीं है,मेरा एक मित्र है जिसे प्रेत को मानव रुप में परिवर्तित करने की विद्या आती है,कदाचित वो तुम्हारी कोई सहायता कर सके" "किन्तु मैं उससे कैसें मिल सकती हूँ"?,कालवाची ने पूछा... "इसके लिए
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२३)
कालवाची को चिन्तित देखकर भैरवी ने पूछा.... "मेरा नाम सुनकर तुम चिन्तित क्यों हो गई"? "कुछ नहीं,ऐसे ही",कालवाची बोली.... "अच्छा!ये सब बातें छोड़ो ,ये बताओ कि तुम दोनों कौन हो?",भैरवी ने पूछा... "ये मेरी बहन और मैं इसका भ्राता ...Read Moreबोला... "अच्छा!वो तो ठीक है ,परन्तु तुम दोनों इतनी रात्रि में यहाँ क्या कर रहे हो?कहीं तुम दोनों भी मेरी भाँति दस्यु तो नहीं",भैरवी ने पूछा... "नहीं!ऐसा कुछ नहीं है,हम दोनों तो यात्री हैं ,यात्रा करने निकले थे,यहाँ लोगों की पुकार सुनी तो रूक गए",कालवाची बोली.... "मेरा नाम तो तुम लोगों ने जान लिया किन्तु अभी तक तुम दोनों ने
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२४)
कुमुदिनी के मुँख से जलपान की बात सुनकर कालवाची बोली... "भैरवी!जलपान का प्रबन्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है,क्योंकि हम दोनों ने व्रत ले रखा है,हम केवल फलाहार करते हैं,वो भी सायंकाल में" "इतनी कठिन तपस्या करने की क्या ...Read Moreहै भला?",भैरवी बोली... "कर्बला को सुन्दर एवं बलिष्ठ पति चाहिए होगा,इसलिए इतनी कड़ी तपस्या कर रही है,कुमुदिनी बोली... ये सुनकर सभी हँसने लगे तभी कर्बला बनी कालवाची बोली... "ना रानी कुमुदिनी!अभी विवाह करने की मेरी कोई इच्छा नहीं है,वो कारण तो कुछ और ही है ,जो मैं अभी आपको नहीं बता सकती" "मुझे रानी मत कहो कर्बला!मैं अभागन अब कहीं
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२५)
अब तक सब गहरी निंद्रा में डूब चुके थे,परन्तु कालवाची की निंद्रा उचट चुकी थी,वो सोच रही थी कि यदि किसी दिन माँ पुत्री को ये ज्ञात हो गया कि मैं ही कालवाची हूँ तो तब क्या होगा?कितने विश्वास ...Read Moreसंग भैरवी मुझे अपने घर ले आई है,यदि उसका विश्वास टूटा तो उसके हृदय पर क्या बीतेगी? अब जो भी हो,मुझे माँ पुत्री की सहायता करनी ही होगी,उनका राज्य वापस दिलवाना ही होगा,महाराज ने जो व्यवहार मेरे संग किया था, उसका दण्ड इन माँ पुत्री को नहीं मिलना चाहिए,ये दोनों तो बेचारी निर्दोष हैं और यही सोचते सोचते कालवाची निंद्रा
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग-(२६)
अत्यधिक खोजने के उपरान्त उन सभी को किसी ने एक अश्वों के व्यापारी के विषय में बताया,तो तीनों उस स्थान पर पहुँचें,उस स्थान का पर्यवेक्षण करने के पश्चात उन सभी ने ये योजना बनाई कि रात्रि के समय यहाँ ...Read Moreवें अश्वों को वहाँ से ले जाऐगें,योजना के अनुसार वें सभी रात्रि के समय वहाँ पहुँचे एवं अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया,कर्बला एवं कुबेर तो अपने अपने अश्वों को लेकर भाग निकले किन्तु बेचारी भैरवी को उन अश्वों के संरक्षक ने पकड़ लिया एवं भैरवी के मुँख पर पट्टी बाँध दी,इसके पश्चात उस संरक्षक ने उसे एक एकान्त स्थान पर
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग-(२७)
जब कर्बला और कुबेर को ये ज्ञात हो गया कि वो ही अचलराज है तो दुर्गा बनी भैरवी अचलराज से बोली... "यही मेरे मित्र हैं,ये है कर्बला एवं ये इसका भ्राता कुबेर एवं मुझसे तो तुम परिचित ही हो ...Read Moreमैं दुर्गा हूँ" जब कुबेर बने कौत्रेय ने ये सुना तो वो बोला... "दुर्गा...परन्तु तुम तो...." तब कुबेर की बात मध्य में काटते हुए दुर्गा बनी भैरवी बोली... "हाँ...हाँ...मैं दुर्गा हूँ...और कितनी बार मेरा नाम पुकारोगे कुबेर"! "हाँ...हाँ...दुर्गा!तुम ठीक तो हो ना!",कर्बला बनी कालवाची बोली... "हाँ!मैं ठीक हूँ,तुम कितनी अच्छी हो सखी जो मुझे लेने आ गई",भैरवी बोली... तब कर्बला
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग-(२८)
उस दिन से वें तीनों अश्वशाला में ध्यानपूर्वक कार्य करने लगें,यदि उन्हें कुछ ज्ञात नहीं होता तो अचलराज उनका मार्गदर्शन कर देता,वें दिनभर अश्वशाला में कार्य करते और रात्रि में अचलराज के घर पर विश्राम करते,समय यूँ ही अपनी ...Read Moreसे चल रहा था,दुर्गा बनी भैरवी जब भी अचलराज को देखती तो उसे अपने बाल्यकाल के दिन स्मरण हो आते,कभी कभी तो वो यूँ ही अचलराज को पलक झपकाए बिना देखती रहती एवं मन में ये सोचती कि कितना अच्छा हो कि वो अचलराज को ये बता दे कि वो ही भैरवी है और तुम्हें खोजने ही आई है,किन्तु अत्यधिक
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२९)
ज्यों ही अचलराज ने दुर्गा बनी भैरवी का हाथ पकड़ा तो भैरवी बोली.... "मेरा हाथ छोड़ो,कोई देख लेगा तो क्या समझेगा?" "क्या समझेगा भला? यही कि कहीं तुम मेरी प्रेयसी तो नहीं",अचलराज बोला... "ए!अपनी सीमा में रहो",भैरवी क्रोधित होकर ...Read More"सीमा में तो हूँ ही देवी जी! और तुम जैसी लड़की भला किसी की प्रेयसी बनने योग्य है,मैं तो कभी भी तुम्हें अपनी प्रेयसी ना बनाऊँ",अचलराज बोला... "तुम्हारी प्रेयसी बनने में रुचि है भला किसे",दुर्गा बनी भैरवी बोली... "ओहो....तुम्हें ज्ञात होना चाहिए कि ना जाने कितनी ही सुन्दरियाँ मुझसे विवाह करने हेतु मरी जा रहीं है," अचलराज बोला... "ओहो....तो फिर
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३०)
कौत्रेय के कहने पर कालवाची ने अचलराज पर ध्यान देना प्रारम्भ किया तो कर्बला बनी कालवाची ने पाया कि अचलराज अत्यधिक सुन्दर है एवं उसका हृदय भी करूणा से भरा था,उसकी मृदु वाणी एवं सौम्य व्यवहार ने अश्वशाला के ...Read Moreजनों को अपनी ओर आकर्षित कर रखा था,कालवाची ने ये भी देखा कि अचलराज वीर एवं साहसी भी है,वें सभी गुण अचलराज में उपस्थित थे जो उसने कभी महाराज कुशाग्रसेन में देखे थे,किन्तु कालवाची किसी से प्रेम करके पुनः वही भूल नहीं करना चाहती थी इसलिए उसने इस विचार को मन से त्याग दिया, कुछ दिवस यूँ ही बीते कि
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३१)
अचलराज के प्रश्न पूछने पर व्योमकेश बोले... "पुत्र! ना जाने नगर में कैसा कोलाहल मचा है तुम तनिक जाकर वहाँ देखो कि क्या बात है"? "जी!पिताश्री!आप तनिक समय यहाँ प्रतीक्षा करें मैं अभी देखकर आता हूँ कि क्या बात ...Read Moreऔर ऐसा कहकर अचलराज अपने बिछौने से उठा और नगर की ओर चला गया एवं कुछ समय पश्चात वो लौटकर वापस आया तो व्योमकेश ने पूछा... "पुत्र!कुछ ज्ञात हुआ कि क्या बात है?" तब अचलराज बोला.... "पिताश्री!किसी की हत्या हो गई है और हत्यारे ने मृत प्राणी की दशा अत्यधिक बिगाड़ दी है,उसका रक्त चूस लिया एवं उसके शरीर में
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३२)
कालवाची के मुँख के भावों को देखकर दुर्गा बनी भैरवी ने पूछा... "क्या हुआ सखी! तुम इस समाचार को सुनकर भयभीत हो उठी क्या ?" "नहीं!मैं भयभीत नहीं हूँ",कर्बला बनी कालवाची बोली... "किन्तु तुम्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है ...Read Moreतुम इस घटना से अत्यधिक चिन्तित हो उठी हो", दुर्गा बनी भैरवी बोली... "नहीं!सखी!मैं तो कुछ और ही सोचकर विकल हो उठी थी",कर्बला बनी कालवाची बोली.... "मुझे अपने हृदय की बात नहीं बताओगी,क्या मैं तुम्हारी कोई नहीं लगती?",दुर्गा बनी भैरवी बोली.... तब बात को सम्भालते हुए कौत्रेय बना कुबेर बोला.... " वस्तुतः बात ये है दुर्गा! कि वर्षों पूर्व हमारे
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३३)
जब कर्बला को अत्यधिक खोजने पर वो ना मिली तो अचलराज ने अपने पिता व्योमकेश जी से अनुमति माँगते हुए कहा.... "पिताश्री!यदि आपको कोई आपत्ति ना हो तो मैं कर्बला को खोजने जाऊँ" "नहीं!पुत्र!तुम्हें उसके विषय में कोई जानकारी ...Read Moreहै कि वो कहाँ है तो उसे खोजने तुम कहाँ जाओगे ? " , व्योमकेश बोले... "पिताश्री!उसके विषय में जानकारी ना सही किन्तु उसे खोजने का प्रयत्न तो किया ही जा सकता है", अचलराज बोला... "ईश्वर करें ऐसा ना हुआ हो किन्तु यदि उस हत्यारे ने उसके साथ कुछ बुरा किया हो तब क्या होगा"?, व्योमकेश जी बोले... "आप ऐसा
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३४)
अब कुबेर बने कौत्रेय ने इस बात का लाभ उठाया और एक दिवस एकान्त में जाकर कर्बला बनी कालवाची से बोला.... "कालवाची!तुमने देखा था ना कि तुम्हारे खो जाने पर अचलराज किस प्रकार व्याकुल हो उठा था", "तो इसका ...Read Moreमैं क्या समझूँ"?,कालवाची ने पूछा... "इसका आशय ये है बावरी कि वो तुमसे प्रेम करता है",कौत्रेय बोला... "किन्तु!ये कोई पूर्णतः विश्वास करने योग्य बात तो ना हुई",कालवाची बोली.... "अब तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं होता तो मैं क्या करूँ"?,कौत्रेय बोला.... "कौत्रेय! तुम तो रुठ गए",कालवाची बोली... "रूठूँ ना तो क्या करूँ?,तुम बात ही ऐसी कह रही हो,मैनें अचलराज की
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३५)
अन्ततः भैरवी अचलराज के अंकपाश से दूर हुई और दुखी होकर बोली.... "मुझे क्षमा करो अचलराज!मैनें आज तक तुमसे ये बात छुपाकर रखी कि मैं ही भैरवी हूँ" "किन्तु भैरवी!सच्चाई छुपाने का कारण क्या था"?,अचलराज ने पूछा... "मैं अत्यधिक ...Read Moreथी,लोगों के घरों में चोरी करके अपना जीवनयापन कर रही थी,इसलिए तुम्हें ये सब बताने में मुझे तनिक संकोच हो रहा था",भैरवी बोली... "तो तुमने मुझी उसी रात पहचान लिया था इसलिए तुमने मुझे अपना नाम दुर्गा बताया",अचलराज बोला.... "हाँ!,यही कारण था अपनी पहचान छुपाने का",भैरवी बोली... "पहचान छुपाने की क्या आवश्यकता थी भैरवी!मैं भी तो निर्धन हूँ",अचलराज बोला... "किन्तु!तुम
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३६)
कौत्रेय का ऐसा कथन सुनकर कालवाची बोली.... "ये क्या कह रहे हो कौत्रेय"? "ठीक ही तो कह रहा हूँ तुम ही क्यों नहीं अचलराज के लिए भैरवी बन जाती",कौत्रेय बोला... "ये तो अचलराज के संग विश्वासघात होगा",कालवाची बोली... "कैसा ...Read Moreकालवाची? जो महाराज कुशाग्रसेन ने तुम्हारे संग किया था क्या वो विश्वासघात नहीं था, तुम उन्हें प्रेम करती थी और उन्होंने तुम्हारे संग क्या किया था वो तो स्मरण होगा ना तुम्हें कि भूल गई", कौत्रेय बोला.... "कुछ नहीं भूली कौत्रेय...! कुछ नहीं भूली किन्तु जो भूल महाराज कुशाग्रसेन ने की ,वही भूल मैं अचलराज के संग नहीं करना चाहती",कालवाची
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३७)
अचलराज के अंकपाश में जाते ही कालवाची अपना सुध-बुध खो बैठी और उसे स्वयं पर नियन्त्रण ना रहा,भैरवी का ऐसा अनुचित व्यवहार देखकर अचलराज ने भैरवी बनी कालवाची को स्वयं से विलग करते हुए कहा... "भैरवी! ये क्या हो ...Read Moreहै तुम्हे,तुम आज ऐसा अनुचित सा व्यवहार क्यों कर रही हो"? "क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या?",भैरवी बनी कालवाची ने पूछा... "नहीं!मैं तुमसे ऐसी अपेक्षा नहीं रखता भैरवी!",अचलराज बोला... "तुम तो मुझसे प्रेम करते हो ना! तो ये अनुचित कैसें हुआ",भैरवी बनी कालवाची बोली... "ये प्रेम नहीं वासना है भैरवी!",अचलराज बोला... "मेरे प्रेम को तुम वासना कह रहे हो अचलराज!",भैरवी
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३८)
अन्ततः सभी की सहमति पर उन सभी ने उस नगर को त्यागकर वैतालिक राज्य की ओर प्रस्थान किया,वें मार्ग पर ही थे ,अभी वैतालिक राज्य नहीं पहुँचे थे,इसलिए रात्रि को वें सभी किसी वृक्ष के तले विश्राम करते और ...Read Moreदिन पुनः अपनी यात्रा प्रारम्भ करते,उस रात्रि भी सभी ने ऐसा ही किया,सभी ने एक वृक्ष के तले अग्नि प्रज्वलित करके भोजन पकाया एवं भोजन ग्रहण करके विश्राम करने लगे,अर्द्धरात्रि होने को थी,एकाएक कर्बला बनी कालवाची अपने भोजन हेतु जागी,कालवाची जागी तो एकाएक भैरवी भी जाग उठी किन्तु मारे आलस्य के वो अपने बिछौने पर ही लेटी रही ,बिछौने से
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३९)
जब अचलराज से वो कर्बला बन गई तो भैरवी ने उससे पूछा... "यदि तुम कर्बला हो तो अचलराज कहाँ हैं,? "अचलराज कुबेर के संग गया है",कर्बला बोली... "मुझे ज्ञात है कि तुम कर्बला भी नहीं हो,यदि तुम कर्बला भी ...Read Moreहो तो सत्य सत्य बताओ कि कौन हो तुम"?,भैरवी ने पूछा... "तुम सुनना चाहती हो तो सुनो कि मैं कौन हूँ",कर्बला बनी कालवाची बोली.... कर्बला बनी कालवाची अपना सत्य बताने ही जा रही थी कि तब तक वहाँ पर व्योमकेश जी आ पहुँचे और उन्होंने भैरवी के भयभीत एवं चिन्तित मुँख को देखकर पूछा.... "क्या हुआ भैरवी? तुम इतनी चिन्तित
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४०)
कालवाची के अश्रु कौत्रेय से देखे ना गए ,कुछ भी हो ,वो ही तो एकमात्र मित्र है उसकी इस संसार में,कालवाची को उसने बारह वर्षों के कड़े परिश्रम एवं प्रतीक्षा के पश्चात पुनः पाया था इसलिए उससे उसका दुख ...Read Moreना गया और वो उससे बोला.... "चिन्ता मत करो कालवाची!, अब चाहे जो भी परिणाम हो किन्तु आज मैं उन सभी को हम दोनों की सच्चाई बताकर रहूँगा,मैं भी झूठा अभिनय करते करते उकता गया हूँ और मैं भी अब अपने इस दोहरे चरित्र से मुक्ति चाहता हूँ" "तुम सच कह रहे हो कौत्रेय!तुम ऐसा करोगें", कालवाची ने कौत्रेय से
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४१)
उस दिन वें सभी अपनी यात्रा समाप्त नहीं कर पाएं क्योंकि रात्रि अधिक हो चुकी थी ,इसलिए उन्होंने एक वृक्ष के तले शरण ली,तब भैरवी बोली... "कालवाची!आज रात्रि तो तुम्हें अपना भोजन ग्रहण करने नहीं जाना,यदि जाना चाहती हो ...Read Moreमैं अपना स्थान बदलकर कहीं और अपना बिछौना बिछा लूँ,क्योंकि अब मैं तुम्हारा वो बीभत्स रूप नहीं देख सकती", "नहीं!भैरवी!अभी मुझे भोजन की आवश्यकता नहीं है,इतनी शीघ्र मुझे भोजन की आवश्यकता नहीं पड़ती",कालवाची बोली... "तब ठीक है,अब मैं निश्चिन्त होकर सो सकती हूँ",भैरवी बोली... "हाँ! तुम निश्चिन्त होकर सो जाओ सखी! तुम्हें भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है",कालवाची बोली... तब
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४२)
प्रातःकाल हुई तो सभी जागें और सभी बिलम्ब ना करते हुए नियत कार्यों से निश्चिन्त होकर यात्रा के लिए तत्पर हो गए,त्रिलोचना ने सभी के लिए भोजन का प्रबन्ध किया और जब सभी ने वहाँ से जाने का विचार ...Read Moreतो तभी भूतेश्वर व्योमकेश जी से बोला... "सेनापति व्योमकेश ! मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ", "हाँ! कहो भूतेश्वर कि क्या बात है",व्योमकेश जी बोलें... "मैं कहना चाह रहा था कि क्या हम दोनों भाई बहन भी आप सभी के संग वैतालिक राज्य चल सकते हैं,आपको इसमें कोई आपत्ति तो नहीं होगी", भूतेश्वर बोला.... "यदि तुम दोनों की इच्छा है
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४३)
"तो अचलराज ! अब चले राजमहल को ओर",कालवाची बोली... "हाँ! सखी! चलो",अचलराज ने युवती के स्वर में बोला... अचलराज की बात पर पुनः सबको हँसी आ गई और तभी भैरवी ने पूछा... "अचलराज! अभी तुमने अपना नामकरण तो किया ...Read Moreजाकर क्या कहोगे सबसे कि तुम कौन हो?", भैरवी बोली... "हाँ! इस बात का तो मैनें ध्यान ही नहीं दिया",अचलराज बोला.... "वैशाली....हाँ...वैशाली नाम उचित रहेगा",रानी कुमुदिनी बोली... "हाँ! तो वैशाली अब चले",कालवाची बोली... "हाँ! चलो कर्बला सखी!",अचलराज बोला... क्योंकि इस कार्य के लिए कालवाची पुनः कर्बला बन गई थी और दोनों सखियाँ आपस में बहनें बनकर राजमहल की ओर चल
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४४)
उधर कर्बला सेनापति बालभद्र के संग राजनर्तकी के पास चली गई और इधर महाराज गिरिराज ने वैशाली से अपने बिछौने पर बैठने के लिए संकेत करते हुए कहा... "यहाँ बैठो प्रिऐ !" और वैशाली महाराज गिरीराज से कुछ दूरी ...Read Moreबैठी तो महाराज गिरिराज बोलें.... "मेरे समीप बैठो प्रिऐ! इतनी सुन्दर युवती का मुझसे दूर बैठना उचित नहीं है,मैं तो तुम्हें अपने हृदय में स्थान देना चाहता हूंँ और तुम हो कि मुझे दूर जा रही हो",महाराज गिरिराज बोले... "ऐसी बात नहीं है महाराज! मैं निर्धन आपके बिछौने पर बैठने के योग्य नहीं हूँ",वैशाली बोली... "नहीं! प्रिऐ! किसने कहा कि
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४५)
"वत्सला क्या हुआ था,तुम्हारे विवाह वाले दिन",वैशाली बने अचलराज ने पूछा... तब वत्सला बोली... "राजकुमार सूर्यदर्शन पहले ही दूल्हे के रूप में मण्डप में पधार चुके थे एवं मैं दुल्हन बनकर मण्डप में प्रवेश करने ही वाली थी कि ...Read Moreउस क्रूर गिरिराज ने हमारे राजमहल पर आक्रमण कर दिया,वो ये षणयन्त्र कई दिनों से रच रहा था एवं उसने इस कार्य हेतु मेरे विवाह वाला दिन ही चुना था" "इसके पश्चात क्या हुआ वत्सला!",वैशाली ने पूछा... तब वत्सला बोली.... "इसके पश्चात उसने मेरे पिता समृद्धिसेन ,मेरी माता अहिल्या और भाई चन्द्रभान की हत्या कर दी और जब राजकुमार सूर्यदर्शन
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४६)
"अचलराज! ये क्या कह रहे हो तुम?,महाराज कुशाग्रसेन एवं उनके माता पिता जीवित हैं",कालवाची ने पूछा... "हाँ! ये सत्य है,ये सूचना मुझे वत्सला ने दी",अचलराज बोला... "कौन वत्सला",?,कालवाची ने पूछा... "वो भी हम दोनों की भाँति यहाँ की दासी ...Read Moreभी गिरिराज की सताई हुई है,गिरिराज ने उसके समूचे कुटुम्ब की हत्या कर दी,उसके होने वाले पति को भी मार दिया,वत्सला एक राजपरिवार से सम्बन्ध रखती है,वो प्रशान्त नगर के राजा समृद्धिसेन की पुत्री है",अचलराज बोला... "ओह...तो वो भी पीड़िता है",कालवाची बोली.... "हाँ!वो भी रात्रि के दूसरे पहर के पश्चात यहाँ आ जाएगी,तब तुम स्वयं ही उससे मिल लेना",अचलराज बोला....
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४७)
अब तीनों राजमहल पहुँचकर पहले तो वैशाली के कक्ष में घुसे,इसके पश्चात कालवाची ने सभी का रुप बदला,तत्पश्चात सभी अपने अपने कक्ष की ओर चले गए,दूसरे दिन पुनः महाराज गिरिराज ने वैशाली को रात्रि के समय अपने कक्ष में ...Read Moreऔर अपने समीप बैठने को कहा... वैशाली महाराज गिरिराज के समीप बैठते हुए अत्यधिक भयभीत थी कि कहीं गिरिराज के समक्ष उसका ये भेद ना खुल जाएं कि वो एक पुरूष है स्त्री नहीं, ये सभी विचार वैशाली बने अचलराज के मस्तिष्क में आवागमन कर रहे थे तभी गिरिराज बोला..... "प्रिऐ! तुम कितनी सुन्दर हो,मैं तुम्हारे समीप आने हेतु कब
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४८)
"मेरी इस विवशता पर तुम हँस रही हो कालवाची"!,वैशाली बना अचलराज बोला... "ना चाहते हुए भी मुझे तुम्हारी बातों पर हँसी आ गई अचलराज"!,कर्बला बनी कालवाची बोली... तब वैशाली बना अचलराज बोला... "तुम्हें ज्ञात ही कालवाची! कल रात्रि उस ...Read Moreने मेरे कपोलों पर प्रगाढ़ चुम्बन लिया वो तो मैंने सहन कर लिया ,किन्तु जब उसने मेरे अधरों को छूने का प्रयास किया तो मैंने उसके मुँख में मदिरा का पात्र घुसा दिया,उसके स्पर्श से ही मुझे घृणा हो रही है,मुझे तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यदि मैं सारा दिन भी इत्र के सरोवर में डूबा रहूँ तो
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४९)
"तुम अचलराज हो और ये कालवाची! क्या सच कह रहे हो तुम दोनों",महाराज कुशाग्रसेन ने पूछा... "हाँ! महाराज! मैं आपकी अपराधिनी कालवाची हूँ,यहाँ हम दोनों रूप बदल कर आए हैं",सेनापति बालभद्र बनी कालवाची बोली... "किन्तु! तुम्हें तो वृक्ष के ...Read Moreमें स्थापित कर दिया गया था,तुम वहाँ से कैसें मुक्त हुई"?,महाराज कुशाग्रसेन ने पूछा... तब अचलराज बोला.... "महाराज!वो बहुत ही लम्बी कहानी और वो सब अभी सुनाने का हम लोगों के पास समय नहीं है,हम यहाँ रूप बदल कर केवल आपको ये सूचित करने आए थे कि राजकुमारी भैरवी और महारानी कुमुदिनी सकुशल हैं और मेरे पिताश्री सेनापति व्योमकेश जी
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५०)
कौत्रेय को उदास देखकर कालवाची को कुछ अच्छा नहीं लगा और वो कौत्रेय से बोली.... "तुम्हें उदास होने की आवश्यकता नहीं है कौत्रेय! बहुत ही शीघ्र मैं तुम सभी को भी वहाँ ले चलूँगी,क्योंकि मैं और अचलराज इस कार्य ...Read Moreअकेले नहीं कर सकते,मैं चाहती हूँ कि कुछ समय हम दोनों वहाँ रहकर सभी के भेद ज्ञात कर लें,इसके पश्चात ही तुम सभी को हम वहाँ ले जाएँ", "मुझे भी ले चलोगी ना!",त्रिलोचना ने पूछा... "हाँ...हाँ...तुम्हें भी ले चलूँगी और तुम्हारे भ्राता भूतेश्वर को भी",कालवाची बोली... "किन्तु! मैं वहाँ जाकर क्या करूँगा"?,भूतेश्वर ने पूछा... "तुम भी हम सभी की सहायता
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५१)
अब रानी कुमुदिनी ने मन में सोचा ये तो इस बेचारी को भी ज्ञात नहीं कि इसकी पुत्रवधू धंसिका कहाँ है? अब मैं क्या करूँ,कुछ समझ में नहीं आ रहा,अब मेरा यहाँ और अधिक समय तक रुकना उचित नहीं ...Read Moreसूचना मुझे शीघ्र ही सभी तक पहुँचानी होगी, रानी कुमुदिनी ये सब सोच ही रही थी कि चन्द्रकला देवी ने उससे पूछा.... "पुत्री! तुम इतनी चिन्तामग्न क्यों हो गई"? तब रानी कुमुदिनी बोली.... "जी! मैं यह सोच रही थी कि जिस स्त्री का स्वामी ही उसका त्याग कर दे तो तब वो बेचारी स्त्री कहाँ जाए,अब मुझे ही देखिए,मेरे तो
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५२)
त्रिलोचना और कौत्रेय जब फल एकत्र करके वापस लौटे तो भैरवी ने पूछा.... "अत्यधिक बिलम्ब कर दिया तुम दोनों ने वापस आने में,कहीं पुनः तो नहीं झगडने लगे थे", "नहीं! भैरवी! भला हम क्यों झगड़ेगें?,हमें तो फल एकत्र करने ...Read Moreसमय लग गया",त्रिलोचना बोली... "ये तो अद्भुत बात हो गई कि तुम दोनों बिना झगड़े ही यहाँ वापस गए",अचलराज बोला.... "ये सब बातें छोड़ो,लो ये फल खाओ,तुम्हें अत्यधिक भूख लग रही थी ना!",कौत्रेय बोला.... "हाँ! भूख तो अत्यधिक लग रही है,लाओ पहले मुझे फल दो",अचलराज बोला.... "हाँ...हाँ...तुम भी लो,हम दोनों बहुत से फल लेकर आए हैं,इन्हें खाकर सभी की छुधा
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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५३)
और उन्होंने उस व्यक्ति से प्रसन्नतापूर्वक पुनः पूछा... "क्या आप सत्य कह रहे हैं,यही प्रसिद्ध वैद्य धरणीधर हैं"? "हाँ! महाशय! यदि आपको मेरी कही बात पर संदेह है तो आप स्वयं वैद्य जी के पास जाकर उनसे उनका परिचय ...Read Moreसकते हैं",वो व्यक्ति बोला.... "ऐसी कोई बात नहीं है महाशय! मुझे आप पर पूर्ण विश्वास है और जो वट वृक्ष के तले समाधि लगाकर बैठीं हैं,वें युवती कौन हैं"?,व्योमकेश जी ने पूछा.... "जी! वें वैद्य जी की भान्जी हैं,जिनका नाम धंसिका है,सुना है वें किसी राज्य की रानी थी,किन्तु उनके स्वामी ने उनका त्याग कर दिया है"वो व्यक्ति बोला.... "ओह...ये
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