खाली हाथ - Novels
by Ratna Pandey
in
Hindi Fiction Stories
सूरज और नताशा का इकलौता बेटा अरुण विवाह के दस वर्ष के पश्चात नताशा के गर्भ में आया था। इसके लिए उन्होंने मंदिर-मंदिर जाकर भगवान के आगे माथा टेका था, ना जाने कितनी मानता रखी थीं। तब जाकर भगवान नींद से जागे और उन्हें माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अपने सीमित साधनों में भी वह उसके लिए जितना कर सकते थे, उससे ज़्यादा ही कर रहे थे। अरुण बड़े ही लाड़ प्यार से बड़ा हो रहा था।
सूरज और नताशा उसे अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे थे। अच्छे से अच्छे संस्कार भी दे रहे थे। अरुण धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था। वह भी अपने माता-पिता पर जान छिड़कता था।
स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद उसे बहुत ही अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश भी मिल गया। जहाँ उसकी मुलाकात अर्पिता से हुई, जो उसी की क्लास में थी। अर्पिता को देखते ही अरुण के मन में प्यार की धीमी-धीमी आवाज़ें आने लगीं कि यही तो है वह जिसके साथ तू अपना जीवन बिता सकता है। अरुण ने शीघ्र ही अर्पिता के साथ दोस्ती भी कर ली। अर्पिता को भी अरुण का साथ अच्छा लगने लगा और जल्दी ही उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई।
एक दिन अरुण ने कहा, "अर्पिता मेरे घर चलोगी? तुम्हें मैं अपने मम्मी पापा से मिलवाना चाहता हूँ।"
सूरज और नताशा का इकलौता बेटा अरुण विवाह के दस वर्ष के पश्चात नताशा के गर्भ में आया था। इसके लिए उन्होंने मंदिर-मंदिर जाकर भगवान के आगे माथा टेका था, ना जाने कितनी मानता रखी थीं। तब जाकर भगवान ...Read Moreसे जागे और उन्हें माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अपने सीमित साधनों में भी वह उसके लिए जितना कर सकते थे, उससे ज़्यादा ही कर रहे थे। अरुण बड़े ही लाड़ प्यार से बड़ा हो रहा था। सूरज और नताशा उसे अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे थे। अच्छे से अच्छे संस्कार भी दे रहे थे। अरुण धीरे-धीरे बड़ा हो
अपनी माँ को इतना ख़ुश देखकर अरुण फूला नहीं समा रहा था। वह सोच रहा था कि चलो उसकी पहली मंज़िल तो तय हो गई। माँ ख़ुश हैं तो पापा भी ख़ुशी से इस रिश्ते को स्वीकार कर लेंगे। ...Read Moreनताशा ने कहा, "पता नहीं अरुण, अर्पिता ने उसके पापा मम्मी को बताया भी होगा या नहीं?" "माँ जैसे आप मेरे बोले बिना ही सब जानती हैं वैसे ही उसकी मम्मा को भी इस बात का अंदाज़ा है। आप लोगों की नज़रों से भला कहाँ कुछ छिप सकता है। वैसे वह भी आज ही बात करने वाली है। उसके पापा-मम्मा
अर्पिता के ऐसे व्यवहार के बावजूद भी नताशा हमेशा उस पर प्यार लुटाती रही, यह सोच कर कि प्यार के आगे तो हर इंसान झुक जाता है, पत्थर दिल भी पिघल जाता है। नताशा जैसा चाह रही थी, वैसा ...Read Moreभी ना हो पाया। अर्पिता का व्यवहार दिन पर दिन और भी बुरा होता गया। रात को वह अरुण की बाँहों में जाकर झूठे मनगढ़ंत किस्से उसे सुनाती रहती। आज माँ ने ऐसा कहा, आज माँ ने वैसा कहा। वह नताशा की शिकायत करती ही रहती थी। अरुण को अर्पिता की बातों पर विश्वास नहीं होता क्योंकि वह तो अपनी
एक दिन सूरज और नताशा स्कूटर से घूमते हुए काफ़ी दूर निकल आए, जहाँ वह कभी भी नहीं जाते थे। उस रास्ते पर एक वृद्धाश्रम था जिस पर उसका नाम लिखा था 'आसरा वृद्धाश्रम'। सूरज के पांव अपने आप ...Read Moreवहाँ पर ठहर गए। वह ध्यान से उसी तरफ़ देख रहे थे। उन्होंने कहा, "नताशा चलो ना अंदर चल कर देखते हैं। देखें तो यहाँ क्या व्यवस्था रहती है?" नताशा ने कहा, "यह आप क्या सोच रहे हो? क्या अब हम वृद्धाश्रम में रहेंगे?" "चल कर देखो तो सही।" सूरज की बात मानकर नताशा अंदर वृद्धाश्रम में आ गई। वहाँ
वृद्धाश्रम के हंसी ख़ुशी के माहौल को देखकर नताशा ख़ुश थी, यह देखकर सूरज ने पूछा, "क्या कहती हो नताशा, तो छोड़ दें उस घर को?" "हाँ लेकिन अरुण नहीं मानेगा, उसके लिए हमारा यह फ़ैसला बहुत ही दुःख ...Read Moreहोगा। मैं उसके सामने यह कभी नहीं कह पाऊंगी," नताशा ने दुःखी होते हुए कहा। "मैं जानता हूँ नताशा जब वह टूर पर जाएगा हम तब शिफ्ट होंगे और जब वह हमसे मिलने आएगा तब मैं उसे समझाऊंगा कि इसी में हम सब की भलाई है।" "हाँ तुम ठीक कह रहे हो, इसी में हम सब की भलाई है," कहते
वृद्धाश्रम में नताशा और सूरज वहाँ रहने वाले वृद्धों से बात कर रहे थे। उन्हीं में से एक वृद्ध दीनानाथ जी ने कहा, "सूरज जी यहाँ हम सब बड़े ही प्यार से मिल-जुल कर रहते हैं। सुबह से शाम ...Read Moreहो जाती है पता ही नहीं चलता।" सभी की बातें सुनकर उन्हें सुकून मिल रहा था लेकिन घर की याद आना स्वाभाविक ही था। जब वह अपने कमरे में गए तो देखा उनका कमरा साफ़ सुथरा व्यवस्थित था जहाँ नित्य की ज़रूरत की हर चीज मौजूद थी। उन्हें यह देखकर अच्छा लगा। उधर अर्पिता जब नहा कर बाहर निकली तो
अर्पिता के उल्टी करने से अरुण घबरा गया और उसने तुरंत डॉक्टर को फ़ोन लगा कर बुलाया। तब पता चला कि अर्पिता माँ बनने वाली है। अरुण अब उसे इस परिस्थिति में और कुछ भी नहीं कह सकता था। ...Read Moreउसे अब डॉक्टर के कहे मुताबिक अर्पिता का ख़्याल रखना था। उस रात, रात भर अरुण बिस्तर पर करवटें बदल-बदल कर सुबह का इंतज़ार करता रहा ताकि सुबह होते से वह अपने माता-पिता को ढूँढने निकल जाए। उधर सूरज और नताशा के घर छोड़ कर जाने की ख़बर आग की लपट की तरह फैल गई। इस ख़बर ने अर्पिता के
धीरे-धीरे समय व्यतीत होने लगा। अरुण अपने माता-पिता से मिलने हर दूसरे दिन वृद्धाश्रम जाता रहा। हमेशा कुछ ना कुछ लेकर वह वहाँ पहुँच ही जाता था। अर्पिता की प्रेगनेंसी के दौरान तबीयत खराब रहने लगी। उसकी देख भाल ...Read Moreके लिए अब घर में किसी का होना बहुत ज़रूरी था। अरुण को हमेशा शहर से बाहर टूर पर जाना होता था। एक दिन अर्पिता ने अपनी मम्मी को फ़ोन लगाया, "हेलो मम्मी" "हेलो, हाँ बोलो अर्पिता।" "मम्मी डॉक्टर ने कहा है मुझे ज़्यादा से ज़्यादा आराम करना चाहिए। क्या आप...?" "नहीं अर्पिता, यहाँ तुम्हारी भाभी निधि भी तो प्रेगनेंट
अरुण एक दिन पहले ही टूर से वापस लौटा था और आज अपने लोकल ऑफिस से लौट कर आने के बाद नताशा और सूरज से मिलने वृद्धाश्रम जाने वाला था। अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह ...Read Moreमाँ से यह सब कैसे कह पाएगा। वह तुरंत ही उठ कर खड़ा हो गया और अर्पिता से कहा, "चलो कार में चल कर बैठो।" अर्पिता बिना कुछ बोले चुपचाप उठकर कार में जाकर बैठ गई। वह दोनों चुपचाप थे, कार रोड का सीना चीरते हुए अपनी तीव्र गति से आगे बढ़ती जा रही थी। 'आसरा' वृद्धाश्रम पर जाकर उनकी