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युवा साहित्यकार एनआर ओमप्रकाश "अथक"। (बी. कॉम) पीपाड़ सिटी, जोधपुर (राज0) 342601 रचनाएं - एक रिश्ता ऐसा भी...(संस्मरण) (2018),अंतिम पत्र - बचपन की दोस्त के नाम(2018), मासूम की मौत का गुनहगार कौन?(2019), पहला प्यार अधूरी दास्तां(2018) ( कहानियां) प्रकाशित। अपूर्व! एक पूर्व का बदलाव..उपन्यास (2020) उसकी याद में.. काव्य संग्रह (अप्रकाशित)। समान - आंचलिक साहित्यकार एवं फणीश्वरनाथ रेणु। मो. 9783450868 Email: nenarampipar1999@gmail.com Insta: author_nr_omprakash Twitter : @nr_omprakash
आज वैशाख मास की अमावस है, आज ही के दिन विक्रम संवत 1368 में अलाउद्दीन ख़िलजी के जालौर आक्रमण के दौरान वीरांगना हीरा दे ने शत्रु पक्ष से मिले अपने पति का सर काट दिया था। आयें आज स्वधर्म और मातृभूमि की रक्षार्थ कर्त्तव्य पालन के ऐसे अद्भुत उदाहरण को चरितार्थ करने वाली वीरांगना हिरादे के साहसिक सुकृत्य को नमन कर कृतज्ञता अर्पित करें। author saini
लबों की हसरत क्या है, इक इक बात समझ रहा हूं दिल की ख्वाइश क्या है, आंखो का इशारा समझ रहा हूं
जब भी तेरे हाथ उठे दुआओं में... मेरे लिए दर्दनाक मौत मांग लेना... मैं शुक्रगुजार रहूंगा तेरे इस अहसान का मेरी कब्र पर तेरी कोई निशानी छोड़ जाना...
अब मेरी हर बात पे बुरा लगने लगा है उनको मेरी हंसी मजाक भी ताना लगने लगा है उनको
मारवाड़ी हिंवरी नृत्य... एक लाइक तो बनता है दोस्तों।
तुम और मैं पति पत्नी थे तुम माँ बन गईं मैं पिता रह गया। तुमने घर सम्भाला, मैंने कमाई लेकिन तुम "माँ के हाथ का खाना" बन गई, मैं कमाने वाला पिता रह गया। बच्चों को चोट लगी और तुमने गले लगाया, मैंने समझाया तुम ममतामयी माँ बन गई मैं पिता रह गया। बच्चों ने गलतियां करी, तुम पक्ष ले कर "understanding Mom" बन गईं और मैं "पापा नहीं समझते" वाला पिता रह गया। "पापा नाराज होंगे" कह कर तुम बच्चों की बेस्ट फ्रेंड बन गईं और मैं गुस्सा करने वाला पिता रह गया। तुम्हारे आंसू में माँ का प्यार और मेरे छुपे हुए आंसूओं मे मैं निष्ठुर पिता रह गया। तुम चण्द्रमा की तरह शीतल बनतीं चली गईं और पता नहीं कब मैं सूर्य की अग्नि सा पिता रह गया। तुम धरती माँ, भारत मां और मदर नेचर बनतीं गईं और मैं जीवन को प्रारंभ करने का दायित्व लिए सिर्फ एक पिता रह गया।🙏🙏
NR Omprakash Athak लिखित कहानी "अपूर्व एक जिद्दी निर्णायक - 2" मातृभारती पर फ़्री में पढ़ें https://www.matrubharti.com/book/19920210/apurv-ek-ziddi-nirnayak-2
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