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जीवन मनुष्य की बहुमूल्य निधि है, पता नहीं कितने भिन्न भिन्न प्रकारों के जन्मों के बाद मनुष्य जीवन प्राप्त होता है। अपने आपको भाग्यशाली, मानकर ही जीवन को सही माप-दंडो के अनुरुप चलाने में साहित्य की अपनी विशिष्ठ भूमिका होती है। पेशे से वकील होते हुए भी बचपन से साहित्य के प्रति सदा अनुराग रहा है। कुछ सालों से लेखन के प्रति झुकाव बढ़ गया है। कोई जरुरी नहीं बड़े-लेखकों की श्रेणी में आऊ, पर अच्छा लिखूं, सुधार को सदा मान्यता दूँ। कोशिश भर ही समझे, मेरे लेखन को, और मेरा मार्ग-दर्शन करे। शुभकामनाओं के साथ,
शीर्षक : पिता दिवस पर ढूँढेगी कल जब मुझे नजर तुम्हारी भीगी पलकों में कुछ यादें होगी मेरी वजूद न होगा फोटो में चेहरा ही मुस्करायेगा समय के साथ वो भी शायद धुँधला जायेगा याद करोगे तो बहुत सी ऐसी बाते आएगी क्या था मैं तुम्हारी जिंदगी में चाहत बढ़ जायेगी कल की दूरियों को जायज तुम न कह पाओगे जब तुम भी अपनें ही खून पर खफा हो जाओगे दस्तूर वक्त का है दोष तुम्हें भी नहीं दे पाऊँगा थे तुम मेरा ही अंश, शायद ही अहसास दे पाऊँगा जो चला गया वापस नहीं आता, सोच उदास रहोगे फर्ज की दीवार पर टँगा फोटो देख नजर झुकाओगे ✍️ कमल भंसाली
शीर्षक: पछतावा कहाँ खत्म होती है जिंदगी की गुत्थियाँ मुश्किल है सुलझनी ये कर्मों की रस्सियां बंधन बहुतेरे इंसानी जीवन को सदा घेरे मोह की मदिरा में बहते रहते मन-रँग सारे रसीली चाहते अंतहीन दूर तक सफर करती वजूद की तलाश में कलह की डगर पर चलती समय की पतवार न होती अगर इतनी भारी इंसानी चेहरों में न रह जाती जरा भी खुद्दारी सच का रंग सफेद, झूठ तो रंगों का खिलाड़ी नये लुत्फ की हसरते जो न समझे वो घोर अनाड़ी सोच नहीं सही तो कुछ भी तो होता सही नहीं वक्त तो अब भी वही हम ही तो कहीं सही नहीं बदल जाना ही श्रेयस्कर, न बदले तो हम नहीं आभास हर दुर्घटना, आगे पछतावे की कमी नहीं ✍️ कमल भंसाली
शीर्षक: आ गले लग जा गहराई से किसी को इतना गले न लगाओ कि दिल की कमीज पर सलवटे उभर आये रस्मों के जहाँ में पता नहीं क्या न निभ पाये ? बिन कारण दर्द की रेखाएँ गहरी न हो जाये माना हर रिश्ते में दृश्यत प्रेम थोड़ा जरुरी होता है क्योंकि अहसास में दिखावट का नशा जो होता है सोचे तो स्वार्थ बिन सँसार का पहिया रुक जाता है लगे एक दाग में सौ दागों का निमंत्रण जो होता है हर रिश्तें में समझ अंत तक साथ नही निभाती है साथ चलने से दिल में जगह तय नहीं हो जाती है चिंतन के दरबार में हर रिश्तें की जगह तय होती है दस्तूर निभाने में गले लगने की रस्म ज्यादा होती है इस लिये यह तय करके ही आगे बढ़ते रहना है अपनों की भीड़ में ही आदमी ज्यादा अकेला है प्रेम में विश्वास की जड़ न हो तो सिर्फ निभाना है इस जग में तय नहीं कौन अपना कौन बेगाना है ? रिश्तें वही अच्छे होते साथ चलकर चुप रहते है गले न लगे पर गिरने पर हाथ बढ़ाकर संभालते है बिन किसी अहसास के फूलों की तरह महकते है समय पर ये विश्वास देते हम उनके दिल मे रहते है ✍️कमल भंसाली
शीर्षक: फ़लसफ़ा मुस्कराने का मुस्कराने में अगर कोई साजिश न हो तो फूलों को महक की जरूरत न हो जज्बातों में अगर चिंतन न बिखरे हो किसी यकीन में जीने की वजह न हो हर मुस्कराहट में गैर दर्द की समझ हो समझ के हर कर्म में भावना मसीहा हो धर्म आत्मा में अगर हर रोज दहकता हो यकीनन वही मुस्कराहट कहलाने योग्य हो कहने से कोई युग-परिवर्तन नहीं होता देखा है हर कथनी करनी में अंतर होता खुद को भगवान न समझ जो मुस्कराता सत्य के गगन में चाँद की तरह उभरता फ़लसफ़ा मुस्कराहट में इतना ही होता कभी पल में भी दूरी का अहसास होता छोटा जीवन अनगनित चाहों में खो जाता स्वार्थी राहों में मुस्कान स्वार्थ छिपा जाता ✍️ कमल भंसाली
शीर्षक : देह-मंत्र देह से मुक्त होती जिंदगी की वासनायें कह रही साथ कुछ भी तुम्हारे न जाये तुम कह रहे जिसे अपना यहीं रह जाये आत्मिक-कर्म ही आगे नया स्थान पाये ।। साँसों से जुड़े प्राणों के तार जब टूट जाये बंधन मोह के सब इस जहाँ में रह जाये क्षल-कपट की जिंदगी खुद से ही शरमाये देह की हसरतें आत्मा को मलिन कर जाये ।। सोच यही सही जीवन धवल ही रह जाये संयम के फूल आत्मा के गुलशन को सजाये देह की सुंदरता कभी कांटो सी न हो जाये अँहकार की धुंध में गलत कर्म नजर न आये ।। रैन बसेरा है ये जग क्योंकि जीवन एक यात्रा है मंजिल-राही बनकर चलना, ये एक ही सूत्र है आत्मा ही लिफाफा है शरीर तो सिर्फ एक पत्र है पता कहाँ का होगा ? जानने का कर्म ही मंत्र है ।। ✍️ कमल भंसाली
शीर्षक : महफूज महफूज नहीं है आजकल जिंदगी आशियाने में भी डरती है जिंदगी हवाओं में कुछ तो बह रहा ऐसा जिसमें ख़ौफ़ दिख रहा मौत जैसा कौन क्या ? अब ये नजर नहीं आ रहा प्रश्नचिन्ह पूछ रहा आज कौन नहीं रहा ? हर गली सूनी हो कर मातम मना रही कल कौन ? खामोशी भी कँपकँपा रही दौर योंही अगर ये ऐसे ही चलता रहा वक्त कहेगा अब यहाँ इंसान कोई न रहा "कमल" ये जिंदगी अब उम्र नहीं ढूंढ रही कब्र के इंतजार में खुद का ताबूत खोज रही ✍️ कमल भंसाली -Kamal Bhansali
👁️वक्त👁️ वक्त की नजाकत इतनी सी समझ लीजिये आज आप जो है कल न रहेँगे संभल जाइये गेरों की मेहरवानी पर आप इतना न इतराईये वजूद आप का सलामत रहे खुद्दार बन जाइये ✍️ कमल भंसाली -Kamal Bhansali
जीवन का सत्य----1 आचार और विचार जीवन रुपी सिक्के के दो अहम पहलू है, एक के बिना दूसरे की कल्पना महज एक ख्याल ही हो सकता है। समय के अनुसार बाहरी आवरण में फेर-बदल होता रहता है, ये दुसरीं बात है। मनुष्य सिर्फ समय-अवधि तक का, एक देह का अस्थायी मालिक होता है और देह उसके कर्म अनुसार सुख- दुख का अहसास करती रहती है। देह को सिर्फ सांसारिक- नियमों का पालन करने के तहत एक काल्पनिक स्वतंत्रता दी गई है उसी अनुसार उसे सँसार में अपने अस्तित्व का बोध होता रहता है। गौर करने से ये अनुभव सहज ही हो जाता है कि जिसे हम जीवन कहते है, वो हमारा महज एक अस्तित्व-बोध ही है। शरीर की अवधि पूर्ण होने के बाद हमारे शरीर की चर्चा वक्त के साथ धूमिल हो जाती, सिर्फ हमारे अच्छे-बुरे किये कर्म के परिणामों को ही सँसार याद रखता है, क्षमता के अनुरुप। इंसानी ताकत बेजोड़ है फिर भी इंसान समय के सामने कमजोर है, यह हकीकत है, संशय की गुंजाइश कहीं भी नहीं है। इसका भी एक कारण है, समय सृष्टि का अंग है वो प्रकृति के स्वभाव अनुसार ही चलता है।सब कुछ बदल जाता है जब समय करवटे बदलता रहता है, यहाँ तक कि इंसानी स्वभाव भी। वर्तमान के संदर्भ पर दृष्टिगत होकर इसका मूल्यांकन करने से हम इतना चिंतन तो सहमति के साथ कर सकते है, कि इंसान कुछ भी कहे, कहीं न कहीं वो परिस्थियों का दास है। वैचारिक विभिन्नताओं के रोग से ग्रसित होने के कारण वो स्वयं के स्वार्थी चिंतनों के कारण अंदर से खोखला ही हो रहा है। अविष्कारों के अंधकारों के कारण मानव स्वयं ही खुद को खत्म करने वाले हथियारों से भय खा रहा है, ये तथ्य पुष्टि करने के लिए पर्याप्त है की हम किसी की दासता तो भोग रहे है, चाहे वो अपने गलत चिंतनों की क्यों न हो ? ✍️ कमल भंसाली
कामयाबी के चिंतन- 1 "विश्वास करना सीख लो, दूसरों से पहले अपने आप पर, अगर जिंदगी को सही दिशा देने की इच्छा है। इसे ही मूलमंत्र मानलो, दावा न समझ, एक सही सलाह समझोगे तो यह मंत्र काम आयेगा। न सोचो कोई कुछ कहीं जिक्र कर रहा है, महसूस हो रहा भी तो सोचो नाले में वो बहते पानी के समान है, किसी के लिए भी उपयोगी नहीं है, फिर कौन उसकी परवाह करता है। हाँ, स्वयँ पर विश्वास जब स्थापित हो जायेगा तो तुम पहचान लिए जाओगे, अपनी उन उपलब्धियों के कारण जिनको तुम्हारी दृढ़ता की जरुरत थी। पर ध्यान रखना विश्वास को अंहकार की नजर न लगने देना, नहीं तो सब कुछ अर्जित पर वो पानी बह जायेगा, जो नाले में बह रहा है, अछूत सा।" ✍️कमल भंसाली -Kamal Bhansali
किस ख्याल को अपना कहूँ हर ख्याल में तो तुम हो कोई ख्याल तो ऐसा आये जिसमें तुम्हारी याद न हो शहर सपनों का है टूटे कोई तो गम की बुनियाद न हो आरजू इतनी बेवफाई के किस्सों में तुम्हारा नाम न हो ✍️ कमल भंसाली -Kamal Bhansali
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