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गणतंत्र दिवस पर आए विदेशी नागरिकों के भारत के प्रति भाव - विश्व के किसी मुल्क का रहने वाला गणतंत्र दिवस को भारत आने वाला ।। गणतंत्र राष्ट्र भारत की शक्ति देख आश्चर्य चकित स्वतंत्रता हुकूमत अभिमान शासन अभिमान बताने वाला।। आशंका निर्मूल कैसे शासन शासक जिम्मेदारी निर्वहन निर्धारण करता भारत भाग्य का रखवाला।। वर्षो कि परतंत्रता कि मानसिकता से भारत क्या मुक्त हो पायेगा ?प्रश्न निर्मूल देख रहा है विश्व गणतंत्र राष्ट्र भारत शक्ति बनने वाला।। बैभव विकास अपना संविधान सर्वधर्म समभाव नीति नियोजन संतुलित कदम से बढ़ाने वाला।। भारत अपनी खोयी प्रतिष्ठा पाने पल प्रहर बढ़ता जाता उद्योगों के जाल बिछ रहे शिक्षा शिक्षित राष्ट्र अपनी धुन ध्येय का मतवाला।। साक्षरता का हो रहा प्रसार विकासशील से विकसित राष्ट्र इक्कीसवीं सदी कि ताकत विश्व गुरु भारत ही है होने वाला।। देश महान शत्र शात्र शोध बोध कृषि मजदूर किसान जवान अभिमान आत्मनिर्भरता का मौलिक मूल्य बताने वाला।। सहयोग योग धर्म राष्ट्र धर्म भारत भावी विश्व प्रधान समभाव खुद की शक्ति का निर्माता अक्षुण अक्षय संप्रभुता का राष्ट्र भारत अब ना झुकने वाला।। हर हाथ को काम हर उत्पादन का उचित सम्मान दाम युवा ऊर्जा उत्कर्ष श्रेष्ठ राष्ट्र उदयीमान।। गणतंत्र दिवस पर आने वाला विश्व के किसी राष्ट्र का वासी भारत से सीखने कि लालसा का उत्साही उत्साह जगाने वाला।। नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।
चंद्रशेखर आजाद के जीवन एक दिन विशेष - सन अठ्ठारह सौ सत्तर में जन्म आकार अलफ्रेड पार्क प्रयाग राज की शान गोरों के शासन शान।। किरणों संग मुस्काते अल्फ्रेट पार्क पुष्प हर मौसम में इतराती बलखाती पौध पत्तियों के पराम्परागत विकसित वन ।। प्रकृति मनोहारी छटा विखेरती अल्फ्रेट युवा बृद्ध नारी पुरुष के स्वास्थ स्वस्थ के मन सुबह शाम।। कदम ताल टहलते राजनीति और सत्ता चर्चों के संग अनंत सुबह शाम आने जाने वालों की यादों खुशियो का अल्फ्रेट अंतरंग।। फरवरी सन उन्नीस सौ इकतीस सुखदेव आज़ाद अलफ्रेड कि उत्साह उमंग का देश प्रेम आज़ादी का भाव ।। भावना कर्म धर्म का नीति नियोजन संग गद्दारों का वर्तमान इतिहास पुराना गद्दारी से भारत के इतिहास लहूलुहान ।। भारत ने अपने ही गद्दारों का पराभव पराजय देखा सुखदेव चंद्रशेखर आज़ाद अलफ्रेड मिलने की सूचना ऐसे ही गद्दार ।। साजिश ब्रिटिश हुकूमत कि बन गयी ताकत ब्रिटिश पुलिश ने घेर लिया आज़ाद ।। हार नही मानी देश प्रेम के तूफान ने लड़ता रहा अकेले एक अकेला गोलीया भी हो गयी समाप्त ।। कोई राह नही पैदा आज़ाद आज़ाद जिया आज़ाद ही जाने का संकल्प संकल्प आजाद शेष बची एक गोली माँ भारती को किया प्राणम माँ भारती को मुक्त नही देख सका मन पश्चाताप।। खुद की गोली खुद कि इच्छा और परीक्षा देश भक्त चंद्रशेखर आजाद कर दिया खुद का बलिदान।। मृत शरीर जाने कितनी गोली की बरसात ब्रिटिश हुकूमत कि दहशत निकट नही जा पाती चन्द्रशेखर ऐसा आजाद।। खुद बलिदान होकर दिया देश युवा शक्ति को जीवन जीने का मकशद युवा राष्ट्र संग्राम।। इतिहास अमर हो गया गौरव से भारत का मस्तक ऊँचा उठा युवा हुंकार चंद्रशेखर का त्याग बलिदान।। नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।
है शामिल - नामुमकिन भूला पाना , ज़िंदगी में इस क़दर है शामिल ।। ज्ज्बा क़िरदार लम्हा लम्हा संजीदा ज़िंदगी का एकरार हैं शामिल।। ख़ामोश ज़िंदगी में ज़ुल्म सितम का एहसास काश कशिश कसमकस ख़ास है शामिल।। मोहब्बत ग़म जुदाई मुस्कान का जज़्बात दिलदार है शामिल ।। लम्हा लम्हा रंग बदलती दुनियां मोहब्बत मसीहा का दीदार है शामिल।। ज़ख्म दर्द दुनियां में मरहम मोहब्बत एतवार है शामिल।। दुनिया रिश्तो का बाज़ार बन रही बदलते रंग दुनियां में यकीं इकबाल है शामिल।। सांसों धड़कन का इंसा मतलब की दुनिय जूनू इश्क का इम्तेहा है शामिल।। ज़िंदगी जंग लगती दासता गढ़ती चलती दुनिया बेवफाई में खुदाई इश्क इज़हार है शामिल।। नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।
गांव कि गोरी - गांव कि गोरी का सजाना, सवरना हसरत हस्ती कि मस्ती अल्हड़पन गाँव कि गलियों से गुजरना ।। जंवा जज्बात के ख्याब खयालों में उतरना जमीं के जर्रे का नाज गांव में उगते सूरज ढलते शाम तराना।। जमीं आसमां चंदन बिजली पानी जैसे चाहतों का गुजरना ,सुर्ख सूरज कि लाली बादलों के आगोश में जन्नत कि परी के पांव जमीं पे उतरना।। बारिश कि बूदों का लवों पर शीप के मोती जैसे चमकना बाहारो कि बरखा का दिल कि गली में उतरना ।। सर्द चाँद चाँदनी में दिलो कि दस्तक जज्बे का पिघलना।। आसमान कि शान कड़कती गरजती शायराना अंदाज़ बोलती गीत ग़ज़ल का नाज़ नजराना।। तपती गर्मी में पसीने में नहाई वासंती वाला खुशबू दिलों गहराई के तूफ़ान का उठना गांव कि शोधी माटी कि खूबसूरत अदा अंदाज़ का निखरना।। नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।
दिल चेहरा आईना - आईना चेहरे कि हकीकत दिल की सच्चाई इज़हार अाईना।। लाख छुपाओ चेहरे का राज बता देता दिल चेहरे को जज्बात दिखा देता आईना।। दिल आईना शीशे से भी ज्यादा नाज़ुक बातों ही बातों में टूट विखर जाता दिल आइना।। दिल जज्बातों का समंदर, समंदर कि सच्चाई गहराई का आईना।। दिल धड़कता है मगर कहता कुंछ नही चेहरे का ज्ज़्बा आईना दुनिया को दिल चेहरे का राज को दिखाता अाई ना।। दिल ख्वाब, ख्वाहिश खास का इज़हार आईना चेहरे कि हक़ीक़त दीदार आईना।। दिल दीदार जिंदगी जज्बे जज्बात का आईना यार दिलदार कि चमक चाहत हसरत हस्ती मस्ती का चेहरा आईना।। नज़र दिल सच्चाई यार दिलदार रिश्ता बावफ़ाई नज़र का आईना।। दिल जिंदगी मोहब्बत दौलत सागर झील गहराई तमन्ना तरन्नुम का आईना।। दिल नज़र आईना नज़ारे जिन्दगी जहां जन्नत कि खुशी इंसान ईमान का आईना।। नन्दलाल मणि त्रिपाठी गोरखपुर उतर प्रदेश।।
इश्क- जाबए इश्क जिंदगी इश्क यकीन जिंदगी ने जाना। हुस्न इश्क आग का दरिया डूबते जाना।। इश्क में जीना मरना मीट जाना इश्क हद से गुजरता जुनून जज्बा इश्क आँसू मुस्कान विस्मिल्लाह इश्क में डूबते जाना।। इश्क हद से गुजरना जुनून जज्बा जमानें कि तारीख खास मासा अल्ला माना।। इश्क राजा रंक फकीर सबका जुनून दौलत शोहरत तो हुस्न अदा का इश्क फक्र फकीर का खुदाई इश्क में डूबते जाना।। इश्क खुदा का पैगाम इंसानियत ईमान का ईनाम सच्चे दिल बादशाह का इश्क जहां जिंदगी का मिल जाना।। इश्क का मकसद मंजिल खुदा के नूर में खो जाना इश्क जोश जज्बा दीवाना खुद में खुदा के नूर को पहचाना जाना।। इश्क सौगात जिंदगी हुस्न दौलत सुरूर गुरुर ताकत सोहरत इश्क उरूज सौदागर इंसान कि चाहत इश्क जहां में जाना पहचाना।। नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।
औरत औकात - अदा अंदाज़ जन्नत कि जीनत फूल सी नाज़ुक पांव जमीं पे अपसाना।। जमाने का डोलता ईमान तेरे इशारे का खुदा मेहरबान करम अंजाम तेरा जलवा इशारा खुदाई शान दिल जज्बा शर्माना।। जलवा तेरा इश्क इबादत कि राह नफरत कि दुनिया मे मोहब्बत का पैगाम हुस्न हद ऊंचाई जहां इंसानियत पैमाना।। करम किस्मत दुनियां चाहत लाख तूफानों कि फानूस बुझते चिरागों कि आखिरी ख्वाहिश जन्नत यक़ी ईमान आशियाना।। सोने जैसा रंग नही चांदी जैसे बाल नही हुस्न की मल्लिका नही खयालों की बेगम रानी जहां में माँ यशोदा मरियम आंचल शामियाना।। किसी को मोहब्बत किसी को सोहरत किसी को दौलत फकीर की झोली में इबाबत इम्तेहान कि दौलत को जाना पहचाना।। मुल्क सरहदों मजहब मतलब के नफरत में नही मिलती प्यार तेरा माँ कही है कही बहना।। कोई नारी स्त्री महिला है कहता माँ बेटी बहन में देखता औरत औकात दुनियां कि भगवान खुदा ने जाना।। नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।
प्यास - प्यास आग हैं जो जूनून का जज्बा बुझने की बात दूर खुद को डुबोती इंसान डूबता जाता अपने ही अश्क से प्यास बुझाता फिर भी प्यासा रह जाता।। मरने के बाद भी दूँनिया कहती प्यास होगा प्यास आश है प्यास आग है प्यास पीड़ा का एहसास।। प्यास जज्बा जुनून प्यास आगे बढ़ने कि होड़ है प्यास जरूरी हैं प्यास जगाना जीवन कि मजबूरी है ।। अब नही तो चाह नही चाह नही तो राह नही प्यास परिवर्तन कि धारा है प्यास कहे तो माया भी प्यास प्रतिस्पर्धा प्रतिद्वंद्वी का करती निर्माण प्यास जीवन का संघर्ष ।। प्यास पराक्रम को परिभाषा देता प्यास जीत हार का स्वाद प्यास उद्देश्यों का आयाम अध्याय प्यास आमंत्रण देता जीवन का संग्राम।। प्यास कभी ना बुझने दो प्यास सदा ही जगने दो प्यास नही तो जीवन निर्थक असहाय प्यास वीरोचित गाथा कि पृष्ठभूमि प्यास से ही उद्भव उत्सव जीवन का अभिमान।। नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।
चाहत - चाहतो के दिये जलाए रखिये चाहतो कि हद से गुजरजा चाहिये चाहते तो जिंदगी जिंदा जिंदगी खास खासियत हर हाल जिंदा रहना चाहिए।। चाहते जिंदगी सांसे गर्मी चाहते जुनून कि जमीं आग चाहतों पर जीना चाहतों पर मरना चाहिए।। अधूरी चाहते इंसान अधूरा चाहते मुकम्मल होनी चाहिए चाहते हर दौर वक़्त हो हासिल चाहतों के हद से गुजरना चाहिए।। चाहते इंसान का वजूद चाहतों मंजिल मकसूद चाहतों से जिंदगी बदलनी चाहिए।। गर मर गई चाहते इंसान जिंदा लाश चाहतों के कदम चलना चाहिए।। चाहत यकीन इरादों हौसलों कि हस्ती चाहते इबादत पूजा चाहते से तकदीर तारीख बदलनी चाहिए।। चाहत रोशनी दिया चिराग दिल में चाहतों का प्रकाश जिंदगी का रास्ता वास्ता चाहत चलती जिंदगी का जज़्बा जलना चाहिए।। नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखुर उत्तर प्रदेश।।
चाकाचौध - भौतिकता चकाचौंध है निकलना बहुत जरूरी है नैतिकता नियत हृदय शक्ति उजियार नितान्त सिद्धांत विधान नहीं सूरज निकलना अंधेरे का मर्दन मान जगत काल सच्चाई भान।। सूरज का आना अंधेरे का जाना सूरज अंधेरो के बाद अस्तित्व युग काल को समझाना सूरज कि गरमी ज्वाला कि शान।। अंधेरा जब भी आता बतलाता जागृति हो मानव निद्रा में ही मत खो जाना अन्वेषण अस्तित्व ही पथ प्रकाश।। भौतिकता चकचौध है जिसका कोई नहीं मार्ग है चका चौंध ही अन्धकार का मार्ग।। जीवन की संस्कृति यही है आचरण मर्यादा का मर्म सत्य है चकाचौध से मुक्ति का तथ्य तत्व सफल सन्मार्ग।। अविरल निर्मल निर्झर निहस्वर्थ निर्विकार चलता चल बढ़ता चल मिल जाएगा परम् प्रकाश।। ना उलझेगा ना जीत हार की होगी वेदना जीवन कि राहों का सफल विजेता समय काल प्रणेता स्वयं सिद्ध उजियार।। नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।
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