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ओएनजीसी में कार्य किया। कुमायूँ विश्वविद्यालय नैनीताल(डीएसबी,महाविद्यालय नैनीताल) से शिक्षा प्राप्त की(बी.एसी. और एम. एसी.(रसायन विज्ञान)।विद्यालय शिक्षा-खजुरानी,जालली,जौरासी और राजकीय इण्टर कालेज अल्मोड़ा में।"दिनमान","कादम्बिनी" गुजरात वैभव,राष्ट्र वीणा(गुजरात) तथा अन्य पत्र-पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित। 7 काव्य संग्रह प्रकाशित। अमेजॉन पर २५ प्रकाशन। धनबाद,कलकत्ता,शिवसागर,अहमदाबाद,जोरहट में कार्य किया।
सदियां अटक गयीं राम तो निकट थे, कृष्ण के रूप भी ममत्व के पास थे। निर्भय मनुष्य में आशा अधिक शेष थी, टूट कर जो जिया वही तो मनुष्य है। सूर्य से छटक कर ग्रह अनेक बन गये, मनुज के प्रताप के अवशेष तो छिटक गये। सनातन तो वृक्ष है शेष तो डाल हैं, वाणी के प्रताप में रूका हुआ मनुष्य है। अभय दान नहीं है परिवर्तन अभिन्न है, प्रज्वलित अग्नि में यज्ञ तो प्रमाण है। * महेश रौतेला
नदी सा हूँ नदी सा हूँ धाराओं में बहूँगा। जंगल सा हूँ बीहड़ लगूँगा। अन्वेषक हूँ कुछ नया पा लूँगा। हिमालय सा हूँ बर्फ सा लगूँगा। यात्री हूँ चलता रहूँगा। फूल सा हूँ बार-बार खिलूँगा। चेतना हूँ क्रियाओं में रहूँगा। प्रशान्त हूँ शान्ति को जन्म दूँगा। आग हूँ जनम भर जलूँगा। ***** *महेश रौतेला १८.०१.२०
शहर में हमारे प्यार का हल्ला नहीं था, बम फटने के बराबर भी नहीं, बन्दूक चलने के बराबर भी नहीं, गोली लगने के बराबर भी नहीं, आतंकवादियों के आतंक के बराबर भी नहीं, एकदम बूँद की तरह वह छटका हल्की सी सुरसुराहट हुई तो किसी और ने उसे दबा दिया। तब मुझे लगा हम यहाँ प्यार के लिये नहीं आतंक झेलने आये हैं, सांस लेने नहीं सांस देने आये हैं। पर इसी सब के बीच हमें कुछ क्षण निकाल संवेदनशील हो जाना है सौन्दर्य की तरह। देखनी है सारी सृष्टि आँखों ही आँखों में, डरना नहीं, डराना है आतंक की आँखों को। शहर में हमारे प्यार का हल्ला नहीं है, पर सुरसुराहट तो है कान लगाकर सुनो तो संगीत सा सुरसुराता है। ** महेश रौतेला १६.०१.२०१६
जोशीमठ: अभी-अभी तो बाढ़ थमी थी अभी अभी यह प्रलय कैसा, किसने धरा पर छेद किया कौन प्रलय का दाता था? किस मिट्टी पर नगर बसा था किसने मिट्टी खोदी थी, कौन मठ का मठाधीश था किसकी पूजा में खोट बड़ा था? किसने पहाड़ पर धूल उड़ायी कौन राह से भटका था, किस व्यापारी में खोट बड़ा था किस व्यापारी की चोट चटक थी? नगर हमारा बड़ा प्यारा था किसने इसको यों हिलाया? बड़े मनोयोग से पूजा की थी पर भस्मासुर तो निकट खड़ा था। * महेश रौतेला
उस साल जब हम मिले थे कड़ाके की ठंड के बीच आँख खोलती धूप थी, तुम भी चुप थे मैं भी चुप था, मन का खोना शब्द खोने जैसा था, प्यार की पच्छाई दीर्घ होती जा रही थी। आज लगता है शब्दों का समय से होना, हमें बाँधता है क्रान्तियों को आगे ले जाता है, ईश्वर के मंतव्य को खुलापन देता है। अधेड़ सी मेरी उम्र प्यार के लिखे को, आज भी देख सकती है जो अब मनुष्य बन चुका है। *** * महेश रौतेला
नया साल नये साल का सूरज उमंगों के साथ निकल आया, खुशी और प्यार के लिए नया विश्वास लाया। अनंत संभावनाओं में हमारे चारों ओर दिशायें खुल गयीं। नये साल का सूरज उजाला लिए खड़ा, और मनुष्य की ईहा आकाश पर उतर, क्षितिजों को खोल उजाले की ओर दौड़ती सुख के साथ एकाकार हुयी। हम ज्ञान हैं स्नेह की लम्बी शाखा, फूल-फल लिए नये साल पर अवतरित साल के उत्तर हैं। अच्छी लगती है नये साल की खुशबू, उसकी लम्बी-चौड़ी मुस्कराहट बुदबुदाते सपने। बहता मन पक्षियों की ऊँची उड़ान, लोगों का साथ हरे-भरे सपने, उड़ते जहाज,दौड़ती रेलगाड़ियां चलता यातायात पहाड़ों पर झरती बर्फ दिन-रात के स्पर्श ले जाते हैं साल को आगे उजले क्षितिजों के पास। 2023 की शुभकामनाएं।💐🙏 ( एक साल के अन्दर बहुत साल होते हैं।) * महेश रौतेला
कितने ही स्वर उठते हैं अन्दर से मानो हिमालय के स्वच्छ शिखर हों, या बहती नदियों का पवित्र जल हो या खिलते खिलखिलाते पुष्पों की पहल हो। या बहकी हवा के झोंके हों या अनकही कोई आरती हो या टहलती व्यथा के प्राण हों या महकती धरा की आवाज हो। बचपन की कोई सहज विधा हो यौवन का प्यारा संगी हो, जीवन का महकता स्मरण हो या चिट्ठियों की अद्भुत गड्डी हो। * महेश रौतेला
पत्र: पत्र लिखना पत्र में पहाड़ लिखना, कुशल में प्यार लिखना देश का स्वभाव लिखना। पंक्तियों के मध्य स्वास्थ्य की बात करना, हरी-सूखी घास पर घसियारियों के गीत लिखना। पत्र के मध्य चुनावों की हार-जीत बताना, शिखरों पर पड़े हिम पर लम्बी पर्यावरणीय बात कहना। वन की आग का बारी बारी विवरण देना, जले-मरे वृक्षों का अन्तिम संस्कार कर देना। पत्र के अन्त को अन्तिम मत कहना, उठे मुद्दों पर अपनी राय रखना। * महेश रौतेला
विजय: प्रकट रहेगा सूर्य जहाँ वहीं हमारा घर होगा, विकट मार्ग पर विजय हमारी, धूर्तों का क्षरण-क्षय होगा। मृत्यु तो अभेद्य है जन्म सदा अचिन्त्य है, उदार धरा के गृह का कब कहाँ संकट कटेगा! नित नये रूप में दुश्मन निकट प्रकट होगा, हर चक्रव्यूह को तोड़कर पाप कर्म ध्वस्त होगा। इस भूमि का मोल नहीं तू सजग बन समर्थ हो ले, इस गगन को घेर ले अपनी धरा को देख ले, धूर्त के प्राण हर ले सूर्य अपना ओढ़ ले। ***** * महेशरौतेला
प्रचंड इस वेग में यही तो एक बात है, अखण्ड इस विचार में प्रचंड राष्ट्र भाव है। सहस्र बरसों की वेदना वेदना ही उत्पत्ति है, उठो,उठो भारती दिव्य ही स्वभाव है। चलो, कीर्ति पथ पर असंख्य भाव भरे हैं, इसी वेग के साक्षी विजय ही स्वभाव है। पूर्वजों के ऋण का उऋण ही ताज है, शक्ति ही सारथी प्रचंड वेग ही महान है। पवित्र पथ खुला हुआ बढ़े चलो, बढ़े चलो, उठो,उठो भारती यही शुभ मुहूर्त है। ***महेश रौतेला दिसम्बर २०१८
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