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ज्योत प्रीत की कान्हा से, जिसने भी कभी लगायी है। मोहन ने भी दूनी करके, बस सूद सहित लौटायी है।। मुठ्ठी भर चावल के बदले,दो लोकों को दे देते हैं। मित्र सुदामा की विपदा को, अपने सिर पर ले लेते हैं।। पार्थ सारथी बने कृष्ण,अश्वों की बागें थामी थीं। सबके ही मान मिटा डाले,होती सबको हैरानी थी।। ग्वाल-बाल संग केशव भी,बस माखनचोर कहाते हैं। जो देवराज का पल में ही,दर्पों का शैल ढहाते हैं।। गोविंद यशोदा को लखकर,बस छड़ी देखकर रोते हैं। जिनकी भृकुटि से महाकाल,पल में नतमस्तक होते हैं।। #ज्योत
नापाक इरादों से जिनपिंग, तुम कभी बाज ना आओगे। श्वेत कपोत नहीं नेहरू के, गुरु के बाजों को पाओगे।। एक इंच भारत की धरती,क्या लड़कर हमसे ले लोगे। मानसरोवर के बदले अब, बीजिंग भी अपनी दे दोगे।। अगर समर की ठानी तुमने, लाशों के ढेर लगायेंगे। तेरी रजधानी बीजिंग पर,भगवा ही सिर्फ दिखायेंगे।। #बाज़
सावधान ही रहना होगा, मानवता के हत्यारों से। हमें फैसला करना होगा, बस तलवारों की धारों से।। श्वेत कपोतों के बदले,अब गुरु के बाज उड़ाने हैं। बैरी के समरभूमि में फिर,बस छक्के आज छुड़ाने हैं।। #सावधान
Manish Kumar Singh लिखित कहानी "महारथी कर्णःभाग-१-(विषय प्रवेश एवं गुरु परशुराम द्वारा कर्ण का अभिशापित होना।)" मातृभारती पर फ़्री में पढ़ें https://www.matrubharti.com/book/19888417/maharathi-karn-1
कैसे कहते दोस्त अपनी बरबादी का मंजर उससे। बड़ी मुद्दत के बाद पता चला कि वो बहरा था यारों।। #उष्ण
Manish Kumar Singh लिखित कहानी "वीर शिरोमणिः महाराणा प्रताप।(भाग-(४)" मातृभारती पर फ़्री में पढ़ें https://www.matrubharti.com/book/19887739/veer-shiromani-4
वह महामूर्ख कहलाते हैं,जग के बंधन में पड़ते हैं। वह शूरवीर हैं कहलाते, जो बाधाओं से लड़ते हैं।। अनुकरण किसी का किया नहीं, खुद के पदचिन्ह बनाते हैं। दुनिया उनका अनुकरण करे,सब उनको शीश झुकाते हैं।। ऋषियों-मुनियों का तपबल भी, उनके आगे फीका पड़ता। जो निज स्वार्थ भुला देता, परोपकार हेतु है लड़ता।। #मूर्ख
यूं तो हमेशा निद्रा में भी,बस मुझे याद तुम आते हो। फिर भी अपनी यादों के तुम,खंजर दिन-रात चलाते हो।। #निद्रालु
प्रियतम तेरे प्यार को पाकर,मै तो पागल बन जाऊंगा। तेरी मृगनयनी आंखों का,जलकर काजल बन जाऊंगा।। जीवन की सच्ची परिभाषा, प्रियतम तुमने ही सिखलायी। अब दिवस-रात्रि का चैन गया, बस आ भी जाओ ओ हरजाई।।
व्यवहार तुम्हारा कटु होगा, तो निश्चित ही सब कुछ खो दोगे। काटोगे खुशियों की फसल नहीं, जीवन में कंटक को बो लोगे। कटुता के बल पर इस जीवन में,किसने ही था कब कुछ भी पाया। सर्वस्व लुटा डाला मानव ने, कुछ भी तो हाथ नहीं था आया।। #कटु
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