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एक लम्हा अपने लिए ....
नन्ही-सी कली मेरी;मखमली-सी काया तेरी, चाहे मन तेरा है कोमल;पर तन-से तू कमज़ोर नहीं... लोगों की क्या है सोच; मालूम नहीं, पर मुझ पर तू बोझ नहीं... शब्दों-से तू कोमल और मृदु तेरा स्वभाव; पर पहन लेना कठोरता का शस्त्र; अगर आहित, हो तेरा स्वाभिमान... गलत-स्पर्श जो छीन ले तेरा हर्ष; तो कोमल हाथों-से, देना करारा जवाब; चाहे करना पड़े दुनिया से संघर्ष... अग्निपरीक्षा की आग में जो झुलसे; तेरी कोमल काया, तो तू भी देहका देना उनको; बन तेजस्वी ज्वाला... कोमल-सी समझ खुद को, मुरझाने ना देना; फूल संग कांटे होते हैं; सब को दिखला देना... -मंजरी शर्मा
गली के नुक्क्ड़ से एक बात चली; ना जाने कहाँ से पली-बढ़ी; थी छोटी-सी बात; पर मिर्च-मसाला लगाकर; बन गई कुछ ख़ास... फुसफुसाहट और खुसपुस का पहने लिबास; ना जाने कैसा, ओढ़े नकाब; पेट में पची नहीं, बातोंबातों में फंसी रही; इधर से उधर, करती रही मुलाक़ात; एक छोटी सी बात का; बतंगड़ बना दिया गया जनाब... -मंजरी शर्मा
हरदम न रहो शांत; कभी तो करो खुद-से बात; औरों की सुनते हो; कभी खुद को सुनाओ; दिल-ऐ-हाल; मत बन जाओ तुम नादान; बातों-बातों में खोल दो ज़ज़्बात; फिर देखो बातों से निकलेगी इक बात... -मंजरी शर्मा
रिश्तों में गर्माहट लाने के लिए एक प्याली 'कॉफी'; और एक तेरा साथ ही है 'काफी' ... -मंजरी शर्मा
कविता का भावपूर्ण परिणाम; शब्द, छंद और अलंकारों का है योगदान... कहानी का अर्थपूर्ण सारांश; लेखक की लेखनी का है परिणाम... विद्यार्थी के परिश्रम का परिणाम; उसकी सफलता का है आधार... जीवन की हर समस्या का समाधान; कर्म और उसका परिणाम... -मंजरी शर्मा
एक भावयुक्त कविता का प्रमाण; कवि की अभिव्यक्ति का है परिणाम... -मंजरी शर्मा
परिश्रम हो या परीक्षण; दोनों का परिणाम; सफलता का है प्रमाण... -मंजरी शर्मा
प्रणाम का परिणाम है आशीर्वाद; चाहे वो माता-पिता हों या हो भगवान... -मंजरी शर्मा
कैंसर-से पीड़ित,रमाकांत,ज़िंदगी से हताश नहीं है.जबकि उनका डॉक्टर,रमाकांत की हालत देखकर रो पड़ता है. रमाकांत:"डॉक्टर आई हैट टीयर्स" वह हँसते हुए कहते हैं;"जीने की आरज़ू में मरे जा रहे हैं लोग,मरने की आरज़ू में जिए जा रहा हूँ मैं"..."डॉक्टर; ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए,लम्बी नहीं...और वैसे भी बाबूमोशाय; ज़िंदगी और मौत तो ऊपरवाले के हाथ में है,उसे न आप बदल सकते हैं और न मैं,मेरे दोस्त ना इंजेक्शन की सुई से,ना तुम्हारी कड़वी गोलियों की डर से,बंदा डरता है तो सिर्फ परवर-दिगार से. डॉक्टर भी अपने दोस्त,रमाकांत की बातों-से,मुस्कुराये-बिना नहीं रह पाते और कहते हैं:"जहांपना;तुसी ग्रेट हो,तोहफा(दवाई);कुबूल करो..."दोनों हंसने लगते हैं. -मंजरी शर्मा
भाईदूज आजा भाई,इक थाली सजाऊँ; तेरे संग भाईदूज मनाऊं... रोली-चावल से तिलक लगाऊं; तेरे लिए मंगल-गीत मैं गाऊँ... खुशकिस्मत है तेरी बहना; मुझे हमेशा तेरे दिल में रहना... मुझे मिला"रचित"भाई जैसा गहना; ईश्वर का शुक्रिया मनाऊं; हरपल तुझ पर वारी जाऊं... भाईदूज का पावन त्यौहार; इसमें छिपा हम दोनों का प्यार... खुशियों से तेरी झोली भर पाऊं; ऐसा मैं वचन निभाऊं... है मुझसे तू छोटा;लगता अब भी बच्चा... तेरे संग फिर खेल-खिलाऊँ;खुद हारु, तुझको जिताऊं... भाई तू दूर रहे या पास;मेरी तो यही है आस... तेरी खुशहाली के दीप मैं जलाऊं; हरपल दुआओं में तुझे मैं पाऊं; तेरे संग भाईदूज मनाऊं... मंजरी शर्मा ✍️
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