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विजया बैंक में सहायक प्रबंधक से सेवा निवृत। पिता स्व. रामनाथ शुक्ल ‘श्री नाथ’ से साहित्यिक विरासत एवं प्रेरणा। अपने विद्यार्थी जीवन से ही लेखन के प्रति झुकाव। राष्ट्रीय, सामाजिक एवं मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत साहित्य सृजन की अनवरत यात्रा।
1 सजल मात्रा -भार 15 पदांत- समांत- आन चलो चलाते हैं अभियान। सुधरे-सँवरे हिन्दुस्तान।। धर्म-कर्म का मर्म समझकर, बनना है पहले इंसान। लहू सभी का एक रंग का, कैसे फिर बनता नादान। भरते मरहम से हर घाव, देते नमक-मिर्च का ज्ञान। मानव ज्ञानी, बुद्धि विवेकी, जग में मिले उसे सम्मान। मानवता को रखें सलामत, ऊँची मिलकर भरें उड़ान। मजहब भर से बात न बनती, भूखा अब भी पाकिस्तान। मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
*वृष्टि,धाराधर,बरसात,प्यास,पुष्करिणी* 1 वृष्टि ग्रीष्म काल के बाद ही, होती अमरित *वृष्टि*। धरा स्वयं शृंगार कर, रचे अनोखी सृष्टि।। 2 धाराधर इन्द्र देव ने ले रखा, *धाराधर* का भार। प्राणी हैं निश्चिंत सब, ईश्वर ही आधार।। 3 बरसात यह मौसम *बरसात* का, करता है फरियाद। प्रियतम का हो साथ तब, दूर हटें अवसाद।। 4 प्यास *प्यास* अधूरी रह गयी,बिछुड़ गए फिर श्याम। ब्रज की रज व्याकुल हुई, छोड़ चले ब्रजधाम।। 5 पुष्करिणी *पुष्करिणी* के ताल में, खिलें कमल अनमोल। नंदी के मुख से बहे, अविरल अमरित घोल।। मनोज कुमार शुक्ल " मनोज " 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
कुछ नेता गण पालते, अपने मन में भ्रांति। अनय बढ़े जब चरम पर, तब होती है क्रांति।। ताकतवर होती कलम, करे शत्रु पर वार। मानव हित रक्षा करे, दे सद्बुद्धि विचार।। हुए कूप मंडूक हैं, कुछ नेता गण आज। धरती से अब कट गए, समझ न पाए राज।। चला देश में है गलत, स्वर विरोध का आज। आगजनी, पत्थर चलें, कब आएगी लाज।। सरकारी संपत्ति का, जो करते नुकसान। अब उनकी ही जेब से, होता है भुगतान।। कर दाता हैं देश के, प्रगति हेतु दें दान। आग लगा कुछ तापते, कैसे हैं शैतान।। राह अग्निपथ की चुनें, यह संकट का काल। तन मन से चैतन्य हो, सजग रहें हर हाल ।। सबका यह कर्तव्य है, करें देश कल्याण। जो भी इससे विमुख हों, उनको देवें त्राण।। मनोजकुमार शुक्ल मनोज
*पावस, बरसा, फुहार, खेत, बीज* 1 पावस पावस का सुन आगमन,दिल में उठे हिलोर। धरा गगन हर्षित हुआ, नाच उठा मन मोर ।। पावस देती है सुखद, हरियाली अनुभूति। करें मंत्रणा हम सभी,जल-संरक्षण नीति।। 2 बरसा मेघों ने बरसा दिया, जल की अमरित बूँद। चलो सहेजें मिल अभी, आँखों को मत मूँद।। धन की बरसा हो रही, हुआ देश धनवान। खड़ा पड़ोसी रो रहा, देखो पाकिस्तान।। 3 फुहार बरखा ने जब कर दिया, अमरित की बौछार। ग्रीष्म हुआअब अलविदा,तन-मन पड़ीं फुहार।। 4 खेत बरसा की बूँदें गिरीं, हर्षित हुआ किसान। चला खेत की ओर फिर,करने नया विहान।। खेत और खलिहान में, फिर झाँकी मुस्कान। बहे पसीना कृषक का, पहने तब परिधान।। 5 बीज बरखा की बूँदें गिरीं, हर्षित माटी-बीज। कृषक देखता है उसे, फिर आएँगे तीज।। बीज अंकुरित हो गए, देखे विहँस किसान। ईश्वर ने किस्मत लिखी, होगा नया विहान।। मनोज कुमार शुक्ल " मनोज " 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
कनाडा यात्रा वृतांत (संशोधित रचना) देश कनाडा में सभी, सभ्य सुसंस्कृत लोग । सद्गुण से परिपूर्ण हैं, करें सभी सहयोग।। हाय हलो करते सभी, जो भी मिलता राह। अधरों में मुस्कान ले, मन में दिखती चाह।। कर्मनिष्ठ व्यवहार से, अनुशासित सब लोग। नियम और कानून सँग, परिपालन का योग।। झाँकी पर्यावरण की, मिलकर समझा देख। संरक्षित कैसे करें, समझी श्रम की रेख।। फूलों की बिखरी छटा, गुलदस्तों में फूल। घर बाहर पौधे लगे, पहने खड़े दुकूल।। हरियाली बिखरी पड़ी, कहीं न उड़ती धूल। दिखी प्रकृति उपहार में, मौसम के अनुकूल।। मखमल सी दूबा बिछी, हरित क्रांति चहुँ ओर। शीतल गंध बिखेरती, नित होती शुभ भोर।। प्राण वायु बहती सदा, बड़ा अनोखा देश। जल वृक्षों की संपदा, आच्छादित परिवेश।। प्रबंधन में सब निपुण, जनता सँग सरकार। आपस में सहयोग से, आया बड़ा निखार।। साफ स्वच्छ सड़कें यहाँ, दिखते दिल के साफ। भूल-चूक यदि हो गई, कर देते सब माफ।। तोड़ा यदि कानून जब, जाना होगा जेल। कहीं नहीं फरियाद तब, कहीं न मिलती बेल।। शासन के अनुकूल घर, रखते हैं सब लोग। फूलों की क्यारी लगा, फल सब्जी उपभोग।। रखें प्रकृति से निकटता,जागरूक सब लोग। बाग-बगीचे पार्क का, करें सभी उपयोग।। सड़कें अरु फुटपाथ में, नियम कायदा जोर। दुर्घटना से सब बचें, शासन का यह शोर।। भव्य-दुकानों में यहाँ, मिलता सभी समान। ग्राहक अपनी चाह का,रखता है बस ध्यान।। दिखे शराफत है यहाँ, हर दिल में ईमान । ग्राहक खुद बिल को बना, कर देते भुगतान।। वाहन में पैट्रोल सब, भरते अपने हाथ। नहीं कर्मचारी दिखें, चुक जाता बिल साथ।। बाहर पड़ा समान पर, नजर न आए चोर। लूट-पाट, हिंसा नहीं, राम राज्य की भोर ।। फूलों सा सुंदर लगा, बर्फीला परिवेश। न्याग्रा वाटर फाल से, बहुचर्चित यह देश।। 19 मनोज कुमार शुक्ल " मनोज " 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
*दोहा सृजन हेतु शब्द--* *बदरी, बिजली, मेघ, चौमास, ताल* 1 बदरी बदरी नभ में छा गई, लुभा रही चितचोर। पानी की बूँदें गिरें, तब नाचे मन मोर।। 2 बिजली बिजली चमकी गगन में, लरज रहे हैं नैन। प्रियतम को पाती लिखी, लौटो घर तब चैन।। 3 मेघ गरज चमक कर मेघ ने, भेजी है सौगात। शीतल करने आ रही, मनभावन बरसात।। 4 चौमास जब आया चौमास यह, है पुलकित मधुमास। धरा प्रफुल्लित हो उठी, मिलकर खेलें रास।। 5 ताल चौमासे का आगमन, सुनकर हैं खुशहाल। ताल तलैया बावली, नाच उठी दे ताल।। मनोज कुमार शुक्ल " मनोज " 🙏🙏🙏🙏🙏
कनाडा यात्रा भ्रमण पर दोहे 🌼🌼🌼🌼🌼🌼 देश कनाडा में सभी, बड़े भले हैं लोग । सद्गुण से परिपूर्ण हैं, करें सभी सहयोग।। हाय हलो सब ही करें,जो भी मिलता राह। मुस्कानी-मुखड़ा लिए, दिल में उठती चाह।। कर्मनिष्ठ व्यवहार से, अनुशासित हैं लोग। नियम और कानून में, परिपालन का योग।। झाँकी पर्यावरण की, हमने समझा देख। संरक्षित कैसे करें, समझें उसकी रेख।। हरियाली बिखरी पड़ी, कहीं न उड़ती धूल। मिली प्रकृति उपहार में, मौसम के अनुकूल।। मखमल सी दूबा बिछी, हरित क्रांति चहुँ ओर। शीतल गंध बिखेरती, शुभ होती तब भोर।। प्राण वायु बहती सदा, बड़ा अनोखा देश। जल वृक्षों की संपदा, आच्छादित परिवेश।। प्रबंधन में सब निपुण, जनता सँग सरकार। आपस के सहयोग से, आया बड़ा निखार।। साफ स्वच्छ सड़कें यहाँ, रखते दिल हैं साफ। भूल-चूक यदि हो गई, तब कर देते माफ।। यदि तोड़ा कानून तब, जाना होगा जेल। कहीं नहीं फरियाद है, कहीं न मिलती बेल ।। शासन के अनुकूल घर, रखते हैं सब लोग। फूलों की क्यारी लगा, फल सब्जी उपभोग।। वृक्षों से परिपूर्णता, जागरूक सब लोग। बाग-बगीचे पार्क का, करें सभी उपयोग।। सड़कें अरु फुटपाथ में, नियम कायदा जोर। दुर्घटना से सब बचें, शासन का है शोर।। भव्य-दुकानों में यहाँ, मिलता सभी समान। ग्राहक अपनी चाह का,रखता है बस ध्यान।। दिखे शराफत है यहाँ, हर दिल में ईमान । ग्राहक खुद बिल को बना, कर देते भुगतान।। बाहर पड़ा समान पर, नजर न आए चोर। लूट-पाट, हिंसा नहीं, राम राज्य की भोर ।। मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
1 पसीना देख पसीना बह रहा, कृषक खड़ा है खेत। जेठ पूस सावन-झरे, हर फसलों को सेत।। 2 जेठ जेठ उगलता आग है, श्रमिक रहा है ताप। अग्नि पेट की शांत हो, करे कर्म का जाप।। 3 अग्नि अग्नि-परीक्षा की घड़ी, करो विवेकी बात। आपस में मिलकर रहें, दुश्मन को दें मात।। 4 ज्वाला मरघट में ज्वाला जली, दे जाती संदेश। मानव की गति है यही, छोड़ चला वह वेश।। 5 आतप सूरज का आतप बड़ा, दे जाता संताप। वर्षा ऋतु ही रोकती, सबका रुदन-प्रलाप।। 6 भूख खुश होता है वह श्रमिक, उसको मिले रसूख। उसके घर चूल्हा जले, मिटे पेट की भूख।। मनोज कुमार शुक्ल " मनोज " 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
गीत समर्पित करता उनको, जिसने मुझको सिखलाया। जीवन की उलझी राहों में, हाथ पकड़कर बतलाया। पिता स्व. रामनाथ शुक्ल "श्रीनाथ "
*मनमीत,पारिजात,प्रपात,अंगार,उपवास* 1 मनमीत मीत मिले मनमीत सा, जीवन में उल्लास। हँसी-खुशी जीवन जिएँ, छा जाता मधुमास।। 2 पारिजात पारिजात का वृक्ष यह, पावन पुण्य प्रसून। खुशबू देता रात भर, महके महिना जून।। 3 प्रपात विश्व पटल में है बड़ा, नियाग्रा जल प्रपात। देख अचम्भित हैं सभी, करता सबको मात।। 4 अंगार बरसाता अंगार जब, सूरज देता त्राण। जिनके सिर पर छत नहीं, हर लेता है प्राण।। 5 उपवास। भिक्षुक को भिक्षा नहीं, हो जाता उपवास। लिखा भाग्य में है उसे, जीवन में संत्रास। मनोजकुमार शुक्ल " मनोज " 🙏🙏🙏🙏🙏
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