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बेकरार दिल का अफ़साना क्या बताए, इश्क़ के आलम मे, दिल का हाल क्या सुनाए, ये तो वो जज़्बात है, जो अल्फ़ाज़ मे नहीं समाते, जो हम खुद ही नहीं समझे, तो वो आपको क्या समझाए।
तेरी, ओढ़नी भी सनम क्या कमाल करती है, सरकती तेरे सर से है, ओर हाल, इस दिल का बे~हाल करती है।
एक नशे सा है ये तेरा इश्क़, मुजमे घुलकर देख, आज इसने मुजे, खुद का रहनूमा बनाया है, इसे अब मैं तेरा फ़ितूर कहूँ, या, कहूँ इश्क़~ए~इत्तेफाक़, किताबों से निकल कर, जो आज, ये मुजमे समाया है।
तू इश्क़ है मेरा, या एक हसीन सा ख्वाब है, बेगानी सी ज़िंदगी मे, तू, उस खुदा की रेहमत का जवाब है।
माना की, कुछ आदतें मुजमे एसी भी है, जो आपको कभी राज़ नहीं आती, लेकीन फिर भी मुजे, तो आप यूँ ही रेहने दो, मेरा ये लिबास भी तो उस मालिक के हिसाब से ही मिला है, फिर क्यूँ ढूंढ़ते हो एक नया लिबास, मैं जैसा भी हूँ, मुजे तो आप वैसा ही रहने दो।
टूटा हूँ, बिखरा नहीं हूँ मैं, सुर्ख फूलों पर अभी, निखरा नहीं हुँ मैं, मुकम्मल सा आलम अभी, मेरा बनाना बाकी है, सपनो की ख्वाहिशोँ के आगे, अभी झुका नहीं हुँ मैं।
अल्फाज़ भी है, अल्फाज़ रचित कहानी भी, लेकीन आज इन्हे खामोश ही रेहने दो, कलम को कागज़ पर आज, बस यूँ ही आराम से रेहने दो।
अभी_अभी तो हमने तुजे समझा था, तू कहाँ अपने अगले पन्ने पलट रहा है, अभी, जी, तो लेने दे "ए~इश्क़", इस पल को, तू कहाँ अभी अपने एहसास बदल रहा है।
वो, धीरे-धीरे मेरी आदत सी बन गई, आदत से बढ़कर वो मेरी ज़रूरत सी बन गई, हम तो यूँ ही उलझे रहे उनकी सादगी मे, और देखते_देखते, वो मेरी जिंदगी सी बन गई।
वो मुजमे, आजकल शबाब सी घुलती जा रही है, चाहत, हाँ यार, ये कम्बख्त चाहत, आजकल बेशुमार होती जा रही है।
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