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Phir bhi Shesh by Raj Kamal | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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फिर भी शेष by Raj Kamal in Hindi
Novels

फिर भी शेष - Novels

by Raj Kamal Matrubharti Verified in Hindi Love Stories

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हिमानी अंदर से दरवाज़ा बंद करना भूल गई थी। जैसे ही नशा टूटा, सुखदेव को हिमानी की देह की तलब लगी तो जा घुसा उसके कमरे में। भयभीत हिरनी—सी हिमानी फटी—फटी आंखों से अंधेरे में उसे ताक रही थी। ...Read Moreही समझ पाई कि उसके बिस्तर पर उसे घूरता सुखदेव ही है, हिमानी ने अपने मुंह को हाथों से बंद कर एक खौफनाक चीख को जवान होने से पहले ही मार डाला, क्योंकि पास ही दूसरे बिस्तर पर जवान लड़की सोई हुई थी, खिजाओं से बेखबर, बहारों के सपने देखती, सुखदेव की अपनी बेटी, रितुपर्णा।

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फिर भी शेष - Novels

फिर भी शेष - 1
हिमानी अंदर से दरवाज़ा बंद करना भूल गई थी। जैसे ही नशा टूटा, सुखदेव को हिमानी की देह की तलब लगी तो जा घुसा उसके कमरे में। भयभीत हिरनी—सी हिमानी फटी—फटी आंखों से अंधेरे में उसे ताक रही थी। ...Read Moreही समझ पाई कि उसके बिस्तर पर उसे घूरता सुखदेव ही है, हिमानी ने अपने मुंह को हाथों से बंद कर एक खौफनाक चीख को जवान होने से पहले ही मार डाला, क्योंकि पास ही दूसरे बिस्तर पर जवान लड़की सोई हुई थी, खिजाओं से बेखबर, बहारों के सपने देखती, सुखदेव की अपनी बेटी, रितुपर्णा।
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फिर भी शेष - 2
हमेशा की तरह उस सुबह भी वही दृश्य था। हिमानी घर के चौक में आई तो जेठानी कमला ने उसे खा—जाने वाली नजरों से घूरा। जिस रात भी हिमानी और सुखदेव में उठा—पटक होती, सुबह उठकर उसे जेठानी और ...Read Moreके तीर—तानें झेलने पड़ते।
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फिर भी शेष - 3
नियम जैसी फालतू चीजें सुखदेव के जीवन में नहीं हैं। कायदा—कानून होते हैं पुलिस, मिलिट्री में, और साधु—संतों के आश्रम में। सीधे—साधे गृहस्थ जीवन में सब जायज होना चाहिए, युद्ध और प्यार की तरह। मन का कहना मत टालो, ...Read Moreखुश तो सब अच्छा।
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फिर भी शेष - 4
‘जवान होती परी जैसी लड़की के लिए यहां कुछ नहीं हो पाएगा ...कौन करेगा, शराबी निकम्मा बाप... आवारा भाई... कंजूस दादी! जेठ—जिठानी तो पहले ही सारी जायदाद अकेले हड़पने के लिए प्रपंच रचते रहते हैं। चाहते हैं कि ‘नशा—पानी' ...Read Moreचक्कर में नन्नू और सुखदेव दोनों ही मर—खप जाएं। तभी तो मेरी कोख भी...।' सोचते हुए हिमानी का चेहरा तमतमा गया। मार्च बीत रहा था। दिन काफी खुल गये थे। पंछियों ने ठिठुरन में जकड़े डैने फैला दिए थे। वे ऊंची परवाज ले रहे थे। बाग—बगीचों में फूलों की फसल तैयार थी। मौसम में नए जीवन की खुशगवारी थी।
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फिर भी शेष - 5
समय का चक्र कब रुका है— महामारी हो, ज्वारभाटा आए... विषाद की गहन छाया हो या हंसी—खुशी के पर्व... एकांत में सिसकती जिंदगी हो या सार्वजनिक उत्पीड़न, चक्र नहीं थमता। रुकेगा तो फिर गति नहीं होगी। जब गति नहीं तो ...Read Moreकहां? जीवन, सत्य और सिर्फ सत्य कहें तो गति—चक्र निरंतर सापेक्ष को कलवित कर उसे गूंथता, लुगदी बनाता, अतीत की प्रक्रिया में इतिहास के कागज बनाता चलता है। हादसे के निशान उसके बाद उसकी प्रभावकारी शक्ति के अनुसार कम या देर तक रहते हैं। हिमानी का अतीत हादसों की ‘बारहमासी' है। कलेंडर के पन्ने की तरह उतर जाती हैं घटनाएं...
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फिर भी शेष - 6
इस वर्ष रितु दो विषयों में ही उत्तीर्ण हो सकी, दो शेष रह गए, जिन्हें अब अंतिम वर्ष के साथ ही पास करना होगा, लेकिन उसे इसकी कतई चिंता नहीं थी। वह नाराज इसलिए थी कि हिमानी ने पढा़ई ...Read Moreप्रति लापरवाही पर उसे खूब लताड़ा था। उसके घूमने—फिरने, पिकनिक—पिक्चर, उसके साज—श्रृंगार और उसकी फैशन—परस्ती की आलोचना करते हुए कहा कि ‘वह लाड़—प्यार का गलत इस्तेमाल कर रही है...जवान तो सभी होते हैं, पर मकसद भूलने से थोड़े ही चलता है...अभी अपने को पढ़ने—लिखने तक सीमित रखो, इस उम्र का यही लक्ष्य है। बाद में जो बेहतर लगे, सो करना।' बहुत क्षुब्ध होकर बोली थी हिमानी, ‘तुम्हारे लिए तो यह और भी जरूरी है। अपने परिवार और उसके सीमित साधनों का तो ध्यान रखो। ऐसा ही रहा तो मैं कब तक करूंगी?'
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फिर भी शेष - 7
नीचे गली में आदित्य वर्मा अपनी मारुति के शीशे साफ कर रहा था। अचानक नजर ऊपर उठी तो मुस्कराकर अभिवादन में उसने सिर हिलाया। जवाब में हिमानी भी मुस्करायी। आदित्य उनका ही किराएदार है। हिमानी उसे देखती और सोचती, ‘कितना ...Read Moreव्यक्ति है, फालतू बात कभी नहीं करता। बात करते समय सीधे देखता तक नहीं। कभी नजरें मिल जाएं तो फौरन इधर—उधर देखने लगता है। कहते हैं, ऐसे लोगों के मन में चोर होता है।
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फिर भी शेष - 9
रितुपर्णा को पहले चरण में सफलता बहुत आसानी से मिल गई। यह सफलता शिक्षा—परीक्षा से संबंधित नहीं थी। पढ़ाई में उसकी रुचि तो पहले ही नहीं थी। स्कूल के बंधन से मुक्त होते ही वह कालेज की खुली आबोहवा ...Read Moreउड़ गई। वह सोचने लगी थी, ‘उसे ऐसा कुछ करना है, जो कुछ अलग हो, एक पहचान के साथ उसका व्यक्तित्व उभरे...
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फिर भी शेष - 8
सुख—दुःख के इसी महाचक्र में, आनंद का एक प्रसंग उससे छिटक गया। वह भूल गई कि काजल का पत्र आया था। उस दिन आदित्य ने नीचे बुलाकर उसे दिया था, जिस पर सुखदेव खूब बड़बड़ाया था और ऐलान कर ...Read Moreथा कि ‘वकील के बच्चे' से ऑफिस खाली करवाकर ही रहेगा।'
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फिर भी शेष - 10
अपने सभी ठिकानों पर बार—बार ढूंढ़ कर हिमानी थक गई तो उसने खीझकर सामान इधर—उधर बिखरा दिया। कुछ देर यूं ही पस्त रह कर उसने ‘इच्छा—बल' संचित किया और फिर खोज में पूरी लगन से जुट गई। निशाना रितु ...Read Moreकिताबों का ‘रैक' और कपड़े की अलमारी थी। उसकी मेहनत बेकार नहीं गई। काजल का पत्र एक रजिस्टर के बीच से खिसककर उसके पैरों में आ गिरा। पत्र यहां पहुंचा कैसे? किसने रखा होगा? इन सवालों को दरकिनार करते हुए उसने फौरन पढ़ लेना चाहा।
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फिर भी शेष - 11
नशा मुक्ति केन्द्र से नरेंद्र स्वास्थ्य लाभ करके जब से लौटा है, काफी बदला हुआ लगता है। आमतौर पर केंद्र में छह माह के इलाज के बाद मरीज को छुट्टी दे दी जाती है, किंतु वह पूरे एक साल ...Read Moreरहा या यूं कहें कि उन्हें रखना पड़ा। आदित्य का दबाव न होता तो यह सब सम्भव नहीं था। आदित्य जोखिम नहीं उठाना चाहता था। वह जानता था कि नन्नू का जितना अधिक समय पाबंदी से गुजरेगा, उतना ही उसके लिए बेहतर होगा। इस बीच उसका स्वास्थ्य भी संवर जाएगा। ऐसा हुआ भी।
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फिर भी शेष - 12
शून्य से उठकर जीवन में शेष करने की अभिलाषा रखने वाली हिमानी के लिए वे दिन सबसे महत्त्वपूर्ण और खुशी के दिन थे। इसका अंदाजा वे ही लगा सकते थे, जो किशोर—वय के सखा या सखी से दशकों बाद ...Read Moreदिन आमने—सामने हो गए हों। यह अहसास गूंगी के लिए गुड़ के समान था। अंतर में आंधी, भावनाओं का बवंडर, पर खामोश!! ऐसी बेचैनी, कुछ ऐसा करने की अकुलाहट भरी विमूढ़ता कि सामने वाला खुद ही समझे उसकी चाहत को।
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फिर भी शेष - 13
सुबह छत पर गुनगुनी ‘धूप—छांव' में उन्होंने चाय पी। रितु भी उनके साथ थी, लेकिन पढ़ाई के दो—चार औपचारिक प्रश्नों के उत्तर देकर, ‘सॉरी आण्टी! मुझे जाना है...शाम को मिलती हूं।' कहती हुई जल्दी ही चली गई। सुखदेव तो ...Read Moreआया ही नहीं। सिर्फ इतना कहा, ‘‘नहीं जी! ये कि दो सहेलियों के बीच में मेरा क्या काम।' दरअसल वह रात की घटना से शर्मिंदा भी हो रहा था, पर चोर की दाढ़ी में तिनके वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए बोला, ‘‘कल दोस्तों ने खुशी में थोड़ी पिला दी थी जी...वैसे नहीं जी
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फिर भी शेष - 14
हिमानी ने नन्नू की बात को गंभीरता से नहीं लिया। सोचा, ‘दोनों भाई—बहनों में तना—तनी रहती है शायद इसीलिए उसके खिलाफ भड़का रहा है, लेकिन फिलहाल तो इनमें कोई नोंक—झोंक भी नहीं हुई और नन्नू तो हफ्ताें बाद ...Read Moreमें शक्ल दिखाता है। बिना कारण तो ऐसी बात कहेगा नहीं। ‘‘हो सकता है कि तुझे कोई धोखा हुआ हो।' उसने नन्नू को ही समझाया। ‘‘मान लिया वही थी हूबहू...! लेकिन कपड़े कैसे बदल सकते हैं। वह तो उन्हीं कपड़ों में लौटी थी।'
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फिर भी शेष - 15
उस रात के बाद से रितु को घर से निकलने की मनाही हो गई थी। फिर भी वह इधर—उधर से फोन करके आबिद से सम्पर्क बनाए हुई थी। आबिद को उसने साफ कह दिया था कि यदि अब वह ...Read Moreसे निकली तो वापस नहीं लौटेगी। आबिद ने उसे सांत्वना देते हुए कहा कि वह सब ठीक कर देगा, लेकिन घर में पहले माहौल नार्मल होने दो, फिर मैं प्लान करके बताऊंगा।
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फिर भी शेष - 16
हिमानी से मिलकर लौटी काजल बहुत दिन तक मानसिक उथल—पुथल से उद्विग्न रही। द्वंद ऐसा था, जिसका समाधान नहीं सूझता था। विषय ऐसा विस्फोटक था कि दूर—दूर तक विध्वंस कर सकता था। बात ऐसी गोपनीय कि उस पर विमर्श ...Read Moreतो दूर, सोचते ही मस्तिष्क कुंद हो जाए और अचकचाकर अपनी ही जुबान दातों से काट ले। पति से सलाह लेना तो बिल्कुल पेट्रोल को माचिस की तीली दिखाने जैसा होगा। ऐसी खूबसूरत संभावना से भला कौन निःसंग हो सकता है। ऐसे कमनीय आमंत्रण पर तपस्वियों के जीवन भर के तप मलिन हो गए हैं। बेचारे एक आम पति की क्या बिसात? कभी अवसर पाकर, बहाने से उर्वराती मिट्‌टी को सींच ही आए...और पंक में आकंठ डूब कर फिर उसकी देह से आ लिपटे, यह उससे सहन नहीं होगा। काजल सोचती है, ‘संभवतः कोई भी स्त्री ऐसा नहीं चाहेगी।'
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फिर भी शेष - 17
परिवार की किसी भी चिंता से बेखबर नरेंद्र एक नई दुनिया में धीरे—धीरे अपनी पैठ बना रहा था। क्या करे, क्या न करे। लाचारी और काहिली के दलदल से निकलकर अब वह एक प्रवाह पा गया था। मालिक का ...Read Moreतो शुरू में बन गया था। इसके साथ चुनावों का होना और आर.एन. सेठ का चुनाव लड़ना, उसके लिए और नये रास्ते खोल गया। उसने सोचा, समझा, महसूस किया कि राजनीति की दुनिया एक ऐसा तिलिस्म है, जहां आनन—फानन में ऐश्वर्य के अनेक दरवाज़े खुलने लगते हैं। हाथ लगते ही पत्थर पारस हो जाता है तो गलत वक्त और गलत जगह छूने भर से कोयला हो जाता है। यहां वफादारी की बड़ी कीमत है। ठीक वैसे ही जैसे अपराध की दुनिया में भरोसे और ईमानदारी की। यदि ऐसी वफादारी किसी नेता के साथ निभाई जाए तो आपके वारे—न्यारे हो जाते है। कोई कायदा—कानून आपके आड़े नहीं आता। धीरे—धीरे आप संभ्रांत और सम्मानित हो जाते हैं।
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फिर भी शेष - 18
तमाम ऊबड़—खाबड़ रास्तों से गुजर कर अब रितुपर्णा की गाड़ी पटरी पर आ गई थी। देश के सबसे उन्नत औद्योगिक मेट्रो शहर के हाइवे पर वह रफ्तार ले रही थी। मुंबई आने का रास्ता उसी दिन साफ़ हो गया ...Read Moreजिस दिन उसने मनाली में मि. किरमानी के साथ फाइव स्टार होटल में दो रातें गुजारीं। उहापोह से भरी वे ड्रीम रातें थी। ऐसे ऐश्वर्य का अनुभव अभी तक उसकी कल्पना में नहीं जुड़ा था। वह कोई दूसरा लोक था, जिसमें आबिद ने उसे धीरे से, प्यार से फुसलाते हुए धकेल दिया था।
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फिर भी शेष - 19
अकेलेपन की उदासी रितु को हमेशा नहीं घेरती। प्रसिद्धि और पैसे का नशा उस पर हावी रहने लगा है। जब कभी उसकी खुमारी टूटती है, तब जीवन बियाबान लगने लगता है। ‘बॉडीवाश' और ‘क्रीम' और ‘टीन—सोप' की विज्ञापन फिल्मों ...Read Moreबाद उसे वीडियो एलबम का ऑफर मिला। ‘एक्सपोजर' की भारी डिमांड पर यह कॉन्ट्रेक्ट साइन हुआ था। कोरियोग्राफी स्वयं बावला की थी। शोभित और अलंकार ने भी रितु को खूब ‘पुश एंड पंप' किया। रितु ने भी इसे चुनौती की तरह लिया, ‘करो या मरो'। ‘कांटा लगा' मार्का गाने पर विविध कोणों से संपूर्ण देह—दर्शन से एलबम रातों—रात हिट हो गया। रितु ‘हॉट—केक' बन गई।
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फिर भी शेष - 20
फिर भी शेष राज कमल (20) काजल अपनी दुनिया में तल्लीन थी। अब उसके बच्चे बड़े हो गए थे। दोनों लड़कियां डिग्री कॉलेज में और लड़का इंटर कॉलेज में पहुंच गए थे। वह अलग—अलग अनुभवों से सामना कर रही थी। पति की ...Read Moreका ट्रांसफर वाला कालखंड समाप्त हो गया था, और वे लोग झांसी में स्थाई तौर पर व्यवस्थित हो गए थे। एक धुरी पर परिवार और उनका यथाक्रम जीवन घूम रहा था, पर कभी—कभी घूमते—घूमते वे ग्रहों की तरह एक—दूसरे के पास आते ही हैं। परस्पर वृत्तों से टकराते हैं या उन्हें छू जाते हैं।
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फिर भी शेष - 21
नरेंद्र ने तो मोबाइल नंबर देने के लिए ही हिमानी को फोन किया था। यही सोच कर कि कभी इमरजेंसी में मौसी कहां—कहां लैंडलाइन पर फोन पर फोन करके उसे खोजेगी, वह एक जगह तो बैठता नहीं, सौ जगहें, ...Read Moreसौ काम हैं उसके पास। यह ठीक है कि घर जाने को उसका मन नहीं होता, बचपन से ही घर में कोई आकर्षण नहीं रहा। मां नहीं थी, मौसी थी, मां जैसी ही। बाप की जगह एक शराबी, अड्‌डेबाज आदमी था, जो सुबह—शाम दिखता था, हमेशा तंगी से जूझता, लड़ने को आमादा। ताऊ—ताई शुरू से अजनबी थे। उनके लड़के कभी भाई जैसे नहीं लगे। वैसे यह सब न भी होता, तो भी आमतौर पर ‘टीन एजर' लड़के घर के कम बाहर के ज्यादा होकर रहते हैं।
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फिर भी शेष - 22
सुखदेव का बड़ा भाई हरदयाल सिंह अपनी योजना के मुताबिक ‘नाप—जोख' कर ‘आगा—पीछा' सोच—समझ कर काम कर रहा था। बरसों पहले उसने विकसित होती नई कॉलोनी में हज़ार वर्ग गज का ‘प्लाट' बहुत सस्ते दाम में खरीद लिया था। आधा ...Read Moreफैक्टरी के लिए छोड़कर शेष हिस्से में दो मंजिला शानदार मकान बनवा लिया था। बड़ा बेटा शादी के बाद वहीं शिफ्ट कर गया था। बाद में फैक्टरी वाला हिस्सा भी खड़ा कर लिया और अब वहां मशीनें शिफ्ट करवा दी थीं। छोटे बेटे की शादी नये मकान से ही करेंगे। इसलिए रितु के घर से चले जाने के साल भर के अंदर ही पुराने मकान को खाली कर दिया था। आदित्य के ऑफिस खाली करने के बाद कन्फेक्शनरी वाला बंसल और टेलर मास्टर ही रह गए थे, उनकी कुछ डिमांड थी। उन्होंने साफ कह दिया कि बिना पैसा लिए दुकानें खाली नहीं करेंगे, कोर्ट—कचहरी करना है तो बेशक कर लो।
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फिर भी शेष - 23
रितु यानी सुगंधा को स्वस्थ होने में लगभग दो सप्ताह का समय लगा। डॉक्टर ने दो दिन तो घर आकर ही देखा और दवाइयां दीं। जब खास फर्क नहीं पड़ा तो नर्सिंग होम में रखा। इन दिनों अलंकार प्राण—प्रण ...Read Moreउसके साथ रहा। रात को कुछ घंटे के लिए घर जाता था। सुबह फिर जरूरी दवाइयां और सामान लेकर हाजिर हो जाता था। रितु उसे देखकर मुस्करा देती और नजरों से ही दुलार—सा करके कहती, ‘‘तुम ठीक से आराम भी नहीं कर रहे हो...इतनी भाग—दौड़, मेरे कारण...! तुम्हें कुछ हो गया तो कौन देखेगा?'
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फिर भी शेष - 24
इतने बड़े ‘महादेव भवन' पर अब न तो ऋतुओं का खास असर दिखता है, न ही त्योहारों का। अतीत की यादों में गुमसुम बिकने के लिए सरेआम खड़ा, अपने नए मालिक का इंतजार करता हुआ। दीपावली बीत गई, बड़ा ...Read Moreऔर ईद भी गुजर गई। उसके अंदर वीराना ही छाया रहा। कभी हिमानी और सुखदेव की चीख—चिल्लाहट, उठा—पटक की आवाजें उसे जरूर कुछ देर के लिए जीवंत बना देती हैं। वैसे पूरे भवन में पक्षियों की आवाजें, उनके पंखों की फड़फड़ाहटें ही सारा दिन गूंजती रहती हैं।
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फिर भी शेष - 25
आदित्य ने हिमानी को बुलाया तो ‘पेपर्स' पर दस्तख्त करने के लिए ही था, किंतु छिपे तौर पर उसकी मंशा हिमानी को मां से मिलाने की भी थी। यद्यपि हिमानी और आदित्य अभी शादी के बंधन में नहीं बंध ...Read Moreथे। एक तो उसकी मां की थोड़ी आना—कानी दूसरे अभी हिमानी को सुखदेव से मुक्ति मिलने में समय लगने वाला था।
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फिर भी शेष - 26
सुखदेव ने साठ बरस के जीवन में कभी भी ऐसा अनुभव नहीं किया था। आज उसके पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। दुनिया रंग—बिरंगी दिख रही थी। सब कुछ अच्छा ही अच्छा लग रहा था। सब उससे कितने ...Read Moreऔर सम्मान के साथ पेश आ रहे थे। जो कल तक उसे दुत्कारते थे, आज उसके तलवे चाटने को तैयार थे। किसी के लिए वह सेठ सुखदेव था तो किसी के लिए लाला सुखदेव। कोई उसे व्यापार करने की सलाह दे रहा था तो कोई बिजनेस के गुरुमंत्र सिखा रहा था। कोई प्रॉपर्टी का धंधा करने की सलाह दे रहा था तो कोई पैसा ब्याज पर चढ़ाने के फायदे गिनवा रहा था। उसका बिल्डर के साथ लेन—देन पूरा हो गया था और कागजात पर दस्तखत इत्यादि हो गए थे। आज से सुखदेव अपने आधे हिस्से के बूते पर लाखों रुपये और एक शानदार फ्लैट का मालिक था। सारा दिन उन्हीं कामों में अलग—अलग बैंकों में चेक—कैश जमा कराने में बीत गया।
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फिर भी शेष - 27
हिमानी को अपने दरवाजे पर देखकर चौंका था आदित्य। रात के लगभग ग्यारह बज रहे थे। हिमानी दाएं हाथ में सूटकेस तथा बाएं कंधे पर बैग लटकाए खड़ी थी। कुछ पल विमूढ़ की अवस्था में गुजार कर आदित्य ने ...Read Moreसहज होकर भी आश्चर्य प्रकट किया, ‘‘हिमानी जी! क्या हुआ...आई मीन, सब ठीक...!' कहकर वह हिमानी का मुंह ताकने लगा। कुछ पल हिमानी ने भी उसे असहजता से देखा, फिर कहा, ‘‘क्या मैं गलत पते पर हूं...वापस जाऊं?'
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फिर भी शेष - 28 - Last part
प्रशिक्षण के बाद हिमानी को एक परिवार की जिम्मेदारी निभाने के लिए जयपुर के बालग्राम में भेज दिया गया। वैसे एक परिवार में दस बच्चे होते हैं किंतु हिमानी के पास अभी आठ बच्चे थे। तीन लड़के, पांच लड़कियां। ...Read Moreकमरों का फ्लैट—हाउस नंबर पांच था। बच्चे दूर—दराज और अलग—अलग राज्यों से थे। चूंकि बच्चे अभी छोटे थे। इसलिए एक अपरिचित महिला को मां के रूप में स्वीकारने में उन्हें अधिक कठिनाई नहीं हुई। यह हिमानी के लिए भी अच्छा था। इस दौरान उसने वहां पुरानी मांओं से मिलकर अनुभव जुटाने की कोशिश की ताकि बच्चों के साथ शीघ्र—अतिशीघ्र तादात्म्य बिठाने में सुविधा हो जाए। हाउस नंबर बारह में मदर नलिनी थी।
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