Ab lout chale book and story is written by Deepak Bundela AryMoulik in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Ab lout chale is also popular in Classic Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अब लौट चले - Novels
by Deepak Bundela AryMoulik
in
Hindi Classic Stories
अब लौट चले आज मुझें ऐसा लग रहा था कि मै सच में आज़ाद हूं, सारी दुनियां आज पहली बार मुझें नई लग रहीं थी, सब कुछ नया और सुकून से भरा गर्त के अँधेरे को चीर मेरे कदम नए उजाले की और अनयास ही बढ़ चुके थे, ठीक उसी तरह जब मै मनु के साथ अपना घर छोड़ कर नई जिंदगी की शुरुआत करने के लिए नये शहर मे आ बसी थी.. शायद मनु ही मेरा सच्चा प्यार था... उसने हर पल की ख़ुशी मेरी झोली में उड़ेली थी, आज भी उसके शब्द मेरे कानो में गूंजते है...क्या हुआ जान तुम
अब लौट चले आज मुझें ऐसा लग रहा था कि मै सच में आज़ाद हूं, सारी दुनियां आज पहली बार मुझें नई लग रहीं थी, सब कुछ नया और सुकून से भरा गर्त के अँधेरे को चीर मेरे कदम ...Read Moreउजाले की और अनयास ही बढ़ चुके थे, ठीक उसी तरह जब मै मनु के साथ अपना घर छोड़ कर नई जिंदगी की शुरुआत करने के लिए नये शहर मे आ बसी थी.. शायद मनु ही मेरा सच्चा प्यार था... उसने हर पल की ख़ुशी मेरी झोली में उड़ेली थी, आज भी उसके शब्द मेरे कानो में गूंजते है...क्या हुआ जान तुम
मेरी तो किस्मत ही ऐसी है पिछली शादी की साल गिरह भी ऐसी ही निकल गई... जानू तुम अपना दिल छोटा मत करो... अभिषेक को मै सम्हाल लूंगा आज तुम घूम आओ... मैंने उसे प्रश्न वाचक की नज़रो से ...Read Moreथा... तो मनु ने अपना पर्श मेरे हाथ पर रखा दिया था मैंने फ़ौरन पर्स को अपने हांथो के कब्जे मे करते हुए उसको हलकी सी स्माइल दी थी... कि तभी बाहर से कार के हॉर्न की आवाज़ ने माहौल को बदल दिया था... जाओ जानू रवि आ गया है... इतना सुनते ही मै जल्दी से उठते हुए बाहर की तरफ भागी थी... मेरे
अब लौट चले -3शायद रवि को मनु की बात का बुरा लगा था... मै उसके पीछे पीछे जानें लगी थी.. रवि... रवि... आप तो बुरा मान गये...?और मै झट से कार के दरवाजे के सामने अड़ कर खड़ी हों ...Read Moreथी रवि ने मेरे चेहरे को देखते हुए अपना मुँह मेरे मुँह के नज़दीक ला कर मीठी सी मिश्री घोलती हुई आवाज़ में कहा था.. गुड नाईट संध्या... और रवि ने मेरे चेहरे को अपने दोनों हांथो से पकड़ कर मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिये थे मै कुछ ना कर सकी थी उसकी सांसे मेरी सांसो के साथ समा चुकी थी
अब लौट चले -4तभी बस का हॉर्न बजा तो मेरी तन्द्रता भंग हुई... लोग बस में बैठने लगे थे... और बस धीरे -धीरे रेंगने लगी थी.. मन असमंजस में हिचकोले लें रहा था जाऊ के ना जाऊ.. लेकिन ना ...Read Moreतो कहा जाऊ... बस ने रफ़्तार पकड़ लीं... मेरी धड़कने तेज़ होने लगी थी... मन बार -बार उचट रहा था क्या मुँह लेकर जा रहीं हू किस हक़ से जा रहीं हूं... लेकिन शरीर मनु के पास खींचा चला जा रहा था एक ज़िन्दा लाश की तरह... वो वक़्त भी आ गया जब मै अपने पुराने घर जहाँ दुल्हन की तरह
यहाँ देख ऐसा लग रहा था... ये वही बेड जो आज भी बैसा ही हैं बेड पर बिछी ये चादर भी तो वही हैं... उफ़... ये में क्या देख रहीं हूं... यहां तो सब कुछ उसी दिन से ...Read Moreहुआ सा हैं... आप बैठिये... वो उस चेयर पर ही बैठिएगा... और वो वहाँ से चला गया... मै अपने बैठने की उस कुर्सी को देख रहीं थी... जिसे सिर्फ मेरे लिए ही मनु लेकर आया था... इस वक्त उस कुर्सी पर धूल जमीं हुई थी... ऐसा लग रहा था शायद ये घर काफ़ी दिनों बाद खोला गया हों.... तभी अभिषेक हाँथ में पानी