Dorr - Rishto ka Bandhan book and story is written by Ankita Bhargava in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Dorr - Rishto ka Bandhan is also popular in Love Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
डोर – रिश्तों का बंधन - Novels
by Ankita Bhargava
in
Hindi Love Stories
ढ़ोलकी की थाप पर जैसे ही गीत शुरु हुआ सुरेश की आंखों के कोर भीग गए। कैसा माहौल होता है बेटी की शादी में। घर में रौनक भी होती है और खुशियाँ भी पर दिल में बेटी की जुदाई का दर्द भी कम नहीं होता। अपने जिगर के टुकड़े को दूसरे घर भेजते समय एक पिता के दिल पर क्या गुज़रती है यह कोई सुरेश से पूछे, जो अपनी पांचवी बेटी की विदाई की तैयारी कर रहा था।
पहले से ही चार बेटियों के पिता सुरेश के कंधों पर जब भतीजी नयना की परवरिश का भार आया तो एक बार तो उसके हाथ पांव फूल गए कि अब क्या होगा। उसकी आर्थिक स्थिति तो पहले से ही डावांडोल थी। ऐसे में भाईसाहब का यूं आधे में ही चले जाना उसे तोड़ गया। भाईसाहब की सरपरस्ती में वह ख़ुदको सुरक्षित महसूस करता था, उनके असमय काल का ग्रास बनने से वह अकेला पड़ गया पर उस दुख के समय में 'होनी को कोई नहीं रोक सकता' बस यही सोच कर उसने सब्र कर लिया।
(1)
साडा चिड़िया दा चंबा वे
बाबुल असां उड़ जाना
साडी लंबी उडारी वे
बाबुल मुड़ नहीं आना'
...Read More ढ़ोलकी की थाप पर जैसे ही गीत शुरु हुआ सुरेश की आंखों के कोर भीग गए। कैसा माहौल होता है बेटी की शादी में। घर में रौनक भी होती है और खुशियाँ भी पर दिल में बेटी की जुदाई का दर्द भी कम नहीं होता। अपने जिगर के टुकड़े को दूसरे घर भेजते समय एक पिता के दिल पर क्या गुज़रती है यह कोई सुरेश से पूछे, जो अपनी पांचवी बेटी की विदाई की तैयारी कर रहा था।
पहले से ही चार बेटियों के पिता स
2)
पीले रंग का टॉप और ब्लू जींस पहन कर नयना तमन्ना के घर पहुंची। पर गली में उसके घर की ओर मुड़ते ही उसके पैर जम गए। तमन्ना के घर के बाहर लड़कों का ...Read Moreझुंड खड़ा था। नयना को समझ नहीं आ रहा था वह उन लड़कों के बीच से निकल कर घर के अंदर कैसे जाए। वह असमंजस में थी कि तभी शोभित उस झुंड से बाहर आता हुआ बोला,"अंदर चली जाओ नयना, तमन्ना तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही है।" शोभित ने अपने दोस्तों को एक तरफ हटा कर उसके भीतर जाने का रास्ता बना दिया।
शोभित को धन्यवाद दे नयना घर के भीतर चली गई। वह
3)
मोबाइल में बजे अलार्म से नयना की तंद्रा टूटी। सुबह हो गई थी। इस बीती रात में उसने अपने जीवन के पिछले कुछ साल फिर से ...Read Moreलिए, और फिर उन सालों को शोभित की यादों के साथ अपने दिल के एक अंधेरे तहख़ाने में बंद कर दिया। अब वह अपने नये जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार थी।
नयना धीरे से दरवाज़ा खोल कर बाहर आई, विवेक के दोस्त जा चुके थे, अब छत पर शांति थी, पर रात को उन लोगों ने जो हुड़दंग मचाया था उसके निशान अब भी यहां वहां बिखरे पड़े थे। पूरी छत पर गंद
नयना का फ़ोन बहुत देर से बज रहा था। दो बार तो बेचारा थक कर चुप भी हो गया। नयना आटा लगा रही थी,'आज किसे मेरी इतनी याद आ रही है,' उसने देखा फ़ोन की स्क्रीन पर उसकी कलीग ...Read Moreका नंबर फ्लैश हो रहा था। हैलो, ऐसी कौनसी आफत आ गई की तुम कॉल पर कॉल किए जा रही हो, अभी थोड़ी देर पहले ही तो बिछड़े थे। थोड़ा सब्र भी रख लिया करो, आटा सने हाथों से नयना ने इस बार फ़ोन उठा ही लिया।
बात ही ऐसी है। मुझे पता था ना तो तुम्हारे पास फ़ुर्सत है और ना ही तुम्हारी याददाश्त ही इतनी अच्छी है कि जरूरी बातें तुम्हें याद रहे इसलिए सोचा मैं ही बता दूं।
जल्दी बको, सच में बिज़ी हूं। खाना बना रही हूं अगर तुम्हारी बातों में उलझ गई तो सब्जी जल जाएगी।
ऐसे नहीं मैडम, इतनी बड़ी ख़बर मैं यूं ही नहीं सुनाने वाली। पहले ये बताओ बदले में मुझे क्या मिलेगा। जानती हूं तुम परले दर्जे की कंजूस हो। पर इस बार तुम्हारा पाला रेंवती से पड़ा है, बिना पार्टी लिए मैं तो तुम्हें नहीं छोड़ने वाली।
नयना के एक बार कहने भर से प्रकाश मोसाजी ने कनाडा जाने वाली टीम में विवेक को शामिल करने की सिफारिश ही नहीं की वरन उसका चयन होने के बाद पासपोर्ट, वीज़ा आदि बनवाने में भी उसकी हर तरह ...Read Moreमदद की। विवेक का वीज़ा भी बन गया और टिकट भी आ गया। विवेक तो बहुत उत्साहित था पर जैसे जैसे उसके जाने का दिन पास आ रहा था नयना का दिल बैठा जा रहा था। विवेक का सामान पैक करने की आड़ में वह पूरा पूरा दिन खुद को उलझाए रखती पर कहीं चैन ना पाती। वह जानती थी उसकी इच्छा कोई महत्व नहीं रखती पर फिर भी वह चाहती थी कि विवेक अपना इरादा बदल दे। काश कोई तो हो जो विवेक को कनाडा ना जाने के लिए मना ले। पता नहीं विवेक ने यह कैसी ज़िद पकड़ ली है, डिप्लोमा तो यहां भारत में भी हो सकता है ना उसके लिए अपने परिवार से इतनी दूर परदेस जाने की क्या जरूरत है।