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Ek Jindagi - Do chahte by Dr Vinita Rahurikar | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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एक जिंदगी - दो चाहतें  by Dr Vinita Rahurikar in Hindi
Novels

एक जिंदगी - दो चाहतें - Novels

by Dr Vinita Rahurikar in Hindi Motivational Stories

(75)
  • 1.4k

  • 2.5k

  • 5

बचपन से ही भारतीय सेना के जवानों के लिए मेरे मन में बहुत आदर था। मेरे परिवार में कोई भी सेना में नहीं है। मैंने सिर्फ सिनेमा में सैनिकों के बहादुरी भरे कामों को देखा और हमेशा ही उन्हें ...Read Moreमुझे बहुत अच्छा लगा। आज से पाँच वर्ष पूर्व एक सैनिक अधिकारी से मेरी पहचान हुई। कुछ ही दिनों में हम बहुत अच्छे दोस्त बन गए। वह सेना अधिकारी अपनी छुट्टियाँ खत्म होने पर अपनी ड्यूटी पर वापस चले गए। हम फोन पर बात करके अपनी दोस्ती को बनाए रखे हुए थे। वे अकसर अपने सेना जीवन के अनुभवों को मेरे साथ बाँटते। उनकी कहानियाँ बहुत रोमांचक होती थीं। मैं हमेशा उनके अनुभव सुनने के लिए उत्सुक रहती। फोन पर उनके अनुभव सुनते हुए मैं हमेशा सेना के जवानों के प्रति नतमस्तक हो जाती उनकी बहादुरी तथा मातृभूमि के लिए उनका भक्ति और प्रेम देखकर। जब मैंने भारतीय सेना के जवानों के काफी सारे बहादुरी पूर्ण कार्यों के बारे में सुना, उनके चुनौती भरे जीवन के बारे में जाना जो कभी-कभी काफी दिलचस्पी भी होता था तभी मुझे भारतीय सेना के जवानों पर एक उपन्यास लिख कर अपने पाठकों तक उनके जीवन के इन अनछुए पहलुओं को पहुँचाने की इच्छा हुई ताकि मैं सेना के जवानों की कर्तव्यनिष्ठा और देश भक्ति के प्रति इस तरह से अपना आदर तथा भावनाएँ अभिव्यक्त कर सकूँ। Read Less

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 1

(5)
  • 300

  • 427

बचपन से ही भारतीय सेना के जवानों के लिए मेरे मन में बहुत आदर था। मेरे परिवार में कोई भी सेना में नहीं है। मैंने सिर्फ सिनेमा में सैनिकों के बहादुरी भरे कामों को देखा और हमेशा ही उन्हें ...Read Moreमुझे बहुत अच्छा लगा। आज से पाँच वर्ष पूर्व एक सैनिक अधिकारी से मेरी पहचान हुई। कुछ ही दिनों में हम बहुत अच्छे दोस्त बन गए। वह सेना अधिकारी अपनी छुट्टियाँ खत्म होने पर अपनी ड्यूटी पर वापस चले गए। हम फोन पर बात करके अपनी दोस्ती को बनाए रखे हुए थे। वे अकसर अपने सेना जीवन के अनुभवों को मेरे साथ बाँटते। उनकी कहानियाँ बहुत रोमांचक होती थीं। मैं हमेशा उनके अनुभव सुनने के लिए उत्सुक रहती। फोन पर उनके अनुभव सुनते हुए मैं हमेशा सेना के जवानों के प्रति नतमस्तक हो जाती उनकी बहादुरी तथा मातृभूमि के लिए उनका भक्ति और प्रेम देखकर। जब मैंने भारतीय सेना के जवानों के काफी सारे बहादुरी पूर्ण कार्यों के बारे में सुना, उनके चुनौती भरे जीवन के बारे में जाना जो कभी-कभी काफी दिलचस्पी भी होता था तभी मुझे भारतीय सेना के जवानों पर एक उपन्यास लिख कर अपने पाठकों तक उनके जीवन के इन अनछुए पहलुओं को पहुँचाने की इच्छा हुई ताकि मैं सेना के जवानों की कर्तव्यनिष्ठा और देश भक्ति के प्रति इस तरह से अपना आदर तथा भावनाएँ अभिव्यक्त कर सकूँ। Read Less

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 2

(10)
  • 190

  • 285

तनु के चेहरे पर अब थकान लगने लगी थी। परम ने उसे अब बाकी का काम बाद में करने को कहा। सूप पीकर और नूडल्स खाकर तनु और परम थोड़ी देर बाते करने ऊपर बालकनी में बैठ गये। दो-चार दिन ...Read Moreही पूर्णिमा आने वाली होगी। आसमान में चांद चमक रहा था। कतार में खड़े घरों की छतों पर चांदनी छिटकी हुई थी। आसपास किसी घर में रातरानी लगी होगी, हवा के झौकों के साथ-साथ उसकी मंद मधुर सुगंध भी आ जाती थी। तनु ने तय कर लिया अपने बगीचे में वह भी रातरानी का पौधा जरूर लगाएगी। नीचे दो-चार लोग टहल रहे थे। कुछेक परम और तनु के घर के सामने से गुजरते हुए उत्सुकतावश घर की ओर देख लेते थे। Read Less

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 3

(9)
  • 181

  • 297

'अरे ये तुम्हारे चेहरे पर लाल-लाल दाने से क्या हो गये हैं? सुबह-सुबह तनु के गाल और ठोडी पर लाल दाने देखकर परम घबरा कर बोला। 'तीन दिन से आपने शेव नहीं किया है तो और क्या होगा। कहा ...Read Moreना कल कि शेव बना लो। तनु नकली गुस्से से उसे देखते हुए बोली। 'ओ तोड्डी! कितनी नाजुक है मेरी बीवी। परम ठठाकर हँस पड़ा सही कहा था तुमने 'आई एम ए सिविलिएन। 'चुप रहो। तनु ने उसे झिड़का। Read Less

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 4

(5)
  • 128

  • 274

पाँच बरस पहले की वह रात आज भी याद है परम को, बरसात का मौसम था। उस साल आसमान अपनी सारी सीमाएँं तोड़कर बरस रहा था सारी सृष्टि तरबतर थी। रोज बाढ़ की खबरों से टी.वी. न्यूज चैनल भरे ...Read Moreथे। जब भी न्यूज लगाओ पानी की विनाशलीला के अलावा कहीं कोई खबर नहीं। परम की उस समय जहाँ पोस्टिंग थी, पहाड़ों की सीमा पर, वहाँ भी यही हाल था। जल जैसे सभी को अपने अगोश में समेट लेने के लिये बेताब था। रात-दिन की झमाझम से परम त्रस्त हो गया था। आस-पास के पहाड़ी इलाकों में रोज कहीं न कहीं पहाड़ धसने से छोटी-मोटी विपत्तियाँ आती ही रहती थी। Read Less

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 5

(5)
  • 138

  • 241

सैकड़ों मील दूर अहमदाबाद शहर में। रात के डेढ़ बजे एक लड़का और एक लड़की अपनी पीठ पर सामान से भरे बैग लादकर सड़क पर तेजी से चुपचाप चल रहे थे। ये नेहरू नगर था, अहमदाबाद का एक पॉश ...Read Moreयहाँ बड़े-बड़े बंगले बने हुए थे। थोड़ी देर पहले ही लड़का एक बंगले के बाहर पहुँचा, उसने मोबाइल से किसी को मैसेज किया और दो मिनट बाद ही बंगले के पीछे बने एक दरवाजे से एक लड़की बाहर निकली। सामने वाले मुख्य दरवाजे पर दो दरबान खड़े पहरा दे रहे थे। उन्हें पता भी नहीं चला कि कब बंगले के पीछे के दरवाजे से बंगले के मालिक की बेटी फरार हो गयी। जिसने शायद शाम को ही उस दरवाजे का ताला चुपचाप खोलकर रख दिया था। वे बेचारे बड़ी मुस्तैदी से पहरा दे रहे थे उन्हें क्या पता था सुबह सबेरे ही उनकी शामत आने वाली है। जैसे ही वे दोनों बंगले से दूर आ गये लड़की ने एक गहरी साँस ली। Read Less

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 6

(4)
  • 111

  • 204

थोड़ा सा नीचे जाते ही सामने का दृश्य देखकर सबके रोंगटे खड़े हो गये। पहाड़ी पर थोड़े से समतल स्थान के बाद थोड़ी तीखी ढलान थी वहाँ झाडिय़ों में जगह-जगह इंसानी लाशें अटकी हुई थीं। क्षण भर को उन ...Read Moreफौलादी सीने भी दहल गये। बहुत ही विभत्स दृश्य था। झाडिय़ों में अटककर उनके कपड़े फट गये थे। कई दिन से पहाड़ों पर से रगड़ खाकर नीचे बहते और लगातार बरसते पानी में रहने से लाशों के चेहरे क्षत-विक्षत हो गये थे। पहचान में नहीं आ रहा था कि कौन औरत है और कौन आदमी। साँस लेना दुभर था। बहुत रोकने पर भी रजनीश को उल्टी हो गयी। Read Less

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 7

(7)
  • 86

  • 167

परम क्षणभर में ही पलट कर कृष्णन के साथ हेलीकॉप्टर में बैठ गया। अमरकांत भी आ गया। तीनों फिर डयूटी पर लग गये। रिपोर्टर अपने कैमरों से शूट लेने लगे। परम का कतरा भर ध्यान उसके अनजाने में ही ...Read Moreके उस हिस्से में रह गया जहाँ वो लड़की खड़ी थी। परम की खाई में सर्च करती आँखेंं बरबस उस लड़की की ओर भी उठ जाती। वह हेलीकॉप्टर की ओर ही देख रही थी और साथ वालों को कुछ निर्देश भी देती जा रही थी। शायद वह परम का लोगों को बचाते हुए शॉट लेना चाहती थी। Read Less

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 8

(10)
  • 88

  • 213

केंप आ गया था। तनु की ओर बिना देखे परम जल्दी से अंदर चला गया। राणा, रजनीश, अमरकांत, कृष्णन सब के सब स्लीपिंग बैग्स पर औंधे पड़े थे। परम भी पाँच मिनट पीठ सीधी करने के लिये अपनी स्लीपिंग बैग ...Read Moreलेट गया। 'ऐ मायला। लेटते ही परम के पूरे शरीर में टीस उठने लगी। 'आ गये बड्डी ईश्क लड़ाकर। राणा ने परम को आँख मारकर पूछा। 'साला कालू किस्मत का बड़ा धनी है। जो लड़की देखो साले पर मर मिटती है। रजनीश ने आह भरी। Read Less

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 9

(5)
  • 76

  • 170

तनु उसी समय केंप के पास आयी। कृष्णन ने उसे हादसे के बारे में बताया। सुनकर तनु को भी बहुत बुरा लगा। बिना उसे कुछ पूछे ही कृष्णन ने ईशारा किया कि परम अंदर है और बहुत परेशान है। तनु ...Read Moreसे केंप के अंदर आयी। परम घुटनों में सिर दिये उदास बैठा था। तनु ने धीरे से परम के कंधे पर हाथ रखा। परम ने चौंक कर ऊपर देखा। तनु धीरे से परम के पास बैठ गयी। परम दो क्षण उसके चेहरे को देखता रहा। उसका मन कर रहा था कि तनु के कंधे पर सिर रखकर अपना दु:ख हल्का कर ले। कितना मजबूर होता है पुरुष भी, भावनाएँ होते हुए भी उन्हें व्यक्त नहीं कर सकता हमेशा डरता रहता है कि उसे 'कमजोर' ना समझ लिया जाय और उसी डर में अंदर ही अंदर घुटते हुए और भी ज्यादा कमजोर होता जाता है। Read Less

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 10

(6)
  • 55

  • 123

दोनों बहुत सारी बाते करते। अक्सर ही परम अपने स्कूल कॉलेज के दिनों की बातें बताता कि कैसे वह स्कूल और मुहल्ले में मारपीट करने के लिए बदनाम था। उसके घर आए दिन शिकायतें पहुँचती थी। पिताजी तो नहीं ...Read Moreमाँ उसे खूब जली कटी सुनाती थी। पढऩे में परम जितना अच्छा था स्पोट्र्स में उससे भी तेज था। उसका बक्सा ढेर सारे सर्टिफिकेट्स और मेडल्स से भरा पड़ा था। Read Less

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 11

(9)
  • 47

  • 111

विवाह का मतलब सिर्फ दो जिस्मों का एक होना ही तो नहीं होता। दो मानसिक धरातलों का एक होना भी तो जरूरी है। दो बौद्धिक स्तरों का एक होना भी जरूरी है। जहाँ यह जरूरत पूरी नहीं होती वहाँ ...Read Moreकी नदी में तलाश की लहरें उठने लगती हैं। और कभी पार किनारे तरफ अगर नदी को अपनी तलाश पूरी होते हुए दिखे तो यह पूरे वेग से अपने किनारों को तोड़ देती है। Read Less

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