Nishchhal aatma ki prem pipasa book and story is written by Anandvardhan Ojha in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Nishchhal aatma ki prem pipasa is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा .. - Novels
by Anandvardhan Ojha
in
Hindi Fiction Stories
[मित्रो, ये चर्चाएं कई किस्तों में पूरी होंगी और क्रमशः एक उपन्यास की शक्ल अख्तियार कर लेंगी शायद। आप इन्हें किस्तों में पढ़ते जाने का अवकाश निकालेंगे तो मुझे प्रसन्नता होगी। ये चर्चाएं एक ओर मैं लिखता जाऊँगा, दूसरी तरफ आपके सम्मुख रखता जाऊँगा, इसमें काल का अंतर अथवा विक्षेप भी हो सकता है, जितना अवकाश मिलेगा, उतना ही लेखन हो सकेगा...! आपकी संस्तुति और आपके मंतव्य ही तय करेंगे इस लेखन का भविष्य। बस, आप इसे पढ़ने का श्रम करें, मुझे प्रसन्नता होगी। इस लेखन से बंधु-बांधवों के दीर्घकालिक अनुरोध की पूर्ति भी कर रहा हूँ। --आनंद] प्रथम हस्तक्षेप...
[मित्रो, ये चर्चाएं कई किस्तों में पूरी होंगी और क्रमशः एक उपन्यास की शक्ल अख्तियार कर लेंगी शायद। आप इन्हें किस्तों में पढ़ते जाने का अवकाश निकालेंगे तो मुझे प्रसन्नता होगी। ये चर्चाएं एक ओर मैं लिखता जाऊँगा, दूसरी ...Read Moreआपके सम्मुख रखता जाऊँगा, इसमें काल का अंतर अथवा विक्षेप भी हो सकता है, जितना अवकाश मिलेगा, उतना ही लेखन हो सकेगा...! आपकी संस्तुति और आपके मंतव्य ही तय करेंगे इस लेखन का भविष्य। बस, आप इसे पढ़ने का श्रम करें, मुझे प्रसन्नता होगी। इस लेखन से बंधु-बांधवों के दीर्घकालिक अनुरोध की पूर्ति भी कर रहा हूँ। --आनंद] प्रथम हस्तक्षेप...
मेरे रोने की आवाज़ जैसे ही वातावरण में गूंजी, चाचाजी और उस अज्ञात स्त्री की वार्ता अवरुद्ध हो गई। चाचाजी अपनी चौकी से उठकर मेरे पास आये और पूछने लगे--'क्या हुआ, रो क्यों रहे हो ? ' मेरे मुंह ...Read Moreतो शब्द ही नहीं निकल रहे थे। बोलने की कोशिश की तो हकलाकर रह गया। चाचाजी ने मेरी मशहरी उठाई और मेरे पास बैठ गए, मेरी पीठ सहलाते हुए बार-बार अपना वही प्रश्न दुहराते रहे। थोड़ी देर में मैं संयत हुआ और अंततः मेरे मुंह से बोल फूटे--'मुझे यहां डर लग रहा है।' उन्होंने मेरी बात सुनकर कहा--'ठीक है, डरो
निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... (३) जब मैंने किशोरावस्था की दहलीज़ लांघी और मूंछ की हलकी-सी रेख चहरे पर उभर आई, तो चाचाजी मेरे प्रश्नों के संक्षिप्त और संतुलित उत्तर देने लगे। उनके पास कथाओं का अंबार था--अनुभूत सत्य से ...Read Moreकथाएं--रोमांचक! फिर भी वह आत्माओं से संपर्क के अपने अनुभव बतलाते हुए अपनी वाणी को संयमित रखते। उतना ही बताते, जितना बतलाना उचित समझते। इस विद्या के उनकी गति बहुत थी। उनके निर्देश पर आमंत्रित आत्माएं स्वयं उत्तर दे जाती थीं, पेन्सिल स्वयं खड़ी होकर प्रश्नों के उत्तर कागज़ पर लिख जाती, कोकाकोला के टिन के ढक्कन समस्याओं के समाधान
निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... (४) पूज्य पिताजी ने अपने एक लेख 'मरणोत्तर जीवन' में लिखा है--"मनुष्य-शरीर में आत्मा की सत्ता सभी स्वीकार करते हैं। शरीर मरणशील है, आत्मा अमर। मृत्यु के बाद शरीर को नष्ट होता हुआ--जलाकर, गाड़कर या ...Read Moreके द्वारा--सभी देखते हैं, लेकिन आत्मा का क्या होता है? वह कहाँ जाती है? क्या करती है? शरीर के नष्ट होने के बाद उसका अधिवास कहाँ होता है? क्या इस जगत से उसका सम्बन्ध बना रहता है? क्या वह व्यक्ति-विशेष का ही प्रतिनिधित्व करती है? ये और इससे सम्बद्ध अन्य अनेक प्रश्न स्वभावतः मानव-मन में उठते रहते हैं। लेकिन आज
['यह रूहों की सैरगाह है...!'] दो वर्षों के कानपुर प्रवास के वे दिन मौज-मस्ती से भरे दिन थे। दिन-भर दफ्तर और शाम की मटरगश्तियां, यारबाशियाँ। कुछ दिनों बाद मैंने भी एक साइकिल का प्रबंध कर लिया था। ध्रुवेंद्र के ...Read Moreमैं शहर-भर के चक्कर लगा आता। आर्य नगर हमारा मुख्य अड्डा बन गया था, जहां शाही के कई पुराने मित्र भी थे। उनसे मेरे भी मैत्री-सम्बन्ध बन गए थे। कभी-कभी गंगा-किनारे भैरों (भैरव)) घाट तक मैं अकेला चला जाता, जो तिलक नगर के आगे पड़ता था। जाने क्यों, उन दिनों श्मशान में जलती चिताएं मुझे आकर्षित करती थीं और गंगा