Bahikhata book and story is written by Subhash Neerav in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Bahikhata is also popular in Biography in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
बहीखाता - Novels
by Subhash Neerav
in
Hindi Biography
पहला कदम
बचपन की पहली याद के बारे में सोचती हूँ तो मुँह पर ठांय-से पड़े एक ज़ोरदार थप्पड़ की याद आ जाती है। इस थप्पड़ से पहले की कुछ यादें अवश्य हैं, पर वे सभी यादें धुँधली-सी हैं। इसी प्रकार धुँधली-सी स्मृति वह भी है जब मैं गांव कांजली में गुरु ग्रंथ साहिब की ताबिया पर बैठकर पाठ किया करती थी। मेरे नाना जी ने बचपन में ही मुझे बहुत सारी बाणी कंठस्थ करवा दी थी। परंतु यह थप्पड़ वाली याद कुछ अधिक साफ़ है। जब थप्पड़ बजा होगा तो मुझे इस बारे में कुछ भी पता नहीं होगा, पर बाद में शीघ्र ही पता चल गया था कि यह मेरे स्कूल में बजा था। मैं गलत कक्षा में बैठने की कोशिश कर रही थी। मेरी क्लास तो कच्ची की थी, पर मैं सातवीं कक्षा में अपनी बहन के पास बैठने की ज़िद कर रही थी। स्कूल था - खालसा हाॅयर सेकेंडरी स्कूल, चूना मंडी, पहाड़गंज। कोई चार साल की आयु थी मेरी, मगर स्कूल में प्रवेश लेने के लिए पाँच वर्ष की आयु चाहिए थी। स्कूल की अध्यापिका ने स्वयं ही हिसाब लगाकर मुझे पाँच वर्ष की बना दिया था और मुझे दाखि़ला दे दिया था। यही कारण है कि मेरी असल जन्मतिथि 5 नवंबर 1949 के स्थान पर 20 अक्तूबर 1948 बना दी गई थी।
बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 1 पहला कदम बचपन की पहली याद के बारे में सोचती हूँ तो मुँह पर ठांय-से पड़े एक ज़ोरदार थप्पड़ की याद आ जाती है। इस थप्पड़ से पहले की ...Read Moreयादें अवश्य हैं, पर वे सभी यादें धुँधली-सी हैं। इसी प्रकार धुँधली-सी स्मृति वह भी है जब मैं गांव कांजली में गुरु ग्रंथ साहिब की ताबिया पर बैठकर पाठ किया करती थी। मेरे नाना जी ने बचपन में ही मुझे बहुत सारी बाणी कंठस्थ करवा दी थी। परंतु यह थप्पड़ वाली याद कुछ अधिक साफ़ है। जब थप्पड़ बजा होगा
बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 2 पहाड़गंज पहाड़गंज का मुल्तानी ढांडा, गली नंबर चार। यह गली सभी गलियों से चैड़ी होती थी। गली के दोनों ओर घर होते थे। हमारे घर के दोनों तरफ जो ...Read Moreथे, उनमें हमारे वही रिश्तेदार और पड़ोसी रहते थे जो पाकिस्तान में भी साथ-साथ रहते आए थे। गुजरांवाले ज़िले के एक गांव ‘गुरु कीआं गलोटियाँ’ से पाँच-सात घर इकट्ठे ही उठे थे और इकट्ठे ही यहाँ आ बसे थे। इनमें एक घर लाहौरियों का भी आ बसा था, पर शीघ्र ही वे भी दूसरे रिश्तेदारों की भाँति लगने लग पड़ा
बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 3 ट्रकों वाले गली नंबर चार के एक कोने पर ट्रकों वालों का घर था। वैसे गली दोनों तरफ खुलती थी, थी क्या अभी भी खुलती है। इस घर में ...Read Moreपरिवार रहते थे। इस परिवार की दोनों बहनें आपस में देवरानी-जेठानी भी लगती थीं और दोनों भाई साढ़ू भी। दोनों घरों के मुख्य कमरे और रसोइयाँ अलग अलग थीं, लेकिन आँगन और टायलेट साझा ही था। इनके घर का आकार बड़ा होने के कारण आँगन भी काफ़ी खुला-खुला लगता था। ये दोनों परिवार रावलपिंडी से आकर यहाँ बस गए थे।
बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 4 अंदर की दुनिया मेरी हालत अजीब-सी रहने लगी। मैं खोयी खोयी घूमने लगी। यद्यपि मैं पूरी तरह नहीं जानती थी कि मेरे साथ क्या हुआ, पर इतना अवश्य पता ...Read Moreकि कोई गन्दी बात हुई थी। चूचो के मामा ने बहुत गलत हरकत की थी मेरे संग। न किसी को बताने योग्य थी और न कुछ और करने लायक। एक अजीब-सा डर, नफ़रत, अलगाव मेरे अंदर घर करने लगा। मैं घर में उखड़ी-उखड़ी रहती, पर कोई मेरी ओर देखता ही नहीं था, मानो किसी को मेरी चिंता ही नहीं थी।
बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 5 मिडल स्कूल यह सन् 1960 की बात है जब मैं प्राइमरी की पढ़ाई पूरी करके मिडल स्कूल में पहुँच गई थी। मिडल स्कूल कोई अलग स्कूल नहीं था। एक ...Read Moreस्कूल की आमने-सामने दो इमारतें थीं। एक इमारत में प्राइमरी की पढ़ाई और दूसरी इमारत में मिडल और हॉयर सेकेंडरी की पढ़ाई हुआ करती थी। मेरे छठी कक्षा में पहुँचने और दूसरी इमारत में जाने से पहले ही मेरी बड़ी बहन आठवीं पास करके स्कूल छोड़कर जा चुकी थी। उसने मैट्रिक करने के लिए किसी प्राइवेट कालेज में दाखि़ला ले