Dasta e dard book and story is written by Pranava Bharti in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Dasta e dard is also popular in Moral Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
दास्ताँ ए दर्द ! - Novels
by Pranava Bharti
in
Hindi Moral Stories
दास्ताँ ए दर्द ! 1 रिश्तों के बंधन, कुछ चाहे, कुछ अनचाहे ! कुछ गठरी में बंधे स्मृतियों के बोझ से तो कुछ खुलकर बिखर जाने से महकी सुगंध से ! क्या नाम दिया जा सकता है रिश्तों को ? उड़ती सुगंधित बयार ? सूर्य से आलोकित देदीप्यमान प्रकाश स्तंभ ? टूटे बंजारे की दूर तक चलती पगडंडी या ---पता नहीं, और क्या ? लेकिन वे होते हैं मन की भीतरी दीवार के भीतर सहेजकर रखी कुनमुनी धूप से जिन्हें मन में बर्फ़ जमने पर अदृश्य खिड़की की झिर्री से मन-आँगन को गर्माहट मिल सकती है सुन्न पड़े हुए मन के हाथ-पाँव क्षण भर में
दास्ताँ ए दर्द ! 1 रिश्तों के बंधन, कुछ चाहे, कुछ अनचाहे ! कुछ गठरी में बंधे स्मृतियों के बोझ से तो कुछ खुलकर बिखर जाने से महकी सुगंध से ! क्या नाम दिया जा सकता ...Read Moreरिश्तों को ? उड़ती सुगंधित बयार ? सूर्य से आलोकित देदीप्यमान प्रकाश स्तंभ ? टूटे बंजारे की दूर तक चलती पगडंडी या ---पता नहीं, और क्या ? लेकिन वे होते हैं मन की भीतरी दीवार के भीतर सहेजकर रखी कुनमुनी धूप से जिन्हें मन में बर्फ़ जमने पर अदृश्य खिड़की की झिर्री से मन-आँगन को गर्माहट मिल सकती है सुन्न पड़े हुए मन के हाथ-पाँव क्षण भर में
दास्ताँ ए दर्द ! 2 रवि पंडित जी ! ओह ! अचानक कितना कुछ पीछे गया हुआ स्मृति में भर जाता है | रीता व देव की देखा-देखी रवि पंडित जी भी उसे दीदी कहने लगे थे ...Read Moreयानि वहाँ वह सबकी दीदी ही थी, एक ऎसी दीदी जो वैसे तो हर जात-बिरादरी से अलग थी लेकिन वैसे ब्राह्मण थी, पंडिताइन ! अब उसका क्या किया जाए जब ऊपर से ही उसने ब्राह्मण-कुल में जन्म लिया था | रवि भी कुछ वर्ष पूर्व भारत से आकर वहाँ बस गए थे, पता नहीं उनकी ज्योतिष विद्या में कितना दम था पर वे पंडिताई तो करते
दास्ताँ ए दर्द ! 3 वह दिन प्रज्ञा के लिए यादगार बन गया था | वह अकेली लंदन की सड़कों पर घूम रही थी, किसी भी दुकान में घुसकर 'विंडो-शॉपिंग' करने में उसे बड़ा मज़ा आ रहा ...Read More| वह एक आर्टिफ़िशियल ज्वेलरी की दुकान में घुस गई थी और वहाँ की सरदार मालकिन से बातें करने लगी थी जिसका पति टैक्सी चलाता था और वह स्वयं एक दुकान की मालकिन थी | "कुछ ले लो बहन जी ----" काफ़ी शुद्ध हिंदी बोलती थीं वो, बता दिया उन्होंने, दिल्ली में जन्मी, बड़ी हुई थीं |शादी के बाद यहाँ आई थीं, पच्चीस बरस से ज़्यादा
दास्ताँ ए दर्द ! 4 कुछ देर बाद रवि भी मंदिर पहुँच गए और भजनों के सम्मिलित स्वर में अपना स्वर मिलाने की चेष्टा करने लगे | बेसुरे थे वो किन्तु तबले व हारमोनियम के मद्धम सुरों ...Read Moreउन्हें अपने सुर में ढालने की चेष्टा की, भजन-मंडली के चयनित भजन सबको आते थे सो रवि के साथ तबले की थाप पर सबने उनका साथ दिया | सबका एक ही मक़सद था, आनंदानुभूति ! वो हो रही थी और क्या चाहिए? शायद उस दिन थोड़े समय में ही रवि का 'व्यापार' भी बहुत अच्छा हुआ था, उनके चेहरे पर लिखा था | होता ही है भई, आदमी
दास्ताँ ए दर्द ! 5 उस दिन प्रज्ञा वास्तव में बहुत थक गई थी, बाद में मानसिक रूप से भी उन महाराज के वचनों व वहाँ की परिस्थिति ने उसमें अजीब सी थकान भर दी थी ...Read Moreअगले दिन उसने सारी कहानी रीता को बताई ; "दीदी ! अपने सर्वाइवल के लिए न जाने आदमी क्या-क्या नाटक करता है ---!!" उसने व्यंग्य से कहा | यह कहते हुए उसने एक लंबी साँस खींची थी | " सर्वाइवल नहीं केवल ----" वह कोई कठोर बात बोलने जा रही थी, रीता का उतरा चेहरा देखकर चुप रह गई | चतुरानन्द का काइयाँ चेहरा व दृष्टि